Thursday, February 6, 2025
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अखिलेश यादव के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे भोजपुरी स्टार निरहुआ, बीजेपी ने जारी की लिस्ट

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बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के लिए अपनी 16वीं लिस्ट जारी कर दी है. इस सूची में एक महाराष्ट्र और 5 उत्तर प्रदेश के उम्मीदवारों के नाम शामिल हैं. यूपी के पूर्व सीएम और सपा चीफ अखिलेश यादव के सामने भोजपुरी स्टार निरहुआ मैदान में उतरेंगे. दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को आजमगढ़ से टिकट मिला है. निरहुआ हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए हैं. इस बार अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव की सीट आजमगढ़ से चुनाव लड़ रहे हैं. मुलायम सिंह मैनपुरी से चुनावी मैदान में हैं.

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बीजेपी ने महाराष्ट्र की मुंबई उत्तर पूर्व सीट से मनोज कोटक को लोकसभा चुनाव में उतारा है. वहीं यूपी की फिरोजाबाद सीट से डॉ.चंद्र सेन जादौन, मैनपुरी से प्रेम सिंह शाक्य और मछलीशहर से वी.पी.सरोज को टिकट मिला है. रायबरेली से सोनिया गांधी के सामने दिनेश प्रताप सिंह को उतारा है.

RSS ऑफिस की सुरक्षा पर क्यों भिड़े कमलनाथ और दिग्गी?

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मध्य प्रदेश में संघ कार्यालय (RSS) भोपाल में अरेरा कॉलोनी में ‘समीधा’ के नाम से स्थित है. यहां सुरक्षा के लिए पिछले 10 सालों से सुरक्षाकर्मी तैनात रहते थे लेकिन सोमवार को सरकार ने अचानक से फैसला किया कि अब से संघ कार्यालय को सुरक्षा नहीं दी जाएगी. ऐसे में एसएएफ के 4 तैनात जवान वहां से हटा लिए गए. खबर के वायरल होने के बाद तेज होते हंगामे को देखते हुए कांग्रेस सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा.

इस मामले के बाद प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी नेता गोपाल भार्गव ने इसे सरकार की साजिश करार दिया. वहीं आरएसएस की तरफ से अधिकारिक तौर पर यह कहा गया कि संघ ने कभी सुरक्षा नहीं मांगी और सरकार सुरक्षा वापस लेती है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन भोपाल लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार दिग्विजय सिंह की प्रतिक्रियाओं ने यहां का मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय के बीच की सारी परते खोलकर रख दी.

असल में दिग्गी ने न केवल संघ कार्यालय की सुरक्षा हटाने को गलत बताया बल्कि ट्वीट के जरिए मुख्यमंत्री कमलनाथ को आग्रह किया कि संघ कार्यालय की सुरक्षा को फिर से बहाल किया जाए. इसके बाद सरकार ने फौरन अपने फैसले पर यू टर्न लेते हुए संघ कार्यालय की सुरक्षा को फिर से बहाल कर दिया.

इस घटनाक्रम को भले ही कांग्रेस बनाम संघ की तरह देखा जा रहा हो लेकिन असल में यह प्रदेश कांग्रेस में शीत युद्ध का परिणाम है जो मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजयसिंह के बीच चल रहा है. इस जुबानी जंग की शुरुआत उस वक़्त हुई जब पब्लिक प्लेस पर दिग्विजयसिंह से सीएम कमलनाथ से फ़ोन पर बात की और लाउड स्पीकर ऑन करके उस बातचीत को सुनाया.

करीबी सूत्र कहते हैं कि इस घटना से कमलनाथ बहुत आहत हुए और उन्होंने दिग्विजय सिंह को सबक सिखाने का मन बनाया. यही वजह रही कि दिग्गी की मर्जी के खिलाफ उन्हें भोपाल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने को बाध्य किया.

इस बात में कोई दोराय नहीं है कि भोपाल 3 दशकों से बीजेपी का गढ़ रहा है और दिग्विजय अपने लिए सुरक्षित राजगढ़ सीट से टिकट चाह रहे थे. इसके बाद भी दिग्गी ने इस चुनौती को स्वीकारा और अपनी हिन्दू विरोधी छवि बदलने की कोशिश करने लगे जिसके लिए उन्हें मंदिर-मंदिर भी जाना पड़ा. इतना ही उन्होंने हिन्दू होने की दुहाई देकर आरएसएस से भी समर्थन मांगा.

एकबारगी ऐसा लगने लगा कि भोपाल में दिग्गी के लिए हालात अनुकूल होने लगे हैं. तभी सरकार में नं.2 की हैसियत रखने वाले और कमलनाथ के विश्वस्त गृह मंत्री बाला बच्चन ने संघ कार्यालय की सुरक्षा हटाकर कांग्रेस और संघ में तलवारें फिर से खींच दीं.

राजनीति के दृष्टिकोण से देखें तो कांग्रेस सरकार के इस फैसले का सबसे अधिक नुकसान दिग्विजय सिंह की चुनावी संभावनाओं पर होता दिख रहा है. हालांकि दिग्गी के ट्वीट के बाद सरकार को यू टर्न लेना पड़ा लेकिन लग यही रहा है कि कमलनाथ बनाम दिग्विजय के इस कोल्ड वॉर में अभी कई और अध्याय आना बाकी हैं.

राजस्थान: गजेंद्र को ‘मोदी’ तो वैभव को पिता ‘गहलोत’ की जादूगरी का सहारा

राजस्थान की सभी 25 लोकसभा सीटों में इस बार जोधपुर लोकसभा सीट सबसे हॉट सीट मानी जा रही है. इस सीट से भाजपा ने एक बार फिर केंद्रीय मंत्री और वर्तमान सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत पर दांव खेला है. वहीं, कांग्रेस ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत को चुनावी मैदान में उतारा है.  दोनों ने चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है. वैभव गहलोत ने फिलहाल अपना पूरा जोर जोधपुर शहर में लगा रखा है तो गजेंद्र सिंह शेखावत ग्रामीण इलाकों में पसीना बहा रहे हैं.

मजेदार बात यह है कि दोनों उम्मीदवार अपने नाम से वोट नहीं मांग रहे. केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह को पीएम नरेंद्र मोदी के नाम का सहारा है तो वैभव गहलोत अपने पिता अशोक गहलोत के आसरे हैं.  आपको बता दें कि राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने अपनी सियासत जोधपुर से ही शुरू की थी. वे जोधपुर लोकसभा सीट से पांच बार सांसद और जिले की सरदारपुरा विधानसभा सीट से पांच बार विधायक का चुनाव जीत चुके हैं. यही वजह है कि उन्होंने बेटे वैभव के चुनावी राजनीति में पर्दापण के लिए जोधपुर सीट को चुना.

टिकट मिलने के बाद वैभव गहलोत जब पहली बार जोधपुर पहुंचे तो उनके स्वागत में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की अच्छी-खासी भीड़ उमड़ी, लेकिन इस हुजूम ने जो नारे लगाए उनमें वैभव के कम और सीएम गहलोत के ज्यादा थे. इक्का-दुक्का नारों को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने राहुल गांधी का नाम तक नहीं लिया.  स्वागत के बाद प्रचार पर निकले वैभव अपने नाम पर वोट मांगने की बजाय अशोक गहलोत की ओर से जोधपुर को दी गई सौगातों को गिना रहे हैं.

बात यदि गजेंद्र सिंह शेखावत की करें तो वे अपने भाषणों में सांसद और केंद्रीय मंत्री रहते हुए जोधपुर में किए विकास कार्यों का जिक्र करने की बजाय नरेंद्र मोदी का गुणगान कर रहे हैं. शेखावत अपने हर भाषण में इस बात को दोहराना नहीं भूलते कि देश की सभी 543 लोकसभा सीटों पर केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही उम्मीदवार हैं. शेखावत के साथ समस्या यह है भी है कि उनके पास जोधपुर में करवाए विकास कार्यों की लंबी फेहरिस्त नहीं है.

ऐसे में वैभव गहलोत का शुरूआती राजनीतिक करियर और गजेंद्र सिंह का अनुभवी राजनीतिक अनुभव बराबरी पर आ खड़े हुए हैं. कहने को तो जोधपुर से वैभव गहलोत चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन राजनीतिक हलकों में यह चर्चा आम है कि यह चुनाव वैभव के नाम पर स्वयं अशोक गहलोत चुनाव लड़ रहे हैं. यिद वैभव गहलोत चुनाव जीतते हैं तो यह सीएम गहलोत की जीत होगी और उन्हें शिकस्त मिलती है तो ये भी उनके ही हिस्से आएगी.

जहां तक गजेंद्र सिंह का सवाल है, यदि वे वैभव गहलोत को हराने में कामयाब होते हैं तो प्रदेश की राजनीति में उनका कद निश्चित रूप से बढ़ जाएगा. यदि वे चुनाव हार जाते हैं तो उन्हें देश और प्रदेश की रजनीति में खुद को खड़ा करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी. जोधपुर का परिणाम चाहे जो कुछ भी हो, लेकिन अब तक के सियासी माहौल से यह साफ नजर आ रहा है कि मुकाबला कड़ा है. दोनों ओर से जीत के लिए दमखम लगाया जा रहा है.

द डिप्लोमैट पत्रिका का दावा- ‘मिशन शक्ति’ से पहले भी हुआ था परीक्षण

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भारत ने हाल ही में मिशन शक्ति का परीक्षण किया था जो सफल रहा. इस परीक्षण के बाद भारत दुनिया की चौथी ऐसी शक्ति बन गया जिसके पास एंटी सैटेलाइट मिसाइल है जो अंतरिक्ष में किसी भी सैटेलाइट को मार गिरा सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इस बात की जानकारी दी. लेकिन भारत ने इस परीक्षण से एक महीना पहले भी एक ऐसा ही परीक्षण किया था जो उस समय असफल हो गया था.

अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन पत्रिका द डिप्लोमैट में प्रकाशित एक खबर के अनुसार यह परीक्षण 12 फरवरी को किया गया था. इस परीक्षण में इस्तेमाल की गई मिसाइल ने 30 सेकेंड की उड़ान भरी थी लेकिन वह लो अर्थ ऑर्बिट में टारगेट (सैटेलाइट) को नहीं रोक पाई.

हालांकि उस समय इस टेस्ट को लेकर रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने कहा था कि यह अपने सभी उद्देश्य पाने में कामयाब रहा लेकिन कई अंतरराष्ट्रीय जानकारों ने इस बयान पर असहमति जताई थी. द डिप्लोमैट की रिपोर्ट कहती है, ‘अमेरिकी सरकार के सूत्रों ने सेना के खुफिया आकलन के आधार पर यह बताया कि फरवरी में एक भारतीय उपग्रह भेदी मिसाइल परीक्षण नाकाम हुआ था.’

वहीं एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, उस परीक्षण में किसी वास्तविक लक्ष्य को निशाना न बनाकर, एक इलेक्ट्रॉनिक टारगेट सेट किया गया था. अधिकारियों का कहना था कि मिसाइल उस टारगेट को पार करने में सफल रहा था. यह वही क्षेत्र था जहां 27 मार्च को सफल ए-सैट परीक्षण किया गया था. अंतरराष्ट्रीय समीक्षकों का भी कहना है कि जिस माइक्रोसैट-आर सैटेलाइट को भारत ने मार गिराया, वह उसी इलाके से गुजरा था जहां 12 फरवरी को टेस्ट किया गया था. हालांकि कई अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने इस बयान पर भी विरोध जताया है.

कांग्रेस ने जारी की 20 लोकसभा और 9 विधानसभा उम्मीदवारों की सूची

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कांग्रेस ने देर रात अपने 29 उम्मीदवारों की नई सूची जारी की है. इसमें 20 लोकसभा चुनाव और ओडिसा विधानसभा चुनावों के 9 प्रत्याशियों के नाम शामिल हैं. लोकसभा सूची में गुजरात के 4, हिमाचल प्रदेश से एक, झारखंड से तीन, कर्नाटक से दो और पंजाब के आठ, ओडिसा के दो और दादरा एंड हवेली के एक उम्मीदवार का नाम है.

लोकसभा सूची के अनुसार, गुजरात की गांधीनगर लोकसभ सीट से डॉ.सी.जे.चावड़ा, अहमदाबाद पूर्व से गीताबैन पटेल, सुरेंद्र नगर से सोमाभाई पटेल और जामनगर से मुरूभाई कनडोरिया को टिकट मिला है. हिमाचल प्रदेश की कांगरा सीट से पवन कजल के कांग्रेस उम्मीदवार बनाया है. झारखंड की राजधानी रांची से सुबोध कांत सहाय, सिंहभूम (एससी) सीट से गीता कोरा और लोहरदगा सीट से सुखडेओ भगत को टिकट मिला है. कर्नाटक के धरवाड़ से विनय कुलकर्णी और दावनगेरे सीट से एच.बी. मलजप्पा कांग्रेस उम्मीदवार बने हैं. ओडिसा के जाजपुर (एससी) सीट से मानस जेना और कटक से पंचानन को टिकट मिला है.

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पंजाब की बात करें ते यहां की गुरदासपुर सीट से सुनिल जाखड़, अमृतसर से गुरजीत सिंह, जलंदर (एससी) से संतोख सिंह चौधरी, होशियारपुर (एससी) से डॉ.राजकुमार छब्बेवाल, लुधियाना से रवनीत सिंह बिट्टू, पटियाला से प्रनीत कौर और चंड़ीगढ़ से पवन कमार बंसल को ​कांग्रेस चेहरा बनाया है. दादरा एंड हवेली (एसटी) से प्रभु रतनभाई टोकिया को लोकसभा प्रत्याशी बनाया गया है.

इसी प्रकार कांग्रेस की ओडिसा के विधानसभा चुनाव के लिए जारी सूची के अनुसार, बालासोर सीट से मानस दास पटनायक, धर्मशाला से स्मृति पाही, जेजपुर से संतोष कुमार नंदा, हिंडोल—एससी से त्रिनाथ बेहरा, कामाख्या नगर से बहबानी शंकर मोहापात्रा, बाराम्बा से बोबी मोहंती, पारादीप अरिन्दम सरकेल, पिपिली से युधिष्ठर सामंत्री, बेगुनिया से पृथ्वी बल्लभ पटनायक को टिकट मिला है.

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दो-दो सीटों से चुनाव लड़ने की है पुरानी परंपरा, वाजपेयी से हुई थी शुरूआत

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी संसदीय सीट अमेठी के अलावा केरल की वायनाड लोकसभा सीट से भी चुनाव लड़ने जा रहे हैं. एक से ज्यादा सीट से चुनाव लड़ने का ट्रेंड कोई नया नहीं है. पहले भी नेता ऐसा करते रहे हैं. बीते लोकसभा चुनाव में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार रहे नरेंद्र मोदी ने भी दो लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ा था. वह उत्तर प्रदेश की वाराणसी और गुजरात की वड़ोदरा सीट से प्रत्याशी थे. मोदी दोनों जगहों से चुनाव जीते लेकिन इसके बाद उन्होंने खुद के काशी सीट से ही प्रतिनिधि रहने का फैसला किया. एक से अधिक सीट से चुनाव लड़ने की परंपरा के इतिहास में अगर देखा जाए तो इसकी शुरूआत पूर्व प्रधानमंत्री अटल अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी.

1952 में हुए उपचुनाव में लखनऊ लोकसभा सीट से हारने के बाद उन्होंने 1957 में हुए लोकसभा चुनाव में लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर सहित तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था. वह बलरामपुर सीट से चुनाव जीतने में सफल रहे थे जबकि लखनऊ में दूसरे स्थान पर थे. मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई थी. दरअसल एक से अधिक सीटों से चुनाव लड़ने की यह व्यवस्था रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल ऐक्ट, 1951 के सेक्शन 33 में की गई है. इसी अधिनियम के सेक्शन 70 में कहा गया है कि चुनाव लड़ने के बाद वह एक बार में केवल एक ही सीट का प्रतिनिधित्व कर सकता है. ऐसे में साफ है कि एक से ज्यादा जगहों से चुनाव लड़ने के बावजूद प्रत्याशी को जीत के बाद एक ही सीट से अपना प्रतिनिधित्व स्वीकार करना होता है. उन सीटों को उपचुनाव के जरिए भरा जाता है.

देश में आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी आश्चर्यजनक रूप से रायबरेली सीट से अपना चुनाव हार गई थीं. 1980 के चुनावों में उन्होंने किसी भी तरह का जोखिम न लेते हुए रायबरेली के साथ मेडक (अब तेलंगाना में) से नामांकन भरा. यहां उन्होंने दोनों सीटों से चुनाव जीत लेकिन प्रतिनिधित्व करने के लिए रायबरेली सीट बरकरार रखी और मेड़क सीट छोड़ दी. इसी तरह तेलगू देशम पार्टी के संस्थापक एनटी रामा राव ने 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था. उन्होंने गुडीवडा, हिंदुपुर और नलगोंडा सीट से दावेदारी की थी. एनटीआर तीनों सीटें जीतने में सफल रहे थे. बाद में उन्होंने हिंदुपुर सीट को बरकरार रखा और बाकी दोनों सीटें छोड़ दी थीं.

एक से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने वालों में हरियाणा के पूर्व उप मुख्यमंत्री देवी लाल का नाम भी शामिल है. 1991 के चुनावों में उन्होंने एक साथ तीन लोकसभा और एक विधानसभा सीट से नामांकन भरा था. उन्होंने सीकर, रोहतक और फिरोजपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवारी पेश की जबकि घिराई विधानसभा सीट से भी प्रत्याशी थे. देवी लाल सभी सीटों पर चुनाव हार गए थे. वैसे 1996 के पहले तक अधिकतम सीटों की संख्या तय नहीं थी. बस केवल यही नियम था कि जनप्रतिनिधि केवल ही एक ही सीट का प्रतिनिधित्व कर सकता है. 1996 में रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल ऐक्ट, 1951 में संशोधन किया गया कि कोई भी उम्मीदवार अधिकतम दो सीटों पर चुनाव लड़ सकता है लेकिन प्रतिनिधित्व एक ही सीट पर कर सकता है.

दो सीटों से चुनाव लड़ने वाले दिग्गज

  • अटल बिहारी वाजपेयी (1991) : विदिशा और लखनऊ. दोनों ही जगहों से जीते. लखनऊ से सांसदी बरकरार रखी.
  • लाल कृष्ण आडवाणी (1991) : नई दिल्ली और गांधीनगर. दोनों ही जगहों से जीते. गांधीनगर से सांसदी बरकरार रखी.
  • अटल बिहारी वाजपेयी (1996) : लखनऊ और गांधीनगर. दोनों ही जगहों से जीते. लखनऊ से सांसदी बरकरार रखी.
  • सोनिया गांधी (1999) : बेल्लारी और अमेठी. दोनों ही जगहों से जीतीं. अमेठी ही सांसदी बरकरार रखी.
  • लालू प्रसाद यादव (2004) : छपरा और मधेपुरा. दोनों ही जगहों से जीते. छपरा सीट बरकरार रखी.
  • लालू प्रसाद यादव (2009) : सारण और पाटलीपुत्र. सारण सीट जीतने में सफल रहे. पाटलीपुत्र हार गए.
  • अखिलेश यादव (2009) : कन्नौज और फिरोजाबाद. दोनों सीटें जीतीं. कन्नौज सीट बरकरार रखी.
  • मुलायम सिंह यादव (2014) : आजमगढ़ और मैनपुरी. दोनों से जीते. आजमगढ़ से सांसद रहे.

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