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कांग्रेस पार्टी में तीन बड़े डिसिजनमेकर चेहरों में से एक प्रियंका गांधी इस बार भी चुनावी जंग से पूरी तरह बाहर है. प्रियंका इस रण में स​क्रिय भागीदार नहीं हैं लेकिन एक दिशा निर्धारक की भूमिका जरूर निभा रही हैं. कुछ रोज पहले तक प्रियंका के रायबरेली से चुनाव लड़ने की संभावना लगाई जा रही थी. फिर अचानक से राहुल गांधी को यहां से उतार दिया गया. अमेठी से पार्टी के थिंक टैंक केएल शर्मा पर दांव खेला गया. भले ही प्रियंका रायबरेली या अमेठी दोनों जगह से चुनाव नहीं लड़ रही हैं लेकिन यहीं से अपनी राजनीति की सुढृढ पथ को तैयार कर रही हैं. प्रियंका ने अमेठी और रायबरेली दोनों सीटों पर चुनावी प्रचार की बागड़ौर संभाल रखी है.

प्रियंका गांधी 2019 से ही यूपी में राहुल गांधी और सोनिया गांधी से ज्यादा सक्रिय हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में सोनिया के लिए रायबरेली में प्रियंका ने ही प्रचारक की भूमिका निभाई थी. अमेठी में राहुल गांधी स्टार प्रचारक थे लेकिन वे वहां से हार गए. सोनिया गांधी ने जीत हासिल की थी जिसमें प्रियंका का काफी गहरा योगदान रहा. चुनाव हारने के बाद राहुल गांधी न तो अमेठी और न ही रायबरेली में एकआत बार को छोड़कर कभी आए. अब रायबेरली में राहुल गांधी को जिताने की जिम्मेदारी प्रियंका की है.

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यहां प्रियंका ने जोरदार हूंकार भरते हुए कार्यकर्ताओं को कहा है कि हमें जीतोड़ लड़ना है और जिन्हें डर लग रहा है, वे अभी चले जाएं. प्रियंका ने अंतिम समय में पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि लोग डराएंगे, धमकराएंगे लेकिन हमें डरना नहीं है क्योंकि हम लड़ना जानते हैं. प्रियंका ने ये भी कहा कि आप सभी के लिए 24 घंटे दरवाजें खुले हैं. ऐसा कहकर प्रियंका ने न केवल कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जान फूंकी है, उनको ये अहसास दिलाया है कि वे कभी भी पार्टी के काम से उनसे मिल सकते हैं.

देखा जाए तो यूपी में राहुल गांधी से बड़ा फेस प्रियंका गांधी का रहा है. योगी सरकार में भी प्रियंका गांधी उनसे सीधी टक्कर ले चुकी हैं. जब उन्हें पीड़िताओं से नहीं मिलने दिया जा रहा था तो वे धरने पर बैठ गयी थीं. बाद में उन्हें सह सम्मान वहां तक पहुंचाया गया था. अपने भाषणों में भी वे यूपी के बारे में सबसे अधिक बात करती हैं. यूपी के कार्यकर्ता भी उनमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की छवि देखते हैं और उनकी बातों का मान सोनिया गांधी की तरह ही रखते हैं.

रायबरेली में उनकी चुनावी प्रबंधन की भी अग्नि परीक्षा है. हालांकि रायबरेली में सोनिया गांधी के चलते राहुल गांधी काफी मजबूत लग रहे हैं लेकिन अमेठी में केएल शर्मा थोड़े कमजोर हैं. हालांकि प्रियंका का मुख्य काम राहुल गांधी को जीत दिलाना है. संविधान के मुताबिक, कोई भी सांसद केवल एक ही संसदीय सीट का प्रतिधित्वि कर सकता है. अगर राहुल गांधी रायबरेली और वायनाड दोनों से जीतते हैं तो वायनाड सीट को छोड़ सकते हैं. इस तरह एक परंपरागत सीट पर राहुल गांधी हमेशा बने रहना चाहेंगे. वहीं वायनाड में उप चुनाव के दौरान प्रियंका गांधी यहां से चुनाव लड़कर सक्रिय तौर पर राजनीति में प्रवेश करेंगी.

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भविष्य के गर्भ में गोता लगाया जाए तो दूर दृष्टि यही कहती है कि राहुल गांधी रायबरेली छोड़ें या वायनाड, प्रियंका गांधी की नजरें अमेठी पर भी हमेशा रहेंगी. अमेठी कांग्रेस का गढ़ रहा है और राहुल गांधी ने यहां जीत की हैट्रिक लगाई है. लेकिन पिछली जीत के बाद स्मृति ईरानी यहां अपनी स्थिति काफी मजबूत कर चुकी है. केंद्रीय मंत्री बनने के बाद ​स्मृति की साख जरूर बढ़ी है लेकिन वो बीजेपी के टॉप 20 प्रचारकों में तक शामिल नहीं हैं. वहीं राहुल गांधी पार्टी के नंबर एक स्टार प्रचारक हैं. इसके बाद भी उनका रसूख अमेठी में काफी नीचे आ चुका है. ऐसे में अमेठी में स्मृति से टक्कर केवल प्रियंका गांधी ही ले सकती हैं.

यहां एलके शर्मा को केवल यहां की अंदरूनी स्टडी करने के ही मैदान में उतारा गया है. सियासी गलियारों में खबर तो ये भी चल रही है कि आने वाले समय में अमेठी से प्रियंका गांधी चुनाव लड़ सकती हैं. ऐसा करने से अमेठी और रायबरेली दोनों संसदीय सीट ​एक ​बार फिर से कांग्रेस की हाई प्रोफाइल और सुरक्षित सीटों में शुमार हो जाएंगी.

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