कर्नाटक के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा ने चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है. पहली बार वह 2007 में 12 नवंबर से 19 नवंबर तक आठ दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने थे. दूसरी बार 30 मई 2008 से 31 जुलाई 2011 तक तीन वर्ष दो माह मुख्यमंत्री रहे. तीसरी बार 2018 में 17 मई से 19 मई तक तीन दिन मुख्यमंत्री रहे. अब चौथी बार 26 जुलाई 2019 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के लिए येदियुरप्पा ने भरसक प्रयास किए. तंत्र-मंत्र के अलावा ज्योतिषीय उपायों का भी सहारा लिय़ा. इसके तहत उन्होंने अपने उपनाम में शामिल ‘D’ को ‘I’ अक्षर से बदल लिया है. अपने ट्विटर हैंडल पर भी उन्होंने अपने उपनाम में आंशिक बदलाव कर लिया है. येदियुरप्पा ने 1975 में स्थानीय निकाय का पहला चुनाव जीता था. उसके बाद 12 साल तक उन्होंने अपने उपनाम में परिवर्तन नहीं किया था. इसके बाद देवगौड़ा की पार्टी जनता दल-एस के साथ मिलकर भाजपा ने सरकार बनाई थी और येदियुरप्पा पहली बार मुख्यमंत्री बने थे. उसके कुछ दिन बाद उन्होंने अपने उपनाम की स्पैलिंग में आई हटाकर डी कर लिया था. बताया जाता है कि अंक ज्योतिषियों की सलाह पर उन्होंने नाम का एक अक्षर बदला था. अब उन्होंने एक बार फिर एक अक्षर बदलते हुए वापस वही उपनाम लिखना शुरू कर दिया है, जो पहले लिखा करते थे.

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इसके बाद येदियुरप्पा ने बेंगलुरु स्थित अपने घर कई पूजा-अनुष्ठान कराए थे. इसके साथ ही तुमकुर जिले में स्थित अपने गांव येदिपुर में उन्होंने ग्राम देवता को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ करवाया था. येदियुरप्पा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को प्रसन्न करने के साथ ही ज्योतिषियों, अंक ज्योतिषियों और टैरो कार्ड पढ़ने वालों से भी गुप्त परामर्श करते रहे हैं.

येदियुरप्पा का ज्योतिष, तंत्र-मंत्र आदि पर बहुत भरोसा है. वह कोई भी कार्य ज्योतिषियों से मुहूर्त पूछकर करते हैं. महत्वपूर्ण दस्तावेजों पर दस्तखत करने से पहले भी वह अपने ज्योतिषी से सलाह लेना नहीं भूलते. शुक्रवार शाम को सवा छह बजे मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का समय भी ज्योतिषी की सलाह पर तय किया था. जिस दिन कुमारास्वामी सरकार गिरी उसी रात येदियुरप्पा ने अपने ज्योतिषों को आवास पर बुलाया. सूत्रों की माने तो ज्योतिषों ने शुक्रवार 26 जुलाई नहीं टलने देने की सलाह येदियुरप्पा को दी थी. इसके लिए ज्योतिषों ने उसी रात एक हवन भी करवाया. येदियुरप्पा जब पिछली बार मुख्यमंत्री थे, तब केरल के कई ऐसे मंदिरों में जाया करते थे, जहां काला जादू किया जाता है. वह जब अपनी कर्नाटक जनता पार्टी को लांच करने वाले थे, तब भी उन्होंने केरल के चार मंदिरों के दर्शन कर वहां पूजा-अनुष्ठान किए थे.

येदियुरप्पा का जन्म कर्नाटक में मांड्या जिले के बुकानाकेरे में 27 फरवरी 1943 को लिंगायत परिवार में हुआ था. जब वह चार वर्ष के थे, तब उनकी मां का देहांत हो गया था. वह छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय हो गए थे. उनका पूरा नाम है बूकानाकेरे सिद्धलिंगप्पा येदियुरप्पा. वह बीएस येदियुरप्पा के नाम से लोकप्रिय हैं. 1965 में वह समाज कल्याण विभाग में प्रथम श्रेणी लिपिक नियुक्त हुए थे, लेकिन सरकार नौकरी उन्हें रास नहीं आई. वह नौकरी छोड़कर शिकारीपुर चले गए, जहां उन्होंने वीरभद्र शास्त्री की शंकर चावल मिल में क्लर्क के रूप में काम किया. कॉलेज की पढ़ाई के दौरान येदियुरप्पा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे. 1970 में वह सामाजिक गतिविधियों से जुड़ गए और शिकारीपुर के प्रभारी बने. फिलहाल उनके दो पुत्र और तीन पुत्रियां हैं.

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कर्नाटक में 2007 में राजनीतिक उलटफेर के बाद राष्ट्रपति शासन लगा था. उसके बाद जनता दल-एस और भाजपा के मतभेदों को दूर करने में येदियुरप्पा काफी सहायक रहे और 12 नवंबर 2007 को पहली बार भाजपा को कर्नाटक का शासन संभालने का नौका मिला. येदियुरप्पा के दम पर भाजपा ने पहली बार दक्षिणी राज्य में अपनी सरकार बनाई. येदियुरप्पा का कार्यकाल उनके कार्यों के कारण कम, विवादों के कारण ज्यादा सुर्खियों में रहा. तीन साल बाद वह खनन घोटाले में फंसे और उनकी सरकार चली गई.

येदियुरप्पा 1983 से शिकारीपुर विधानसभा सीट से चुनाव जीतते आ रहे हैं. वह सिर्फ एक बार 1999 में विधानसभा चुनाव हारे थे. उन्हें कांग्रेस के महालिंगप्पा ने हराया था. मुख्यमंत्री पद छोड़ने के साथ ही येदियुरप्पा ने भाजपा भी छोड़ दी थी और अपनी अलग कर्नाटक जनता पार्टी बनाई थी. यह दौर ज्यादा समय तक नहीं चला. भाजपा के लिए येदियुरप्पा का पार्टी में बने रहना महत्वपूर्ण था.

जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने थे तब 2013 येदियुरप्पा की भाजपा में वापसी हो गई. 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने येदियुरप्पा को ही कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था. उन्होंने फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन तीसरे दिन विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाए और इस्तीफा देना पड़ा. उसके बाद कुमारस्वामी ने जदएस-कांग्रेस गठबंधन सरकार बनाई थी.

इस तरह येदियुरप्पा के जीवन में एक के बाद एक संकट आते रहे और वह उनसे उबरते रहे. उन्होंने कभी हार मानना नहीं सीखा है. भाजपा में खुद को धुरंधर साबित करते हुए वह एक बार फिर कर्नाटक के मुख्यमंत्री बन गए हैं. येदियुरप्पा के लिए भाजपा ने पिचत्तर प्लस का नियम भी तोड़ दिया है. भाजपा की नीति है कि 75 वर्ष की उम्र पार करने वाले नेताओं को सक्रिय राजनीति से बाहर रखा जाए. लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, सुषमा स्वराज, सुमित्रा महाजन, कलराज मिश्र सहित कई बड़े नेता भाजपा के इस नियम के आधार पर संसद से बाहर हो गए हैं.

येदियुरप्पा की उम्र 76 वर्ष हो चुकी है. शुक्रवार शाम उनके शपथ ग्रहण समारोह में भाजपा के किसी भी केंद्रीय नेता की मौजूदगी नहीं थी. हालांकि भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस में अवश्य कहा कि कर्नाटक में येदियुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा की स्थायी सरकार बन रही है. उन्होंने कहा कि कर्नाटक सरकार अपने कारणों से गिरी है. वहां येदियुरप्पा आगे बढ़े हैं. भाजपा वहां स्वच्छ प्रशासन देने के लिए कटिबद्ध है. येदियुरप्पा की उम्र आदि विषयों पर पार्टी बाद में विचार करेगी.

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