पीएम मोदी के गले की फांस बना कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का राष्ट्रव्यापी आंदोलन

यह एक ऐसा विरोध-प्रदर्शन है जिसमें चेहरों पर आक्रोश और अजीब सी दहशत है, इसके बावजूद इरादे बुलंद हैं, लाखों आंखें जैसे कह रहीं हैं कि हमारे साथ न्याय नहीं हुआ है, मोदी सरकार ने आज तक जितने बिल पास किए शायद किसी का ही इतना विरोध हुआ हो देश में

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Politalks.News/Delhi/Farmers Protest. आज हम बात करेंगे उस आंदोलन की, जो देश की राजधानी दिल्ली की चौखट पर पिछले 25 दिनों से सर्द शीतलहर में किया जा रहा है. ‘यह एक ऐसा विरोध-प्रदर्शन है जिसमें चेहरों पर आक्रोश और अजीब सी दहशत है, इसके बावजूद इरादे बुलंद हैं. लाखों आंखें जैसे कह रहीं हैं कि हमारे साथ न्याय नहीं हुआ है,‘ और वो इन कानूनों को वापस लिए जाने की जिद पर अड़े हैं, जिसे भाजपा की मोदी सरकार ऐतिहासिक बता रही है. वे कृषि सुधार कानूनों को वापस लेने की उम्मीद पर दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर डटे हैं. कड़ाके की ठंड और अपनों की जान भी इनका इरादा नहीं डिगा सकी है. हर दिन बुलंद होती आवाज में एक ही स्वर सुनाई दे रहे हैं, ‘चाहे कितनी ही ठंड क्यों न पड़े हम यहां से तब तक वापस नहीं जाएंगे जब तक सरकार तीनों काले कानून वापस नहीं लेती.’ वहीं दूसरी ओर मोदी सरकार इन्हें राजद्रोही और नक्सली भी बता रही है.

जी हां हम बात कर रहे हैं हमारे अन्नदाता यानी किसानों की, जो पिछले 25 दिनों से दिल्ली के आस पास के क्षेत्रों में डेरा डालकर केंद्र सरकार से कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहा है. इस विधेयक का विरोध पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से शुरू होकर अब देश के अधिकांश राज्यों तक फैल गया है. भाजपा सरकार के खिलाफ किसान आंदोलित होने लगे हैं. किसानों के हर दिन बढ़ रहे गुस्से के आगे केंद्र सरकार हर कदम बहुत संभल कर आगे बढ़ा रही है. पिछले दिनों खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों को मनाने की पूरी कोशिश की और आश्वासन भी दिया लेकिन वह इसमें सफल नहीं हो सके हैं. इस बार किसानों ने भी ठान लिया है कि वह कृषि कानून को वापस करा कर ही पीछे हटेंगे.

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बात को आगे बढ़ाएं उससे पहले आपको दो महीने पीछे लिए चलते हैं. इसी वर्ष सितंबर महीने में संसद के मानसून सत्र के दौरान जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानून विधेयक पारित करवाया था तब उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि यह कानून आगे चलकर किसानों में इतना आक्रोश भर देगा. बता दें कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन विधेयकों के संसद से पारित होने के बाद कहा था कि अब किसानों को अपनी फसल मंडी ही नहीं किसी भी खरीदार को किसी भी कीमत पर और किसी भी राज्‍य में बेचने की आजादी मिलेगी. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह महत्वपूर्ण विधेयक अब उनके गले की फांस बनता जा रहा है.

जिद पर अड़े किसानों को मना नहीं पा रही है भाजपा की मोदी सरकार

हमारे देश का अन्नदाता इस उम्मीद के साथ हाड़ कंपा देने वाली इन सर्द रातों में दिल्ली में डेरा जमाए हुए हैं कि एक न एक दिन केंद्र सरकार जरूर हमारी मांगों को मान लेगी. मोदी सरकार भी किसानों को नाराज करना नहीं चाहती है लेकिन किसान विधेयक को वापस नहीं लेने पर भी अड़ी हुई है. केंद्र सरकार के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर रोजाना प्रदर्शन कर रहे किसानों को समझाने में लगे हुए हैं, लेकिन अन्नदाता अब सरकार से आर-पार की लड़ाई के मूड में आ चुका है. दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पिछले 24 दिनों में लगभग 15 दिन किसी न किसी कार्यक्रम के बहाने अपने संबोधन में दिल्ली में मौजूद किसानों और कृषि कानून के बारे में चर्चा जरूर की है. लेकिन उसके बावजूद भी वे राजधानी में मौजूद किसानों को मना नहीं पाए हैं.

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वहीं पीएम मोदी किसानों को भड़काने में विपक्ष का हाथ बता रहे हैं. मोदी इस बात को अपने हर एक भाषण में कहते हुए दिख जाएंगे. इस बार भाजपा सरकार का देश में कृषि कानून लागू करना अभी तक उल्टा दांव पड़ता दिखाई दे रहा है. हालांकि इस सबके बीच पीएम मोदी ने किसानों को ये भी भरोसा दिया है कि किसी भी हाल में ‘एमएसपी‘ खत्म नहीं होगी और न ही मंडियां खत्म होने वाली हैं. दूसरी ओर विपक्ष इसको लेकर सरकार पर हमलावर है.

किसानों का आक्रोश भाजपा सरकार के प्रति हर दिन बढ़ता जा रहा है–

बता दें कि इससे पहले केंद्र की मोदी सरकार ने देश में कई विधेयक पारित किए थे जैसे जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना, नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी और जीएसटी आदि के विरोध में कई दिन प्रदर्शन हुए थे, लेकिन इन कानूनों को लेकर मोदी सरकार इतनी परेशान नहीं थी जितनी कि वह कृषि कानूनों को लेकर अभी तक हो चुकी है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि यह कानून सीधे ही पूरे देश के किसानों से जुड़ा हुआ है. चाहे राज्य सरकारें हो या केंद्र की सरकारें हो कोई भी किसानों को नाराज करके सत्ता पर अधिक दिन तक काबिज नहीं रह सकती.

इस बात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भाजपा के आला शीर्ष नेता भी जान रहे हैं तभी किसानों के मुद्दे पर हर कदम हर बयान फूंक-फूंक कर रख रहे हैं. किसान सरकार से साफ-साफ कह रहे हैं कि कृषि कानूनों की वापसी के अलावा वो किसी भी बात को मानने के लिए तैयार हैं. किसानों का आरोप है कि सरकार इन कृषि कानूनों की आड़ में उद्योगपतियों के इशारे पर काम कर रही है और इसी के तहत एमएसपी और मंडियों को इस कानून के जरिए आने वाले वक्त में खत्म कर दिया जाएगा. किसानों की मानें तो कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग उनके अस्तित्व के लिए ही बड़ा खतरा है और इसके जरिए वो एक तरह से बड़े उद्योगपतियों के गुलाम बनकर रह जाएंगे. किसानों का साफ कहना है कि सरकार को इन कानूनों को वापस लेना ही होगा. इसी मांग को लेकर किसानों का धरना पिछले 25 दिन से जारी है. किसान दिल्ली की सीमाओं पर अपनी मांग को लेकर डेरा डाले हुए हैं और सरकार के सामने लगातार अपनी मांग को बुलंद कर रहे हैं.

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