सपा का छोटे-छोटे दलों के साथ ‘बड़ा खेला’ करने का प्लान, सीटों का बंटवारा बढ़ा रहा अखिलेश का सिरदर्द!

यूपी में गठबंधन की राजनीति, भाजपा के बाद सभी नजरें सपा पर क्योंकि बसपा और कांग्रेस के हाथ हैं खाली, सपा ने छोटे दलों के साथ मिलाया है हाथ, बीजेपी से चुनावी मुकाबले के लिए अखिलेश ने जातीय आधार वाले आधा दर्जन दलों के साथ किया है गठबंधन, लेकिन सीट शेयरिंग को लेकर अभी तक तय नहीं है फॉर्मूला, सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारा करना सपा के लिए होगी बड़ी चुनौती

यूपी में गठबंधन की राजनीति
यूपी में गठबंधन की राजनीति

Politalks.News/Uttarpradesh. उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) चुनाव के लिए सभी दलों ने कमर कसी हुई है. भाजपा (BJP) और सपा (SP) दोनों गठबंधन कर मोर्चेबंदी में लगी है. भारतीय जनता पार्टी ने यूपी में कम सहयोगी रखे हैं. भाजपा सिर्फ दो सहयोगी पार्टियों के साथ चुनाव लड़ने जा रही है. वहीं समाजवादी पार्टी आधा दर्जन छोटी-बड़ी पार्टियों के साथ तालमेल करके लड़ने की तैयारी में हैं. अब सपा ने छोटी पार्टियों से गठबंधन तो कर लिया. लेकिन सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारा मुश्किल हो रहा है. एक तरह से सीटों का बंटवारा सपा के लिए सिरदर्द बन गया है. सूत्रों की माने तो अभी तक सपा ने सिर्फ राष्ट्रीय लोकदल (RLD) के साथ सीट बंटवारा तय किया है. सपा का प्लान है कि सभी सहयोगियों को 80-90 सीटों पर चुनाव लड़ाया जाए और खुद 300 से ज्यादा सीटों पर अपने ‘मोहरे’ उतारे. अब देखना यह होगा कि अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) कैसे अपने सहयोगियों के साथ सीट शेयरिंग करते हैं.

रालोद के साथ सीट शेयरिंग का यह है फॉर्मूला
मंगलवार को SP और RLD के गठबंधन की औपचारिक घोषणा हो गई है. सूत्रों का कहना है कि जयंत चौधरी की पार्टी रालोद 36 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और लगभग सारी सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पांच जिलों में होंगी. पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी रालोद को एक-दो सीटें मिलने की संभावना है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद की टिकट से दो-तीन सपा के नेता चुनावी रण में उतरेंगे.

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सहयोगियों के साथ सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय नहीं !
लेकिन अखिलेश का असली सिरदर्द तो अब शुरू होता है. समाजवादी पार्टी ने केशव देव मौर्य के महान दल, ओमप्रकाश राजभर के सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, संजय चौहान की जनवादी पार्टी सोशलिस्ट और अपना दल के कृष्णा पटेल खेमे के साथ तालमेल किया है. लेकिन इनके साथ सीट बंटवारे को लेकर कुछ भी फाइनल नहीं हुआ है. सीट बंटवारे के बढ़ते सिरदर्द की वजह से ही अखिलेश अभी तक अपने चाचा शिवपाल यादव से बातचीत नहीं कर रहे हैं. अगर उनकी प्रगतिशील सोशलिस्ट पार्टी से तालमेल होता है तो उसके लिए भी सीटें छोड़नी होगी. लेकिन अगर उनकी पार्टी का विलय सपा में हो जाता है तो वह ज्यादा बेहतर होगा. लेकिन चाचा शिवपाल यादव को फिलहाल लिफ्ट नहीं दे रहे हैं. उधर चाचा शिवपाल कई बार अपनी डेडलाइन बदल चुके हैं.

300 से ज्यादा सीटों पर खुद लड़ना चाहती है सपा
सूबे की कुल 403 विधानसभा सीटें है, लेकिन सपा कितनी सीटों पर लड़ेगी और सहयोगी दलों के लिए कितनी सीटें छोड़ेगी यह बात अभी सामने नहीं आ सकी है. हालांकि, यह बात साफ है कि अखिलेश यादव ने इस बार बड़े दलों के बजाय छोटे दलों के साथ गठबंधन का फैसला किया है. ऐसे में साफ है कि सपा 300 से ज्यादा सीटों पर खुद चुनाव लड़ेगी और बाकी 80 से 90 सीटों में सहयोगी दलों को एडजस्ट करने का प्लान है.

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राजभर बढ़ा रहे हैं सबसे ज्यादा टेंशन
सपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि बाकी पार्टियों के मुकाबले ओमप्रकाश राजभर की पार्टी से तालमेल करना मुश्किल हो रहा है क्योंकि वे ज्यादा सीटों की मांग कर रहे हैं. राजभर की पार्टी के चार विधायक भी हैं. कहा जा रहा है कि वे 25 सीटों से कम पर राजी नहीं हो रहे हैं. दूसरी ओर सपा को ज्यादा से ज्यादा सीटों पर लड़ना है ताकि वह अपने दम पर बहुमत के आसपास पहुंच सके. इस महीने ममता बनर्जी भी उत्तर प्रदेश जाने वाली हैं, जहां अखिलेश यादव से तालमेल के लिए उनकी बात हो सकती है. कांग्रेस का दामन छोड़ तृणमूल कांग्रेस में आए राजेश पति त्रिपाठी और ललितेश पति त्रिपाठी नेता हैं. अगर तालमेल होता है तो तृणमूल के लिए भी चार-पांच सीटें छोड़नी ही पड़ेंगी. हालांकि इसके बदले में सपा को तृणमूल से अच्छी खासी मदद मिलने की संभावना है.

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