राजस्थान: कांग्रेस ने कैसे चुने 25 चेहरे? पढ़ें टिकट बंंटवारे की इनसाइड स्टोरी
कांग्रेस ने राजस्थान की सभी 25 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार मैदान में उतार दिए हैं. टिकट वितरण के बाद हर कोई यह जानना चाहता है कि टिकट देने का पैमाना क्या रहा और पार्टी के दिग्गज नेताओं का इसमें कितना दखल रहा. आइए आपको बताते हैं कांग्रेस के टिकट बंटवारे की इनसाइड स्टोरी.
कांग्रेस ने अलवर से जितेंद्र सिंह, सीकर से सुभाष महरिया, डूंगपुर-बांसवाड़ा से ताराचंद भगौरा, टोंक-सवाईमाधोपुर से नमोनारायण मीणा और उदयपुर से रघुवीर मीणा को टिकट दिया है. ये वे नाम हैं, जिन पर पार्टी के भीतर कोई विवाद नहीं था. पार्टी ने इन सीटों पर दूसरे नामों पर विचार तक नहीं किया.
जयपुर ग्रामीण सीट से कृष्णा पूनिया को मिलना चौंकाने वाला फैसला है. पार्टी यहां से बीजेपी के राज्यवर्धन राठौड़ के सामने मंत्री लालचंद कटारिया को चुनाव लड़ाना चाहती थी, लेकिन वे तैयार नहीं हुए. कांग्रेस ने बॉक्सर विजेंदर सिंह को भी यहां से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया मगर उन्होंने हामी नहीं भरी. आखिर में सादुलपुर विधायक कृष्णा पूनिया को मैदान में उतारना पड़ा.
अजमेर सीट से कांग्रेस ने पूर्व मंत्री बीना काक के दामाद रिजु झुंझुनवाला को मैदान में उतारा है. पार्टी यहां से मंत्री रघु शर्मा को टिकट देना चाहती थी, लेकिन वे इसके लिए तैयार नहीं हुए. उन्होंने खुद की बजाय बेटे सागर शर्मा को मौका देने की बात कही. आखिर में उद्योगपति रिजु झुंझुनवाला के नाम पर मुहर लगी. पीसीसी चीफ सचिन पायलट ने उनकी पैरवी की.
झालावाड़-बारां सीट से कांग्रेस ने प्रमोद शर्मा को मौका दिया है. बीजेपी में रहे प्रमोद विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हुए थे. पहले यहां से मंत्री प्रमोद जैन भाया की पत्नी उर्मिला जैन का टिकट तय माना जा रहा था, लेकिन आखिर में उन्होंने प्रमोद शर्मा का नाम आगे कर दिया. और कोई विकल्प नहीं होने की वजह से सभी नेता इस नाम पर सहमत हो गए.
कांग्रेस ने राजसमंद सीट से देवकीनंदन गुर्जर को मौका दिया है. जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गुर्जर को स्पीकर डॉ. सीपी जोशी का करीबी माना जाता है. गुर्जर ने 2013 में नाथद्वारा सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन वे बीजेपी के कल्याण सिंह चौहान से हार गए थे. सीपी जोशी ने उन्हें राजसमंद से टिकट देने की पैरवी की.
भीलवाड़ा सीट से उम्मीदवार बनाए गए रामपाल शर्मा को भी डॉ. सीपी जोशी का करीबी माना जाता है. शर्मा फिलहाल जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं. वे 2013 के विधानसभा चुनाव में मांडल सीट से मैदान में उतरे थे, लेकिन बीजेपी के कालूलाल गुर्जर के सामने बड़े अंतर से चुनाव हार गए. डॉ. सीपी जोशी ने रामपाल के लिए लॉबिंग की.
श्रीगंगानगर सीट से कांग्रेस ने पूर्व सांसद भरतराम मेघवाल को मैदान में उतारा है. अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर भाजपा ने निहालचंद मेघवाल को टिकट दिया है. कांग्रेस के सामने श्रीगंगानगर में भरतराम मेघवाल के अलावा कोई दूसरा बड़ा चेहरा सामने नहीं था इसलिए उनके नाम पर सहमति बनी.
बीकानेर सुरक्षित सीट से कांग्रेस से पूर्व पुलिस अधिकारी मदनमोहन मेघवाल पर दांव खेला है. मेघवाल को टिकट दिलाने में पूरी भूमिका पूर्व नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी की रही. विधानसभा चुनाव में हार का सामने करने वाले डूडी के आगे कांग्रेस के किसी भी नेता की नहीं चली.
चूरू में कांग्रेस ने एक बार फिर मंडेलिया परिवार पर भरोसा जताया है. आपको बता दें कि पार्टी ने पहले राजस्थान में एक भी अल्पसंख्यक को टिकट नहीं देने का मानस बना लिया था, लेकिन परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक की नाराजगी को भांपते हुए आखिर में रफीक मंडेलिया को मौका देना पड़ा. पार्टी के सभी धड़ों की सहमति से मंडेलिया को टिकट मिला.
झुंझुनूं से श्रवण कुमार को टिकट मिलने का बेहद चौंकाने वाला फैसला है, क्योंकि यहां से राजबाला ओला और डॉ. चंद्रभान में से एक को टिकट मिलने की संभावना थी. पीसीसी चीफ सचिन पायलट राजबाला और सीएम अशोक गहलोत चंद्रभान की पैरवी कर रहे थे, लेकिन स्पीकर सीपी जोशी ने एंट्री करते हुए श्रवण कुमार को टिकट दिला दिया.
जयपुर से ज्योति खंडेलवाल को टिकट मिलने से कांग्रेस के कई नेता हैरान हैं. इस सीट से हवामहल विधायक महेश जोशी और सुनील शर्मा दावेदारों में शामिल थे. कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास, किशनपोल विधायक अमीन कागजी और महेश जोशी में से कोई भी ज्योति खंडेलवाल को टिकट देने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन अहमद पटेल के दखल से उनके नाम पर मुहर लगी.
भरतपुर से अभिजीत जाटव की उम्मीदवारी स्थानीय नेताओं के गले नहीं उतर रही. पूर्व आईआरएस अधिकारी जाटव कुछ दिन पहले ही कांग्रेस के संपर्क में आए थे और टिकट लेने में कामयाब रहे. कैबिनेट मंत्री विश्वेंद्र सिंह और पीसीसी चीफ सचिन पायलट ने उनके नाम की सिफारिश की.
करौली-धौलपुर से 30 साल के युवा संजय जाटव को टिकट मिलने की चर्चा कांग्रेस में सबसे ज्यादा हो रही है. यहां से लक्खीराम बैरवा की उम्मीदवारी तय मानी जा रही थी. वे 2014 के लोकसभा चुनाव में सबसे कम अंतर से हारे थे. प्रभारी मंत्री विश्वेंद्र सिंह ने भी उन्हीं की पैरवी की, लेकिन पार्टी के ज्यादातर विधायक उनके खिलाफ हो गए. आखिर में सबकी सहमति से संजय जाटव को प्रत्याशी बनाया गया.
नागौर से हनुमान बेनीवाल की पार्टी के साथ गठबंधन की चर्चा सामने आने के बाद ज्योति मिर्धा का टिकट संकट में पड़ गया था, लेकिन भूपेंद्र हुड्डा और अहमद पटेल की पैरवी काम कर गई. उनके बीजेपी में जाने की खबरों से भी कांग्रेस में खलबली मची. पार्टी ने कोई नया प्रयोग करने का खतरा लेने की बजाय ज्योति मिर्धा पर भरोसा करना ही बेहतर समझा.
वैभव गहलोत के लिए पार्टी ने कई सीटों पर सर्वे करवाया, लेकिन सबसे उपयुक्त सीट जोधपुर ही मानी गई. हालांकि वैभव गहलोत पूरे पांच साल टोंक-सवाईमाधोपुर में सक्रिय रहे मगर टोंक से सचिन पायलट के चुनाव लड़ने के बाद बदले हालात और नमोनारायण के चुनाव लड़ने की जबरदस्त इच्छा के चलते वैभव को पीछे होना पड़ा.
बाड़मेर-जैसलमेर सीट पर मानवेंद्र सिंह का टिकट तय माना जा रहा था. उन्होंने भाजपा छोड़ कांग्रेस का हाथ थामते समय ही बाड़मेर-जैसलमेर से लोकसभा चुनाव लड़ने की शर्त रखी थी. हालांकि यहां से हरीश चौधरी ने टिकट के लिए खूब जोर लगाया, लेकिन आलाकमान ने उनकी बात नहीं मानी.
जालौर-सिरोही सीट से कांग्रेस ने लंबे अरसे बाद किसी स्थानीय नेता को उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस के लिए कमजोर माने जाने वाली इस सीट पर बहुत कम नेताओं ने अनमने मन से टिकट के लिए दावेदारी जताई. आखिर में रतन देवासी को टिकट देने की सहमति बन गई. पीसीसी चीफ सचिन पायलट ने उनके नाम की पैरवी की.
कांग्रेस ने पाली से बद्री जाखड़ को मौका दिया है. वे यहां से पहले भी सांसद रह चुके हैं. उन्होंने विधानसभा चुनाव में भी टिकट मांगा था. तब उन्हें लोकसभा चुनाव में टिकट देने का आश्वासन दिया गया. बद्री जाखड़ को सीएम अशोक गहलोत का करीबी माना जाता है. उन्हें टिकट दिलाने में गहलोत की भूमिका अहम रही.
चितौड़गढ़ सीट पर पार्टी ने गोपाल सिंह ईडवा को मौका दिया है. उन्हें पीसीसी चीफ सचिन पायलट का करीबी माना जाता है. हालांकि मंत्री उदयलाल आंजना इस सीट से ईडवा को टिकट देने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन आखिरकार उनके नाम पर ही सहमति बनी.
कोटा-बूंदी सीट से कांग्रेस ने पीपल्दा विधायक रामनारायण मीणा को टिकट दिया है. मीणा यहां से पहले भी सांसद रह चुके हैं. भाजपा का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट पर पूर्व सांसद इज्येराज सिंह की दावेदारी सबसे मजबूत थी, लेकिन विधानसभा चुनाव के समय वे बीजेपी में शामिल हो गए. ऐसे में कांग्रेस के पास रामनारायण मीणा के अलावा कोई दूसरा बड़ा चेहरा नहीं बचा.
कांग्रेस ने दौसा सीट पर विधायक मुरारी मीणा की पत्नी सविता मीणा को टिकट दिया है. हालांकि यहां से मंत्री परसादी मीणा के बेटे कमल मीणा भी टिकट मांग रहे थे, लेकिन पिता के मंत्री होने के चलते उन्हें मौका नहीं मिला. पीसीसी चीफ सचिन पायलट के करीबी जीआर खटाना और अन्य विधायकों ने मुरारी की पत्नी को टिकट देने की पैरवी की.
राजस्थान की सभी सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार घोषित, जयपुर ग्रामीण से कृष्णा पूनिया को टिकट
कांग्रेस ने राजस्थान की बाकी बची छह सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. पार्टी ने गंगानगर से भरतराम मेघवाल, जयपुर ग्रामीण से कृष्णा पूनिया, अजमेर से रिजु झुनझुनवाला, राजसंमद से देवकीनंदन गुर्जर, भीलवाड़ा से रामपाल शर्मा और झालावाड़-बारां से प्रमोद शर्मा को टिकट दिया है. केंद्रीय चुनाव समिति के प्रभारी व पार्टी महासचिव मुकुल वासनिक की ओर से जारी सूची में राजस्थान के अलावा गुजरात के एक व महाराष्ट्र के दो उम्मीदवारों का नाम शामिल है.
यहां पढ़ें पूरी सूची:
आपको बता दें कि कांग्रेस की ओर से जारी राजस्थान की पहली सूची में 18 नाम शामिल थे. बीकानेर से मदनगोपाल मेघवाल, चुरू से रफीक मंडेलिया, झुंझुनूं से श्रवण कुमार, सीकर से सुभाष महारिया, जयपुर से ज्योति खंडेलवाल, अलवर से जितेंद्र सिंह, भरतपुर से अभिजीत कुमार जाटव, करौली-धोलपुर से संजय कुमार जाटव, दौसा से सविता मीणा, टोंक-सवाई माधोपुर से नमोनारायण मीणा, नागौर से ज्योति मिर्धा, पाली से बद्री राम जाखड़, जोधपुर से वैभव गेहलोत, बाड़मेर से मानवेंद्र सिंह, जालोर से रतन देवासी, उदयपुर से रघुवीर सिंह मीणा, बांसवाड़ा से ताराचंद भागौरा, चित्तौड़गढ़ से गोपाल सिंह इडवा और
कोटा रामनारायण मीणा को मैदान में उतारा है.
राजस्थान: कांग्रेस उम्मीदवार पर रार, विधायक ने दी इस्तीफे की चेतावनी
कांग्रेस में लोकसभा के टिकट वितरण के बाद अब बगावत के सुर उठने लगे हैं. करौली-धौलपुर सीट से जाटव समाज का प्रत्याशी घोषित करने पर बैरवा समाज नाराज हो गया है. बैरवा समाज ने इसको लेकर बसेड़ी विधायक खिलाड़ी बैरवा के नेतृत्व में सीएम अशोक गहलोत से मुलाकात की और प्रत्याशी बदलने की मांग की. विधायक ने मांग न माने जाने पर इस्तीफा की चेतावनी दी है.
विधायक खिलाड़ी बैरवा ने दो टूक लहजे में कहा कि करौली-धौलपुर सीट पर दो लाख से ज्यादा बैरवा समाज के वोट हैं. अगर पार्टी द्वारा प्रत्याशी नहीं बदला गया तो प्रदेश की तकरीबन 14 लोकसभा सीटों पर नतीजे कांग्रेस के खिलाफ आ सकते हैं. खिलाड़ी ने इस संबंध में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को एक खत भी लिखा है. ऐसे में कांग्रेस करौली-धौलपुर सीट पर प्रत्याशी बदलने पर विचार कर रही है.
आपको बता दें कि कांग्रेस ने पिछली कराैली-धौलपुर से लक्खीराम बैरवा को प्रत्याशी बनाया था. देश में मोदी लहर बहने के बावजूद लक्खीराम बहुत कम वोट अंतर से चुनाव हारे थे. ऐसे में इस बार भी लक्खीराम को टिकट मिलने की पूरी संभावना थी. जानकारी के अनुसार जिला प्रभारी विश्वेंद्र सिंह ने खुद लक्खीराम को टिकट देने की पैरवी की थी, लेकिन दोनों जिले के प्रद्युमन सिंह, गिरिराज मलिंगा और रमेश मीणा जैसे वरिष्ठ नेता उनके पक्ष में नहीं थे.
सीएम अशोक गहलोत और पीसीसी चीफ सचिन पायलट ने मलिंगा और मीणा की जिद के आगे झुकते हुए संजय कुमार जाटव को टिकट दे दिया. गौरतलब है कि भरतपुर सीट पर भी कांग्रेस ने जाटव समाज के नेता पर दांव खेला है. यहां से अभिजीत जाटव को टिकट मिला है. जानकारों के मुतााबिक दोनों सीटों पर जाटव को मौका देना कांग्रेस की बड़ी रणनीतिक चूक हो सकती है.
जातिगत समीकरण बने मुसीबत
इससे पहले प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों के लिए कांग्रेस द्वारा घोषित 19 उम्मीदवारों की सूची में एक भी ब्राह्मण और गुर्जर समाज के नेता को टिकट नहीं मिला. इससे दोनों समाज में काफी नाराजगी है. चुनावी माहौल में पार्टी किसी भी समाज को नाराज नहीं करना चाहेगी. ऐसे में कांग्रेस ने शेष 6 सीटों पर ब्राह्मण और गुर्जर समाज के नेता को टिकट देना तय कर लिया है.
समय रहते कांग्रेस को बिगड़े जातिगत समीकऱणों की भनक भी लग चुकी है. लिहाजा समय रहते कांग्रेस अब मजबूत जातिगत समीकरणों की किलेबंदी में जुट गई है. सूत्रो के मुताबिक राजसमंद से गुर्जर और भीलवाड़ा से ब्राह्मण नेता को टिकट दिया जाना तय माना जा रहा है. आगामी समय में पार्टी की ओर से इस तरह के कुछ और फैसले देखे जा सकते हैं.
राजस्थान: बसपा ने जारी की 5 उम्मीदवारों की सूची
बहुजन समाज पार्टी ने सुप्रीमो मायावती के निर्देश पर राजस्थान में लोकसभा आम चुनाव के 5 प्रत्याशियों की सूची जारी की है. सूची में अलवर, कोटा, झालावाड़-बारां, उदयपुर और अजमेर के उम्मीदवार शामिल हैं. सूची के अनुसार,
- अलवर से इमरान खान
- कोटा से हरीश कुमार
- झालावाड़-बारां से डॉ.ब्रदी प्रसाद
- उदयपुर से केशुलाल मीणा और
- अजमेर से कर्नल दुर्गालाल रैगर को टिकट मिला है.
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प्रदेश में कुल 25 सीटों पर होने वाले लोकसभा आम चुनाव दो चरणों में संपन्न होंगे. पहले चरण के लिए मतदान 29 अप्रैल को होंगे. दूसरे चरण के लिए वोटिंग 6 मई को होगी. चुनावी परिणाम 23 मई को घोषित किए जाएंगे.
लोकसभा चुनाव के लिए देश में पांच गठबंधन, सबकी नजर पीएम की कुर्सी पर
देश में सत्ता की चौसर पर लोकसभा चुनाव की बिसात बिछ चुकी है. मुहरे भी खड़े हो गए हैं बस इंतजार है तो पासे फेंकने का. इस समय पूरे देश में केवल एक ही चर्चा है कि आखिर देश किसे चुनेगा, नरेंद्र मोदी या राहुल गांधी लेकिन राजनीति की पारखी नजरें रखने वालों का यह कहना भी गलत नहीं है कि देश में दो नहीं बल्कि 5 ऐसे गठबंधन दल चुनावी मैदान में हैं जिनके नेता खिचड़ी सरकार बनने पर प्रधानमंत्री बनने की मनोकांक्षा रखते हैं.
इस लिस्ट में पहला गठबंधन दल है बीजेपी का एनडीए जिसके नेता खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह हैं. दूसरा गठबंधन दल यूपीए है जिसके मुखिया कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी हैं. तीसरा गठबंधन मायावती-अखिलेश यादव का सपा-बसपा महागठबंधन है जिसे अब महापरिवर्तन के नाम से बुलाने लगे हैं. चौथा गठबंधन पं.बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल नेता ममता बनर्जी ने बनाया है जिसे वे फेडरल फ्रंट के नाम से बुलाना पसंद करती हैं. पांचवां गठबंधन तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर का है. इन सभी के मुखियाओं की केवल एक ही इच्छा है, प्रधानमंत्री बन सत्ता की कुर्सी हथियाना.
शुरूआत करें एनडीए दल से तो प्रधानमंत्री मोदी इस गठबंधन के मुखिया हैं. पिछले साल देश में चली मोदी लहर में अधिकांश राज्य तो तिनके की भांति उड़ गए. राजस्थान, यूपी इसके उदाहरण हैं. हालांकि दक्षिण भारत में मोदी लहर इतना प्रभाव न दिखा सकी लेकिन सरकार बनने के बाद यहां भी बीजेपी अपने पैर जमाने में कामयाब हो पाई है. इस बार भी मोदी सरकार की लहर का असर कायम है. देश की आबोहवा को समझ अब बीजेपी नेताओं ने पिछले दो महीने में पार्टी ने अपनी रणनीति पूरी तरह बदल दी है.
मिशन 400 पर काम कर रहे पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पुराने सहयोगियों को किसी भी कीमत पर रोकने और नए सहयोगियों को ढूंढने का काम करीब-करीब पूरा कर लिया है. ऐसा सीधे प्रधानमंत्री के निर्देश पर हुआ है. इसी का नतीजा है कि भाजपा ने अपने सबसे पुराने सहयोगी शिवसेना की करीब करीब सभी मांगें मांन लीं और नई एवं छोटी सहयोगी पार्टी अपना दल को भी दो सीटें दे दीं.’
बात करें कांग्रेस की यूपीए दल की तो यहां पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी अपने आपको प्रधानमंत्री का दावेदार घोषित कर चुके हैं. पिछली बार मोदी लहर में कांग्रेस की नैया ढूबते-ढूबते बची. यहां तक की केवल 3 राज्यों तक सिमट कर रह गई. हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में 3 बड़े राज्य जीतने के बाद फिर से इस पार्टी ने हुंकार भरी है. नए और युवा नेताओं के दम पर यूपीए देश की सत्ता फिर से हासिल करने का सपना लेकर चुनावी मैदान में है. यही वजह रही कि बिहार में तेजस्वी यादव से कांग्रेस ने जमकर मोलभाव किया और एक-एक सीट के लिए पूरी ताकत लगाई.
देश का तीसरा बड़ा दल है सपा-बसपा दल जिसकी मजबूत जड़े अब उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं रह गई हैं. राजस्थान, मध्यप्रदेश राज्यों के विधानसभा चुनावों में इसकी छवि सभी ने देखी है. इसी पार्टी के साथ गठबंधन कर कांग्रेस ने दो राज्यों में अपनी सरकार बनाई है. हालांकि बसपा पहले सभी राज्यों में कांग्रेस से हाथ मिलाने को तैयार थी लेकिन मायावती खुद प्रधानमंत्री भी बनने का इरादा रखती हैं. वह खुद को अब एक प्रदेश नेता नहीं बल्कि राष्ट्रीय नेता मानकर चल रही हैं. कांग्रेस राहुल को प्रधानमंत्री का दावेदार घोषित कर चुकी है.
ऐसे में बसपा सुप्रीमो को कांग्रेस के साये में यह सपना पूरा होते नहीं दिख रहा. ऐसे में उन्होंने भतीजे अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ पूरे देश में गठबंधन बनाया है जिसे वे अब महापरिवर्तन के नाम से बुलाने लगे हैं. दोनों ने यूपी में कुल 80 में से 70 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है. देश में दलित वोट बैंक के चलते अब खिचड़ी सरकार भी बनती है तो मायावती सत्ता में एक अहम रोल अदा करेंगी.
चौथा गठबंधन ममता बनर्जी ने बनाया है जिसे वे फेडरल फ्रंट के नाम से बुलाना पसंद करती हैं. पं.बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ‘दीदी’ ने पिछले कुछ समय में अपनी छवि एक राष्ट्रीय नेता के तौर पर कायम की है. यहां तक की कई मौकों पर केन्द्र सरकार भी उनके फैसलों के खिलाफ जाने का साहस नहीं जुटा पाई. इससे ममता की छवि एक राष्ट्रीय नेता के तौर पर उभर कर सामने आई है. ममता की पार्टी को भी लगता है कि मोदी के बाद अगर किसी नेता का सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री बनने का चांस है तो वह हैं ममता बनर्जी. तृणमूल कांग्रेस पार्टी (TMC) ने पं. बंगाल की कुल 42 लोकसभा सीटों में से 40 सीटें जीतने का टारगेट उन्होंने रखा है. बाकी देश से दस सीटें जीतने का पुखता प्लान भी ममता ने बनाया है.
तृणमूल मानती है कि अगर उसकी 50 सीटें अकेले दम पर आ गई तो खिचड़ी सरकार का नेतृत्व ममता कर सकती हैं. यही वजह रही जब राहुल गांधी ने साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने का न्योता ममता बनर्जी को दिया तो उन्होंने अपने अंदाज़ में कहा कि उन्हें अपने गठबंधन का नाम बदलना होगा. यह बात सच में एक बेहद चुभने वाली बात थी क्योंकि फेडरल फ्रंट में जाने का मतलब था राहुल गांधी खुद ही ममता बनर्जी को नेता मान लें जो नामुमकिन है. ममता को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का भी सहयोग प्राप्त है.
पांचवां गठबंधन तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव (केसीआर) का है जिसका अभी सिर्फ नेता तय हुआ है. नाम और पार्टनर नहीं मिल रहे हैं. यहां केसीआर और उनकी पार्टी टीआरएस का एकछत्र राज लंबे समय से कायम है. हाल ही में विधानसभा चुनावों में केसीआर की पार्टी ने 119 में से 88 सीटों पर कब्जा किया है. कांग्रेस को 21, बीजेपी को एक और अन्य को 9 सीटों पर जीत हासिल हुई है. क्षेत्र में अपनी एक खास छवि रखने वाले राव के साथ बीजेपी गठबंधन कर सकती है. तेलंगाना में 17 लोकसभा सीटें हैं. अगर यहां सभी सीटों पर टीआरएस जीत दर्ज करती है तो केन्द्र की सत्ता पर इस राज्य का असर पड़ना निश्चित है.