कांग्रेस ने राजस्थान की सभी 25 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार मैदान में उतार दिए हैं. टिकट वितरण के बाद हर कोई यह जानना चाहता है कि टिकट देने का पैमाना क्या रहा और पार्टी के दिग्गज नेताओं का इसमें कितना दखल रहा. आइए आपको बताते हैं कांग्रेस के टिकट बंटवारे की इनसाइड स्टोरी.
कांग्रेस ने अलवर से जितेंद्र सिंह, सीकर से सुभाष महरिया, डूंगपुर-बांसवाड़ा से ताराचंद भगौरा, टोंक-सवाईमाधोपुर से नमोनारायण मीणा और उदयपुर से रघुवीर मीणा को टिकट दिया है. ये वे नाम हैं, जिन पर पार्टी के भीतर कोई विवाद नहीं था. पार्टी ने इन सीटों पर दूसरे नामों पर विचार तक नहीं किया.
जयपुर ग्रामीण सीट से कृष्णा पूनिया को मिलना चौंकाने वाला फैसला है. पार्टी यहां से बीजेपी के राज्यवर्धन राठौड़ के सामने मंत्री लालचंद कटारिया को चुनाव लड़ाना चाहती थी, लेकिन वे तैयार नहीं हुए. कांग्रेस ने बॉक्सर विजेंदर सिंह को भी यहां से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया मगर उन्होंने हामी नहीं भरी. आखिर में सादुलपुर विधायक कृष्णा पूनिया को मैदान में उतारना पड़ा.
अजमेर सीट से कांग्रेस ने पूर्व मंत्री बीना काक के दामाद रिजु झुंझुनवाला को मैदान में उतारा है. पार्टी यहां से मंत्री रघु शर्मा को टिकट देना चाहती थी, लेकिन वे इसके लिए तैयार नहीं हुए. उन्होंने खुद की बजाय बेटे सागर शर्मा को मौका देने की बात कही. आखिर में उद्योगपति रिजु झुंझुनवाला के नाम पर मुहर लगी. पीसीसी चीफ सचिन पायलट ने उनकी पैरवी की.
झालावाड़-बारां सीट से कांग्रेस ने प्रमोद शर्मा को मौका दिया है. बीजेपी में रहे प्रमोद विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हुए थे. पहले यहां से मंत्री प्रमोद जैन भाया की पत्नी उर्मिला जैन का टिकट तय माना जा रहा था, लेकिन आखिर में उन्होंने प्रमोद शर्मा का नाम आगे कर दिया. और कोई विकल्प नहीं होने की वजह से सभी नेता इस नाम पर सहमत हो गए.
कांग्रेस ने राजसमंद सीट से देवकीनंदन गुर्जर को मौका दिया है. जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गुर्जर को स्पीकर डॉ. सीपी जोशी का करीबी माना जाता है. गुर्जर ने 2013 में नाथद्वारा सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन वे बीजेपी के कल्याण सिंह चौहान से हार गए थे. सीपी जोशी ने उन्हें राजसमंद से टिकट देने की पैरवी की.
भीलवाड़ा सीट से उम्मीदवार बनाए गए रामपाल शर्मा को भी डॉ. सीपी जोशी का करीबी माना जाता है. शर्मा फिलहाल जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं. वे 2013 के विधानसभा चुनाव में मांडल सीट से मैदान में उतरे थे, लेकिन बीजेपी के कालूलाल गुर्जर के सामने बड़े अंतर से चुनाव हार गए. डॉ. सीपी जोशी ने रामपाल के लिए लॉबिंग की.
श्रीगंगानगर सीट से कांग्रेस ने पूर्व सांसद भरतराम मेघवाल को मैदान में उतारा है. अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर भाजपा ने निहालचंद मेघवाल को टिकट दिया है. कांग्रेस के सामने श्रीगंगानगर में भरतराम मेघवाल के अलावा कोई दूसरा बड़ा चेहरा सामने नहीं था इसलिए उनके नाम पर सहमति बनी.
बीकानेर सुरक्षित सीट से कांग्रेस से पूर्व पुलिस अधिकारी मदनमोहन मेघवाल पर दांव खेला है. मेघवाल को टिकट दिलाने में पूरी भूमिका पूर्व नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी की रही. विधानसभा चुनाव में हार का सामने करने वाले डूडी के आगे कांग्रेस के किसी भी नेता की नहीं चली.
चूरू में कांग्रेस ने एक बार फिर मंडेलिया परिवार पर भरोसा जताया है. आपको बता दें कि पार्टी ने पहले राजस्थान में एक भी अल्पसंख्यक को टिकट नहीं देने का मानस बना लिया था, लेकिन परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक की नाराजगी को भांपते हुए आखिर में रफीक मंडेलिया को मौका देना पड़ा. पार्टी के सभी धड़ों की सहमति से मंडेलिया को टिकट मिला.
झुंझुनूं से श्रवण कुमार को टिकट मिलने का बेहद चौंकाने वाला फैसला है, क्योंकि यहां से राजबाला ओला और डॉ. चंद्रभान में से एक को टिकट मिलने की संभावना थी. पीसीसी चीफ सचिन पायलट राजबाला और सीएम अशोक गहलोत चंद्रभान की पैरवी कर रहे थे, लेकिन स्पीकर सीपी जोशी ने एंट्री करते हुए श्रवण कुमार को टिकट दिला दिया.
जयपुर से ज्योति खंडेलवाल को टिकट मिलने से कांग्रेस के कई नेता हैरान हैं. इस सीट से हवामहल विधायक महेश जोशी और सुनील शर्मा दावेदारों में शामिल थे. कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास, किशनपोल विधायक अमीन कागजी और महेश जोशी में से कोई भी ज्योति खंडेलवाल को टिकट देने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन अहमद पटेल के दखल से उनके नाम पर मुहर लगी.
भरतपुर से अभिजीत जाटव की उम्मीदवारी स्थानीय नेताओं के गले नहीं उतर रही. पूर्व आईआरएस अधिकारी जाटव कुछ दिन पहले ही कांग्रेस के संपर्क में आए थे और टिकट लेने में कामयाब रहे. कैबिनेट मंत्री विश्वेंद्र सिंह और पीसीसी चीफ सचिन पायलट ने उनके नाम की सिफारिश की.
करौली-धौलपुर से 30 साल के युवा संजय जाटव को टिकट मिलने की चर्चा कांग्रेस में सबसे ज्यादा हो रही है. यहां से लक्खीराम बैरवा की उम्मीदवारी तय मानी जा रही थी. वे 2014 के लोकसभा चुनाव में सबसे कम अंतर से हारे थे. प्रभारी मंत्री विश्वेंद्र सिंह ने भी उन्हीं की पैरवी की, लेकिन पार्टी के ज्यादातर विधायक उनके खिलाफ हो गए. आखिर में सबकी सहमति से संजय जाटव को प्रत्याशी बनाया गया.
नागौर से हनुमान बेनीवाल की पार्टी के साथ गठबंधन की चर्चा सामने आने के बाद ज्योति मिर्धा का टिकट संकट में पड़ गया था, लेकिन भूपेंद्र हुड्डा और अहमद पटेल की पैरवी काम कर गई. उनके बीजेपी में जाने की खबरों से भी कांग्रेस में खलबली मची. पार्टी ने कोई नया प्रयोग करने का खतरा लेने की बजाय ज्योति मिर्धा पर भरोसा करना ही बेहतर समझा.
वैभव गहलोत के लिए पार्टी ने कई सीटों पर सर्वे करवाया, लेकिन सबसे उपयुक्त सीट जोधपुर ही मानी गई. हालांकि वैभव गहलोत पूरे पांच साल टोंक-सवाईमाधोपुर में सक्रिय रहे मगर टोंक से सचिन पायलट के चुनाव लड़ने के बाद बदले हालात और नमोनारायण के चुनाव लड़ने की जबरदस्त इच्छा के चलते वैभव को पीछे होना पड़ा.
बाड़मेर-जैसलमेर सीट पर मानवेंद्र सिंह का टिकट तय माना जा रहा था. उन्होंने भाजपा छोड़ कांग्रेस का हाथ थामते समय ही बाड़मेर-जैसलमेर से लोकसभा चुनाव लड़ने की शर्त रखी थी. हालांकि यहां से हरीश चौधरी ने टिकट के लिए खूब जोर लगाया, लेकिन आलाकमान ने उनकी बात नहीं मानी.
जालौर-सिरोही सीट से कांग्रेस ने लंबे अरसे बाद किसी स्थानीय नेता को उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस के लिए कमजोर माने जाने वाली इस सीट पर बहुत कम नेताओं ने अनमने मन से टिकट के लिए दावेदारी जताई. आखिर में रतन देवासी को टिकट देने की सहमति बन गई. पीसीसी चीफ सचिन पायलट ने उनके नाम की पैरवी की.
कांग्रेस ने पाली से बद्री जाखड़ को मौका दिया है. वे यहां से पहले भी सांसद रह चुके हैं. उन्होंने विधानसभा चुनाव में भी टिकट मांगा था. तब उन्हें लोकसभा चुनाव में टिकट देने का आश्वासन दिया गया. बद्री जाखड़ को सीएम अशोक गहलोत का करीबी माना जाता है. उन्हें टिकट दिलाने में गहलोत की भूमिका अहम रही.
चितौड़गढ़ सीट पर पार्टी ने गोपाल सिंह ईडवा को मौका दिया है. उन्हें पीसीसी चीफ सचिन पायलट का करीबी माना जाता है. हालांकि मंत्री उदयलाल आंजना इस सीट से ईडवा को टिकट देने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन आखिरकार उनके नाम पर ही सहमति बनी.
कोटा-बूंदी सीट से कांग्रेस ने पीपल्दा विधायक रामनारायण मीणा को टिकट दिया है. मीणा यहां से पहले भी सांसद रह चुके हैं. भाजपा का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट पर पूर्व सांसद इज्येराज सिंह की दावेदारी सबसे मजबूत थी, लेकिन विधानसभा चुनाव के समय वे बीजेपी में शामिल हो गए. ऐसे में कांग्रेस के पास रामनारायण मीणा के अलावा कोई दूसरा बड़ा चेहरा नहीं बचा.
कांग्रेस ने दौसा सीट पर विधायक मुरारी मीणा की पत्नी सविता मीणा को टिकट दिया है. हालांकि यहां से मंत्री परसादी मीणा के बेटे कमल मीणा भी टिकट मांग रहे थे, लेकिन पिता के मंत्री होने के चलते उन्हें मौका नहीं मिला. पीसीसी चीफ सचिन पायलट के करीबी जीआर खटाना और अन्य विधायकों ने मुरारी की पत्नी को टिकट देने की पैरवी की.