अशोक गहलोत ने पीएम मोदी पर कसा तंज, कहा- राहुल गांधी से डर गए हैं मोदी
लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आते जा रहे हैं, विपक्ष पर आरोप-प्रत्यारोप और तंज कसने का सिलसिला भी अपनी रफ्तार पकड़ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी अपनी चुनाव रैलियों में जमकर कांग्रेस के खिलाफ जहर उगल रहे हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी जीभरकर प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी पर अपनी भड़ास निकालने में लग हैं. इसी तरह राजस्थान में अशोक गहलोत ने भी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर कहा कि प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से डर गए हैं.
सीएम गहलोत ने मुख्यमंत्री आवास पर प्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि राहुल गांधी की न्यूनतम आय योजना से भाजपा के नेता और मोदीजी परेशान हैं और परेशान होकर टिप्पणी कर रहे हैं. ‘न्याय’ जैसी योजना दुनिया के विकसित देशों तक में नहीं है. कांग्रेस केवल जनता के हित के बारे में सोचती है और राहुल गांधी का गरीबी मिटाने का वादा मोदीजी के 15 लाख वाला वादा नहीं बल्कि हकीकत वादा है. हमारी सरकार बीजेपी की सरकार की तरह झूठे वादे नहीं करती है.
बीजेपी पर तंज करते हुए गहलोत ने कहा कि बीजेपी केवल चुनाव जीतने के लिए जुमलेबाजी कर जनता को गुमराह करने का काम करती है लेकिन जनता बीजेपी की जुमलेबाजी समझ चुकी है. देश में न तो प्रधानमंत्रीजी का काला धन आया और न ही 15 लाख रुपये. यहां तक की सरकार अपने पांच सालों की उपलब्धियां तक गिना नहीं पा रही है. बीजेपी राज में देश के अंदर हिंसा और नफरत का माहौल है. मोबलिचिंग के नाम पर हिंसा हो रही है. बीजेपी बोलने वालों को आतंकी कहती है. लोकतंत्र को बचाने के लिए यह चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है.
आडवाणी और अन्य वरिष्ठ बीजेपी नेताओं के टिकट कटने के बारे में गहलोत ने चुटकी ली कि देश को कांग्रेस मुक्त करने की बात करते-करते भाजपा ने अपने ही नेताओं को मुक्त कर दिया. डीआरडीओ को लेकर भी सीएम गहलोत ने मोदी सरकार को घेरा. गहलोत ने प्रदेश में हेल्थ गारंटी कानून लाने की बात भी कही. उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार राज्य में स्वास्थ्य और चिकित्सा को सुधारने की दिशा में अग्रसर है. हमारी सरकार ने सत्ता हाथ में आते ही किसानों का ऋण माफ किया. अब गरीबी मिटाने की बारी है.
उत्तराखंड: अल्मोड़ा सीट पर फिर टम्टा बनाम टम्टा, इस बार कौन मारेगा बाजी?
उत्तराखंड की अल्मोड़ा लोकसभा सीट इन दिनों खासी चर्चा में है. वजह है- इस सीट पर अजय टम्टा और प्रदीप टम्टा का एक बार फिर से आमने-सामने होना. यह सीट अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. दोनों के बीच यह तीसरा मुकाबला है और दोनों एक-दूसरे को एक-एक बार पटखनी दे चुके हैं. वर्तमान में अजय टम्टा यहां से मौजूदा बीजेपी सांसद हैं.
बीजेपी ने मौजूदा सांसद पर ही विश्वास जताते हुए उपर फिर से दांव खेला है. उनके सामने कांग्रेस ने प्रदीप टम्टा को आगे किया है. गौर करने वाली बात यह है कि प्रदीप टम्टा वर्तमान में राज्यसभा के सदस्य हैं और अभी उनका तीन साल का कार्यकाल शेष है. इसके बावजूद कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें लोकसभा की चुनावी जंग में अल्मोड़ा सीट से लड़ाने का दांव खेला. अगर प्रदीप टम्टा यानि कांग्रेस इस सीट पर जीतती है तो राज्यसभा सीट से हाथ धोना होगा, यह पक्का है. उसके बाद भी कांग्रेस ने यह जोखिम उठाया है.
बहरहाल, जनता की उम्मीदों पर पूरी तरह से खरा न उतर पाने की वजह से अजय टम्टा को स्थानीय जनता की नाराजगी झेलनी पड़ रही है. ऐसे में कांग्रेस द्वारा प्रदीप टम्टा पर खेला गया दांव अजय टम्टा को भारी पड़ता दिखाई दे रहा है. हालांकि पिछले लोकसभा चुनावों में मोदी लहर के बावजूद प्रदीप टम्टा बेहद कम वोटों से अजय टम्टा से हारे थे. इस बार फिर से दोनों टम्टा के मैदान में उतरने से मुकाबला पहले से कहीं अधिक रोचक हो चला है.
बात करें अजय टम्टा की तो वह केंद्र सरकार में राज्य से इकलौते मंत्री हैं. केंद्र में कपड़ा राज्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने जनता से कई वादे किए, लेकिन वादों पर खरे नहीं उतर पाए. बरहाल, अजय टम्टा और प्रदीप टम्टा अल्मोड़ा सीट पर ही तीसरी बार आमने-सामने हैं और एक-एक बार एक दूसरे को हरा चुके हैं. 2009 में दोनों के बीच पहली बार हुए मुकाबले में प्रदीप टम्टा जीते थे जबकि 2014 में अजय टम्पा ने जीत दर्ज कर पिछली हार का हिसाब पूरा कर लिया.
इस सीत से जीत का मतत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि दोनों टम्पा में से जो भी जीतेगा, उसका राजनीतिक कद पार्टी में बढ़ना तय है. अगर अजय टम्टा जीतते हैं तो उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद के अगले चहेरे में शामिल हो जाएंगे. अगर प्रदीप टम्टा जीतते हैं तो प्रदेश कांग्रेस में प्रमुख दलित चेहरा बनकर उभरेंगे. स्थानीय लोगों की मानें तो अजय टम्पा चुनावी दंगल में फिर से मोदी लहर में तर जाने के लिए आश्वस्त हैं.
वहीं प्रदीप टम्पा केन्द्र में भाजपा की सरकार होने के बावजूद प्रदेश में विकास न होने को मुद्दा बना रहे हैं. यहां नोटा भी चुनावी परिणाम तय करने में अहम भूमिका निभा सकता है. पिछले लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने ‘नोटा’ का सबसे अधिक इस्तेमाल किया था. यहां 15 हजार से अधिक नोटा वोट पड़े थे. इस बार भी नोटा का उपयोग ज्यादा हो, इसकी पूरी संभावना है. प्रदीप टम्टा को लगता है कि मतदाता जितना ज्यादा नोटा का प्रयोग करेंगे, वह सत्ता विरोधी रुझान को दर्शाएगा, जो कि उनके पक्ष में ही जाएगा.
मिशन शक्ति संबोधन में आचार संहिता का उल्लंघन नहीं हुआ: चुनाव आयोग
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मिशन शक्ति’ की सफलता की घोषणा देशवासियों के समक्ष करने में किसी भी तरह से आचार संहिता का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है. यह जानकारी चुनाव आयोग ने दी है. बता दें, बुधवार को एंटी सेटेलाइट मिसाइल परीक्षण के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने देश के नाम संबोधन करते हुए इसकी जानकरी सांझा की थी. माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने इसकी शिकायत चुनाव आयोग से की थी. इसके बाद कई अन्य राजनीतिक दलों ने भी प्रधानमंत्री पर आचार संहिता का उल्लंघन करने का आरोप लगाया था.
इस मामले में आचार संहिता के उल्लंघन से जुड़े विभिन्न पहलुओं की जांच के लिए गठित समिति की रिपोर्ट और मामले की विस्तृत जांच के बाद आयोग ने येचुरी की शिकायत को नामंजूर कर दिया. आयोग ने येचुरी को शुक्रवार रात भेजे अपने जवाब में कहा, ‘समिति इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि इस मामले में आचार संहिता के तहत सरकारी मीडिया के दुरुपयोग संबंधी प्रावधानों का उल्लंघन नहीं हुआ है’. समिति ने इस मामले की जांच के लिए सार्वजनिक प्रसारण सेवा से जुड़े दूरदर्शन और आकाशवाणी से प्रधानमंत्री के संबोधन के प्रसारण की फीड का स्रोत और अन्य जानकारियां मांगी थीं.
गौरतलब है कि 27 मार्च को भारत ने अतंरिक्ष में एक एंटी सैटेलाइट मिसाइल के जरिए एक लाइव सैटेलाइट को मार गिराया. यह तकनीक पूरी तरह से स्वदेसी है. यह सिद्धि हासिल करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश ब गया है. अमेरिका, रूस व चीन पहले ही इसका सफलतम परीक्षण कर चुके हैं.
यूपी: कांग्रेस को ‘जिताऊ’ की तलाश, कहीं हो रहा विरोध तो कहीं उड़ रही हंसी
कांग्रेस ने जहां स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में उतार कर इस लोकसभा चुनावों के प्रति अपनी गंभीरता का प्रमाण दिया, वहीं टिकट बंटवारे में पार्टी नेताओं की अपरिपक्वता साफ तौर पर दिख रही है. जिताऊ प्रत्याशियों की तलाश में पार्टी नेताओं की अनदेखी से एक ओर चुनाव से पहले ही कई सीटों पर विरोध के स्वर सुनाई देने लगे हैं तो दूसरी ओर अन्य राजनैतिक दल से घोषित हो चुके प्रत्याशी नेता को टिकट दिए जाने से पार्टी हंसी का पात्र बन रही है.
गफलत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गुरुवार को पार्टी ने उत्तर प्रदेश की महराजगंज सीट से पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी के बेटी तनुश्री त्रिपाठी को कांग्रेस प्रत्याशी घोषित किया था. जबकि तनुश्री को शिवपाल सिंह यादव की पार्टी महराजगंज सीट से ही पहले ही अपना प्रत्याशी घोषित कर चुकी है. अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि कवियत्री मधुमिता हत्याकांड में जेल में हैं. विधानसभा चुनाव में अमरमणि के बेटे अमनमणि ने कांग्रेस से टिकट मांगा था, लेकिन कांग्रेस ने इंकार कर दिया था.
लेकिन निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अमनमणि की जीत के बाद कांग्रेस को तनुश्री जिताऊ प्रत्याशी दिखने लगी. तनुश्री के नाम की घोषणा कांग्रेस प्रत्याशी के तौर होने के बाद सोशल मीडिया ने कांग्रेस की जमकर बखिया उधेड़ी. असर यह हुआ कि अगले ही दिन पार्टी ने गलती मानते हुए वहां से दूसरे प्रत्याशी की घोषणा की. देवरिया सीट पर पूर्व विधायक अखिलेश प्रताप सिंह की मेहनत को अनदेखा कर बसपा से आए नियाज अहमद को टिकट मिला. इटावा लोकसभा सीट जो पार्टी की सुरक्षित सीट है. यहां पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता अशोक सिंह पिछले एक दशक से इटावा क्षेत्र में मेहनत कर रहे हैं.
हाईकमान से लेकर जिम्मेदार नेताओं तक ने उन्हें टिकट का आश्वासन दिया था, लेकिन शुक्रवार को कांग्रेस ने वहां भाजपा छोड़ एक दिन पहले पार्टी में आए अशोक दोहरे को प्रत्याशी घोषित कर दिया. इन सीटों के अलावा सीतापुर, बहराइच, बस्ती, पीलीभीत और फूलपुर सहित दर्जन भर ऐसी सीटें हैं, जहां पार्टी नेताओं को किनारे कर पैरासूट प्रत्याशियों को उतारा है. इससे स्थानीय नेताओं में रोष है. विधानसभा चुनावों में मुंह की खा चुकी कांग्रेस के हाईकमान अब पेराशूट प्रत्याशियों पर ज्यादा भरोसा जता रहे हैं. इसके चलते पार्टी के पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच विरोध उभर रहा है.
पूर्व मंत्री और राहुल गांधी की कोर टीम के सदस्य जितिन प्रसाद को लेकर भी एक ऐसा ही हांस्यप्रद वाक्या घटित हुआ. पिछले लोकसभा चुनावों में जितिन को लखीमपुर की धौरहरा लोकसभा सीट से टिकट दिया गया था, लेकिन इस बार आलाकमान ने उन्हें लखनऊ से लड़ने को कहा. ऐसे में चर्चा उठी कि जितिन कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामने जा रहे हैं. इन चर्चाओं पर न तो कांग्रेस हाईकमान ने विराम लगाया और न ही जितिन ने. चर्चाएं तेज हुई तो जितिन खुद मीडिया के सामने आए और खुद का कांग्रेस का सिपाही बताते हुए लखनऊ के लिए रवाना हुए, लेकिन धौरहरा के कार्यकर्ताओं ने सड़क पर लेट उनका रास्ता रोक लिया.
कार्यकर्ताओं ने जितिन से दो टूक कहा कि उन्हें लखनऊ जाने की जरूरत नहीं है. नाटकीय प्रकरण के बाद और जितिन प्रसाद की लोकप्रियता को देखते हुए कांग्रेस हाईकमान ने अपने कदम पीछे खींचते हुए बीते दिनों स्पष्ट किया कि जितिन धौरहरा से ही चुनाव लड़ेंगे. ऐसे में लखनऊ लोकसभा सीट के लिए जिताऊ प्रत्याशी की तलाश फिर तेज हो गई है.