राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) के संयोजक हनुमान बेनीवाल (Hanuman Beniwal) के नागौर से सांसद चुने जाने के बाद खाली हुई खींवसर विधानसभा सीट (Khivnsar Assembly Seat) पर आगामी 21 अक्टूबर को उपचुनाव है. यहां एक बीजेपी-आरलपी गठबंधन के तहत RLP से हनुमान के छोटे भाई नारायण बेनिवाल और कांग्रेस से पूर्व मंत्री हरेन्द्र मिर्धा (Harendra Mirdha) के बीच कड़ा मुकाबला है. पिछले तीन विधानसभा चुनाव से हनुमान बेनीवाल का गढ माने जानी वाली इस जाट बाहुल्य सीट पर बेनीवाल व मिर्धा दोनों परिवारों की साख दांव पर है. वहीं अपने राजनीतिक प्रभुत्व को बचाने के लिए संघर्ष को मजबूर मिर्धा परिवार के लिए यह चुनाव अपनी खोयी हुई साख को फिर से कायम करने का एक मौका भी है.

हरेन्द्र मिर्धा के लिए अहम है ये उपचुनाव

खींवसर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी हरेंद्र मिर्धा नागौर के कट्टर कांग्रेसी मिर्धा परिवार से संबंध रखते है. हरेंद्र मिर्धा पूर्व केंद्रीय मंत्री रामनिवास मिर्धा के पुत्र है. हरेंद्र मिर्धा पहली बार 1980 में मूंडवा से विधायक चुने गये थे, इस चुनाव में मिर्धा ने हनुमान बेनीवाल के पिता रामदेव चौधरी को हराया था. इसके बाद मिर्धा 1988 में नागौर जिला प्रमुख के पद पर आसीन हुए. वर्ष 1993 में हरेंद्र मिर्धा ने नागौर से चुनाव लडा और भाजपा के बंशीलाल सारस्वत को हराया और वर्ष 1998 में गजेंद्र सिंह को हराकर मिर्धा तीसरी बार विधानसभा पहुंचे. इस दौरान हरेंद्र मिर्धा 1998 से 2003 तक गहलोत सरकार में राज्यमंत्री भी रहे.

पूर्व मंत्री रह चुके हरेंद्र मिर्धा के लिए यह उपचुनाव बहुत अहम है. मिर्धा ने 2003 व 2008 में कांग्रेस से और 2013 के चुनाव में निर्दलीय चुनाव लडा लेकिन उन्हें हार का सामना करना पडा. 2018 के चुनाव में भी मिर्धा ने कांग्रेस से टिकट की मांग की पर पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. अब एक बार फिर उपचुनाव में कांग्रेस ने उन्हें खींवसर से मौका दिया है, ऐसे में हरेंद्र मिर्धा की हर संभव कोशिश होगी की लगातार हारने का जो तमगा उन पर लगा हुआ है वो किसी तरह हट जाये और एक बार फिर से वे विधानसभा में प्रवेश कर पाएं.

एक बार फिर मिर्धा – बेनीवाल आमने सामने

भारतीय जनता पार्टी व राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के गठबंधन प्रत्याशी नारायण बेनीवाल खींवसर से तीन बार विधायक रहे हनुमान बेनीवाल के छोटे भाई हैं. इसके साथ ही नारायण बेनीवाल फिलहाल खींवसर क्रय विक्रय सहकारी समिति के अध्यक्ष भी है. नागौर से हनुमान बेनीवाल के सांसद बनने के बाद से ही नारायण खींवसर क्षेत्र में सक्रिय हो गये थे. अब नारायण बेनीवाल के कंधो पर हनुमान बेनीवाल की विरासत को बढाने व बचाने का जिम्मा है. इसलिए यह चुनाव नारायण बेनीवाल के लिए भी बहुत अहम चुनाव है.

मिर्धा और बेनीवाल परिवार के बीच यह कोई पहला मुकाबला नहीं है. इससे पहले 1980 के चुनाव में हनुमान बेनीवाल के पिता रामदेव चौधरी को कांग्रेस के उम्मीदवार हरेंद्र मिर्धा ने हराया था. तो रामदेव चौधरी ने 1985 में अगले ही विधानसभा चुनाव में हरेंद्र मिर्धा को हराकर अपनी हार हिसाब चुकता कर लिया था. अब करीब 34 साल बाद खींवसर उपचुनाव में एक बार फिर से पुराने विरोधी मिर्धा और बेनीवाल परिवार आमने-सामने हैं और दोनों के लिए यह उपचुनाव जीतना बड़ी चुनौती है.

खींवसर विधानसभा का चुनावी गणित

खींवसर विधानसभा सीट नागौर लोकसभा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा है, इसे ग्रामीण सीट के रूप में वर्गीकृत किया गया है. खींवसर में कुल 2 लाख 45 हजार 435 मतदाता हैं, जिसमें 1 लाख 28 हजार 372 पुरुष मतदाता और 1 लाख 17 हजार 63 महिला मतदाता हैं. दिसंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में खींवसर में 75.26% मतदान हुआ था वहीं 2013 में हुए चुनाव में यहां 77.06% मतदान हुआ था तो 2008 में यहां सिर्फ 67.3% मतदान हुआ था. इन तीनों चुनावों में हनुमान बेनीवाल ने यहां से जीत दर्ज की.

पिछले तीन विधानसभा चुनावों का लेखा जोखा

2018 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां से हनुमान बेनीवाल ने खुद की पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के टिकट पर चुनाव लडा और कांग्रेस के सवाई सिंह चौधरी को 16 हजार 948 मतों से शिकस्त दी तो वहीं इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रामचंद्र उत्तरा तीसरे स्थान पर रहे.

2013 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां से हनुमान बेनीवाल ने निर्दलीय चुनाव लडा और बहुजन समाज पार्टी के दुर्ग सिंह को 23 हजार 20 मतोें से शिकस्त दी. इस चुनाव मे भाजपा प्रत्याशी भागीरथ तीसरे स्थान पर रहे तो वहीं कांग्रेस के राजेंद्र चौथे स्थान पर रहे.

वहीं 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां से हनुमान बेनीवाल ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लडा था और बहुजन समाज पार्टी (BSP) के दुर्ग सिंह को 24 हजार 443 मतों से शिकस्त दी थी. इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सहदेव चौधरी तीसरे स्थान पर रहे थे.

अगर हरेन्द्र मिर्धा जीते तो मिल सकता है मंत्री पद

अब मिर्धा और बेनीवाल में कौन किस पर भारी पड़ेगा इसका पता तो 24 अक्टूबर को सुबह चुनाव परिणाम के बाद पता चलेगा, लेकिन अगर हरेन्द्र मिर्धा इस उपचुनाव में बेनीवाल के गढ़ में सेंध लगाने में कामयाब होते हैं तो कोई बड़ी बात नहीं कि मिर्धा को गहलोत मंत्रिमंडल में जगह मिल जाये.

यह भी पढ़ें: – RCA विवाद पहुंचा कांग्रेस आलाकमान तक, सोनिया गांधी ने पायलट से मांगी रिपोर्ट

Leave a Reply