राज्यसभा में डीएमके उम्मीदवार पर दांव क्यों खेल रही है कांग्रेस?

बहुमत न होने पर भी राज्यसभा उपसभापति के चुनाव में अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने के मूड में कांग्रेस, सोची समझी रणनीति के तहत के तहत लिया फैसला, खेमों से बाहर तमिल पार्टियों के लिए असमंजस की स्थिति

Congress And Dmk
Congress And Dmk

Politalks.News/Rajasthan. 245 सदस्यों वाले उच्च सदन यानि राज्यसभा (RajyaSabha) में कांग्रेस बहुमत से काफी पीछे है. कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए समर्थक दलों के पास 90 राज्यसभा सांसद हैं. वहीं, सपा, बसपा, आम आदमी पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस, टीआरएस और बीजेडी जैसे विपक्षी दल कांग्रेस से दूरी बनाए हुए हैं. इसके बाद भी राज्यसभा उप सभापति के चुनाव में बीजेपी नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को कांग्रेस अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने के पूरे मूड में लग रही है. संसद का मानसून सत्र 14 अक्टूबर से शुरू हो रहा है. उच्च सदन के उपसभापति रहे हरिवंश नारायण सिंह का कार्यकाल इसी साल अप्रैल में खत्म हो चुका है. ऐसे में उप सभापति का चुनाव फिर से होना है.

नामांकन की तिथि 11 सितंबर है. ऐसे में एक सोची समझी रणनीति के तहत कांग्रेस ने एक बड़ा और अहम फैसला लेते हुए अपना उम्मीदवार न उतार कर डीएमके उम्मीदवार पर अपना सियासी दांव खेला है. इधर, बीजेपी ने 14 सितम्बर के लिए व्हीप जारी कर दिया है.

कांग्रेस का यह दांव अच्छे अच्छे राजनीतिज्ञों के समझ में नहीं आ रहा लेकिन सोनिया गांधी का ये कोई कच्चा नहीं बल्कि के 22 सालों का ये राजनीतिक तजुर्बे वाली सोची समझी रणनीति है. गौरतलब है कि अगस्त, 2018 में कांग्रेस नेता पीजे कुरियन का कार्यकाल खत्म होने के बाद जदयू सांसद हरिवंश नारायण सिंह उपसभापति बने थे. हरिवंश के खिलाफ कांग्रेस ने बीके हरि प्रसाद को मैदान में उतारा था. एआईएडीएमके, बीजेडी और टीआरएस के एनडीए के पक्ष में खड़े हो जाने से कांग्रेस की जीत का समीकरण पूरी तरह से गड़बड़ा गया था. हरिवंश को 125 वोट मिले, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार को 105 वोट ही मिल सके. इस तरह से कांग्रेस की हार में दक्षिण भारत के छत्रपों की अहम भूमिका रही थी.

यह भी पढ़ें: बिहार में चुनाव से पहले जदयू के खिलाफ चिराग का यूं मुखर होना बीजेपी का सियासी दाव तो नहीं

राज्यसभा के उप सभापति रहे हरिवंश नारायण सिंह का कार्यकाल इसी साल अप्रैल में खत्म हो चुका है. ऐसे में उप सभापति का चुनाव दोबारा से होना है. एनडीए की ओर से एक बार फिर हरिवंश सिंह उप सभापति के लिए मैदान में उतरे हैं. उन्होंने अपना नामांकन दाखिल कर दिया है. अब कांग्रेस ने अपनी रणनीति के तहत डीएमके उम्मीदवार पर दांव खेलते हुए विपक्षी दलों को एकजुट करने की रणनीति अपनाई है.

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में हुई बैठक में पार्टी ने उपसभापति के लिए अपना प्रत्याशी उतारने के बजाय डीएमके सांसद को लड़ाने की रणनीति बनाई है. कांग्रेस के कैंडिडेट होने से एक बार फिर एआईएडीएमके, बीजेडी, टीआरएस और वाईएसआर जैसे दल एनडीए के साथ खड़े हो सकते हैं. चूंकि अब कैंडिडेट डीएमके का है तो ऐसे में सपा, बसपा, आप जैसी पार्टियों के साथ अन्य विपक्षी दलों का भी समर्थन जुटाने की रणनीति पर कांग्रेस काम कर रही है. डीएमके ने सांसद तिरुचि शिव को अपना उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतारा है.

कांग्रेस ने डीएमके के सांसद का नाम आगे बढ़ाकर यह संदेश दे दिया है कि एनडीए की राह पिछली बार की तरह आसान नहीं रहने वाली है. मौजूदा समय में एनडीए और यूपीए दोनों के पास सदन में बहुमत से कम संख्या है. ऐसे में उन दलों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई जो एनडीए और यूपीए में से किसी भी खेमे में नहीं हैं. गैर-एनडीए और गैर यूपीए के दल ही सबसे अहम भूमिका में है क्योंकि इनकी संख्या राज्यसभा में 68 है. बीजेपी के 87 सहित एनडीए के पास 116 सांसद हैं और उन्हें बहुमत के लिए 10 सांसदों की जरूरत होगी.

कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए समर्थक दलों के पास राज्यसभा में 70 सांसद हैं. सपा, बसपा, आम आदमी पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस, टीआरएस और बीजेडी जैसे विपक्षी दल कांग्रेस से दूरी बनाए हुए हैं. हालांकि, डीएमके अगर इन विपक्षी दलों के समर्थन जुटाने में कामयाब रहता है तो एनडीए प्रत्याशी हरिवंश सिंह की राह मुश्किलों भरी हो जाएगी. वैसे वाईआरएस कांग्रेस और एआईएडीएमके को कांग्रेस समर्थित माना जाता है लेकिन डीएमके प्रत्याशी की तमिल अस्मिता दोनों पार्टियों को भी कशकमश में डाल सकती है.

यह भी पढ़ें: क्या संजय राउत को मिला कंगना से भिड़ने का इनाम? बने शिवसेना के मुख्य प्रवक्ता

हालांकि ये सब पापड़ बेलने के बाद भी एनडीए के सामने कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की एकजुटता फीकी पड़ती दिख रही है. बेहद कम संभावना है कि विपक्ष सत्ताधारी एनडीए पर भारी पड़े. वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस की यह लड़ाई भले ही देखने में प्रतीकात्मक लग रही हो और विपक्ष के पास एनडीए उम्मीदवार को हराने के लिए संख्या न दिख रही हो, इसके बावजूद कांग्रेस नेतृत्व एनडीए उम्मीदवार को निर्विरोध नहीं होने देना चाहती. इतना ही नहीं, कांग्रेस मानसून सत्र से पहले विपक्षी दलों को एकजुट कर अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास भी कराकर बड़ा राजनीतिक संदेश देना चाहती है. हालांकि एनडीए के लिए उच्च सदन में उप सभापति पद के लिए ये लड़ाई उतनी मुश्किल न हो लेकिन अगर ये साथ बना रहा तो दूरगार्मी परिणाम बीजेपी और एनडीए के लिए आत्मघाती साबित होंगे, ये कहना गलत नहीं होगा.

Leave a Reply