अदालत सड़कों पर पैदल चलने वालों को कैसे रोक सकती है: सुप्रीम कोर्ट

केंद्रीय गृह मंत्रालय के लॉकडाउन में पूरा पेमेंट देने संबंधी फैसले पर रोक लगाई, सड़कों और पटरियों पर प्रवासी मजदूरों को रोकने का अधिकार राज्यों पर छोड़ा, वकीलों को लगाई झाड़

Supreme Court सुप्रीम कोर्ट
Supreme Court सुप्रीम कोर्ट

पॉलिटॉक्स न्यूज. कोरोना संकट और लॉकडाउन के चलते भूखों मरने की दहलीज पर आ चुके प्रवासी मजदूर लाख मनाही और समझाइश के बाद भी सड़कों पर पैदल हजारों किमी. का सफर तय करने से नहीं रूक रहे. इनमें से कुछ साइकिलों पर भी अपने गृह राज्यों को रवाना हो रहे हैं. इसी से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत रेलवे लाइन या सड़कों पर पैदल चलने वाले प्रवासियों को कैसे रोक सकती है? सर्वोच्य अदालत ने कहा कि हम केवल अनुरोध कर सकते हैं कि लोगों को चलना नहीं चाहिए लेकिन उन्हें रोकने के लिए बल प्रयोग करना ठीक नहीं होगा. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि ये राज्य सरकारों पर है कि वे कार्रवाई करें.

इस फैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों को रोकने और उन्हें शेल्टर होम में रखने के निर्देश देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. इसके साथ ही कोर्ट ने लॉकडाउन में आर्थिक नुकसान से जूझ रहे निजी कंपनियों को बड़ी राहत देते हुए केंद्र और राज्यों से मजदूरी का भुगतान न कर पाने पर निजी कंपनियों, कारखानों आदि के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाने को कहा.

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प्रवासी मजदूरों के पैदल सड़क और पटरियों पर चलने संबंधि याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि लोग चल रहे हैं और रुक नहीं रहे हैं, हम इसे कैसे रोक सकते हैं? ये राज्य सरकारों पर है कि वे इस संबंध में कार्रवाई करें. कोर्ट ने पूछा कि यह अदालत क्यों तय करे या सुने? इस अदालत के लिए यह निगरानी करना असंभव है कि कौन चल रहा है. वकील अलख अलोक ने अपनी याचिका में कहा कि औरंगाबाद में 16 प्रवासियों की मौत हो गई. ऐसे में इस पर कोई नियम बनाया जाए.

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसीटर जनरल से पूछा क्या प्रवासियों को सड़क पर चलने से रोकने का कोई तरीका है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर वकील अखबारों में घटनाओं के बारे में पढ़ता है और हर विषय का जानकार बन जाता हैं. आपका ज्ञान पूरी तरह से अखबार की खबरों पर आधारित है और फिर जनहित याचिका के जरिए इस अदालत से फैसला करना चाहते हैं.

कोर्ट ने इस संबंध में साफ कहा कि हम केवल अनुरोध कर सकते हैं कि लोगों को चलना नहीं चाहिए लेकिन लोगों को रोकने के लिए बल प्रयोग करना ठीक नहीं होगा. उन्होंने इस संबंध में कोई भी निर्णय करने का अधिकार राज्य सरकारों पर छोड़ दिया है.

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वहीं सुप्रीम कोर्ट ने लॉकडाउन में पूरा वेतन नहीं दे पाने वाली कंपनियों को बड़ी राहत देते हुए इनके खिलाफ मुकदमा नहीं चलाने का आदेश दिया है. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने गृह मंत्रालय के आदेश पर रोक लगाई है. देश की सर्वोच्च अदालत ने पूरे देश में प्रशासन को आदेश दिया कि वे उन नियोक्ताओं (एंप्लॉयर्स) के खिलाफ मुकदमा न चलाएं, जो कोविड-19 के कारण राष्ट्रव्यापी बंद के दौरान कामगारों को पूरे पारिश्रमिक का भुगतान करने में असमर्थ हैं. इससे पहले 29 मार्च को एक सर्कुलर के जरिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने निजी प्रतिष्ठानों को निर्देश दिया था कि वो राष्ट्रव्यापी बंद के दौरान भी कर्मचारियों को पूरा पेमेंट दें.

इसके बाद औद्योगिक इकाइयां ये दावा करते हुए अदालत चली गईं कि उनके पास भुगतान करने का कोई उपाय नहीं है, क्योंकि उत्पादन ठप पड़ा हुआ है. याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत से कहा कि कोरोनावायरस महामारी के मद्देनजर लागू राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान संगठनों को उनके कार्यबल (वर्कफोर्स) को पेमेंट करने से पूरी तरह से छूट दी जानी चाहिए. याचिका मुंबई के एक कपड़ा फर्म और 41 छोटे पैमाने के संगठनों के एक पंजाब आधारित समूह की ओर से दायर की गई थी.

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याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव, संजय किशन कौल और बी.आर. गवई की पीठ ने केंद्र और राज्यों से मजदूरी का भुगतान न कर पाने पर निजी कंपनियों, कारखानों आदि के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाने को कहा. साथ ही गृह मंत्रालय के पूरा पेमेंट वाले सर्कुलर आदेश पर रोक लगाई. शीर्ष अदालत ने औद्योगिक इकाइयों की ओर से दायर याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा है.

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