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राज ठाकरे ने पीएम मोदी से पूछा- यूपी, बिहार में अनुच्छेद 370 नहीं होने के बावजूद नौकरियां क्यों नहीं?

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के केंद्र सरकार के फैसले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों को केंद्र सरकार आश्वासन दे रही है कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद नौकरियों के अवसर बढ़ेंगे और विकास होगा लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार में तो अनुच्छेद 370 नहीं है फिर वहां रोजगार क्यों नहीं है? मनसे प्रमुख ठाकरे ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि जिस तरह आज कश्मीर में हो रहा है, सेना तैनात कर अपनी मर्जी की जा रही है. कल विदर्भ या किसी और जगह भी हो सकता है.

राज ठाकरे ने कहा कि आतंकवाद विरोधी कानून (UAPA) में सुधार किया है कि एक भी व्यक्ति पर शक हुआ तो उसे आतंकवादी घोषित कर दिया जाएगा और जिनको यह अधिकार मिला है वो किसी को भी जेल में डाल देंगे, फिर मुकदमा लड़ते रहो. ये सब क्यों हो रहा है क्योंकि बीजेपी के पास बहुमत है.

वहीं महाराष्ट्र में आई बाढ़ को लेकर भी राज ठाकरे ने बीजेपी सरकार पर निशाना साधा. ठाकरे ने कहा कि कोल्हापुर और संगली में बाढ़ आई हुई है और यहां के मुख्यमंत्री हालात का जायजा लेने के लिए हेलिकॉप्टर से घूम रहे हैं, उनका हेलिकॉप्टर नीचे नहीं उतर रहा है. वहीं राज्य के मंत्री गिरीश महाजन बाढ़ के बीच सेल्फी लेते घूम रहे हैं.

मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने पीएम मोदी और केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, मुझे एक बीजेपी नेता ने बताया है कि सभी विरोधी पार्टियां एक साथ हो जाएं तब भी हम ही जीतेंगे क्योंकि विपक्ष के पास मशीन (EVM) नहीं है. राज ठाकरे ने कहा कि उन्होंने सोनिया गांधी और ममता बनर्जी से मुलाकात की है, और दोनों ने भी माना है कि गड़बड़ है.

राज ठाकरे ने कहा कि कल कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने पर सब लोग मिठाई बांट रहे थे लेकिन अनुच्छेद 371 को लेकर महाराष्ट्र में जो गड़बड़ी हुई है उस पर कोई बोलने के लिए तैयार नहीं हुआ. वहीं आरटीआई संशोधन बिल पर ठाकरे ने कहा कि जब सब केंद्र के नियंत्रण में ही होगा तो सब कुछ नरेंद्र मोदी और अमित शाह ही तय कर लेंगे. यह सब इसलिए हुआ क्योंकि एक व्यक्ति ने आरटीआई के जरिये नरेंद्र मोदी से बीए का सर्टिफिकेट मांग लिया था.

मनसे प्रमुख ने कहा कि आज देश की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है. जेट एयरवेज बंद हो गई, एयर इंडिया नुकसान में है. बीएसएनएल में वेतन के लिए पैसे नहीं है, वाहन उद्योग में भारी मंदी है, बेकारी की तलवार लटक रही है. नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर में रोजगार लाएंगे, लेकिन जहां 370 नहीं था वहां रोजगार क्यो नहीं है. उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में बेकारी है. नमो-नमो को जपने वालों को तब समझ में आएगा जब उनके घर में टन-टन होगा. कल समान नागरिक कानून आएगा. परसों राम मंदिर बनाएंगे. लोग सिर्फ ताली बजाते रहेंगे. ठाकरे ने कहा कि सभी राज्यों के महत्व और अधिकार कम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि देश कभी एक था ही नहीं. अलग-अलग भाषा के हिसाब से राज्य बनाने पड़े.

ठाकरे ने मोदी पर निशाना साधते हुए कहा, ‘आज जो कश्मीर में हुआ कल वह विदर्भ में और परसों मुंबई में हो सकता है. सबकी आवाज बंद की जा सकती है. यह सब क्यों हो रहा है क्योंकि बीजेपी बहुमत में हैं. सरकार के खिलाफ लोग लिखना चाहते हैं. बोलना चाहते हैं पर डरते हैं. खबरें छपती नहीं है’. ठाकरे ने आशंका जताते हुए कहा कि कल न्यायालय से न्याय मिलेगा, कह नहीं सकते…चुनाव आयोग सही काम कर रहा है… कह नहीं सकते. एकाध चैनल या अखबार सरकार के खिलाफ लिख सकते हैं तो उन पर दबाव लाया जा रहा है. ठाकरे ने कहा कि आज बीजेपी के जो फॉलोवर हैं उनसे मेरा कहना है कि जब उनकी तरफ बेलन घूमेगा तब सब भूल जाएंगे कि ब्राम्हण है, दलित है कि माली है.

ठाकरे ने अमेरिका के एक बयान का जिक्र किया जिसमें कहा गया था कि पाकिस्तान के बेड़े में शामिल सभी एफ-16 विमानों का हिसाब है जबकि भारत सरकार का दावा है कि बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान के एक एफ-16 विमान को मार गिराया गया था. ठाकरे ने कहा, प्रधानमंत्री मोदी ने झूठ क्यों बोला? इस पर उन्हें जवाब देना चाहिए. उन्होंने सवाल उठाया कि मोदी सरकार ने जब 2014 में बहुमत हासिल किया था तब पांच साल में क्या किया?’

मनसे प्रमुख ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की अगुवाई में महागठबंधन का समर्थन करने की अपील की. ठाकरे ने कहा कि नोटबंदी के दौरान कतारों में घंटों खड़े रहने से 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और अब तक साढ़े चार करोड़ लोगों की नौकरियां चली गई हैं. राज ठाकरे ने भाजपा को खड़ा करने वाले लालकृष्ण आडवाणी जैसे बुजुर्ग नेताओं को दरकिनार कर पार्टी पर कब्जा जमाने के लिए पीएम मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की निंदा भी की.

वेल्लोर लोकसभा सीट पर डीएमके जीती, 5 अगस्त को हुई थी वोटिंग

तमिलनाडु की वेल्लोर लोकसभा सीट पर हुए चुनाव में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी ने जीत हासिल की है. पार्टी के डीएम कथिर आनंद ने AIADMK के उम्मीदवार एसी शनमुगम को 8000 वोटों से मात दी. दोनों में आखिर तक कड़ा मुकाबला देखने को मिला. वेल्लोर संसदीय सीट पर तीन महिलाओं समेत कुल 28 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे. प्रदेश की इस सीट पर 5 अगस्त को चुनाव हुए थे. वेल्लोर संसदीय सीट के अंतर्गत 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. यहां कुल 14.32 लाख मतदाता निवास करते हैं. वोटिंग प्रतिशत 71.51 फीसदी रहा.

बता दें, दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में लोकसभा की 39 सीटों के लिए 18 अप्रैल को एक चरण में मतदान संपन्न हुआ था. डीएमके ने कांग्रेस और एआईडीएमके ने बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा. लेकिन चुनाव के परिणाम आने से पहले वेल्लोर लोकसभा सीट पर छापा पड़ा जिसमें काफी सारी नकदी बरामद हुई. इस मामले को कैश फॉर वोट मानते हुए चुनाव आयोग ने इस सीट पर चुनाव रद्द कर दिए थे. इसमें बाद 5 अगस्त को यहां फिर से वोटिंग की गई.

वेल्लोर सीट को छोड़ दे तो तमिलनाडु में 38 सीटों पर हुए लोकसभा चुनाव में डीएमके-कांग्रेस गठबंधन ने 37 जीते अपने नाम की. एआईडीएमके को केवल एक सीट पर जीत मिली. वेल्लोर सीट जीतने के बाद अब डीएमके-कांग्रेस के खाते में कुल 38 सीटें आ गयी हैं.

सांस लेने में तकलीफ के बाद अरुण जेटली एम्स के आईसीयू में भर्ती, पीएम समेत कई नेता पहुंचे एम्स

पूर्व वित्त मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली को शुक्रवार करीब 11 बजे सांस लेने में परेशानी होने पर दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया है. एम्स में अरुण जेटली कार्डियोलॉजी विभाग के आईसीयू में भर्ती हैं. एम्स की ओर से अरुण जेटली के स्वास्थ्य को लेकर मेडिकल बुलेटिन जारी किया गया है जिसमें उनकी हालत स्थिर बताई गई है

एम्स की ओर से जारी मेडिकल बुलेटिन में बताया गया है कि अरुण जेटली आईसीयू में भर्ती हैं. हालांकि उनकी हालत स्थिर बनी हुई है. अरुण जेटली का ट्रीटमेंट एंडोक्रिनोलोजिस्ट नेफ्रोलॉजिस्ट और कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टरों की देखरेख में चल रहा है. कार्डियोलॉजी के हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉक्टर वीके बहल की निगरानी में अरुण जेटली का इलाज चल रहा है.

बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली का हाल जानने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन एम्स पहुंचे. पिछले साल ही पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था. पूरी तरह से स्वस्थ न होने के चलते उन्होंने इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया था कि उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया जाए. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली पिछली सरकार में अरुण जेटली सरकार में सबसे कद्दावर मंत्री थे.

अरुण जेटली ने पिछली मोदी सरकार में वित्त मंत्रालय के साथ-साथ कुछ समय के लिए रक्षा मंत्रालय की भी जिम्मेदारी संभाली थी. अटल बिहारी सरकार में भी वे केंद्र में मंत्री रह चुके हैं. बीमारी की वजह से इस बार वह मोदी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुए. बीमारी के बावजूद वह मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रमों पर करीबी नजर रखते रहे हैं. अक्सर वह प्रमुख मुद्दों पर ब्लॉग लिखकर या फिर ट्वीट कर अपनी राय जाहिर करते हैं.

ये है देश की पहली अंडर वॉटर मेट्रो ट्रेन

क्या आपने कभी ऐसी ट्रेन में सफर किया है जो पानी के अंदर चलती हो. आपका जवाब होगा नहीं. अगर ऐसा है तो अब जल्दी ही यह सपना भी सच होने जा रहा है और वो भी अपने ही देश में. यह एक अंडर वॉटर मेट्रो ट्रेन होगी जो पानी के 30 फुट नीचे दौड़ेगी. इसके लिए रेलवे ने तैयारियां पूरी कर ली है. उत्कृष्ट इंजीनियरिंग का उदाहरण यह ट्रेन देश में निरंतर हो रही रेलवे की प्रगति का प्रतीक है. इस ट्रेन का वीडियो रेल मंत्री पीयूष गोयल ने अपने ट्वीटर हैंडल पर पोस्ट किया जिसमें इस प्रोजेक्ट के बारे में पूरा विवरण दिया है.


भारत की ये पहली अंडर वॉटर ट्रेन शीघ्र ही कोलकाता में हुगली नदी के नीचे यानि अंडर वॉटर दौड़ना शुरू होगी. इस ट्रेन को चलाने के लिए खास सुरंग बनाई गई है जो 520 मीटर लंबी और करीब 30 फुट गहरी होगी. सॉल्ट लेक से हावड़ा मैदान तक चलने वाली इस अंडर वॉटर ट्रेन का सफर 16 किमी. लंबा होगा. पहले फेज में अंडर वॉटर का सफर 5 किमी. होगा. अपने पहले फेज में यह ट्रेन सॉल्ट लेक सेक्टर 5 से सॉल्ट लेक स्टेडियम के तक चलेगी. ट्रेन को पानी के रिसाव से सुरक्षा देने के लिए 4 हाई टेक सुरक्षा कवच सुरंग के भीतर लगाए गए हैं. मेट्रो के पहले फेज को जल्द ही कोलकाता की जनता के लिए चालू किया जाएगा.

इस ट्रेन को अंडर वॉटर सुरंग को पार करने में एक मिनट का वक्त लगेगा. उस समय पर्यटक अपने अंडर वॉटर सफर करने के अनुभव को साकार होते हुए देख पाएंगे. हुबली नदी के अंदर बनी यह टेकनोलॉजी देश की हाईटेक तकनीक का प्रतीक है क्योंकि इससे पहले जमीन के नीचे सुरंग में चलने वाली ट्रेन पानी से होकर कभी नहीं गुजरी. इस कड़ी में पानी के अंदर ट्रेन चलाकर मोदी 2.0 सरकार और देश की टेकनीकल टीम एक नया कीर्तिमान रचने जा रही है.

यकीकन कोलकाता की अंडर वॉटर मेट्रो ट्रेन भारतीय रेलवे की तीव्र प्रगति का प्रत्यक्ष प्रमाण है. यह पहली बार होगा जब भारतीय रेल न सिर्फ पानी के उपर बल्कि पानी के नीचे का सफर भी तय करेगी.

जिसमें होंगी ये सारी खूबियां वो होगा नया अध्यक्ष

कांग्रेस को अध्यक्ष की तत्काल आवश्यकता क्यों, क्या होनी चाहिए जरूरी योग्यताएं?

राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद से नेतृत्वहीन हुई कांग्रेस पार्टी को अपना नया अध्य्क्ष 10 अगस्त को होने वाली कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में मिलने की प्रबल सम्भावना है. इसके लिए पार्टी ने तैयारियां भी शुरू कर दी है. गौरतलब है कि लोकसभा में मिली करारी हार के बाद राहुल गांधी ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए अपना इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद राहुल गांधी को इस्तीफा वापस लेने के लिए कई बार मनाने के प्रयास किये गए लेकिन राहुल गांधी अपने रुख पर अडिग रहे और साथ में यह भी स्पष्ट कर दिया कि न तो वह और ना ही गांधी परिवार का कोई दूसरा सदस्य अब इस जिम्मेदारी को सम्भालेगा.

राहुल गांधी के इस तटस्थ फैसले के बाद यह तो तय है कि कांग्रेस का नया अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का होगा, लेकिन यह नहीं पता कौन होगा. गांधी परिवार से बाहर के किसी नेता को कांग्रेस अध्यक्ष बनने से पहले कई योग्यताओं को पूरा करना होगा, इसके बाद ही उसकी राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर ताजपोशी हो पायेगी.

गांधी परिवार के प्रति वफादारीः

कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए नेहरू-गांधी परिवार के प्रति वफादारी पहली कसौटी है, जिस पर खरा उतरे बगैर किसी भी नेता को पार्टी की कमान नहीं मिल सकती है. कांग्रेस का अगला अध्यक्ष वही होगा जो गांधी परिवार के नजदीक होगा, हालांकि 30 साल के लंबे समय से गांधी परिवार का कोई भी सदस्य प्रधानमंत्री नहीं बना है. लेकिन 2004 से 2014 तक यानी 10 साल तक केंद्र में कांग्रेस-यूपीए की सरकार थी, गांधी परिवार के बाहर के मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे. लेकिन उस समय भी सत्ता की चाबी गांधी परिवार यानि सोनिया गांधी के पास ही रही. अब राहुल गांधी कांग्रेस संगठन को इसी तर्ज पर गांधी परिवार से मुक्त करना चाहते है. वो पार्टी की कमान अपने सबसे भरोसेमंद साथी के हाथों में सौंपना चाहते है ताकि जब भी वो चाहे पुनः कांग्रेस की कमान अपने हाथ में ले पायें.

राष्ट्रीय पहचानः

राहुल गांधी के विकल्प में कांग्रेस को ऐसे नेता की तलाश है, जिसकी पहचान राष्ट्रीय स्तर की हो. दरअसल कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है, जिसका राजनीतिक रुप से फैलाव उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक के सभी राज्यों में फैला हुआ है. इसी वजह से कांग्रेस ऐसे नेता को अध्यक्ष बनाएंगी जो देश के हर हिस्से में अपनी पहचान रखता हो.

हिंदी भाषी राज्य से हो तो बेस्ट:

कांग्रेस के अध्यक्ष बनने के लिए सबसे जरुरी योग्यता यह है कि अध्यक्ष बनने वाले नेता की हिंदी भाषा पर अच्छी पकड़ होनी चाहिए. इसके पीछे मकसद है कि वो उत्तर भारत के लोगों तक अपनी बातों को असानी से पहुंचा सके, जिस प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अपनी बातों को समझने में सफल रहते हैं. ठीक उसी प्रकार वो भी अपनी बात जनता को समझाने में कामयाब रहे. कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा उम्मीद इन्हीं हिंदी भाषी राज्यों से थी, लेकिन यहां के नतीजे उसके अनुमान के बिल्कुल उलट आए.

संघर्षशील नेताः

सोनिया गांधी और राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए सड़क पर संघर्ष करते कम ही नजर आए हैं, हालांकि राहुल आखिर के दिनों में कई बार जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर सड़क पर नजर आए. लेकिन सोनिया गांधी अपने कार्यकाल के दौरान एक बार भी ऐसा करती नजर नहीं आई. कांग्रेस लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के लिए इसको भी जिम्मेदार मानती है. इसीलिए वो इस बार ऐसे नेता को अध्यक्ष बनाने पर विचार कर रही है, जो सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ सड़क पर उतरकर संघर्ष करें और सरकार को घेर सके.

गौरतलब है कि कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, शशि थरूर, शत्रुघन सिन्हा समेत कुछ और कांग्रेस नेताओं ने प्रियंका गांधी के नाम को आगे बढ़ाया है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि अध्यक्ष पद के चुनाव में राजनीतिक फैसलों के साथ-साथ सामाजिक समीकरण का भी ध्यान रखा जाएगा. खैर, प्रियंका गांधी ने भी इस जिम्मेदारी को लेने से साफ मना कर दिया है.

पिछले लगभग 2 माह में कांग्रेस को नेतृत्व के अभाव में जो भारी नुकसान और फ़जीयत सहन करनी पड़ी है वो किसी से छुपी नहीं है. बात चाहे गोवा और कर्नाटक के घटनाक्रम की हो या लोकसभा या राज्यसभा बनी लाचारी की कांग्रेस को हर मोर्चे पर मात खानी पड़ी है. इसका सबसे बड़ा कारण पार्टी में एक मजबूत नेतृत्व का अभाव जिसके चलते पार्टी अब बिखरने लगी है.

वर्तमान में कांग्रेस के सबसे संकटपूर्ण दौर में जबकि अभी गांधी परिवार का नेतृत्व होते हुए ही जब पार्टी के कई नेता सरेआम पार्टी विचारधारा से अपनी असहमति जता रहे हैं, तब गांधी परिवार से बाहर के नये नेतृत्व के लिए भविष्य की चुनौती कितनी गंभीर होगी इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. बहरहाल, आने वाले महीनों में चार राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि कांग्रेस कम से कम अपना नया अंतरिम अध्यक्ष तो चुन ही लेगी.

बता दें, बीजेपी ने आगामी महीनों में होने आगामी महीनों में होने वाले चार राज्यों के विधानसभा चुनाव की तैयारी का बिगुल बजा दिया है. बीजेपी के चाणक्य राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने शुक्रवार को हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव प्रभारियों की नियुक्ति कर दी है.

कश्मीर में हजारों लोग घरों से बाहर निकले

जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के फैसले के बाद पहली बार जुमे की नमाज के दौरान हजारों लोग घरों से बाहर निकले. सरकारी सूत्रों के अनुसार हजारों लोगों ने शांतिपूर्वक जुमे की नमाज में भाग लिया. श्रीनगर में करीब 18 हजार, बडगाम में करीब 7500, अनंतनाग में करीब 11 हजार लोग जुमे की नमाज के लिए घरों से बाहर निकले.

समाचार एजेंसी रायटर की रिपोर्ट है कि श्रीनगर में विरोध प्रदर्शन के लिए कम से कम 10 हजार लोग जुटे थे. उनके विरोध को शांत करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस और पैलेट गन का इस्तेमाल किया. पैलेट गन से घायल करीब 12 लोग अस्पताल में भर्ती हैं. जुमे की नमाज के बाद राज्य के पुनर्गठन के फैसले के बाद यह पहला बड़ा विरोध प्रदर्शन था. गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर को लद्दाख से अलग करने और धारा 370, 35-ए हटाने के फैसले के एक हफ्ता पहले से कश्मीर घाटी में निषेधाज्ञा लगी हुई है. करीब 500 स्थानीय नेता हिरासत में ले लिए गए हैं. फोन और इंटरनेट सेवाएं बंद हैं. इलाका देश के बाकी हिस्से से कटा हुआ है.

प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि नमाज के लिए छोटे समूहों में निकलने और मोहल्लों की मस्जिदों में नमाज अदा करने की अनुमति दी गई थी. जामिया मस्जिद और हजरतबल में सामूहिक रूप से नमाज की अनुमति नहीं दी गई थी. आम तौर पर विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला इन्हीं मस्जिदों से शुरू होता है. श्रीनगर में सार्वजनिक रूप से नमाज अदा करने के लिए तीन प्रमुख मस्जिदें हैं. नमाज के लिए इन मस्जिदों में पहुंचे नमाजी आशंकित थे कि रास्ते में पथराव का सिलसिला शुरू न हो जाए. सुरक्षित घर लौटेंगे या नहीं.

कश्मीर के घटनाक्रम के मद्देनजर पाकिस्तान अलग बौखलाया हुआ है. वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर यह मुद्दा उठाना चाहता है. वह इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में भी ले जाना चाहता है. पाकिस्तान ने एकतरफा फैसला करते हुए है दोनों देशों के बीच व्यापार और परिवहन रोक दिया है. भारत ने स्पष्ट किया है कि धारा 370 लगाना या हटाना उसका अधिकार है और इस पर कोई अन्य देश दखल नहीं दे सकता. भारत पूरा प्रयास करेगा कि यूएनएससी के अध्यक्ष पाकिस्तान के आवेदन पर ध्यान न दें.

भारत-पाकिस्तान के लोगों के लिए जो आखिरी थार एक्सप्रेस चल रही थी, उसको भी बंद करने का फैसला हो गया है. पाकिस्तान के रेल मंत्री रशीद अहमद ने शुक्रवार को बताया कि दोनों देशों के बीच चलने वाली सबसे पुरानी ट्रेन थार एक्सप्रेस की सेवाएं शुक्रवार आधी रात से निलंबित कर दी गई हैं. इस तरह भारत लौटने वाले कई भारतीय पाकिस्तान में ही अटक गए हैं.

भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के मद्देनजर नौसेना भी अलर्ट है. मुंबई में एक बार पाकिस्तान के आतंकी समुद्री रास्ते से प्रवेश कर हमला कर चुके हैं. सूत्रों के मुताबिक मुंबई के तटवर्ती समुद्र में दो लाख से ज्यादा छोटी नौकाएं होती हैं. इन सभी नौकाओं में एआईएस (आटोमेटिक आइडेंटिफिकेशन सिस्टम) नहीं होता है. इसलिए इन सभी नौकाओं की निगरानी करना नौसेना और तटरक्षक बल के लिए चुनौती का काम है.

‘ऊरी’ की सफलता के बाद टाइटल रजिस्ट्रेशन के लिए फिल्म निर्माताओं की कतार

लोगों को धीरे से बिजली का जोरदार झटका देने की तैयारी में गहलोत सरकार

राजस्थान की गहलोत सरकार एक तरफ तो इस बात का प्रचार करती है कि वह राज्य की जनता की बेहतरी के लिए काम कर रही, लेकिन पर्दे के पीछे वह जनता पर आर्थिक भार बढ़ाने की तैयारी कर रही हैं. बजट में पेट्रोल और डीजल पर चार फीसदी सेस लगाते हुए करीब छह रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी पहले ही कर दी गई है. अब बिजली दरें बढ़ाने की कवायद शुरू हो गई है. राज्य की तीनों बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) ने इसका प्रस्ताव तैयार कर लिया है. इस संबंध में विद्युत विनियामक आयोग में याचिका पेश कर दी गई है, जिस पर आयोग जल्दी ही विचार करेगा.

गहलोत सरकार ने विधानसभा सत्र जारी रहने के कारण बिजली दरें बढ़ाने का फैसला रोक रखा था, क्योंकि इससे हंगामा हो जाता. इस समस्या से बचने के लिए प्रदेश की जनता को जोर का झटका धीरे से देने की तैयारी चल रही है. बिजली का पहला झटका उस समय लगा था जब सरकार ने ईंधन सरचार्ज में 55 पैसे प्रति यूनिट की बढ़ोतरी की थी. दूसरा झटका यह था कि अडानी पावर के 2700 करोड़ रुपए चुकाने का भार उपभोक्ताओं पर डाला गया और 36 माह तक पांच पैसे प्रति यूनिट वसूल करने का फैसला किया गया. तीसरा झटका यह है कि डिस्कॉम ने बिजली की दरें बढ़ाने की रूपरेखा बना ली है.

बिजल की दरें बढ़ाने का प्रस्ताव डिस्कॉम ने अक्टूबर में ही तैयार कर राजस्थान विद्युत विनियामक आयोग को भेज दिया था. बाद में उसे यह कहते हुए रोक लिया गया कि डिस्कॉम बिजली आपूर्ति के नियमों में बदलाव करने के बाद नया प्रस्ताव भेजेगी. अब यह प्रस्ताव तैयार कर लिया गया है. इस पर मुहर लगने का इंतजार है. डिस्कॉम राज्य सरकार की अनुमति के बाद यह प्रस्ताव आयोग के पास भेजेगा. इसके तहत बिजली की दरें अधिकतम 10-11 फीसदी तक बढ़ने की उम्मीद है. फिक्स चार्ज भी बढ़ जाएगा.

इस प्रस्ताव को सरकार और आयोग से मंजूरी मिलने के बाद राज्य के करीब 75 लाख घरेलू और 15 लाख व्यावसायिक उपभोक्ताओं को बिजली का बढ़ा हुआ बिल चुकाना पड़ेगा. इस बढ़ोतरी से 50 यूनिट प्रतिमाह तक उपयोग करने वाले उपभोक्ताओं को अलग रखा गया है. इसके साथ ही औद्योगिक उपयोग करने पर बिजली की दरें दिन और रात में अलग-अलग रखने का प्रस्ताव है. कृषि क्षेत्र में बिजली की दरें 80 पैसे प्रति यूनिट बढ़ाने का प्रस्ताव है, लेकिन सरकार किसानों को बिजली दरों पर सब्सिडी देने की घोषणा कर चुकी है, इसलिए इसका भार किसानों पर नहीं आएगा. यह भार सरकार उठाएगी.

राजस्थान में घरेलू उपभोक्ताओं के लिए उपभोग के हिसाब से पांच स्लैब में अलग-अलग दरें तय हैं. इसके तहत 50 यूनिट तक 3.81 रुपए, 51 से 150 यूनिट तक 6.10 रुपए, 151 से 300 यूनिट तक 6.40 रुपए, 301 से 500 यूनिट तक 6.70 रुपए और 500 यूनिट से ज्यादा बिजली का उपयोग करने वालों से 7.15 रुपए प्रति यूनिट वसूले जाते हैं.

नए प्रस्ताव में पहली और दूसरी स्लैब में 150 यूनिट तक बिजली के उपभोग पर दर 5.75 रुपए प्रति यूनिट हो जाएगी. 151 से 300 यूनिट तक बिजली उपभोग की दरें 6.40 रुपए से बढ़ाकर 7.35 रुपए प्रति यूनिट करने का प्रस्ताव है. 301 से 500 यूनिट बिजली खर्च करने वालों से प्रति यूनिट 7.65 रुपए वसूलने का प्रस्ताव है. एक माह में 500 यूनिट से ज्यादा बिजली का उपभोग करने वालों को इससे नीचे की सभी स्लैब के तहत सस्ती बिजली का लाभ नहीं मिलेगा. ऐसे उपभोक्ताओं को बिजली की कुल खपत पर 7.95 रुपए प्रति यूनिट के दर से भुगतान करना पड़ेगा.

इससे पहले तक की व्यवस्था यह है कि कोई उपभोक्ता अगर 500 यूनिट से ज्यादा बिजली खर्च करता है तो उसे नीचे की स्लैब की सस्ती दर का लाभ मिलता है. सिर्फ 500 यूनिट से ज्यादा बिजली खर्च होने पर अतिरिक्त दर वसूली जाती है. डिस्कॉम के इस प्रस्ताव से मध्यमवर्गीय उपभोक्ताओं को झटका लगेगा. एक तरफ उन्हें बिजली का बढ़ा हुआ बिल चुकाना पड़ेगा और निचली स्लैब के तहत सस्ती बिजली का लाभ भी नहीं मिलेगा. गौरतलब है कि कई मध्यमवर्गीय परिवारों में आम तौर पर 500 यूनिट से ज्यादा ही बिजली खर्च होती है.

इसी तरह व्यावसायिक उपयोग के लिए बिजली की दरें बढ़ाने का भी प्रस्ताव है. इसके तहत 200 यूनिट तक खर्च होने पर आठ रुपए, 200 से 500 यूनिट तक खर्च होने पर 8.35 रुपए और 500 यूनिट से ज्यादा बिजली खर्च होने पर बिजली की दर 9.30 रुपए प्रति यूनिट हो जाएगी. हालांकि डिस्कॉम ने उद्योगों को थोड़ी राहत देने का प्रयास किया है. लघु-मध्यम और दीर्घ श्रेणी के उद्योगों की बिजली दरें यथावत रहेंगी, लेकिन घरेलू और व्यावसायिक की तर्ज पर इन श्रेणियों में भी फिक्स चार्ज बढ़ा दिया जाएगा. बड़े उद्योगों के लिए दिन में बिजली दरें अलग होंगी और रात में अलग होंगी. दिन और रात में बिजली की दरें अलग-अलग रखने का प्रस्ताव पहली बार लाया गया है.

उद्योगों के मिलने वाली बिजली रात 12 बजे से सुबह छह बजे तक 10 फीसदी सस्ती होगी. सुबह सात बजे से रात 11 बजे तक बिजली की दर 10 फीसदी महंगी हो जाएगी. डिस्कॉम ने कपड़ा, इस्पात सहित कुछ अन्य क्षेत्रों के उद्योगों को राहत देने के लिए उन्हें अलग पॉवर इन्सेंटिव श्रेणी में रखने का प्रस्ताव पेश किया है, जिनमें बिजली का उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जाता है. इन उद्योगों में बिजली दरों में करीब 1.30 रुपए प्रति यूनिट तक छूट रहेगी. गौरतलब है कि बिजली महंगी होने के कारण ऐसे कई उद्योग इन दिनों बंद होने की कगार पर हैं. ऐसी कई उद्योगों ने राजस्थान से कारोबार समेटकर अन्य राज्यों में जाने की तैयारी कर ली है.

डिस्कॉम के प्रमुख और ऊर्जा विभाग के प्रधान सचिव नरेशपाल गंगवार ने कहा कि पिछले तीन वर्षों से बिजली दरों में परिवर्तन नहीं किया गया है. बिजली उत्पादन की लागत से तालमेल बैठाने के लिए बिजली की दरों में बदलाव किया जा रहा है. अलग-अलग स्लैब में अलग-अलग बदलाव होने से सीधे यह नहीं बताया जा सकता कि बिजली की दरों में कुल कितने प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है.

राजस्थान में बिजली आपूर्ति की जिम्मेदारी पहले बिजली बोर्ड पर थी. वर्ष 2000 में बिजली बोर्ड को भंग कर राज्य को तीन क्षेत्रों में बांटकर तीन डिस्कॉम का गठन किया गया. इसके बाद से अब तक सात बार बिजली की दरें बढ़ चुकी हैं. डिस्कॉम के तहत आठवीं बार बिजली की दरें बढ़ाई जा रही हैं. डिल्कॉम का गठन होने के एक साल बाद 2001 में बिजली दरें 10 फीसदी बढ़ीं. तीन साल बाद 2004 में फिर 10 फीसदी दरें बढ़ा दी गई. बिजली की दरों में 2011 में 23 फीसदी, 2012 में 18 फीसदी, 2013 में 13 फीसदी, 2015 में 16 फीसदी और 2016 में नौ फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी. इस तरह डिस्कॉम के अस्तित्व में आने के बाद बिजली की दरें 16 वर्षों में 99 फीसदी बढ़ चुकी है.

राजस्थान में 1.52 करोड़ बिजवी उपभोक्ता हैं. इनमें 54 लाख ऐसे हैं, जो बीपीएल श्रेणी में हैं और 50 यूनिट से कम बिजली खर्च करते हैं. इनकी दरें बढ़ाने का कोई प्रस्ताव नहीं है. 14.41 लाख कृषि उपभोक्ता हैं. उनके लिए भी दरें बढ़ेंगी, लेकिन उसका भार सरकार वहन करेगी. औद्योगिक उपभोक्ताओं की संख्या 3.54 लाख है. इन पर सिर्फ फिक्स चार्ज बढ़ेगा. बाकी करीब 80 लाख उपभोक्ताओं को बिजली के लिए ज्यादा भुगतान करना पड़ेगा, जो कि अधिकांश मध्यम वर्ग के लोग हैं. ये लोग गहलोत सरकार की बिजली महंगी करने की तैयारी से आहत हैं.

डिस्कॉम की याचिका अब राजस्थान विद्युत विनियामक आयोग के पास विचाराधीन है. डिस्कॉम के प्रस्ताव पर आयोग आम जन से आपत्ति मांगेगा, जन सुनवाई होगी, इसके बाद आयोग बिजली की दरें बढ़ाने पर फैसला करेगा. उम्मीद की जानी चाहिए कि आयोग मध्यमवर्गीय परिवारों की तकलीफों को समझेगा और इस पर गंभीरता से विचार करेगा कि डिस्कॉम ने किस तरह चतुराई से लोगों को महंगाई के भार से दबाने का प्रयास कर रहा है.

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