8 पुलिसकर्मियों की हत्या के साथ चीन, कोरोना और महंगाई जैसे बड़े मुद्दों को भी मूर्छित कर गया विकास दुबे

सही मायने में देखा जाए तो विकास दुबे सिस्टम का ही एक हिस्सा है, जब तक सिस्टम को ऐसे विकास दुबे से फायदा होता है, वो आगे बढ़ता रहा है और जब सिस्टम को नुकसान होने लगता है, उसे मौत की नींद सुला दिया जाता है

Vikas Dubey
Vikas Dubey

Politalks.News/UP. भारत चाइना विवाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी खबर रही, भारत कोरोना के मामले में दुनिया का दूसरे नंबर का देश बनने की दिशा में बढ़ रहा है, बेराजगारी और महंगाई ने लोगों की कमर तोड़कर रख दी है. यह तीनों मुददे भारत के लोगों से सीधे जुड़े हैं और बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. इन सबके बीच 8 दिन पहले एक मामला सामने आता है, यूपी के एक गैंगस्टर को पकड़ने के लिए पहुंची पुलिस टीम पर हमला होता है जिसमें पुलिस के 8 जवान शहीद हो जाते हैं. बस, उसके बाद देश की चार बड़ी समस्याओं की भी खबरों के जगत से जैसे मौत हो जाती है.

योगी राज में कानपुर में घटी यह वारदात इतनी प्रभावी हो जाती है कि देश की जनता के लिए न्यूज के नाम पर दिन और रात केवल गैंगस्टर विकास दुबे हो जाता है. हर बात की अहमियत होती है लेकिन इतनी बड़ी अहमियत कि देश के असली मुददे ही पीछे छूट जाएं और चारों दिशाओं से आने वाली खबर केवल एक गैंगस्टर के नाम से जुड़ जाए.

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खैर, जो भी हुआ. गुनाह के एक नाम का खात्मा जरूर हो गया. लेकिन इस खात्मे का अर्थ गुनाह के खात्में से नहीं है. जब तक इस देश में अपराध, राजनीति और प्रशासन का गठजोड़ चलता रहेगा, ऐसे सैंकड़ो विकास दुबे कभी गगनसिंह तो कभी आनंदपालसिंह के रूप में सामने आते रहेंगे.

असल में सिस्टम ही कमजोर

सही मायने में देखा जाए तो विकास दुबे सिस्टम का ही एक हिस्सा है. जब तक सिस्टम को ऐसे विकास दुबे से फायदा होता है, वो आगे बढ़ता रहा है और जब सिस्टम को नुकसान होने लगता है, उसे मौत की नींद सुला दिया जाता है. ऐसा ही होता आ रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि विकास दुबे जैसे लोगों के आगे बढ़ने में सिस्टम ही दोषी है. ठिगने से कद के समाजसेवी अन्ना हजारे कहते थे कि 1947 से देश में खेल चल रहा है कि पैसे से सत्ता और सत्ता से पैसा. ये खेल बंद होना चाहिए.

आज अन्ना हजारे खुद ही पता नहीं, कहां खुद को बंद करके बैठेे हैं. यूपी में कहा जाता रहा कि अपराध से राजनीति और राजनीति अपराध. अब राजनीति और अपराध के बीच एक कड़ी और है, जो खुद अपने आप से जुड़ जाती है और वो है, पुलिस और प्रशासन.

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यही तो दंश है लोकतंत्र का. इन तीनों का तंत्र इतना मजबूत है कि जिसको जब किसी को नीचे दिखाना हो या झूठा ठहराना हो, ये साबित कर देता है. दूसरे शब्दों में देश के किसी जज को यह नहीं कहना पड़ता की न्याय की आत्मा रो रही है.

आत्मा रोती कब है, जब आत्मा के पास कोई चारा नहीं बचता. अभी के घटनाक्रम से समझना मुश्किल है, रो कौन रहा होगा. अगर शुद्ध भाषा मेें बात की जाए तो न्याय का अर्थ है न्याय की प्रक्रिया पूरी होना. क्यूंकि उसके पूरे होने तक न्याय मिल ही नहीं सकता है. लेकिन दुनिया के दूसरे सबसे बड़े लोकतंत्र मेें यह बात बेमानी सी हो चली है. सवाल यह नहीं है कि एक गैंगस्टर मारा गया तो पीड़ा हो रही है.

सवाल यह है कि पुलिस राजनीतिक संरक्षण में इस तरह काम करने लग गई तो किसी का भी नंबर आ सकता है. देश के लिए इससे ज्यादा और कोई दुर्भाग्य की बात नहीं हो सकती कि लोगों को अब सीबीआई पर तक भरोसा नहीं रहा. हाई कोर्ट की इंन्क्वाइरी तक को नहीं स्वीकार कर रहे. सुप्रीम कोर्ट पर भी केवल इतना कि सुप्रीम कोर्ट के किसी पूर्व जज की निगरानी में सारी जांच कराई जाए.

यह किसी भी देश की कई व्यवस्थाओं के लिए अच्छे संकेत नहीं है, लेकिन एक अपराधी की मौत के बाद सवाल तो उठ ही रहे हैं. विकास दुबे की मौत के बाद यह तो तय हो गया है कि इस देश में पुलिस जो चाहे वो कर सकती है, या हो सकता है. वो चाहे तो कभी भी किसी को भी मार सकती है, चाहे उसे अपने ही फायदे के लिए पाला-पोसा गया हो.

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यह भी साफ हो गया कि पुलिस की इस कार्रवाई को पूरा राजनीतिक संरक्षण भी मिल सकता है. कुल मिलाकर समझा और देखा जाए तो विकास दुबे और आनंदपालसिंह जैसे लोग आते और जाते रहेंगे. इस देश में मूक बनकर कोई तमाशा देखेगा तो वो न्यायपालिका, राजनीति, पुलिस और प्रशासन और तलवे चाटने वाली मीडिया ही होगी.

पाॅलिटाॅक्स के पाठक समझ सकते हैं कि इन राजनेताओं से कोई सवाल पूछने की हिम्मत नहीं कर रहा है. अगर अपने फायदेे के लिए एक गुनाहगार को पुलिस इस तरह मार सकती है तो एक दिन वो एक बेगुनाह को भी अपने फायदे के लिए इसी तरह मारेेगी. देश में कानून नाम की कोई चीज है. पुलिस कानून नहीं है. पुुलिस केवल कानून के सिस्टम का एक हिस्सा है. पुलिस का यह काम नहीं है कि वो कहानी बनाए और गोली मार दे.

पुलिस की गोली से विकास दुबे मरा यह तो पुष्टि हो गई, 8 पुलिसकर्मियों की हत्या करने वाले विकास दुबे के हाथ में पुलिस की पिस्टल लग गई और एक भी पुलिसकर्मी पर गोली नहीं लगी. सवाल तो बहुत हैं, अगर आप कानून को समझते हो तो. पाॅलिटाॅक्स का उद्देश्य केवल इतना है कि हर पहलू को सामने रखा जाए. केवल और केवल लोकतंत्र और न्यायपालिका की शक्ति को बनाए रखने के लिए.

खैर चाहे कुछ भी हो, केंद्र की मोदी सरकार को कुछ तो सुकून मिल ही रहा होगा. आखिर विकास दुबे के शोर गुल में पिछले कुछ दिनों में देश में तेजी से बढ़ रही महंगाई, कोरोना और चाइना की खबरों से ध्यान हट ही गया. लेकिन अब दुर्दांत अपराधी विकास दुबे की मौत के बाद ज्वलंत मुददों पर लौटना होगा. कोरोना देश में प्रति दिन लगभग 25 हजार लोगों को संक्रमित कर रहा है. यानि हर 4 दिन में भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या में एक लाख की बढ़ोतरी होगी. पिछले कुछ दिनों में बढ़े पेटोल और डीजल के दामों के बाद बाजार की हर वस्तु महंगी हो गई. वो भी उस समय जब कोरोना के चलते उद्योग धंधे तबाह हो चुके हैं. ऐसे समय में महंगाई आम लोगों की जिंदगी पर बड़ी मार साबित हो रही है.

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