जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अयोध्या फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका से राजीव धवन को हटाया

अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्ष के वकील धवन को बीमारी का बहाना देकर केस से किया दूर, राजीव धवन ने सोशल मीडिया पर साझा किया अपना दर्द

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. अयोध्या भूमि विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मुस्लिम पक्ष ने आखिरकार चुनौती दे ही दी. ये पुनर्विचार याचिका जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दाखिल की. गौर करने वाली बात ये रही कि पुराने केस में मुस्लिम पक्ष के सीनियर वकील राजीव धवन (Rajeev Dhavan) को इस केस से हटा दिया है. इसकी जानकारी खुद राजीव धवन ने फेसबुक पोस्ट के जरिए दी है. सोशल मीडिया पर अपना दर्द साझा करते हुए धवन (Rajeev Dhavan) ने कहा, ‘मुझे बताया गया कि मुझे केस से हटा दिया गया है, क्योंकि मेरी तबियत ठीक नहीं है जो बिल्कुल बकवास बात है। जमीयत को ये हक है कि वो मुझे केस से हटा सकते हैं लेकिन जो वजह दी गई है वह गलत है’.


हाल में राजीव धवन हिंदूओं पर दिए अपने एक बयान से भी खासे चर्चा में रहे थे. उन्होंने कहा था, ‘देश में शांति-सौहार्द हिंदू बिगाड़ते हैं मुस्लिम नहीं’. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या भूमि को लेकर आए फैसले के बारे में ये कहा था कि इस फैसले में मुस्लिमों के साथ अन्याय हुआ है. उन्होंने ये भी कहा, ‘जब बाबरी मस्जिद मामले में हिंदू शब्द का इस्तेमाल होता है तो इसका मतलब संघ परिवार होता है. मैंने कोर्ट में कहा था कि जिन्होंने बाबरी मस्जिद ढहाया वे लोग हिंदू तालिबान हैं. मैं संघ परिवार के उन वर्गों की बात कर रहा हूं जो हिंसा और लिंचिंग जैसी चीजों को समर्पित हैं’. इस बयान के बाद जब राजीव धवन की आलोचना होनी लगी तो उन्होंने (Rajeev Dhavan) बयान से मुकरते हुए कहा कि उनके बयान को टीवी और अन्य मीडिया ने तोड़ मरोड़ कर पेश किया.

इससे पहले मामले के मूल मुस्लिम पक्षकार एम.सिद्दीकी के वैधानिक प्रतिनिधि जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अशहद रशीदी ने शीर्ष अदालत में पहली पुनर्विचार याचिका दाखिल की. 217 पन्नों की याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के हर हिस्से पर विवाद नहीं है लेकिन 14 महत्वपूर्ण बिंदुओं पर पुनर्विचार होना चाहिए. दायर पुनर्विचार याचिका में 9 नवंबर के निर्णय पर अंतरिम रोक लगाने का आग्रह किया गया है. याचिका में ये भी कहा गया है कि 1934, 1949 और 1992 में मस्जिद के खिलाफ किए गए कृत्यों को पुरस्कृत करने जैसा है जिनकी खुद न्यायालय ने भत्र्सना की है.

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बता दें, 9 नवंबर को तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर की 5 सदस्यीय पीठ ने एक मत होकर अयोध्या की 2.77 एकड़ भूमि का स्वामित्व रामलला विराजमान को सौंपने और मस्जिद निर्माण के लिए उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड को अन्यत्र पांच एकड़ का भूखंड आवंटित करने का फैसला सुनाया था. हालांकि संविधान पीठ के इस फैसले को उप्र सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड चुनौती नहीं दे रहा है.

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