‘मनमोहन बोर से मनमोहक मोर’ तक दुनिया में भारत के बढ़ते कदम या अर्थव्यवस्था की बर्बादी का पहला सबक!

इस बात से कोई फर्क नहीं पडता है कि आप भाजपा के हैं या कांग्रेस के या फिर किसी और दल के, फर्क इस बात से चलता है कि हमारी सरकारें जो निर्णय कर रही हैं, उसमें हम महफूज यानि कि सुरक्षित हैं या नही, जनता यह जाने तो सही आखिर दोनों सरकारों ने आर्थिक नीतियां किस के लिए बनाईं, देश के आम लोगों को उसका क्या फायदा मिला, मिला भी या नहीं?

'मनमोहन बोर से मनमोहक मोर तक'
'मनमोहन बोर से मनमोहक मोर तक'

Politalks.News/Bharat. अब जब देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह नकारात्मक हो गई है. माइनस 24 तक पहुंच गई है, तो फिर देश की जनता को सोचना तो पडेगा और तुलना भी करनी पडेगी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश की जनता चुनकर इसलिए ही लाई थी कि पीएम मोदी ने अपने भाषणों से साबित किया था कि मनमोहन सिंह सरकार का मतलब ही सबसे भ्रष्ट सरकार थी. जिसने देश को भ्रष्टाचार के साथ बर्बाद भी किया. जनता ने भी पीएम मोदी की बातों पर पूरा भरोसा किया और मनमोहन सिंह सरकार के दौरान बर्बाद हुए भारत को बर्बादी के दौर से बाहर निकालने के लिए मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा दिया.

आगे लिखने से पहले हम थोडा रूकना चाहते है. खासतौर से खबर की हेंडिंग को लेकर. भला ये भी कोई हेंडिंग हुई कि ‘मनमोहन से मनमोहक’ और ‘बोर से मोर’ तक. बता दें, मनमोहन सिंह सरकार के समय बीजेपी और खासकर नरेन्द्र मोदी द्वारा मनमोहन सिंह को कभी ‘मोनी बाबा’ कभी रिमोट से चलने वाला गुड्डा तो कभी क्या कभी क्या कहा जाता था और साथ ही प्रचारित किया गया कि अब देश की जनता मनमोहन सिंह से ‘बोर’ हो गई है.

वहीं दूसरी तरफ पीएम मोदी का हालिया मनमोहक मोरों के साथ हुए प्रेम से तो शायद ही कोई होगा जो वाकिफ नहीं होगा. खैर हैडिंग से तय नहीं होता कि खबर आपके किस काम की है. लेकिन सरकारों की तुलना से खबर की हैडिंग अपनी प्रसांगिकता बनाती है और कहती है कि आप खुद ही जिम्मेदार हैं, आपके आज के हालातों के लिए. छोडिए, विषय दार्शनिकता का नहीं है. शुद्ध रूप से राजनीतिक विषय है. ‘मनमोहन और मनमोहक’ ‘बोर और मोर’ के बीच तुलना होनी भी चाहिए.

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तो फिर शुरू करते हैं देश को दो प्रधानमंत्रियों के बीच की तुलना. जरूरी भी है कि जनता जाने तो सही आखिर दोनों सरकारों ने आर्थिक नीतियां किस के लिए बनाईं, देश के आम लोगों को उसका क्या फायदा मिला, मिला भी या नहीं? इस खबर में आगे चलने के बाद इस बात से कोई फर्क नहीं पडता है कि आप भाजपा के हैं या कांग्रेस के या फिर किसी और दल के, फर्क इस बात से चलता है कि हमारी सरकारें जो निर्णय कर रही हैं, उसमें हम महफूज यानि कि सुरक्षित हैं या नही.

‘बोर से मोर’ सबसे पहले बात रोजगार की

2014 के चुनाव के समय भाजपा के प्रधानमंत्री पद के चेहरे नरेंद्र मोदी का एक भाषण देश की बेराजगारी पर था. मोदी ने एलान किया हम सत्ता में आए तो हर साल एक करोड नौकरियां देंगे. अब पीएम मोदी के इस बयानी गुब्बारे की हवा निकल चुकी है. वैसे मोदी सरकार अलग-अलग तरीके से गिना रही है कि इससे ज्यादा रोजगार इस देश के युवाओं को मिल चुका है.

अब युवा खुद भी कभी मोदी पर तो कभी खुद पर ही हंस रहे होंगे. कुल मिलाकर रोजगार की बात है. रोजगार के बिना ना जीवन चल सकता है, ना घर और ना ही किसी देश अर्थव्यवस्था. लेकिन मोदी सरकार ने आंकडों की लफ़्फ़बाजी से साबित कर दिया कि आत्मनिर्भर भारत, मेक इन इंडिया, स्वाभिमान भारत, उदयमान भारत, डिजिटल इंडिया और ना जाने क्या-क्या के माध्यम से एक नहीं बल्कि कई करोड़ युवाओं को उनका मनचाहा रोजगार मिल चुका है. खैर सारी घोषणाओं का रिजल्ट अब माइनस में आई जीडीपी खुद बता रही है.

अब जान लेते हैं कि मनमोहन सिंह ने क्या किया था
मनमोहन सिंह ने भाषण नहीं दिए थे क्योंकि वो तो भाजपा के हिसाब से ‘मोनी बाबा’ थे. भाषण तो छोडिए, बोलना भी नहीं जानते थे. लेकिन हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़े हुए थे. तो पीएम मोदी ने तो अपने भाषण में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को भी नहीं छोडा. एक भाषण में पीएम मोदी ने कहा कि हारवर्ड वाले क्या जाने कि हार्डवर्क क्या होता है. चलिए छोडिए, आगे चलते हैं. पीएम मोदी ने तो चुनाव से पहले यह भी कहा था कि कालाधन बाहर आएगा और हर भारतीय को 10 से 15 लाख रूपया मिलेगा. लेकिन चुनाव के बाद मोदी के सबसे नजदीकी सलाहकार अमित शाह ने कह दिया कि वो तो चुनावी जुमला था.

तो सवाल उठता है मनमोहन ने रोजगार के लिए क्या किया
मनमोहन सिंह इस देश की सबसे बडी ऐसी योजना लेकर आए कि भारत की आबादी के गलत तरीके से हो रहे विस्तार को रोक दिया. योजना का नाम था ‘मनरेगा‘. मनरेगा ने भारतीय अर्थव्यवस्था में प्राण फूंक दिए. काम हुआ या नहीं, ये अलग से बहस का विषय हो सकता है. लेकिन मनमोहन ने एक काम तो पक्का कर दिया कि देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुडे लोगों को डरने की कोई जरूरत नही है. अपना गांव छोडकर शहरों की ओर भागने की जरूरत नही है. यानि कि ग्रामीण अंचल में रहने वाली 70 फसीदी से अधिक आबादी की सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद सरकार ने ले ली.

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‘मनरेगा’ ने देश के उस ग्रामीण की कीमत बढा दी, जिसको उद्योग चलाने वाले सबसे सस्ते मजदूर के तौर पर समझते थे और उन मजदूरों के दम पर करोड़ों नहीं बल्कि अरबों कमाते थे. मनरेगा के बाद अब अमीरों को मजदूर चाहिए तो पैसा दुगना कीजिए. यानि के अपने अरबों के मुनाफे को करोडो पर लाइए. ऐसे में सारे उद्योगपतियों ने मिलकर मनमोहन सरकार को चोर बताना शुरू कर दिया. उद्योगपतियों का वो अभियान सफल भी रहा. देश में सत्ता बदल गई.

मनमोहन बोर से मनमोहक मोर तक पार्ट -2

खबर अगर केवल एक ‘मनमोहन सिंह और नरेन्द्र मोदी’ के बीच केवल एक ही निर्णय के आकलन की होती तो अब समाप्त हो जानी चाहिए. चूंकि आकलन तो मनमोहन सिंह की पहली और नरेन्द्र मोदी की पहली सरकार से जुड़ा हुआ है. फिर उसके बाद दोनों की सरकार नंबर-2 से जुडा है. तो फिर पाॅलिटाॅक्स की सीरीज ‘मनमोहन बोर से मनमोहक मोर’ पार्ट 2 में फिर देश यानि कि इकोनॉमी से जुडे अगले कदमों पर चर्चा करेंगे.
देखते और पढते रहिए पाॅलिटाॅक्स न्यूज.

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