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अमित शाह, रवि शंकर प्रसाद और कनिमोझी का राज्यसभा से इस्तीफा

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बीजेपी के तारणहार कहे जाने वाले पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने फिर करिश्मा कर दिखाया और पार्टी को उनके नेतृत्व में 300 से अधिक सीटें हासिल हुई है. इस बार के लोकसभा चुनाव में अमित शाह ने गुजरात की गांधीनगर संसदीय सीट से जीत हासिल कर सांसद बने हैं. इससे पहले वे बीजेपी की ओर से राज्य सभा सदस्य हैं.

अब जीत के बाद उन्होंने राज्य सभा से इस्तीफा दे दिया है. उनके अलावा बिहार के पटना साहिब सीट से जीतने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद और तमिलनाडु के थुथुकुडी से सांसद बनी द्रमुक नेता कनिमोझी ने भी राज्य सभा सदस्य पद से अपना इस्तीफा दिया है.

बुधवार को राज्यसभा सचिवालय की ओर से जानकारी दी गई और एक लेटर भी जारी किया गया. इसमें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, बीजेपी नेता रवि शंकर प्रसाद व डीएमके नेता कनिमोजी के राज्यसभा सदस्य के पद से इस्तीफा देने की बात कही गई है. लोकसभा चुनाव में अमित शाह ने गुजरात की गांधीनगर, रवि शंकर प्रसाद ने बिहार की पटना साहिब और कनिमोझी ने तमिलनाडु की थुथुकुडी संसदीय सीट से सांसद बनने के बाद राज्यसभा सचिवालय को अपना इस्तीफा दिया है.

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प्रियंका गांधी ने CWC की बैठक में किसे कहा कांग्रेस का हत्यारा?

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लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस के भीतर मंथन का दौर जारी है. कभी खबर आती है कि राहुल गांधी इस्तीफा देने के अड़े है. उसके पलभर बाद फिर खबर आ जाती है कि राहुल गांधी इस्तीफा न देने के लिए मान गए हैं. कांग्रेस के भीतर क्या चल रहा है, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा. इसी बीच यह खबर आयी कि प्रियंका गांधी CWC की बैठक में पार्टी की हार के लिए जिम्मेदार नेताओं पर जमकर बरसी. उन्होंने तल्ख लहजे में चुनिंदा नेताओं की ओर इशारा करते हुए कहा कि ‘पार्टी के हत्यारे’ आज हमारे बीच इसी बैठक में मौजूद हैं. उन्होंने अपने स्वार्थ साधने के लिए पार्टी को दांव पर लगा दिया.

इसी बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी वरिष्ठ नेताओं पर नाराजगी जाहिर की. राहुल गांधी की नाराजगी इस पर थी कि कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं ने अपने पुत्रों को लोकसभा चुनाव का टिकट देने के लिए पार्टी नेतृत्व पर जरुरत से ज्यादा दबाव बनाया था. राहुल गांधी ने बैठक में कहा कि इन नेताओं ने अपने निजी हितों को पार्टी से ऊपर रखा. इन हमलों में राहुल और प्रियंका का सीधा-सीधा निशाना कांग्रेस के तीन वरिष्ठ नेताओं पर था जिन्होंने अपने बेटों को लोकसभा का टिकट दिलाया था.

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने पुत्र नकुलनाथ को अपनी परम्परागत सीट छिंदवाड़ा से प्रत्याशी बनाया था. राहुल गांधी नकुलनाथ की जगह छिंदवाड़ा से पार्टी के किसी कार्यकर्ता को टिकट देना चाहते थे. लेकिन कमलनाथ के दबाव के कारण यह सीट बाद में उनके पुत्र को दी गई. हालांकि नकुलनाथ तो चुनाव जीतन में सफल रहे लेकिन पार्टी प्रदेश की 29 में से 28 सीटें हार गई.

ऐसा ही कुछ हाल राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का रहा. उन्होंने भी अपने बेटे वैभव गहलोत के टिकट के लिए राहुल गांधी पर पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं के जरिए दबाव बनाया था. इसी दबाव के चलते राहुल वैभव गहलोत को जोधपुर संसदीय सीट से प्रत्याशी बनाने के लिए तैयार हुए. लेकिन वैभव को गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए बीजेपी के गजेंद्र शेखावत से करारी हार का सामना करना पड़ा. वह अशोक गहलोत के निर्वाचन क्षेत्र सरदारपुरा से भी पिछड़ गए.

राहुल ने बैठक में कहा कि इन नेताओं ने खुद को चुनाव के दौरान सिर्फ अपने पुत्रों के संसदीय क्षेत्रों तक ही सीमित कर लिया. प्रदेश के अन्य सीटों का इन्होंने कुछ ध्यान नहीं रखा. इनका उद्देशय सिर्फ पुत्रों को जिताना रहा, न कि पार्टी को. इन हिंदी पट्टी के कांग्रेस मुख्यमंत्रियों के अलावा राहुल और प्रियंका के निशाने पर पी. चिदंबरम भी रहे. उन्होंने भी इस बार अपने पुत्र कार्ति चिदंबरम को शिवगंगा लोकसभा क्षेत्र से टिकट दिलाया था. हालांकि कार्ति चुनाव जीतने में कामयाब रहे.

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मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में नहीं आएंगी ममता बनर्जी, बताया ये कारण

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नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ऐतिहासिक बड़ी जीत हासिल कर सत्ता में लौटा एनडीए नई सरकार के गठन की तैयारी में है. कल 30 मई को नरेंद्र मोदी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने वाले हैं. इस समारोह के लिए कई विदेशी मेहमानों को भी आमंत्रित किया गया है. साथ ही देश की विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के नेता भी इसका हिस्सा बनने वाले है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी पीएम के शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित है. अब तक ममता दीदी की तरफ से इस समारोह में शरीक होने के लिए हामी भरने की बात सामने आ रही थी, लेकिन एक दिन पहले ममता बनर्जी ने समारोह में शामिल होने से इनकार कर दिया है.

ममता बनर्जी ने अपने ट्विटर हैंडल पर एक बयान जारी किया है. जिसमें नरेंद्र मोदी को बधाई देते हुए उनके शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं होने का कारण बताया है. इस बयान में ममता दीदी ने लिखा है कि वे पीएम के शपथ समारोह में शामिल होना चाहती थीं, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स में बीजेपी दावा कर रही है कि पश्चिम बंगाल में राजनीतिक कारणों के चलते 54 लोगों की हत्या की गई है.

उन्होंने इस बात को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि इन हत्याओं का उनसे कोई लेना-देना नहीं है. ये सिर्फ आपसी या पारिवारिक दुश्मनी की घटनाएं है. आगे उन्होंने कहा है कि इन घटनाओं का उनका या उनकी पार्टी से कोई संबध नहीं है. फिर भी बीजेपी द्वारा लगातार उनकी छवि धूमिल करने के लिए आरोप लगाए जा रहे हैं. ममता दीदी ने आगे नरेंद्र मोदी से इस समारोह में शामिल नहीं होने के लिए माफी मांगते हुए लिखा कि बीजेपी के ये झूठे आरोप मुझे इस समारोह में शरीक नहीं होने देने वाले हैं.

इसके अलावा अपने इस बयान में ममता बनर्जी ने कहा कि शपथग्रहण समारोह लोकतंत्र का जश्न मनाने का एक अच्छा अवसर है. इस दौरान किसी भी राजनीतिक दल द्वारा शीर्ष तक पहुंचने के बाद दूसरों का अवमूल्यन नहीं किया जाना चाहिए. बता दें कि नरेंद्र मोदी के 30 मई को शपथ लेने की तारीख तय होने के बाद जब ममता बनर्जी को आमंत्रण दिया गया था तो उन्होंने इस समारोह में शरीक होने की बात कही थी.

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2020 में ये बड़ी बाधा पार कर लेंगे मोदी

PoK की आठ सीटों के बूते J&K में सत्ता के शिखर तक पहुंचने की तैयारी में बीजेपी

लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद बीजेपी ने ऐसे राज्यों को टारगेट करना शुरू कर दिया है, जहां पार्टी अभी तक सरकार नहीं बना पाई है. जम्मू-कश्मीर ऐसे ही राज्यों में से एक है. हालांकि बीजेपी यहां पीडीपी के साथ गठबंधन सरकार का हिस्सा रही है, लेकिन राज्य में अभी तक पार्टी का मुख्यमंत्री नहीं बना है. लोकसभा चुनाव में मिली रिकॉर्ड जीत के बाद बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के लिए कमर कस ली है.

आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर में अभी राज्यपाल शासन लगा हुआ है. सूत्रों के अनुसार चुनाव आयोग यहां हरियाणा और महाराष्ट्र के साथ विधानसभा के चुनाव करवाने की तैयारी कर रहा है. वहीं, बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने के लिए विशेष रणनीति तैयार की है. इसमें चौंकाने वाली बात यह है कि पार्टी पाक अधिकृत कश्मीर की आठ सीटों के ​जरिए किला फतह करने की तैयारी कर रही है. बीजेपी ने इसके लिए विशेष योजना बनाई है.

गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में कुल 111 विधानसभा क्षेत्र हैं. इनमें से 87 पर ही भारतीय चुनाव आयोग चुनाव कराता है. पाक और चीन अधिकृत कश्मीर की 24 विधानसभा सीटें रिजर्व रखी जाती हैं. यह कहा जाता है कि यह क्षेत्र भारत को वापस मिलेगा तो इन 24 सीटों पर चुनाव कराए जाएंगे. साल 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में 87 सीटों में से पीपुल्स डेमोक्रे‌टिक पार्टी ने 28, बीजेपी ने 25, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 15, कांग्रेस ने 12 और अन्य ने सात सीटों पर जीत दर्ज की थी.

किसी को बहुमत नहीं​ मिलने पर पीडीपी और बीजेपी गठबंधन ने जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाई थी. पहले मुफ्ती मोहम्मद सईद और बाद में उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनीं जबकि बीजेपी के निर्मल सिंह और कविंद्र गुप्ता उप मुख्यमंत्री बने. दो विपरीत विचारधाराओं का यह ​सियासी मिलन लंबा नहीं चला. 2018 में बीजेपी के समर्थन वापस लेने के बाद महबूबा मुफ्ती ने इस्तीफा दे दिया. तब से ही राज्य में राज्यपाल शासन लगा हुआ है.

लोकसभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर की छह सीटों में से बीजेपी ने उधमपुर, लद्दाख और जम्मू में जीत दर्ज की है. बीजेपी को 46.4 प्रतिशत वोट मिले हैं. इस आंकड़े से जम्मू-कश्मीर में आसानी से बीजेपी की सरकार बन जानी चाहिए, लेकिन यह इसलिए संभव नहीं हो पाता क्योंकि पार्टी को ज्यादातर वोट जम्मू और लद्दाख डिवीजन से मिले हैं. इन दोनों क्षेत्रों में विधानसभा की 41 सीटें हैं. यदि इन सभी सीटों पर बीजेपी जीत दर्ज कर लेती है तो भी उसे विधानसभा में बहुमत हासिल नहीं होता है.

विधानसभा की 46 सीटें कश्मीर डिवीजन में हैं. यहां बीजेपी का नाममात्र का जनाधार है. इस क्षेत्र में लोकसभा की अनंतनाग, बारामूला और श्रीनगर सीटें आती हैं. इन तीनों सीटों पर नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जीत दर्ज की है. बावजूद इसके उसे महज 7.89 प्रतिशत वोट मिले हैं. जबकि एक सीट पर भी जीत दर्ज नहीं करने वाली कांग्रेस को 28.5 और पीडीपी को 7.89 प्रतिशत वोट मिले हैं.

बीजेपी को पता है कि महज जम्मू और लद्दाख डिवीजन में लोकप्रियता के बूते जम्मू-कश्मीर की सत्ता के शीर्ष तक नहीं पहुंचा जा सकता. पार्टी के साथ दिक्कत यह है कि वह अपनी मौजूदा विचारधारा के बल पर कश्मीर डिवीजन में पैर नहीं जमा सकती. इस दुविधा का तोड़ निकालने के लिए बीजेपी नेतृत्व ने पीओके की 24 रिजर्व सीटों में कम से कम आठ पर चुनाव करवाने की रणनीति तैयार की है. पार्टी इसके लिए चुनाव आयोग से आग्रह करेगी.

बीजेपी को भरोसा है कि चुनाव आयोग उनकी मांग पर सहमत होगा. इसके पीछे पार्टी के नेताओं का तर्क यह है कि पाक अधिकृत कश्मीर के एक तिहाई से ज्यादा लोग एलओसी के इस पार आ चुके हैं. ऐसे में उन्हें मतदान का मौका दिया जाना चाहिए. इसके लिए बीजेपी चुनाव आयोग से कश्मीरी पंडितों के लिए बनाई गई ‘एम फॉर्म’ सरीखी व्यवस्‍था बनाने का आग्रह करेगी.

आपको बता दें कि ‘एम फॉर्म’ के तहत कश्मीरी पंडित भारत के किसी अन्य क्षेत्र में रहते हुए अपना वोट दे सकते हैं. बीजेपी का यह तर्क है कि जब कश्मीरी पंडितों को यह अधिकार मिल सकता है तो पीओके छोड़कर आए लोगों को भी इसी आधार पर मतदान का अधिकार मिलना चाहिए. बीजेपी की मांग है कि पीओके से आए लोग ‘एम फॉर्म’ में अपने मूल विधानसभा क्षेत्र की जानकारी दें और वोटिंग में शामिल हों.

यदि चुनाव आयोग बीजेपी की इस मांग को मान लेता है तो बीजेपी को इसका बड़ा फायदा मिल सकता है. हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव के आंकड़े इसकी ओर साफ इशारा कर रहे हैं. दरअसल, अनंतनाग सीट पर पर पोओके से सटे इ​लाके में लोकसभा चुनाव का ब​हिष्कार हुआ था. इसके चलते यहां केवल 1.14 प्रतिशत वोटिंग हुई. कुल 1019 लोगों ने मताधिकार का प्रयोग किया. इतनी कम वोटिंग में भी बीजेपी को सबसे ज्यादा 323 वोट मिले जबकि इस सीट पर चुनाव जीतने वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस को 234 वोट मिले.

पीओके से सटे इलाकों में समर्थन देखकर बीजेपी नेताओं का उत्साह बढ़ा हुआ है. प्रदेश में पार्टी नेतृत्व को उम्मीद है कि यदि पीओके से आए लोगों को मतदान का अधिकार मिला तो उनमें से ज्यादातर बीजेपी को वोट देंगे. पार्टी का मानना है कि सभी आठ सीटों पर उसे जीत मिल सकती है. यदि ऐसा होता है तो बीजेपी जम्मू-कश्मीर में बहुमत के आंकड़े तक पहुंच सकती है.

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‘मोदी 2.0’ में मंत्री नहीं होंगे अरुण जेटली, चिट्ठी लिखकर बताई वजह

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लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल कर सत्ता में वापसी करने वाली बीजेपी और एनडीए नई सरकार गठन की कवायद में जुटी है. 30 मई को नरेंद्र मोदी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले हैं. इसी बीच खराब स्वास्थ्य से जुझ रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने एनडीए के संसदीय दल के नेता नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. पत्र में जेटली ने लिखा है कि वे स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के चलते आराम करना चाहते हैं, इस दौरान उन्हें किसी भी जिम्मेदारी से दूर रखा जाए. साथ ही अरुण जेटली ने कहा है कि उन्हें नई सरकार में भी कोई पद नहीं दिया जाए. माना जा रहा है कि नरेंद्र मोदी के शपथ समारोह के दौरान कुछ को मंत्री भी बनाया जा सकता है.

अरुण जेटली ने पीएम को लेकर पत्र को अपने ट्विटर हैंडल पर भी शेयर किया है. इस पत्र में जेटली ने लिखा है कि मैं आपसे औपचारिक रूप से अनुरोध करने के लिए लिख रहा हूं कि मुझे खुद के लिए अपने उपचार के लिए और अपने स्वास्थ्य के लिए उचित समय की जरूरत है और इसलिए नई सरकार में, फिलहाल के लिए मैं किसी भी जिम्मेदारी का हिस्सा नहीं होना चाहता. साथ ही उन्होंने नरेंद्र मोदी को लिखा कि उनके नेतृत्व की पिछली सरकार में 5 साल काम करना मेरे लिए सौभाग्य की बात है और इससे मुझे काफी अनुभव भी मिला है.

पत्र में जेटली ने अपने स्वास्थ्य को लेकर जानकारी दी कि वे पिछले 18 सालों से गंभीर स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझ रहे हैं. उन्होंने यह भी लिखा कि पूर्व में भी उनके द्वारा मोदी को खराब स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देकर भविष्य में जिम्मेदारियों से मुक्त रखने की बात कही गई थी. जेटली ने कहा उन्हें इस हैल्थ समस्या से निपटने के लिए कुछ समय चाहिए. इस दौरान वे अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाने व उपचार पर ध्यान देना चाहते हैं. उन्होंने बीजेपी और एनडीए की प्रचंड जीत का भी जिक्र किया.

बता दें कि पिछले लंबे समय से किडनी संबंधी बीमारी से जूझ रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली का पिछले साल मई में भी किडनी ट्रांसप्लांट किया गया था. बीती जनवरी में उनको एक सर्जरी के सिलसिले में अमेरिका जाना पड़ा था. बताया जा रहा है कि उनके बायें पैर में सॉफ्ट टिश्यू कैंसर भी है. इन्ही कारणों के चलते वे मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के अंतरिम बजट उनकी बजाए रेलवे और कोयला मंत्री पीयूष गोयल न बजट पेश किया था. पेशे से वकील अरुण जेटली कई मामलों में सरकार के संकटमोचक रहे हैं. उनका कद पार्टी और मोदी मंत्रिमंडल में काफी अहम रहा है.

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मोदी की ऐतिहासिक जीत ने बदला ‘TIME’, अब PM देश को संगठित करने वाले

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लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में मिली प्रचंड और ऐतिहासिक जीत के बाद ‘TIME’ बदला-बदला सा नजर आ रहा है. हम बात कर रहे हैं अमेरिका की मशहूर मैगजीन ‘टाइम’ (TIME) की. मंगलवार के प्रकाशन में ‘टाइम’ ने पीएम नरेंद्र मोदी की तारिफों के पुल बांधे हैं. मैगजीन ने लिखा है कि नरेंद्र मोदी ने देश में जाति और धर्म की खाई को कम कर भारत को एकजुट करने का काम किया है. साथ ही लिखा है कि यह काम इससे पहले दशकों से कोई पीएम नहीं कर पाया है. बता दें कि इससे पहले चुनाव के दौरान यह मैगजीन मोदी को विभाजनकारी बता चुकी है.

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बड़ी जीत के साथ दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं नरेंद्र मोदी पर अमेरीकी मैगजीन ‘टाइम’ (TIME) की राय अब बदल गई है. मंगलवार के संस्करण में मैगजीन ने लिखा है कि पीएम मोदी ने जिस तरह से देश को संगठित किया है, वह कोई और पीएम दशकों में नहीं कर सका है. मैगजीन ने पीएम नरेंद्र मोदी की तारिफों के पुल बांधते हुए एक लंबा आर्टिकल छापा है. जिसमें पीएम मोदी को देश में जाति और धर्म के बंधन को तोड़कर सबको एक साथ जोड़ने वाला बताया गया है.

मैगजीन ने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में मतदाताओं का मन जीतकर मोदी द्वारा बड़ी जीत हासिल करने को ऐतिहासिक बताया है. ‘टाइम’ मैगजीन ने आर्टिकल में लिखा है कि पीएम मोदी के नेतृत्व में एनडीए ने 50 प्रतिशत से बस कुछ ही कम राष्‍ट्रीय वोट हासिल करने में सफलता हासिल की है. इससे पहले आखिरी बार सन् 1971 में इंदिरा गांधी के रूप में कोई भारतीय पीएम दोबारा निर्वाचित हो सका था. बता दें कि लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने 305 सीटें व एनडीए गठबंधन ने 352 सीटों पर सफलता पाई है.

इसके अलावा पीएम नरेंद्र मोदी पर ‘टाइम’ मैगजीन के इस आर्टिकल में एक सवाल भी पूछा गया है कि कैसे यह कथित विभाजनकारी शख्सियत न केवल सत्ता में कायम रह पाया है, बल्कि उसके समर्थक और भी ज्यादा बढ़ गए हैं? मैगजीन के इसी सवाल का जवाब भी लेख में ही छापा गया है. जिसमें लिखा है कि एक प्रमुख कारक यह रहा है कि मोदी भारत की सबसे बड़ी कमी ‘जातिगत भेदभाव’ को पार करने में कामयाब रहे हैं. साथ ही आर्टिकल के लेखक ने तो मोदी की पिछड़ी जाति होने को ही इस एकजुटता का सूत्रधार माना है.

बता दें कि इससे पहले देश में लोकसभा चुनाव के दौरान ‘टाइम’ (TIME) मैगजीन ने पीएम मोदी को कवर पर छापा था. जिसमें उन्हें भारत का ‘डिवाडर इन चीफ’ बताया गया था. मैगजीन के इस लेख के बाद खासा बवाल हुआ था. चुनाव प्रचार में मोदी विरोधियों ने इसे खूब इस्तेमाल भी किया था. इस आर्टिकल से मोदी के विरोधियों की आवाज को बल मिला था. वे इसे मोदी पर वैश्विक मीडिया की सोच के रूप में उन्हें ‘विभाजनकारी’ बताने की बात प्रमुखता से उठाने लगे थे. लेकिन देश की जनता ने यह सब नकारते हुए नरेंद्र मोदी को फिर से सत्ता सौंप दी.

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