कांग्रेस की बस राजनीति लोकतंत्र का अपमान- गजेंद्र सिंह ने प्रियंका गांधी की मंशा पर उठाए सवाल

आखिर बसों की आवश्यकता क्या है? जब उत्तर प्रदेश ने 550 ट्रेनें ली हैं तो वो 100 ट्रेनें और ले सकते हैं, 30 बसों के बराबर एक ट्रेन में लोग जा सकते हैं, आप 1000 क्या, 3000 बसों के बराबर की सवारियां वहां भेज सकते हैं बल्कि दो दिन में भेज सकते हैं- गजेन्द्र सिंह शेखावत

पॉलिटॉक्स न्यूज़/दिल्ली. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी द्वारा उत्तरप्रदेश के मजदूरों को उनके घर तक छोड़ने के लिए 1 हजार बसों की राज्य में प्रवेश को लेकर सीएम योगी के साथ चले ‘लैटर वार’ पर अब सियासत गरमा गई है. इसी बीच केंद्रीय जलशक्ति मंत्री और जोधपुर के सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत ने कांग्रेस की इस बस राजनीति को लोकतंत्र का अपमान करार देत हुए कहा कि यह अवसर प्रवासी मजदूरों के आंसू पोछने, पैरों के छाले साफ करने और उन्हें घर तक पहुंचाने का है, लेकिन कांग्रेस पार्टी अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन को प्राप्त करने की महत्वाकांक्षा के साथ काम कर रही है.

प्रवासी मजदूरों के लिए बसों को लेकर कांग्रेस और उत्तर प्रदेश के बीच की इस खींचतान पर शेखावत ने कहा कि प्रियंका गांधी को राजस्थान और उत्तर प्रदेश ही दिखा, क्योंकि राजस्थान में भाजपा की सरकार नहीं है, वहां गांधी परिवार के प्रिय अशोक गहलोत के नेतृत्व में सरकार चल रही है. शेखावत ने प्रश्न किया कि आखिर बसों की आवश्यकता क्या है? जब उत्तर प्रदेश ने 550 ट्रेनें ली हैं तो वो 100 ट्रेनें और ले सकते हैं.

केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह ने कहा राजस्थान सरकार ने कितनी ट्रेनों की मांग भेजी, हम हर जिले से श्रमिक एक्सप्रेस चला सकते हैं. 30 बसों के बराबर एक ट्रेन में लोग जा सकते हैं. आप क्यों नहीं यूपी सरकार के साथ बातचीत करते हैं, वो एनओसी देने को तैयार हैं. आप 1000 क्या, 3000 बसों के बराबर की सवारियां वहां भेज सकते हैं बल्कि दो दिन में भेज सकते हैं. शेखावत ने आगे कहा आप इसको राजनीति का अखाड़ा क्यों बना रहे हैं? केंद्रीय मंत्री ने कहा कि मेरा प्रश्न यह है कि राजस्थान के जिन 12 लाख प्रवासियों ने घर वापसी के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है, उनके लिए आपने कितनी ट्रेनों की अनुमति प्रदान की है?

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शेखावत ने कहा कि कमाल की बात यह है कि जिन बसों के नंबर कांग्रेस पार्टी ने भेजे हैं, उनमें से कुछ एंबुलेंस हैं तो कुछ ऐसी गाड़ियों के नंबर हैं, जो पिछले पांच साल से सड़क पर उतरने के काबिल नहीं बची हैं. कुछ ऑटो रिक्शा, स्कूटर और कारों के नंबर हैं. आखिर वो हजार बसें कहां हैं? अनुमति मिलने के बाद क्यों नहीं रवाना हुईं? शेखावत ने कहा कि पहले दिन कहा गया कि 500 बसें हैं, लेकिन 140 बसें ही पहुंचीं, उनमें से आधी खाली थीं. आश्चर्य तो यह है कि कांग्रेस के कुछ नेताओं ने कुंभ मेले के समय यूपी रोडवेज की जो बसें लाइन में खड़ी थीं, उनका फोटो सोशल मीडिया पर डाल दिया.

गौरतलब है कि जोधपुर सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत ने हाल ही में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर निशाना साधते हुए कहा था कि सीएम गहलोत मुझे एक फोन करके कहते कि आप केंद्र में राज्य के प्रतिनिधि हैं, हमें प्रवासी मजदूरों के लिए रोज 100 ट्रेनों की व्यवस्था करके दो, यदि मैं न करता तो दोषी कहलाता. सोमवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पत्रकारों से रू-ब-रू होकर शेखावत ने प्रवासी मजदूरों की घर वापसी को लेकर राजस्थान सरकार पर राजनीति करने का आरोप लगाया.

शेखावत ने कहा कि राज्य सरकार कभी 4000 बसें होने की बात करती है तो कभी ट्रेनें चालू कराने की, लेकिन करती कुछ नहीं है. राज्य सरकार ने अब तक चंद ट्रेनों की अनुमति ही दी है. राजस्थान की गहलोत सरकार की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिह्न लगाते हुए शेखावत ने कहा कि सोशल मीडिया पर कई हेल्पलाइन नंबर दिए गए हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि अधिकांश बंद मिलते हैं. यदि कोई नंबर भूल से मिल भी जाए तो संतोषजनक जवाब नहीं मिलता.

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केंद्रीय मंत्री ने राजस्थान सरकार के उस आरोप को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार से पर्याप्त फंड नहीं मिला. उन्होंने कहा कि स्टेट डिजस्टर रिस्पोंस फंड (एसडीआरएफ) के तहत ही राज्य को 1600 करोड़ रुपए दिए गए हैं. इसके अलावा भी केंद्र सरकार से बड़ी राशि राज्य को भेजी गई है. जीएसटी का भुगतान न होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि 46000 करोड़ रुपए राज्य को ट्रांसफर हो चुके हैं. किसी सरकार का कोई पैसा नहीं बचा है.

प्रवासी मजदूरों की बेबसी के लिए कौन जिम्मेदारी है, के सवाल पर शेखावत ने कहा कि हम सब इसके जिम्मेदार हैं. मीडिया भी पैनिक फैलाने का दोषी है. सभी राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं, जिन्होंने मजदूरों के मन में यह आशा जगाई कि वो घर जा सकते हैं। साथ ही, कोरोना महामारी से उपजे हालात भी जिम्मेदार हैं. आप इतिहास उठाकर देख सकते हैं, ऐसी आपदाओं के समय मजदूर भावनात्मक रूप से घर जाना चाहते हैं. लेकिन, राज्य सरकारें अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह ठीक ढंग से करती तो यह स्थिति कतई उत्पन्न न होती.

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