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कांग्रेस ने जहां स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में उतार कर इस लोकसभा चुनावों के प्रति अपनी गंभीरता का प्रमाण दिया, वहीं टिकट बंटवारे में पार्टी नेताओं की अपरिपक्वता साफ तौर पर दिख रही है. जिताऊ प्रत्याशियों की तलाश में पार्टी नेताओं की अनदेखी से एक ओर चुनाव से पहले ही कई सीटों पर विरोध के स्वर सुनाई देने लगे हैं तो दूसरी ओर अन्य राजनैतिक दल से घोषित हो चुके प्रत्याशी नेता को टिकट दिए जाने से पार्टी हंसी का पात्र बन रही है.

गफलत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गुरुवार को पार्टी ने उत्तर प्रदेश की महराजगंज सीट से पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी के बेटी तनुश्री त्रिपाठी को कांग्रेस प्रत्याशी घोषित किया था. जबकि तनुश्री को शिवपाल सिंह यादव की पार्टी महराजगंज सीट से ही पहले ही अपना प्रत्याशी घोषित कर चुकी है. अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि कवियत्री मधुमिता हत्याकांड में जेल में हैं. विधानसभा चुनाव में अमरमणि के बेटे अमनमणि ने कांग्रेस से टिकट मांगा था, लेकिन कांग्रेस ने इंकार कर दिया था.

लेकिन निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अमनमणि की जीत के बाद कांग्रेस को तनुश्री जिताऊ प्रत्याशी दिखने लगी. तनुश्री के नाम की घोषणा कांग्रेस प्रत्याशी के तौर होने के बाद सोशल मीडिया ने कांग्रेस की जमकर बखिया उधेड़ी. असर यह हुआ कि अगले ही दिन पार्टी ने गलती मानते हुए वहां से दूसरे प्रत्याशी की घोषणा की. देवरिया सीट पर पूर्व विधायक अखिलेश प्रताप सिंह की मेहनत को अनदेखा कर बसपा से आए नियाज अहमद को टिकट मिला. इटावा लोकसभा सीट जो पार्टी की सुरक्षित सीट है. यहां पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता अशोक सिंह पिछले एक दशक से इटावा क्षेत्र में मेहनत कर रहे हैं.

हाईकमान से लेकर जिम्मेदार नेताओं तक ने उन्हें टिकट का आश्वासन दिया था, लेकिन शुक्रवार को कांग्रेस ने वहां भाजपा छोड़ एक दिन पहले पार्टी में आए अशोक दोहरे को प्रत्याशी घोषित कर दिया. इन सीटों के अलावा सीतापुर, बहराइच, बस्ती, पीलीभीत और फूलपुर सहित दर्जन भर ऐसी सीटें हैं, जहां पार्टी नेताओं को किनारे कर पैरासूट प्रत्याशियों को उतारा है. इससे स्थानीय नेताओं में रोष है. विधानसभा चुनावों में मुंह की खा चुकी कांग्रेस के हाईकमान अब पेराशूट प्रत्याशियों पर ज्यादा भरोसा जता रहे हैं. इसके चलते पार्टी के पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच विरोध उभर रहा है.

पूर्व मंत्री और राहुल गांधी की कोर टीम के सदस्य जितिन प्रसाद को लेकर भी एक ऐसा ही हांस्यप्रद वाक्या घटित हुआ. पिछले लोकसभा चुनावों में जितिन को लखीमपुर की धौरहरा लोकसभा सीट से टिकट दिया गया था, लेकिन इस बार आलाकमान ने उन्हें लखनऊ से लड़ने को कहा. ऐसे में चर्चा उठी कि जितिन कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामने जा रहे हैं. इन चर्चाओं पर न तो कांग्रेस हाईकमान ने विराम लगाया और न ही जितिन ने. चर्चाएं तेज हुई तो जितिन खुद मीडिया के सामने आए और खुद का कांग्रेस का सिपाही बताते हुए लखनऊ के लिए रवाना हुए, लेकिन धौरहरा के कार्यकर्ताओं ने सड़क पर लेट उनका रास्ता रोक लिया.

कार्यकर्ताओं ने जितिन से दो टूक कहा कि उन्हें लखनऊ जाने की जरूरत नहीं है. नाटकीय प्रकरण के बाद और जितिन प्रसाद की लोकप्रियता को देखते हुए कांग्रेस हाईकमान ने अपने कदम पीछे खींचते हुए बीते दिनों स्पष्ट किया कि जितिन धौरहरा से ही चुनाव लड़ेंगे. ऐसे में लखनऊ लोकसभा सीट के लिए जिताऊ प्रत्याशी की तलाश फिर तेज हो गई है.

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