पॉलिटॉक्स न्यूज़/दिल्ली. लोकसभा के बजट सत्र के दूसरे चरण में शुक्रवार को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की अनुदान मांगों पर चर्चा हुई. इस चर्चा में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के मुखिया व नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने आरक्षित वर्गों के हितों के संरक्षण से लेकर अनुसूचित जाति, जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों सहित अन्य पदों में आई कमी पर चिंता व्यक्त करते हुए कई मुद्दों पर अपनी बात रखी.
सांसद बेनीवाल ने हाल ही में राजस्थान के नागौर जिले के करणु में दलित युवकों के साथ हुई अमानवीय घटना, बाड़मेर में पुलिस हिरासत में हुई दलित युवक की मौत और जालोर में दलित युवक की हत्या के मामलों का जिक्र करते हुए कहा कि जिन वर्गों की वजह से राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी आज उन्ही वर्गों को प्रताड़ित किया जा रहा है जो की चिंता का विषय है.
सांसद हनुमान बेनीवाल ने आगे कहा कि केंद्र सरकार ने पिछले 6 सालों में देश के आम गरीब को घर से लेकर आम सुविधाएं जिस तरह से उपलब्ध करवाई है. इससे देश का वंचित और शोषित तबका भी प्रधानमंत्री मोदी की तरफ देख रहा है, क्योंकि उन्हें राज्य की बजाय केंद्र की सरकार से ज्यादा अपेक्षा है. इसके साथ ही बेनीवाल ने कहा कि संविधान जब बना तब बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की बहुत बड़ी भूमिका थी क्योंकि अनपढ़ लोगों को मत का अधिकार भी अम्बेडकर के साथ किसान समुदाय के नेताओं की मेहनत का ही परिणाम है.
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सांसद बेनीवाल ने आगे कहा कि सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक न्याय देने का संकल्प मोदी सरकार ने लिया. मोदी सरकार ने सभी राज्यों को दलितों व वंचितों को सामाजिक न्याय दिलवाने के लिए निर्देश भी दिये, लेकिन संविधान लागू होने के 70 साल बाद भी सामाजिक न्याय उपेक्षित तबकों से बहुत दूर है. यह दर्शाता है कि चुनी हुई सरकारें अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के संरक्षण में काफी विफल रही है.
सांसद बेनीवाल ने आगे कहा कि भारत की कुल जनसंख्या में से अनुसूचित जाति की संख्या 16 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति की 6 प्रतिशत व अन्य पिछड़ा वर्ग की संख्या 41 प्रतिशत है. इन तबकों को संविधान प्रदत आरक्षण व सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलने के बावजूद केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 5.9 प्रतिशत प्रोफेसर अनुसूचित जाति, 0.73 प्रतिशत अनुसिचित जनजाति तथा 0.33 प्रतिशत ओबीसी वर्ग के है जो की अत्यंत चिंता का विषय है. इसलिए केंद्रीय विश्वविद्यालयों सहित अन्य विभागों में आरक्षित वर्गों के रिक्त पड़े पदों को आरक्षित वर्गों से ही भरा जाए.
सांसद बेनीवाल ने राजस्थान उच्च न्यायालय के जजों में आरक्षित वर्गों के जजों के आंकड़े नगण्य होने की तरफ भी सरकार का ध्यान आकर्षित किया. इसके साथ ही सांसद ने कहा कि देश का किसान अत्यंत पीड़ा में होने के बावजूद भी देश को अन्न उत्पादन करके देता है. किसानों को अपनी सामाजिक न्याय की लड़ाई के लिए सड़कों पर संघर्ष करना पड़ता है. बेनीवाल ने हरियाणा जाट आरक्षण, महाराष्ट्र के मराठा आरक्षण, गुजरात के पटेल आरक्षण और राजस्थान के गुर्जर आरक्षण में मारे गये लोगों का उदाहरण देते हुए कहा कि किसान समुदाय के लोग सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सुनिश्चतता केंद्र को करने की जरूरत है.
सांसद बेनीवाल ने आगे कहा कि जिस किसान के पास 5 एकड़ से अधिक जमीन है उस किसान को संविधान में आरक्षण के दायरे से बाहर रखा जा रहा है, जो कि बहुत बड़ी चिंता का विषय है. इस तरह का राइडर आर्थिक रूप से पिछड़े भारत के किसान के सामने दण्ड के रूप में साबित हो रहा है. बेनीवाल ने आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को मिले आरक्षण में भी 5 एकड़ जमीन के राइडर को हटाने की मांग की.
सांसद बेनीवाल ने घुमंतु जातियों के हकों पर बात सदन में रखते हुए कहा कि बंजारा समाज, गाड़िया लुहार आदि वर्गों के लोग कड़ाके की ठंड व तपति धुप में बिना आशियाने के रहते है. सरकार 2008 में घुमन्तु व अर्ध घुमन्तु जातियों के लिए रणके कमीशन ने जो रिपोर्ट दी उसको तत्काल लागू करे. बेनीवाल ने आगे कहा कि समाज के ढाँचे को मजबूत करने के लिए समाज को नशा मुक्त करने की दिशा में सरकार को बहुत बड़ा कदम उठाने की जरूरत है. प्रत्येक उपखण्ड व जिले में नशा मुक्ति केंद्र खोलने व निर्भया कांड के दोषियो को तत्काल फांसी देने की भी बेनीवाल ने मांग की.
सांसद बेनीवाल के अभिभाषण पर अपने विचार व्यक्त करते हुए बीकानेर सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने भी करणु की घटना को प्रदेश के लिए शर्मशार करने वाली घटना बताया. इसके साथ ही मंत्री मेघवाल ने कहा कि आजादी के 70 साल बाद भी जिस तरह दलित उत्पीड़न की घटनाएं सामने आती है उससे यह जाहिर है कि आज भी अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति को पूर्ण रूप से सामाजिक न्याय नहीं मिल पा रहा है.