कांग्रेस को कब मिलेगा राष्ट्रीय अध्यक्ष? कोरोना के नाम पर कब तक बचती रहेगी ‘ग्रेट ओल्ड पार्टी’

कोरोना के नाम पर कब तक बचती रहेगी 'ग्रेट ओल्ड पार्टी', कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर नियुक्ति का इंतजार करते करते थकने लगे हैं कार्यकर्ता, राहुल गांधी ही ले रहे हैं सभी फैसले, लेकिन औपचारिक तौर पर सीट पर बैठने से उन्हें है परहेज, राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति में देरी बढ़ा रही है मुश्किलें

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Politalks.News/Bharat. कांग्रेस संगठन का काम क्या हमेशा के लिए टाल दिया गया है? पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव नतीजे आए दो महीने होने वाले हैं और कोरोना वायरस का संक्रमण भी देश भर में थम-सा गया है. तीन-चार राज्यों में जरूर केसेज ज्यादा आ रहे हैं पर वहां भी ठीक होने वाले मरीजों की संख्या अधिक है. फिर भी कांग्रेस पार्टी संगठन का चुनाव क्यों नहीं करा रही है? देश के ज्यादातर कोरोना विशेषज्ञ मान रहे हैं कि वायरस का संक्रमण थोड़ी-बहुत मात्रा में कई बरसों तक रहने वाला है और वैक्सीनेशन की प्रक्रिया भी सालों साल चलती रहेगी. तो फिर क्या कोरोना के बहाने सालों साल तक कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव टला रहेगा?

अब कांग्रेस के नेता भी थक गए हैं. उनका कहना है कि सबको पता है कि राहुल गांधी को ही अध्यक्ष बनना है तो वे जितनी जल्दी बनें उतना अच्छा रहेगा. वे अध्यक्ष बनें, कार्य समिति के सदस्यों की नियुक्ति करें और नई राष्ट्रीय कमेटी बनाएं. कांग्रेस मुख्यालय में बैठने वाले कई नेता इस बात से हैरान परेशान हैं कि क्या कोरोना के नाम पर राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव अनंतकाल तक टाला. राहुल गांधी लगातार ये भी कह तो रहे हैं कि गांधी परिवार से कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं होना चाहिए. उनकी बात को ध्यान में रखते हुए कांग्रेसियों ने सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष तो बना रखा है. लेकिन पार्टी में अभी तक किसी भी गैर गांधी के नाम पर विचार करना भी शुरू नहीं किया है.

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राहुल गांधी खुद कोरोना वायरस के बड़े ‘विशेषज्ञ’ बन गए हैं. राहुल गांधी ने देश और दुनिया के तमाम विशेषज्ञों से इस मसले पर चर्चा की है और केंद्र को लगातार सुझाव देते रहते हैं. उनकी पार्टी इस बात पर अड़ी हुई थी कि संसद का सत्र वर्चुअल तरीके से कराया जाए और संसदीय समितियों की बैठक भी वर्चुअल तरीके से हो. उनकी पार्टी की बैठकें भी वर्चुअल तरीके से हो रही हैं. लेकिन संगठन का चुनाव किसी तरीके नहीं करना है। असल में कांग्रेस पार्टी के सामने दूसरी विपक्षी पार्टियां जो समूह बना रही हैं या बनाने का प्रयास कर रही हैं उसका कारण यह है कि कांग्रेस बिना नेतृत्व के है.

राहुल गांधी पार्टी के सर्वोच्च नेता हैं लेकिन उनके पास कोई पद नहीं है. वे न पार्टी के अध्यक्ष हैं, न लोकसभा में पार्टी के नेता हैं और संसदीय दल के प्रमुख हैं. वे बिना किसी जिम्मेदारी के सर्वोच्च नेता हैं. बिना जिम्मेदारी के सर्वोच्च नेता का कोई मतलब नहीं होता है. ऐसे नेता अन्य दलों में मार्गदर्शक मंडल में डाले जाते हैं. तभी तो राहुल गांधी और कांग्रेस पर तंज कसते हुए तृणमूल कांग्रेस के एक नेता ने कहा है कि जब तक कांग्रेस नेतृत्वविहीन है तब तक दूसरी पार्टियों के लिए मौका है. इस मौके का फायदा शरद पवार उठा रहे हैं तो ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल भी इसमें पीछे नहीं हैं. केजरीवाल की पार्टी ने कहा है कि गुजरात में अगला विधानसभा चुनाव भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच होगा. ऐसा कहने और मानने का एक कारण यह है कि कांग्रेस के पास नेता नहीं है.

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इधर, कांग्रेस की राज्य इकाइयों के झगड़े खत्म नहीं होने का नाम नहीं ले रहे हैं. पंजाब और राजस्थान कांग्रेस के नेताओं की अंतर्कलह तो थमने का नाम ही नहीं ले रही है. छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, केरल और गुजरात कांग्रेस के नेता दिल्ली में अपनी फरियाद लेकर पहुंच रहे हैं. मध्यप्रदेश में तो कांग्रेस ने कलह के चलते सत्ता भी गंवाई और एक युवा तुर्क भी खोया. ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में जाना कांग्रेस के लिए बड़ी क्षति है. इंतजार का वैक्यूम बढ़ने से नाराज यूपी के ब्राह्मण नेता जितिन प्रसाद ने भी बीजेपी की दामन थाम लिया है.

सोनिया गांधी दो साल से कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष हैं. कायदे से अंतरिम अध्यक्ष का काम रोजमर्रा के कामकाज को संचालित करना होता है. लेकिन वे अंतरिम अध्यक्ष रहते हुए ही देश भर में कांग्रेस पार्टी में बदलाव कर रही हैं. सबको पता है कि यह बदलाव राहुल गांधी के हिसाब से हो रहा है. राज्यों में विधायक दल के नेता तय हो रहे हैं, नए प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति हो रही है. अल्पसंख्यक मोर्चे में नियुक्ति हो गई, लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव नहीं हो रहा है.

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