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क्या देश की राजनीति से वामपंथ के विदा होने का वक्त आ गया है?

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लोकसभा चुनाव में मोदी की आंधी में वैसे तो समूचा विपक्ष ही उड़ गया, लेकिन सबसे ज्यादा खराब प्रदर्शन लेफ्ट पार्टियों का रहा. 1952 के बाद से ये पहली बार हुआ है कि लेफ्ट दो अंकों तक भी नहीं पहुंच सका. इस बार महज 5 सीटें हासिल करने वाली वामपंथी पार्टियों के लिए यह सबसे शर्मनाक है कि किसी ज़माने में लेफ्ट का गढ़ माने जाने वाले पश्चिम बंगाल में उसका सूपड़ा साफ हो गया.

लगातार 34 सालों तक पश्चिम बंगाल पर राज करने वाले लेफ्ट को 2014 के लोकसभा चुनाव में केवल 2 सीटों से संतोष करना पड़ा था, लेकिन इस बार तो ये सीटें भी उसके हाथों से चली गईं. इससे भी शर्मनाक यह है कि सूबे की ज्यादातर सीटों पर लेफ्ट के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. 2014 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले लेफ्ट के वोटिंग प्रतिशत में भी जबरदस्त गिरावट आई है. 2014 के चुनाव में वामपंथी पार्टियों को 23 फीसदी वोट मिले थे जो इस बार घटकर 7 फीसदी रह गया है.

पश्चिम बंगाल में सत्ता से बेदखल होने के बाद लेफ्ट के पास केरल ही एकमात्र राज्य बचा है, जहां वह सत्ता में है. यहां लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी एलडीएफ की सरकार है. बावजूद इसके यहां वाम दलों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है. लेफ्ट को इस बार के लोकसभा चुनाव में महज एक सीट पर जीत नसीब हुई है. वाम दलों के लिए खुद के खराब प्रदर्शन के अलावा चिंता की एक बात यह भी है कि केरल में बीजेपी ने पांव जमाना शुरू दिया है.

गौरतलब है कि इस लोकसभा चुनाव से पहले केरल में मुख्य मुकाबला एलडीएफ और युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी यूडीएफ के बीच होता था, लेकिन इस बार तीसरी ताकत के तौर बीजेपी मजबूती से उभरी है. हैरानी की बात यह है कि बीजेपी ने यूडीएफ की बजाय एलडीएफ के वोट बैंक में सेंध लगाई है. यानी केरल में लेफ्ट की जमीन खिसक चुकी है. लेफ्ट की थोड़ी बहुत इज्जत तमिलनाडु में बची है. यहां सीपीआई और सीपीएम को दो-दो सीटें मिली हैं.

लोकसभा चुनाव में लेफ्ट के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद यह कहा जाने लगा है कि देश से वामपंथ खत्म होने की ओर बढ़ रहा है. हालांकि वाम दलों के नेता यह मानने को तैयार नहीं हैं. लेफ्ट के नेता कह रहे हैं कि हम कभी भी सत्ता पाने के लिए चुनाव नहीं लड़ते. इस बार भी हमारी कोशिश बीजेपी को रोकना था और इसके लिए हमने कांग्रेस और तमाम विपक्षी ताकतों का समर्थन किया. लेफ्ट ने अपने महज सौ उम्मीदवार उतारे. इनमें से पांच को जीत मिली.

लेफ्ट के नेताओं का कहना है कि जब देश में सांप्रदायिक सोच और मानसिकता का इतने बड़े पैमाने पर विस्तार हुआ हो और सुनियोजित तरीके से मोदी की इस कथित आंधी की तैयारी की गई हो, तो ऐसे में हम 5 सीटें पा गए तो कम नहीं है. कम से कम संसद में अपनी बात रखने के लिए हमारा नुमाइंदा तो है. वरना बीजेपी का बस चले तो देश में एकदलीय व्यवस्था लागू हो जाए और निरंकुशता अपने चरम पर पहुंच जाए.

वाम नेताओं के उलट दक्षिणपंथी चिंतकों का कहना है कि भारत में वामपंथ पूरी तरह से अप्रासंगिक हो चुका है. इनका मानना है कि जेएनयू में भारत विरोधी नारे लगाने से लेकर रोहित वेमुला की मौत पर राजनीतिक रोटियां सेंकने, याकूब की फांसी पर अनर्गल विलाप करने, मालदा पर चुप्पी साधने, बीफ पार्टियां करने, कश्मीर की आजादी के नारों का समर्थन करने तक ऐसी तमाम हरकतें इस बात की बानगी हैं कि वामपंथ अब आत्मघाती राह पर है.

दक्षिणपंथी चिंतकों का मानना है कि वामपंथी संगठनों की ओर से अनर्गल मुद्दे उठाना यह साबित करता है कि उनके पास रचनात्मक मुद्दों की कमी हो गई है या वह कम मेहनत पर ज्यादा फसल काटना चाहते हैं. कई वामपंथी नेता इस बात को भी मानते हैं कि वाम दलों के भीतर आजकल ऐसे ​मुद्दों को तरजीह मिलने लगी है जो सुर्खियां बटोरती हों. यदि ऐसा नहीं होता तो वाम दल मोदी के पिछले कार्यकाल के दौरान कॉरपोरेट जगत को भारी सब्सिडी, किसानों की सब्सिडी में कटौती, बैंकों के लाखों करोड़ रुपये एनपीए और श्रम सुधार कानूनों पर नेता मौन नहीं साधते.

फिलहाल हकीकत यह है कि लोकसभा चुनाव के बाद देश की चुनावी राजनीति में वामपंथ के सिर्फ नामोनिशान ही बचे हैं. यदि वामदलों ने इस करारी हार पर मंथन नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब संसद में वाम दलों का एक भी नुमाइंदा नहीं बचेगा.

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जगन मोहन रेड्डी बने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री, राज्यपाल ने दिलाई शपथ

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देश में मोदी लहर के इतर आंध्र प्रदेश में वाईएस जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने रिकॉर्ड जीत दर्ज कर सत्ता में आई है. वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने आज प्रदेश के नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. विजयवाड़ा के इंदिरा गांधी स्टेडियम में आयोजित समारोह में राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन ने उन्हें पद एवं गोपनियता की शपथ दिलाई. इस दौरान राजनीतिक व कॉर्पोरेट की हस्तियों के अलावा हजारों की संख्या में जगन समर्थक व पार्टी कार्यकर्ता और नेता उपस्थित रहे. जगन रेड्डी ने शपथ से पूर्व अपने पिता को याद किया.

वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने आंध्र प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल करने के बाद गुरूवार को प्रदेश में सरकार गठन की कवायद शुरू कर दी. पार्टी चीफ येदुगुड़ी संदीप्ति जगनमोहन रेड्डी ने आंध्र प्रदेश के नए मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. राष्ट्रगान के बाद राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन ने जगन रेड्डी को पद व गोपनियता की शपथ दिलाई. इसके बाद जगन ने उन्हें फूलों का गुलदस्ता भेंट किया. विजयवाड़ा के इंदिरा गांधी स्टेडियम में जगन के शपथ लेते ही वहां मौजूद हजारों लोगों ने नारे लगाकर उनका हौंसला बढ़ाया. इस दौरान जगन ने भी हाथ उठाकर अभिवादन स्वीकार किया.

प्रदेश के नए मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में जगन रेड्डी ने अकेले ही शपथ ली है. जानकारी के अनुसार उनका मंत्रीमंडल 7 जून को शपथ ले सकता है. इस दौरान तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव, डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन के अलावा अन्य राजनीतिक पार्टियों के दिग्गज नेता और कई हस्तियां भी शामिल हुई. इस पूरे कार्यक्रम की दिल्ली स्थित आंध्रा भवन में लाइव स्ट्रीमिंग की व्यवस्था की गई. इस दौरान विभिन्न देशों के राजदूत, प्रतिनिधि, व्यापारिक संगठनों के लोग और मीडियाकर्मी मौजूद रहे.

प्रदेश के नए मुख्यमंत्री जगन रेड्डी ने पीएम नरेंद्र मोदी को भी इस कार्यक्रम के लिए आंमत्रित किया था. उन्होंने पीएम मोदी व बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात थी. वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार, आंध्रा के पूर्व सीएम व टीडीपी प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू के साथ-साथ कई पार्टियों के दिग्गज नेताओं को आंमत्रित किया था. राज्य विभाजन के बाद जगन प्रदेश के दूसरे मुख्यमंत्री बने हैं.

बता दें कि आंध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी को पछाड़ते हुए जगन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा की 175 सीटों में से 151 व लोकसभा की 25 में से 22 सीटों पर विजय हासिल कर इतिहास रच दिया. सत्ताधारी चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी को प्रदेश में महज 23 विधानसभा और 3 लोकसभा सीटों पर ही जीत हासिल हो सकी है.

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नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण के गवाह बनेंगे देश-विदेश के ये खास मेहमान

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आज शाम दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में नरेंद्र मोदी फिर से लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण करेंगे. इस भव्य समारोह में करीब आठ हजार देसी-विदेशी मेहमानों को निमंत्रण भेजा गया है. इस शपथ ग्रहण के गवाह कुछ खास मेहमान भी बनने वाले हैं. नीचे दी गई लिस्ट में उन चुनिंदा खास आगंतुकों के नाम शामिल हैं जो इस शपथ ग्रहण के गवाह बनेंगे…

BIMSTEC देशों के प्रमुख होंगे शामिल

  • भूटान के प्रधानमंत्री डॉ.लोटे तशरिंग
  • थाईलैंड के विशेष अधिकारी ग्रिसदा बूनराच
  • म्यांमार के राष्ट्रपति यू विन मिंट
  • श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना
  • चेक रिपब्लिक के राष्ट्रपति सोरांव जेनेबकोव
  • नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी.शर्मा ओली

ये सितारे बिखेरेंगे अपनी चमक

  • शाहरुख खान
  • रजनीकांत
  • कंगना रनौत
  • संजय लीला भंसाली
  • करण जौहर
  • राहुल द्रविड़
  • सायना नेहवाल
  • अनुपम खेर
  • विवेक ओबरॉय
  • पी.टी. ऊषा
  • अनिल कुंबले
  • जवागल श्रीनाथ
  • हरभजन सिंह
  • पुलेला गोपीचंद
  • दीपा करमाकर

प्रमुख नेताओं में ये करेंगे शिरकत

  • कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी
  • पूर्व पीएम मनमोहन सिंह
  • यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी
  • दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल
  • तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर,
  • बीजेपी-एनडीए शासित राज्यों के सभी मुख्यमंत्री
  • शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और परिवार

उद्योगपति होंगे शामिल

  • मुकेश अंबानी
  • गौतम अडानी
  • रतन टाटा
  • अजय पिरामल

ये हैं सबसे विशेष मेहमान

  • बंगाल में मारे गए बीजेपी कार्यकर्ताओं के परिवारजन
  • पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए बब्लू सांतरा के परिवारजन

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आज शाम प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे नरेंद्र मोदी, 8 हजार मेहमान करेंगे शिरकत

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लोकसभा चुनाव में बड़ी और शानदार जीत हासिल करने वाले नरेंद्र मोदी आज शाम 7 बजे राष्ट्रपति भवन में एक बार फिर प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण करने वाले हैं. मोदी लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे. समारोह की सभी तैयारियां करीब-करीब पूरी हो चुकी हैं. खास बात यह है कि इस बार का मोदी शपथ ग्रहण समारोह पिछले बार से कहीं भव्यता लिए हुए नजर आएगा. इसका अंदाजा केवल इस बात से ही लगाया जा सकता है कि समारोह में करीब 8 हजार मेहमानों के आने की उम्मीद है.

समारोह में मोदी के साथ करीब 50 मंत्री भी अपने पद और गोपनियता की शपथ ग्रहण करेंगे. बीजेपी की ओर से शपथ ग्रहण समारोह में देश के करीब-करीब सभी प्रमुख नेताओं को आमंत्रित किया गय है जिसमें तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी और आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल भी शामिल हैं.  इसके साथ ही बंगाल में करीब 50 मारे गए कार्यकर्ताओं के परिवार भी शामिल होंगे. इस समारोह में विदेशी आगंतुकों को भी न्यौता भेेजा गया है. बता दें, 2014 में नरेंद्र मोदी के शपथग्रहण समारोह में 5000 मेहमानों ने शिरकत की थी.

उससे पहले आज सुबह नरेंद्र मोदी ने महात्मा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी और देश के शहीदों को श्रद्धांजलि दी. वें सुबह-सुबह राजघाट पहुंचे और राष्ट्रपिता को नमन किया. इसके बाद अटल समाधि स्थल पर श्रद्धासुमन अर्पित करने के बाद नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करके पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी को याद किया.उसके बाद मोदी वॉर मेमोरियल पहुंचे और शहीदों को नमन किया. नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री रहते हुए इसी साल फरवरी में इस मेमोरियल का उद्घाटन किया था. इस मेमोरियल में अभी तक युद्ध में शहीद हुए सभी जवानों का नाम दर्ज है.

ये नेता होंगे शामिल
नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पं.बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पुड्डूचेरी के मुख्यमंत्री नारायमसामी, तेलंगाना के सीएम केसीआर, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पल्लीसामी सहित सभी बीजेपी-एनडीए शासित राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल होंगे. इनके अलावा, सुपरस्टार रजनीकांत, कमल हासन भी नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण में शामिल होंगे. हालांकि ममता बनर्जी और अशोक गहलोत ने निजी कारणों के चलते समारोह में शामिल होने से इनकार कर दिया है.

विदेशी मेहमान भी आएंगे
इस बार नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण में सार्क देशों को छोड़ BIMSTEC देशों के प्रमुख को बुलाया गया है. अभी तक ये तय है कि नेपाल-भूटान-मॉरिशस के प्रधानमंत्री, श्रीलंका-बांग्लादेश-म्यांमार के राष्ट्रपति, थाईलैंड-किर्गिस्तान के प्रमुख शपथ ग्रहण में शामिल होंगे. पिछली बार सार्क देशों के प्रमुख शामिल हुए थे, जिसमें पाकिस्तान भी शामिल था. इस बार पाक को समारोह से दूर रखा गया है.

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ओडिशा में अपराजेय कैसे बन गए हैं नवीन पटनायक?

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नवीन पटनायक ने 5वीं बार ओडिशा के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ग्रहण की. राज्यपाल गणेशीलाल ने उन्हें सीएम पद की शपथ दिलाई. डालते हैं एक नजर नवीन पटनायक के सियासी सफर पर-

नवीन पटनायक का जन्म 16 अक्टूबर, 1946 को कटक (ओडिशा) में जनता दल के नेता बीजू पटनायक के घर हुआ. उनकी शुरुआती शिक्षा देहरादून के वेलहम बॉयज स्कूल और दून स्कूल में हुई उसके बाद वो शिक्षा हासिल करने देश की राजधानी दिल्ली पहुंचे. यहां के सेंट स्टीफंस कॉलेज से उन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल की. उसके बाद वो उच्च शिक्षा हासिल करने विदेश चल गए.

नवीन पटनायक के पिता बीजू पटनायक ओडिशा के दो बार मुख्यमंत्री बने. 1996 में पिता की निधन के बाद नवीन पटनायक ने राजनीति में कदम रखा. जनता दल ने उन्हें अस्का लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया और नवीन पटनायक ने अपने पहले चुनाव में ही जीत हासिल की.

1997 में जनता दल में फूट पड़ने से संगठन कई धड़ों में विभाजित हो गया. जनता दल से अलग होकर नवीन पटनायक ने बीजू जनता दल के नाम से राजनीतिक दल का गठन किया. नए दल के गठन के बाद नवीन पटनायक की पहली परीक्षा 2000 में होने वाली थी. इसी साल प्रदेश में विधानसभा चुनाव थे.

नवीन पटनायक ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर विधानसभा का चुनाव लड़ा. चुनाव में बीजेडी-बीजेपी गठबंधन को कामयाबी मिली. नवीन पटनायक ने पहली बार मुख्यमंत्री का पद ग्रहण किया.

2004 के विधानसभा चुनाव में पुनः बीजेडी-बीजेपी ने गठबंधन में चुनाव लड़ा और फतह हासिल की. हालांकि 2007 में कंधमाल जिले में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद बीजेपी के साथ उनके रिश्तों में तल्खी आई. उसके बाद 2009 के चुनाव में बीजेपी ने उनका साथ छोड़ दिया. लेकिन नवीन का जादू बीजेपी का साथ छोड़ने के बाद भी चला. बीजेडी ने लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनावों में भी भारी जीत हासिल की. उनकी पार्टी ने 21 लोकसभा सीटों में से 14 और 147 विधानसभा सीटों में से 103 सीटों पर जीत हासिल की.

2014 के लोकसभा चुनाव में जब पूरा देश मोदी लहर की पतवार पर सवार था. लेकिन ओडिशा में नवीन पटनायक की लोकप्रियता के आगे मोदी लहर बिल्कुल मृत हो गई. बीजेडी ने लोकसभा की 21 में से 20 सीटों पर कब्जा जमाया. वहीं विधानसभा की 147 में से 117 सीटों पर जीत हासिल कर चौथी बार मुख्यमंत्री का पदभार संभाला.

2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजों में फिर वही कहानी दोहराई गई. बीजेडी को विधानसभा की 122 सीटों पर फतह हासिल हुई और नवीन पटनायक ने लगातार 5वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की. लगातार मिलती जीत का आंकड़ा ही उनके करिश्माई नेतृत्व की तस्दीक करता है.

अबकी बार लोकसभा में आधी आबादी की धाक, 78 ने लहराया जीत का परचम

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लोकसभा चुनाव के आए नतीजों के बाद हर किसी का ध्यान बीजेपी की प्रचंड जीत पर है, लेकिन इन सबके बीच एक जीत ऐसी है जो भारत की सियासत के भविष्य में मील का पत्थर साबित हो सकती है. जी हां, हम बात कर रहे हैं आधी आबादी की. 17वीं लोकसभा में 78 सीटों पर महिलाओं का काबिज होना सियासत में महिलाओं की स्थिती को मजबूत करता है.

महिला सांसदों की अब तक की सबसे ज्यादा भागीदारी के साथ, नई लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या, कुल सदस्य संख्या का 17 प्रतिशत हो जाएगी, जो एक तिहाई से कम जरूर है, लेकिन उस ओर बढ़ते मजबूत कदम है. आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो लोकसभा चुनाव में कुल 8049 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें 724 महिला प्रत्याशी थीं. बता दें कि 16वीं लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 64 थी.

पार्टीवार देखा जाए तो इस बार कांग्रेस ने सर्वाधिक 54 और बीजेपी ने 53 महिला उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा था. अन्य राष्ट्रीय पार्टियों में से बीएसपी ने 24, तृणमूल कांग्रेस ने 23, सीपीएम ने 10, सीपीआई ने चार और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने एक महिला उम्मीदवार को मौका दिया था. वहीं निर्दलीय महिला उम्मीदवारों की संख्या 222 रही.

इस बार लोकतंत्र के पर्व में मताधिकार में जिस तरह से महिलाओं की बढ़-चढ़ कर साझेदारी रही, उसी तरह नतीजे भी ऐतिहासिक नजर आए. तकरीबन हर राज्य में जनता ने महिलाओं पर भरोसा जताया.आपको बताते है उन महिलाओं के नाम जिन्होंने 2019 लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की है.

सबसे पहले बात करते है उत्तर प्रदेश की, जिस राज्य से सियासत की हवा चलती है वहां सबसे ज्यादा 10 सीटों पर महिलाओं का वर्चस्व देखने को मिला और इन सीटों पर वो बड़े चेहरे भी शामिल है जो भारतीय राजनीति में अपनी धाक रखते हैं. यहां अमेठी से स्मृति ईरानी ने एक बड़ी जीत दर्ज की है और ये जीत इस मायने में भी बड़ी हो जाती है कि यहां स्मृति ने कॉर्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को शिकस्त दी है जो कि उनका पैतृक गढ़ कहा जाता था. इसके अलावा यूपी में सोनिया गांधी, रीता बहुगुणा जोशी, संघमित्रा मौर्य, राखी वर्मा, संगीता आज़ाद, हेमा मालिनी, केशरी देवी पटेल, मेनका गांधी, साध्वी निरंजन ज्योति ने जीत दर्ज की है.

सीटों के संख्या के लिहाज महाराष्ट्र यूपी से काफी छोटा है लेकिन यहां भी इस बार 8 महिलाएं सांसद बनकर दिल्ली पहुंची हैं. जिनमें सुप्रिया सुले, डॉ. भारती प्रवीण पवार, पूनम महाजन, डॉ. हीना विजय कुमार गवित, रक्षा खड़से शामिल है. वहीं ओडिशा में प्रमिला बिसोयी, मंजुलता मंडल, राजश्री मलिक, सर्मिष्ठा सेठी, चांदरानी मुरमु, अपराजिता, संगीता नारायण सिंहदेव ने इतिहास रच लोकसभा चुनाव जीता है. साथ ही पश्चिम बंगाल में काकोली घोष दस्तिदार, अपरूपा पोद्दार, नुसरत जहां रूही, सताब्दी रॉय, मिनी चक्रबॉर्ती, प्रतिमा मंडल, माला रॉय, महुआ मोइत्रा, सजदा अहमद, गोड्डेति माधवी ने जीत दर्ज की है.

इसके अलावा आंध्र प्रदेश में चिंता अनुराधा, बी वी सत्यवथी, वन्गा गीथा विस्वनाथ ने जीत अपने नाम की है. वहीं असम में बोबीता शर्मा, अलथुर से रम्या हरिदास ने लोकसभा सीट जीती है. महबूबाबाद से टीआरएस की कविथा मलोथु की जीत हुई है. उत्तराखंड की अकेली महिला लोकसभा उम्मीदवार टीरी गढ़वाल से माला राज्यलक्ष्मी शाह विजयी रही हैं. हरियाणा में भी 10 सीटों में सिरसा सीट से बीजेपी की सुनीता दुग्गल ने जीत दर्ज की है. मेघालय से अगाथा संगमा और त्रिपुरा वेस्ट से बीजेपी की प्रतिमा भौमिक ने लोकसभा चुनाव जीतने में कामयाबी हासिल की है.

वहीं कर्नाटक में शोभा करंडलाजे, अंबरीश सुमनलता, झारखंड से अन्नपूर्णा देवी, गीता कोरा, पंजाब लोकसभा से सीट से हरसिमरत कौर, प्रिनीत कौर जीतीं हैं. इसके अलावा तमिलनाडू से जोथिमनि एस, सुमथि, कनिमोजी ने जीत दर्ज की. छत्तीसगढ़ लोकसभा सीट पर ज्योत्सना चरनदास महंत, गोमती साई, रेणुका सिंह को दबदबा रहा. बिहार में मीसा भारती, रामा देवी, कविता सिंह, वीणा देवी विजयी रही हैं. वहीं मध्य प्रदेश में साध्वी प्रज्ञा सिंह, हिमाद्री सिंह, रीति पाठक ने जीत दर्ज की.

पश्चिमी भारत में गुजरात से भारती शियाल, पूनमबेन मादम, शारदाबेन पटेल, दर्शना जरदोश, रंजनाबेन भट्ट ने जीत हासिल कर इतिहास रचा है. साथ ही राजस्थान से रंजीता कोली, जसकौर मीना और दिया कुमारी ने विजय हासिल कर संसद में महिलाओं को भागीदारी को बढ़ाया है. ये नतीजे उस सियासत की अगली कड़ी है जिसमें अब तक महिलाओं ने अलग-अलग समय पर ना केवल खुद को साबित किया है बल्कि भारतीय सियासत में खुद को स्थापित भी किया है. पहली लोकसभा से लेकर सत्रहवी लोकसभा तक के वो चेहरे हैं, जिन्होंने पुरूष प्रधान राजनीति की दिशा ही बदल दी.

इतिहास के पन्नों को पलटें तो महिलाओं ने आजादी की लड़ाई में और उसके बाद की राजनीति में बड़ी भूमिका निभाई है. जब भी अवसर मिला, खुद को बेहतर साबित किया है. साल 1952 के पहले चुनाव के बाद जब जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में पहली कैबिनेट का गठन किया गया तो उसमें राजकुमारी अमृत कौर को रखा गया. वे स्वास्थ्य मंत्री बनी. अमृता कौर देश की पहली कैबिनेट मंत्री के तौर पर सशक्त चेहरा बनकर उभरी. उनके अलावा कई महिला सांसद जिन्होंने भी संसद में भागीदारी निभाई.

सुचेता कृपालानी
साल 1963 में सुचेता कृपालानी देश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी. वो भी ऐसे राज्य की बागडोर उन्होंने सभाली जो सियासत का गढ़ माना जाता रहा है. उन्होंने यूपी की बागडोर संभाली थी. 1952 के लोकसभा चुनाव में सुचेता कृपलानी नई दिल्ली से जीत कर आईं और 1952, 1957 में नई दिल्ली से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुई.

मीरा कुमार
मीरा कुमार का नाम वरिष्ठ नेताओं में शुमार है. बहुत ही शांत और सहज स्वभाव के लिए जानी जाने वाली मीरा कुमार राजनीति में मजबूत पिलर की तरह जानी जाती हैं. बिजनौर चुनाव क्षेत्र से पहली बार लोक सभा की सदस्य बनीं. वे ग्यारहवीं लोक सभा की सदस्य बनीं. दिल्ली के करोल बाग़ चुनाव क्षेत्र से भी मीरा कुमार लोक सभा की सदस्य बनीं थी. पांच बार सांसद रह चुकी मीरा कुमार साल 2009 में देश की पहली महिला लोकसभा स्पीकर बनी थीं.

सुमित्रा महाजन
सुमित्रा महाजन भारत की 16वीं लोकसभा की अध्यक्ष रहीं हैं. वे इस पद पर आसीन होने वाली भारत की दूसरी महिला हैं. सुमित्रा महाजन आठ बार से लोकसभा सांसद हैं और वे सदन के सभापति के पैनल में लंबे समय तक काम कर चुकी हैं.

सुषमा स्वराज
सुषमा स्वराज नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में भारत की विदेश मंत्री रही हैं और केन्द्रीय कैबिनेट का हिस्सा रह चुकी है. साथ ही सुषमा दिल्ली की मुख्यमंत्री भी रही हैं. भारत की पहली विदेश मंत्री होने के रूप में इन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई है, कैबिनेट में उन्हे शामिल करके उनके कद और काबिलियत को स्वीकारा गया. साथ ही देश में किसी भी राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता बनने की उपलब्धि भी उन्हीं के नाम दर्ज है.

सुषमा स्वराज की शख्सियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पारम्परिक राजनीति के साथ-साथ आज वो आधुनिक राजनीति में भी मिसाल हैं. सुषमा नई तकनीक के जरिए युवा, बुजुर्ग और महिलाओं से सीधे जुड़ी रहती हैं. आज वो हर वर्ग में इतनी लोकप्रिय हैं कि जनता अपनी परेशानी उनको सोशल मीडिया के जरिए पहुंचाती हैं और वो सीधे उनका समाधान करती हैं. तो वक्त के साथ बदली राजनीति और उनके तौर तरीको पर भी वो खरा उतर रही हैं जो महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत है.

इसके साथ ही ममता बनर्जी, शीला दीक्षित, वसुंधरा राजे, स्मृति ईरानी जैसी शख्सियतें वर्षों के इस फासले को पाटने में लगी हुई है. ये वो महिला राजनेता हैं जिन्होंने ना केवल राजनीति में अपना सिक्का जमाया है बल्कि महिलाओं में इतना आत्मविश्वास भरा है कि आज गांव से लेकर कस्बों तक की राजनीति में महिलाएं हर मुकाम हासिल कर रही हैं.

समय-समय पर देश की राजनीति की बागडोर संभालते हुए ये तो साबित हो चुका है कि महिलाएं बहुत ही कुशल और निपुण तरीके से इस जिम्मेदारी को संभालती आ रही हैं. साथ ही जनता भी उनकी इस काबिलियत पर मुहर लगाती रही है. लेकिन बावजूद इसके आज तक महिलाओं को 33 फीसदी सीटों पर आरक्षण नहीं मिल पाया है. हर बार ऐसी उम्मीद की जाती है कि शायद इस बार महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा से पारित हो जाये, लेकिन स्थिति वही ढाक के तीन पात.

बता दें कि महिला आरक्षण के लिए संविधान संशोधन 108वां विधेयक, राज्यसभा में 2010 में पारित हो चुका है और अब लोकसभा में इसे पारित करवाने की बारी है. अगर लोकसभा इसे पारित कर दे, तो राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बन जाएगा. अब देखना ये होगा कि इस नई लोकसभा में महिलाओं के बढ़े इस संख्या बल के बाद भी क्या 33 फीसदी महिलाओं के वहां पहुचंने का ये रास्ता साफ हो पाएगा.

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