आखिर मोदी सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर के डेलिगेशन में शशि थरूर को ही क्यों चुना? जानिए 7 वजह

ऑपरेशन सिंदूर पर भारत का पक्ष रखने के लिए बनाए गए डेलिगेशन का नेतृत्व करेंगे शशि थरूर, कांग्रेस ने नाम ही आगे नहीं बढ़ाया, बीजेपी ने खेला केरल कार्ड

Government's diplomatic outreach team
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केंद्र की मोदी सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर और पाकिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ भारत का रुख बताने के लिए एक सर्वदलीय डेलिगेशन बनाया है. ये डेलिगेशन दुनिया के बड़े देशों, खासकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यानी UNSC के सदस्य देशों का दौरा करेगा और भारत का पक्ष रखेगा. इस प्रतिनिधिमंडल में सभी राजनीतिक दलों के 7 नेताओं के नाम शामिल है लेकिन जो नाम चर्चा में चल रहा है, वो है कांग्रेस नेता श​शि थरूर का. भारतीय जनता पार्टी ने शशि थरूर को इस दल का अगुवा बनाया है. थरूर ने भी भारत सरकार के निमंत्रण से सम्मानित महसूस करने की बात कही है. इधर कांग्रेस का कहना है कि हमने थरूर का नाम दिया ही नहीं.

अब यहां सवाल ये आता है कि आखिर मोदी सरकार ने कांग्रेस की ओर से दिए गए नामों की बजाय शशि थरूर को ही क्यों चुना? क्या है इसके पीछे की कहानी या पर्दे के पीछे है कोई दूसरा सच? जानेंगे आज..

क्या है पूरा डेलीगेशन विवाद?

दरअसल केंद्र सरकार ने सिंदूर और पाकिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ भारत का रुख बताने के लिए एक डेलिगेशन बनाया है. 7 सर्वदलीय डेलिगेट्स जल्द ही बड़े देशों का दौरा करेंगे, जो आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई के बारे में बताएंगे. यह डेलिगेशन 23 या 24 मई को 10 दिनों के लिए भारत से रवाना होंगे. वहां बताएंगे कि आतंकवाद के खिलाफ भारत का दृष्टिकोण क्या है और ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के खिलाफ एक्शन क्यों व कैसे लिया गया.

इन सात डेलिगेशन का नेतृत्व तिरुवनन्तपुरम से 4 बार के लोकसभा सांसद एवं कांग्रेस नेता शशि थरूर, बीजेपी सांसद रविशंकर प्रसाद व बैजयंत पांडा, जदयू के राज्यसभा सांसद संजय कुमार झा, शिवसेना के लोकसभा सांसद श्रीकांत शिंदे, डीएमके सांसद कनिमोझी करुणानिधी और शरद पवार गुट की लोकसभा सांसद सुप्रिया सुले अलग अलग करेंगे.

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इस पर कांग्रेस का कहना है कि पार्टी ने शशि थरूर का नाम आगे बढ़ाया ही नहीं, इसके बावजूद सरकार ने उन्हें डेलिगेट बना दिया. कांग्रेस ने आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, डॉ. सैयद नसीर हुसैन और राजा बरार​​ के नाम दिए थे. केंद्र ने केवल आनंद शर्मा को शामिल किया है. सूत्रों की माने तो शशि थरूर को सामने लाकर बीजेपी ने राजनीतिक कूटनीति का सहारा लिया है. अब अगर थरूर इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल होते हैं तो पार्टी से उनकी रवानगी पक्की है.

शशि थरूर को ही क्यों चुना?

वजह 1 – सभी राजनीतिक तथ्यों को नजर अंदाज कर दिया जाए तो शशि थरूर का नाम आगे न बढ़ाना कांग्रेस की गलती मानी जाएगी. शशि थरूर ने 1978 से 2007 तक यूनाइटेड नेशन्स में विभिन्न पदों पर काम किया. उनकी वैश्विक मंचों पर बोलने की क्षमता और कूटनीतिक समझ बहुत बेहतर है. थरूर अच्छी अंग्रेजी बोल लेते हैं और उन्होंने अमेरिका-यूके में काफी वक्त गुजारा है. ऐसे में उन्हें भारत के डेलिगेट के तौर पर बेहतर नेता माना जा सकता है.

वजह 2 – शशि थरूर को चुने जाने की यही एक वजह नहीं है. इसके राजनीतिक मायने भी हैं. शशि थरूर ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के लिए सरकार की प्रशंसा की थी, जो कांग्रेस के बिहेवियर से काफी अलग थी. उन्होंने इसे संयमित और सटीक कार्रवाई बताया था. इसके लिए कांग्रेस के कुछ नेताओं से उन्हें लताड़ भी झेलनी पड़ी थी लेकिन उसके बाद भी थरूर ने सार्वजनिक मंच पर इसे फिर से दोहराया. केंद्र को भी लग रहा है कि वह भारत की स्थिति को बेहतर ढंग से पेश कर सकते हैं. वहीं कांग्रेस ने जो 4 नाम दिए थे, वो सभी पाकिस्तान और तुर्किये जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरते आए हैं.

वजह 3 – पिछले कुछ समय से थरूर की ओर से इशारे मिलना शुरू हो गए है ंकि कांग्रेस और उनके बीच सबकुछ ठीक नहीं है. एक पॉडकास्ट में  शशि थरूर ने सार्वजनिक तौर पर इसके स्वीकार किया था. उन्होंने कहा, ‘अगर मेरी सेवाओं की जरूरत नहीं है, तो मेरे पास बहुत विकल्प हैं. अगर पार्टी मेरा इस्तेमाल करना चाहती है, तो पार्टी के लिए मौजूद हूं. अगर नहीं तो मेरे पास करने के लिए मेरी चीजें हैं. आपको नहीं सोचना चाहिए कि मेरे पास दूसरे विकल्प नहीं हैं.’ शशि थरूर के इस बयान से कयास लगाए जाने लगे कि वे कांग्रेस छोड़ सकते हैं.

वजह 4 – अन्य मौकों पर भी शशि थरूर केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ कर चुके हैं. उन्होंने फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से मुलाकात की तारीफ कर दी. उन्होंने पीएम मोदी के दौरे को काफी अच्छा बताया. ऐसे में माना जाने लगा था कि थरूर का झुकाव बीजेपी की तरफ होने लगा है. बीजेपी नेताओं के साथ सोशल मीडिया पर फोटोज ने भी काफी बवाल मचाया था.

वजह 5 – जिन मुद्दों पर कांग्रेस केंद्र सरकार को घेरती आ रही है, उन मुद्दों पर शशि थरूर ने खुलकर मोदी सरकार की तारीफ की है. थरूर ने F-35 फाइटर जेट की डील को लेकर भी केंद्र सरकार की खुलकर तारीफ की थी, जबकि कांग्रेस इस जेट को कबाड़ बता रही थी. वहीं मार्च 2025 में शशि थरूर ने भारत की विदेश नीति की सराहना की थी. रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत की कूटनीति पर दिए थरूर के एक बयान पर तो केरल बीजेपी के अध्यक्ष के सुरेंद्रन ने कहा था, ‘शशि थरूर ने सच स्वीकार किया है, जो कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के मुंह पर तमाचा है. राहुल हमेशा भारत की विदेश नीति की आलोचना करते हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सवाल उठाते हैं.’

वजह 6 – बीजेपी केरल में चुनाव जीतना चाहती है और उसे शशि थरूर के रूप में बड़ा चेहरा दिख रहा है. 2024 में लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने शशि थरूर के सामने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर को उतारा था लेकिन थरूर ने उन्हें धूल चटाई थी. कड़ी मेहनत करने के बावूद बीजेपी राज्य में एक ही सीट जीत पाई. वहीं मोदी लहर के बावजूद थरूर ने 2014, 2019 और 2024 का लोकसभा चुनाव बिना किसी परेशानी से जीता है. अब बीजेपी की कोशिश है कि थरूर को ही कांग्रेस से तोड़ लिया जाए. इससे बीजेपी को केरल में मजबूती मिलेगी.

वजह 7 – शशि थरूर अपने आप को केरल के अगले मुख्यमंत्री के रूप में देखते हैं, जो फिलहाल कांग्रेस में रहते हुए पूरा होना मुश्किल लग रहा है. इससे पहले 2022 में जब कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हुआ तो गांधी परिवार की पहली पसंद मल्लिकार्जुन खड़गे रहे, जबकि शशि थरूर पद के दावेदार थे. हालांकि पार्टी ने थरूर पर खड़गे को तरजीह दी. उस समय भी थरूर की नाराजगी सामने आयी थी. थरूर ने 2024 के लोकसभा चुनावों में यह भी कह दिया था कि यह मेरा आखिरी लोकसभा चुनाव है. इससे कयास लगाए गए कि वे अब केरल की राजनीति में दिलचस्पी लेंगे.

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इन सभी वजहों के मद्देनजर जब बीजेपी ने अपनी कूटनीति खेली तो शशि थरूर ने भी इसे हाथों हाथ स्वीकारा है. ये तो निश्चित है कि अगर थरूर बीजेपी का ऑफर स्वीकार करते हैं तो कांग्रेस से उनकी छुट्टी पक्की है. हालांकि ये रास्ता उनके लिए कांटों भरा है. अब आगे तो वक्त ही बताएगा कि डेलीगेशन मुद्दे पर शशि थरूर का स्टैंड क्या रहता है.

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