पायलट को साइड लाइन करने के लिए गहलोत जो चाहते थे, वो किया लेकिन राहुल गांधी क्यूं रहे खामोश?

सीएम गहलोत और डोटासरा ने पायलट को राहुल से दूर रखने के किए सारे प्रयास, सचिन पायलट ने हर स्थिति के बीच बनाए रखा अभूतपूर्व संयम, लेकिन क्या राहुल गांधी को कुछ भी नजर नहीं आ रहा था?क्या राहुल गांधी ने राजस्थान कांग्रेस के दो दिग्गज नेताओं के बीच चल रही वर्चस्व की जंग को समाप्त करने की दिशा में कोई पहल की?

Img 20210214 Wa0107
Img 20210214 Wa0107

Politalks.News/Rajasthan. कृषि कानूनों के विरोध में किसानों आंदोलन को समर्थन देने के उद्देश्य से दो दिवसीय दौरे पर राजस्थान आए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी वापस दिल्ली लौट चुके हैं. केन्द्र सरकार के विरोध में किसानों की आवाज को बुलंद करने के लिए की गई राहुल गांधी की यह यात्रा कई सवाल छोडकर गई है. सबसे बडा सवाल तो यह ही है कि क्या राहुल गांधी ने राजस्थान कांग्रेस के दो दिग्गज नेताओं के बीच चल रही वर्चस्व की जंग को समाप्त करने की दिशा में कोई पहल की? क्या राहुल गांधी ने सीएम गहलोत और सचिन पायलट को एक साथ बैठाकर कांग्रेस में एकता की कोई चर्चा की? या फिर राहुल राजस्थान आए, किसानों के बीच में गए, भाषण दिया और राजस्थान कांग्रेस को उसी हाल में छोड़कर वापस चल दिए.

जिस तरह राहुल गांधी के दौरे के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व पीसीसी चीफ और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच तल्खी देखी गई, वो सबको नजर और समझ आई, तो क्या राहुल गांधी को नहीं समझ आई. इसके बावजूद ना तो राहुल गांधी ने दोनों नेताओं को एक साथ बैठाने का प्रयास किया और ना ही कांग्रेस के नेताओं ने एक बार भी यह सोचा कि आखिर इस खींचतान से जनता में क्या सन्देश जा रहा है और इसी के चलते राहुल गांधी जिस उद्देश्य से यहां आए थे वो तो माहौल ही नहीं बन पाया.

यह भी पढ़ें: विधानसभा की कार्यवाही से न तो विधायकों और न अफसरों को है कोई सरोकार, एक-एक कर सब हुए पार

खैर, राहुल गांधी मोदी सरकार पर हमला करके जा चुके हैं, लेकिन कांग्रेस में अंदर पहले से चल रहा संघर्ष और ज्यादा बढ़ता नजर आ रहा है. इसे किस तरह से देखा जाए. मसलन सचिन पायलट की गाडी को राहुल गांधी के काफिले में शामिल नहीं होने देने का प्रयास करना, उनके निकटतम विधायक रामनिवास गावड़िया के क्षेत्र में रखी गई आम सभा को आखिरी समय में रदद करवा देना, पायलट का मंच से भाषण नहीं होने दिया गया. पायलट को राहुल गांधी के टेक्टर पर नहीं बैठने दिया गया, कुल मिलाकर राहुल गांधी के पूरे दौरे के दौरान मुख्यमंत्री गहलोत और पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा और उनसे जुडे लोगों ने दौरे की सफलता पर कम और सचिन पायलट को राहुल से दूर रखने की बडी रणनीति पर ज्यादा काम किया.

सचिन पायलट ने बरता अभूतपूर्व संयम

ऐसे में अब सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश अध्यक्ष डोटासरा ने सचिन पायलट को उकसाने का प्रयास किया था, जिससे पायलट नाराज होकर कोई ऐसा रिएक्ट कर दें, जिससे राहुल गांधी के नाम और कांग्रेस दोनों को नुकसान हो. और अगर ऐसा होता तो गहलोत खेमे द्वारा उसका राजनीतिक लाभ उठाया जाता. लेकिन सचिन पायलट ने एक मंझे हुए खिलाडी की तरह वक्त की नजाकत को समझते हुए पूरी तरह अभूतपूर्व संयम बनाए रखा. या इस बात को यूं भी समझा जा सकता है कि पायलट के पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था.

यह भी पढ़ें: राहुल के आरोपों पर सदन में सीतारमण का पलटवार- ‘Doomsday man’ बनते जा रहे हैं राहुल’

क्या वाकई राहुल गांधी नहीं समझ पा रहे थे कुछ भी

खैर, यह तो समझ आता है कि यह सब सीएम गहलोत की शक्ति का कमाल था और उन्हें यह करना ही था, लेकिन क्या राहुल गांधी को कुछ भी नजर नहीं आ रहा था? क्या वाकई बीजेपी जो राहुल गांधी की परिपक्वता को लेकर सवाल उठाती आई है वो सही है. यह तो माना जा सकता है कि सीएम गहलोत पायलट को राहुल गांधी से दूर रखना चाहते थे लेकिन राहुल गांधी खुद पायलट से दूरी बनाकर क्यूं चले? रूपनगढ जो सचिन पायलट का संसदीय क्षेत्र रहा है, वहां आयोजित सभा में पायलट को ना तो मंच मिला और ना ही उनका कोई भाषण हुआ. क्या यह बात राहुल गांधी के समझ में नहीं आ रही थी. चलो शुरू में समझ नहीं आई लेकिन जब नाराज पायलट समर्थकों द्वारा रूपनगढ में पायलट के नाम की जमकर नारेबाजी हो रही थी, तो राहुल गांधी द्वारा सचिन पायलट को मंच पर नहीं बुलाया जाना चाहिए था?

तो क्या राहुल गांधी सीएम गहलोत को सबकुछ करने दे रहे थे

लगता तो ऐसा ही है, जिस तरह से मंच से घोषणाएं की जा रही थी, मंच से पायलट का नाम नहीं लिया जा रहा था. अगर एक बार के लिए मान भी लिया जाए कि राहुल गांधी इन सब घटनाक्रम से अन्जान थे तो फिर अजय माकन क्या कर रहे थे. माकन ने रूपनगढ में पायलट के समर्थन में नारे लगा रहे लोगों के बीच जाकर उन्हें शांत कराया. इस काम में उन्होंने सचिन पायलट की मदद भी ली लेकिन पायलट को जो सम्मान मिलना चाहिए था, उसके लिए माकन ने भी कुछ नहीं किया. तो क्या राहुल गांधी ही सीएम गहलोत को सबकुछ करने दे रहे थे, इसलिए माकन भी कुछ कर पाने में असमर्थ थे?

यह भी पढ़ें: ‘मैं भाजपा में तब शामिल होऊंगा, जब हमारे पास कश्मीर में काली बर्फ पड़ेगी’- गुलाम नबी आजाद

तो क्या सीएम गहलोत ने एक बार फिर नंबर 2 का खेल ही तमाम कर दिया?
राजस्थान की कांग्रेस राजनीति में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पिछले 20 साल से नंबर वन बने हुए हैं. वहीं सचिन पायलट नंबर दो के बाद नंबर वन बनने की दिशा में कदम उठा चुके थे. पायलट सीएम गहलोत के लिए लगातार चुनौती बन रहे. लेकिन अशोक गहलोत हमेशा से पाॅवर राजनीति की जादूगरी दिखाते रहे हैं. पहले भी उन्होंने कई कांग्रेस नेता जो गहलोत के लिए चुनौती बने, उनकी पूरी राजनीति को ही साइड लाइन कर दिया. क्या इस बार भी ऐसा ही कुछ होने जा रहा है?

अब सचिन पायलट के लिए आगे क्या
जब तक अशोक गहलोत मुख्यमंत्री हैं, सचिन पायलट के दिनों में कोई बदलाव आने वाला नहीं है. सचिन पायलट प्रयास करते रहेंगे, वो कांग्रेस में अपनी फिर से वही जगह बनाने की हर संभव कोशिश करेंगे, वहीं गहलोत खेमा उनके प्रयासों को असफल करने में लगा रहेगा. लेकिन सवाल तो अभी भी वही बना हुआ है कि सीएम गहलोत जो चाहते थे, वही हुआ लेकिन राहुल गांधी क्यूं खामोश रहे?

Leave a Reply