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भाजपा के 10 सांसदों पर लटकी तलवार, 12 को फिर मिलेगा मौका

लोकसभा चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद सियासी गहमागहमी बढ़ गई है. राजनीतिक दलों ने उम्मीदवारों के चयन के काम तेज कर दिया है. राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों पर प्रत्याशियों के नाम फाइनल करने के लिए भाजपा का मंथन जारी है. सूत्रों के अनुसार पार्टी के आंतरिक सर्वे और अलग—अलग स्तर पर मिले फीडबैक के आधार 10 सांसदों के टिकट काटने का मन बना लिया है जबकि 12 को फिर से मैदान में उतारने की तैयारी की जा रही है.

जिन 10 सांसदों का टिकट संकट में है उनमें जयपुर से रामचरण बोहरा, सीकर से सुमेधानंद सरस्वती, नागौर से सीआर चौधरी, बाड़मेर से कर्नल सोनाराम, चूरू से राहुल कस्वां, झुंझुनूं से संतोष अहलावत, राजसमंद से हरिओम सिंह राठौड़, बांसवाड़ा से मानशंकर निनामा, भरतपुर से बहादुर सिंह कोली और करौली—धौलपुर से मनोज राजोरिया का नाम सामने आ रहा है.

जिन 12 सांसदों को भाजपा फिर से मैदान में उतारने की तैयार कर रही है उनमें जयपुर ग्रामीण से राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़, बीकानेर से अर्जुनराम मेघवाल, जोधपुर से गजेंद्र सिंह शेखावत, पाली से पीपी चौधरी, जालोर—सिरोही से देवजी पटेल, बारां—झालावाड़ से दुष्यंत सिंह, चित्तौड़गढ़ से सीपी जोशी, भीलवाड़ा से सुभाष बहेड़िया, श्रीगंगानगर से निहालचंद मेघवाल, कोटा से ओम बिरला, टोंक—सवाई माधोपुर से सुखवीर सिंह जौनपुरिया और उदयपुर से अर्जुन लाल मीणा का नाम शामिल है.

जबकि अलवर, अजमेर और दौसा सीटों पर भाजपा दावेदरों की छंटनी कर रही है. गौरतलब है कि 2014 में इन तीनों सीटों पर पार्टी के प्रत्याशी जीते थे, लेकिन अलवर सांसद महंत चांदनाथ और अजमेर सांसद सांवरलाल जाट के निधन के बाद हुए उपचुनाव में इन सीटों पर कांग्रेस ने बाजी मारी. जबकि दौसा सांसद हरीश मीणा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में शामिल हो गए. फिलहाल वे देवली—उनियारा सीट से कांग्रेस के विधायक हैं.

पार्टी ने जिन 10 सांसदों का टिकट काटने का मन बनाया है, उन्हें इस बारे में बता दिया गया है. सूत्रों के अनुसार पिछले महीने के आखिर में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने प्रदेश के सभी सांसदों से केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर मुलाकात की थी. इसमें शाह ने उन 10 सांसदों को दो—टूक शब्दों में कह दिया कि फील्ड से आपका फीडबैक निगेटिव आ रहा है इसलिए पार्टी आपको फिर से मैदान में उतारने का खतरा नहीं उठा सकती.

भाजपा की कोर कमेटी की बैठकों में अमित शाह की मंशा के अनुसार ही उम्मीदवारों की चयन की प्रक्रिया आगे बढ़ रही है. यानी रामचरण बोहरा, सुमेधानंद सरस्वती, सीआर चौधरी, कर्नल सोनाराम, राहुल कस्वां, संतोष अहलावत, हरिओम सिंह राठौड़, मानशंकर निनामा, बहादुर सिंह कोली और मनोज राजोरिया को फिर से मौका देने पर विचार नहीं हो रहा है. हालांकि ये सभी सांसद फिर से टिकट हासिल करने के लिए अपने—अपने स्तर पर लॉबिंग कर रहे हैं.

बता दें कि राजस्थान की 25 सीटों पर उम्मीदवार तय करने के लिए भाजपा कोर कमेटी की दो बैठकें हो चुकी हैं. बुधवार को जयपुर में हुई बैठक में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे, प्रदेश चुनाव प्रभारी प्रकाश जावड़ेकर, सह प्रभारी सुधांशु त्रिवेदी, प्रदेश प्रभारी, अ​विनाश राय खन्ना, प्रदेशाध्यक्ष मदन लाल सैनी, प्रदेश संगठन महामंत्री चंद्रशेखर, राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री वी सतीश, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर, केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल, सीआर चौधरी, गजेंद्र सिंह शेखावत, नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया, उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी, अरुण चतुर्वेदी, प्रदेश प्रवक्ता सतीश पूनिया और पूर्व मंत्री यूनुस खान ने हिस्सा लिया.

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‘प्रधानमंत्री ज्ञान बांट रहे हैं… चुनाव आयोग से शिकायत करनी है’

एयर स्ट्राइक से बदली हवा, फलोदी सट्टा बाजार एनडीए को दे रहा 350 सीटें

Politalks News

लोकसभा चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद देश में राजनीतिक गहमागहमी बढ़ गई है. एक ओर सत्ताधारी भाजपा फिर से सरकार बनाने के लिए एड़ी—चोटी का जोर लगा रही है, दूसरी ओर विपक्ष सत्ता में लौटने के लिए रणनीति बनाने में जुटा है. भाजपा की ओर से दावा किया जा रहा है कि पार्टी को इस बार पहले से भी ज्यादा सीटों पर जीत मिलेगी, वहीं विपक्ष जनता का मोदी सरकार से मोहभंग होने का दावा कर रहा है.

इन दावों के बीच सीटों की संख्या के अनुमान सामने आने लगे हैं. टीवी चैनलों पर ओपिनियन पोल के आंकड़े आ रहे हैं तो सट्टा बाजार में भी सुगबुगाहट शुरू हो गई है. इस बीच फलोदी सट्टा बाजार के भाव भाजपा के लिए खुशखबरी लेकर आए हैं. चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद आए ताजा भाव के अनुसार लोकसभा चुनाव में एनडीए को 350 सीटें मिल सकती हैं. इसमें से अकेले भाजपा को 245 से 251 सीटें मिलने का अनुमान लगाया जा जा रहा है.

काबिलेगौर है कि वायुसेना की सर्जिकल स्ट्राइक से पहले फलोदी के सट्टेबाज आम चुनावों में भाजपा को 200-230 सीटें मिलने की संभावना जताई जा रही थी और एक पर एक का भाव मिल रहा था. यानी जीतने पर एक रुपये के सट्टे पर एक रुपये का भाव दिया जा रहा था, लेकिन अब भाजपा को इन चुनावों में 245 से 251 और एनडीए को 350 से अधिक सीटें मिलने की उम्मीद की जा रही है.

वहीं, कांग्रेस की 200 या उससे अधिक सीटें जीतने की संभावना पर 10 के मुकाबले पर 1 का भाव दिया जा रहा है. यानी जीतने पर एक रुपये के सट्टे पर 10 रुपये का भाव दिया जा रहा है. एयर स्ट्राइक से पहले यह भाव सात के मुकाबले एक था. राजनीतिक विश्लेषकों का भी यह मानना है ​कि एयर स्ट्राइक के बाद बदला माहौल भाजपा के लिए फायदेमंद रहेगा.

बता दें कि जोधपुर जिले के फलोदी को चुनावी सट्टे का गढ़ माना जाता है. मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े सट्टा बाजार भी यहां के भाव के आधार पर चलते हैं. यहां के सट्टेबाजों का यह कहना है कि अगर कांग्रेस प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करती है तो उसकी स्थिति बेहतर हो सकती है.

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कांग्रेस और भाजपा के लिए अबूझ पहेली बना अजमेर की जनता का मिजाज

कांग्रेस-भाजपा के लिए अबूझ पहेली बना अजमेर की जनता का मिजाज

साल 2009 के लोकसभा चुनाव में जब सचिन पायलट ने 20 साल से भाजपा के लिए अजेय रही अजमेर सीट पर किरण माहेश्वरी को पटकनी देकर जीत का परमच लहराया तो राजनीति के जानकार यह भविष्यवाणी करने लगे कि वे यहां से लंबी पारी खेलेंगे. इस दावे के पीछे पायलट के युवा होने, केंद्र सरकार में मंत्री बनने और किशनगढ़ हवाई अड्डा, सेंट्रल यूनिवर्सिटी सरीखे विकास कार्यों की फेहरिस्त थी, लेकिन 2014 के चुनाव में यह दावा हवा हो गया.

इस चुनाव में भाजपा ने दिग्गज नेता सांवरलाल जाट को पायलट के सामने चुनावी मैदान में उतारा. नतीजा आया तो पायलट बुरी तरह चुनाव हार गए. मोदी लहर और जाट के सामने न तो पायलट का विकास कार्ड काम आया, न युवा होने का फायदा मिला और न ही प्रदेश अध्यक्ष होने के रुबते का कोई असर पड़ा. सांवरलाल जाट की जीत इतनी एकतरफा थी कि पायलट को अजमेर की आठों विधानसभा सीटों में से एक पर भी उन्हें बढ़त नहीं मिली.

सांवरलाल जाट सिर्फ सांसद ही नहीं बने, उन्हें मोदी सरकार में मंत्री पद भी मिला. उनके कद में हुए इस इजाफे के बाद राजनीतिक विश्लेषक यह कयास लगाने लगे कि अब अजमेर सीट पर उनकी ही तूती बोलेगी. चुनाव में इस कयास की परीक्षा होती उससे पहले ही जाट का निधन हो गया. उप चुनाव का एलान हुआ तो भाजपा ने सांवरलाल के बेटे रामस्वरूप लांबा को मैदान में उतारा.

लांबा को उम्मीदवार बनाने के पीछे सीधी गणित थी कि उन्हें सहानुभूति का फायदा मिलेगा. चर्चा थी कि कांग्रेस की ओर से खुद सचिन पायलट मैदान में उतरेंगे, लेकिन पार्टी ने यहां से रघु शर्मा को उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव से पहले शर्मा के खाते में सिर्फ एक चुनावी जीत जमा थी. वे 2008 में अजमेर की केकड़ी विधानसभा सीट से चुनाव जीते थे.

उप चुनाव से पहले राजनीति के जानकारों का आकलन यह था कि मुकाबला बराबरी का रहेगा. लांबा को जिताने के लिए पूरी वसुंधरा सरकार ने अजमेर में डेरा डाल दिया, लेकिन नतीजा आया तो वे बुरी तरह चुनाव हार गए. रघु शर्मा ने उन्हें सभी आठों विधानसभा सीटों पर पटकनी दी. उप चुनाव में कांग्रेस ने अजमेर सीट के अलावा अलवर और मांडलगढ़ विधानसभा सीट पर भी फतह हासिल की.

विधानसभा चुनाव से पहले आए इन नतीजों के बाद यह चर्चा होने लगी कि इस बार भाजपा की दुर्गति होना तय है, लेकिन नतीजे वैसे नहीं आए. प्रदेश में कांग्रेस की सरकार तो बनी मगर अजमेर में पार्टी का बंटाधार हो गया. जिले की आठ विधानसभा सीटों में से कांग्रेस केवल दो पर जीत दर्ज कर पाई. केकड़ी से रघु शर्मा और मसूदा से राकेश पारीक के अलावा कांग्रेस का कोई भी प्रत्याशी जीतने में कामयाब नहीं हुआ.

उपचुनाव में जिन रामस्वरूप लांबा को जनता ने नकार दिया उन्हें नसीराबाद की जनता ने विजयी तिलक लगा दिया. वहीं, अजमेर उत्तर से वासुदेव देवनानी, अजमेर दक्षित ने अनीता भदेल, ब्यावर से शंकर सिंह रावत और पुष्कर से सुरेश रावत जीत दर्ज की. किशनगढ़ सीट पर जनता ने कांग्रेस और भाजपा, दोनों को नकार दिया. यहां से भाजपा से बगावत कर चुनाव लड़े सुरेश टांक ने जीत दर्ज की.

पिछले नौ साल के चुनावी नतीजों पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि अजमेर की जनता चार बार अपना मिजाज बदल चुकी है. ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि इस बार लोकसभा चुनाव में वह किस पर भरोसा करेगी. जनता के मन को न तो कांग्रेस पढ़ पा रही है और न ही भाजपा. दोनों दल अपने—अपने हिसाब से चुनाव की तैयारी में जरूर जुटे हैं.

कांग्रेस और भाजपा की ओर से बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को चुनावी जंग के लिए तैयार किया जा रहा है. एक ओर कांग्रेस गहलोत सरकार के लोकलुभावन फैसलों को भुनाने की रणनीति बना रही है तो दूसरी ओर भाजपा मोदी सरकार की उपलब्धियों के बूते मैदान में उतरने की रणनीति तैयार कर रही है. इनमें से कौन सफल होगा, यह तो नतीजा आने के बाद ही साफ होगा.

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‘सारे तरीके अपना चुका… आखिर में ओएलएक्स पर डालकर देख लेता हूं’

कांग्रेस में 13 सीटों के उम्मीदवारों पर बनी सहमति, 12 पर मंथन पर जारी

लोकसभा चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद राजनीतिक दलों ने उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया तेज कर दी है. राजस्थान की 25 सीटों पर उम्मीदवार तय करने के लिए कांग्रेस का मंथन जारी है. दो दिन आधी रात तक चली स्क्रीनिंग कमेटी की बैठकों के बाद पार्टी ने पहले चरण की 13 लोकसभा सीटों के लिए सिंगल नाम का पैनल तैयार कर लिया है. इस पैनल पर केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में चर्चा होगी, जहां मुहर लगने के बाद उम्मीदवारों की घोषणा होगी.

रविवार और सोमवार को दिल्ली में हुई स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में राष्ट्रीय संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, उप मुख्यमंत्री व प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट, प्रदेश प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे के अलावा प्रभारी सचिव विवेक बंसल, काजी निजाम, तरुण कुमार और देवेंद्र यादव ने हिस्सा लिया. बैठक में सभी सीटों पर चर्चा हुई, लेकिन पहली प्राथमिकता पहले चरण की 13 सीटें रही. इन सीटों पर 29 अप्रेल को वोटिंग होगी, लेकिन नामाकंन प्रक्रिया 2 अप्रेल से शुरू हो जाएगी.

गौरतलब है कि प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव दो चरणों में होगा. पहले चरण में टोंक-सवाईमाधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बीकानेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा व झालावाड़-बारां सीटों पर 29 अप्रेल को वोटिंग होगी और दूसरे चरण में जयपुर, जयपुर ग्रामीण, सीकर, चूरू, झुुझुनूं, दौसा, अलवर, नागौर, श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़, बाड़मेर-जैसलमेर, भरतपुर व करौली-धौलपुर सीटों पर वोट डाले जाएंगे.

बता दें कि लोकसभा की 25 सीटों पर कांग्रेस के 2300 नेताओं की दोवदारी सामने आई थी. प्रदेश चुनाव समिति में इनकी छंटनी होने के बाद 26 व 28 फरवरी को दिल्ली में हुई स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में तीन नामों के पैनल तैयार कर लिए थे.स्क्रीनिंग कमेटी इनमें से ही सिंगल नाम का पैनल तैयार कर रही है. उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस पर लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने का दवाब है. पार्टी ने इसके लिए ‘मिशन—25’ तैयार किया है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट सभी सीटों पर जीत का दावा कर रहे हैं.

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कोटा सांसद ओम बिरला के टिकट पर मंडरा रहे संकट के बादल

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पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी ओम बिरला ने जीत के सूत्र जहां छोड़े थे, 2019 के चुनावों की दौड़ में उन्हें फिर से थामने की जुगत में हैं. लेकिन अबकी बार उनके मंसूबों को निगलने के लिए बजबजाता सियासी अवसरवाद निकल आए तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए. यह नौबत दलबदल कर कांग्रेस से भाजपा में आए कोटा के पूर्व राजवंश के उत्तराधिकारी इज्यराज सिंह के उभरते राजनीतिक प्रभुत्व की वजह से आ सकती है.

इज्यराज सिंह में अजातशत्रु बनने की लालसा वसुंधरा राजे की पेरोकारी की वजह से पैदा हुई है. इज्यराज सिंह वसुंधरा राजे के वादे की तुरूप हाथ में लेकर कोटा-बूंदी संसदीय क्षेत्र पर उम्मीद की टकटकी लगाए हुए हैं. सूत्रों की मानें तो विधानसभा चुनाव के दौरान लाडपुरा विधानसभा क्षेत्र से भवानी सिंह राजावत को दरकिनार कर कल्पना सिंह को उम्मीदवार बनाने की सौदेबाजी में वसुंधरा राजे ने इज्यराज सिंह के साथ सवांद की एक नई भाषा गढ़ी. उन्होंने कहा कि यह क्षत्राणी का वादा है, लोकसभा में आप ही भाजपा के प्रत्याशी होंगे.

जब तक वसुंधरा राजे पार्टी नेतृत्व के निशाने पर रहीं, यह संभावना अटकलों के अंधेरों में ही भटकती रही. लेकिन 6 मार्च को राजे के जलजले के आगे पार्टी नेतृत्व को घुटने टिकाने के बाद लोकसभा चुनावों के मुसाहिबी मुकाबलें में अजेय योद्धा ओम बिरला के खारिज किए जाने की संभावनाओं पर मुंहर लग गई. इस फैसले में भाजपा हाईकमान ने वसुंधरा राजे का राजनीतिक पुर्नवास करते हुए लोकसभा चुनावों के लिए प्रदेश में मुख्य प्रचारक के रूप में प्रस्तुत करने का निर्णय लिया.

यह भी तय हुआ कि टिकट वितरण की कवायद में राजे की रजामंदी ही चलेगी. विश्लेषकों का कहना है कि ओम बिरला के साथ तल्ख रिश्तों को देखते हुए राजे को ऐसे ही किसी मौके की तलाश भी थी. यह मौका उन्हें अनायास ही मिला है, जिसे भुनाने में राजे शायद ही कोई कसर छोड़ें. विश्लेषकों के कहे पर यकीन करें तो अब जब सब कुछ राजे को करना है तो बिरला की सांसदी तो गई.

सूत्र कहते हैं कि बिरला का एक नकारात्मक पहलू भी राजे अपनी मुट्ठी में दबोचे हुए हैं. बताया जाता है कि बिरला भाजपा के कद्दावर नेता प्रमोद महाजन के अंतरंग सखा रहे हैं. कोई अबूझ आर्थिक साझेदारी की खिचड़ी भी उनके बीच पकी थी. कहा जाता है कि समृद्धता के हिंडोले पर बैठे बिरला ने फिल्म ‘मणिकर्णिका’ में अच्छा-खासा निवेश किया.

चर्चा है कि प्रमोद महाजन के पारिवारिक सूत्रों ने ‘मणिकर्णिका’ में निवेश को शिकवा-शिकायत की तर्ज में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह तक पहुंचा दिया. नतीजतन बिरला पर शाह का गुस्सा जमकर बरसा और उनके बीच के सौम्य रिश्ते तीन-तेरह हो गए. इस मुद्दे पर ठंडी कूटनीति ने रोमांच की राह तो नहीं खोली अलबत्ता बिरला केंद्रीय नेतृत्व की विश्वसनीयता के फलक पर जरूर डगमगा गए.

लेकिन बिरला कोई पानी का बुलबुला नहीं कि कोई उन्हें फूंक से उड़ा दे. सियासी उपेक्षा की स्थिति में तटस्थ रहना बिरला के स्वभाव में नहीं है. बिरला के बारे में कहा जाता है कि पार्टी दिग्गजों को चुनावी प्रबंधन की बारीकियों का पाठ पढ़ाकर प्रमोद महाजन की पांत में पहुंचे ओम बिरला मतदाताओं के साथ विजय संपर्क की वजह से एक शक्ति के रूप में उभरे हैं.

चुनाव प्रबंधन की भाषा में कहें तो बिरला ‘क्राउड मैनेजमेंट’ और ‘इलेक्शन मैनेजमेंट’ के मास्टर हैं. उनका अंदाज सधा हुआ है. आवाज में एक खास गूंज है और शब्दों में सोची समझी बुनावट है, जो भीड़ को बखूबी रिझाती है. उम्मीदवारी में फच्चर डालने को लेकर बिरला अगर महाभारत रचते हैं तो उन्हें भवानी सिंह राजावत के रूप में अप्रत्यक्ष सारथी भी हासिल हो सकता है, जो चुनावी दौड़ से बाहर किए जाने के कारण पहले ही जले-भुने बैठे हैं.

राजावत पहले ही राजे से भिन्नाए हुए बैठे हैं. क्या वो इस मौके को गंवाने की चूक करेंगे? बिरला और राजावत दोनों ही चुनावी घोड़ों की रास खींचने में माहिर हैं. विश्लेषक कहते है कि बिरला को अगर उम्मीदवारी नहीं मिलती है तो इज्यराज सिंह को भी कौन जीत का रथ पकड़ने देगा. बहरहाल, यह मोका कांग्रेस के चाणक्य शांति धारीवाल बखूबी निभाएंगे और जीत के सिकंदर भी वही होंगे. उनके पास चुनावी तुरूप का कौनसा पत्ता है, इससे लोग बेखबर नहीं हैं.

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‘इंदिरा इज इंडिया से वैभव इज कांग्रेस तक पहुंची देश की सबसे पुरानी पार्टी’

लोकसभा चुनाव के एलान के साथ ही नेताओं ने एक-दूसरे पर जुबानी हमले तेज कर दिए हैं. सोमवार को भाजपा के प्रदेश कार्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में पार्टी प्रवक्ता व आमेर विधायक सतीश पूनिया ने वैभव गहलोत को कांग्रेस का पर्याय बताने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बयान पर तंज कसा. उन्होंने कहा कि पहले तो कांग्रेस के लोग इंदिरा इज इंडिया का नारा लगते थे. फिर राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लड़ने वाला हर उम्मीदवार राहुल गांधी है. पूनिया ने कहा कि यहां तक तो ठीक था मगर अब तो हर प्रत्याशी वैभव गहलोत का रुप होगा.

गौरतलब है कि रविवार को सिरोही जिले के बामणवाडजी में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के सम्मेलन को संबोधित करते हुए गहलोत ने कहा था कि वे पिछले चुनाव में वैभव गहलोत को जालोर-सिरोही से चुनाव लड़वाना चाहते थे मगर हाईकमान ने टिकट नही दिया. इस बार अगर हाईकमान टिकट देती है तो कार्यकर्ताओं की मंशा के अुनरूप जालोर-सिरोही से चुनाव लडेंगे. उन्होंने कहा कि टिकट चाहे वैभव को मिले या किसी ओर को कांग्रेस के उम्मीदवार को वैभव मान कर कार्य करना होगा.

वैभव के जालोर-सिरोही से चुनाव लड़ने की चर्चा जोरों पर है. यह सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी, लेकिन पिछले तीन चुनावों से यहां भाजपा बाजी मार रही है. ऐसे में यदि वैभव इस सीट से चुनावी मैदान में उतरते हैं तो उन्हें जीतने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी. संभवत: इसी वजह से मुख्यमंत्री गहलोत स्थानीय नेताओं को एक जाजम पर लाने की कोशिश में जुटे हैं. वे यहां के समीकरणों को साधने के लिए एक महीने में दो बार दौरा कर चुके हैं.

हाईकोर्ट का गुर्जर आरक्षण पर रोक से इंकार, मुख्य सचिव को नोटिस जारी

राजस्थान हाइकोर्ट ने गुर्जर सहित पांच जातियों को गहलोत सरकार की ओर से दिए गए पांच फीसदी आरक्षण पर अंतरिम रोक लगाने से इंकार ​कर दिया है. अलबत्ता मुख्य सचिव और प्रमुख कार्मिक सचिव को नोटिस जारी कर 25 मार्च तक जवाब देने का आदेश जरूर दिया है.

मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांद्रजोग और न्यायाधीश जीआर मूलचंदानी की खंडपीठ ने यह आदेश अरविंद शर्मा और अन्य की जनहित याचिका सुनवाई करते हुए दिया है. कोर्ट ने याचिका में पार्टी बनाए गए गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला और हिम्मत सिंह को नोटिस जारी करने से मना कर दिया है.

याचिका में राजस्थान पिछड़ा वर्ग संशोधन अधिनियम, 2019 के प्रावधानों को चुनौती दी गई है. याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार ने आपात स्थितियों का हवाला देते हुए इन जातियों को शैक्षणिक संस्थाओं और सरकारी सेवाओं में पांच फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया है. मामले की अगली सुनवाई 2 अप्रेल को होगी.

बता दें कि गुर्जर सहित पांच जातियों को पांच प्रतिशत आरक्षण देने के लिए राजस्थान सरकार पिछले महीने ‘राजस्थान पिछड़ा वर्ग विधेयक—2017’ में संशोधन लेकर आई थी, जिसके सर्वसम्मति से पारित होने के बाद यह आरक्षण प्रभावी हो गया था. सरकार यह संशोधन किरोड़ी सिंह बैंसला के साथ हुए उस समझौते के तहत लेकर आई, जो आठ तक चले आंदोलन के बाद हुआ था.

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