आपराधिक घटनाओं को रोकने में फिसड्डी लेकिन बयानों में आगे हैं योगी के मंत्री
यूपी में बढ़ती आपराधिक घटनाओं के बीच योगी सरकार के मंत्रियों के संवेदनहीनता भी सामने आ रही है. वो इन मामलों को लेकर मीडिया के सामने शर्मनाक बयान दे रहे हैं. जिसके चलते अपराधियों के हौंसले और बुलंद हो रहे हैं. उत्तर प्रदेश में कई स्थानों से मासूम बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाओं की खबर आ रही है. लेकिन सरकार के नुमांइदें इन घटनाओं को काबू में करने की बजाय विवादित बयान देने में व्यस्त हैं.
राज्य सरकार के मंत्री उपेन्द्र तिवारी ने हाल ही में मीडिया से बातचीत करते हुए कहा, ‘रेप का भी अलग-अलग नेचर होता है. अब जैसे अगर कोई नाबालिग लड़की के साथ रेप जैसी घटना घटित होती है तो उसको हम रेप मानेंगे. लेकिन कई बार हमें यह भी सुनने को आता है कि 30 से 35 साल की महिला के साथ रेप हुआ है. यह रेप नहीं होता है. यह प्रेम प्रसंग के कारण होता है जिसको बाद में विवाद के कारण रेप की शक्ल दी जाती है.’ मंत्रीजी यहीं नहीं रुके. उन्होंने कहा कि कई बार महिलाएं लालच के कारण भी व्यक्ति पर रेप जैसे गंभीर आरोप लगा देते है.
ऐसा ही एक बयान दो दिन पूर्व कैबिनेट मंत्री सूर्यप्रताप शाही की तरफ से आया था. उन्होंने अलीगढ़ में हुई जघन्य घटना को मामूली घटना करार दिया था. उन्होंने अलीगढ़ घटना का जिक्र करते हुए कहा था कि इतने बड़े प्रदेश में ऐसी छोटी-मोटी घटनाएं होती रहती हैं. कैबिनेट मंत्री के इस बयान की चौतरफा निंदा हुई थी. लोगों ने योगी आदित्यनाथ से उनके खिलाफ कारवाई करने की मांग भी की थी. हालांकि योगी सरकार की ओर से इस मामले में कोई कदम नहीं उठाया गया है.
पश्चिमी बंगाल में झड़पों पर सियासत गर्मायी, बीजेपी का बंगाल बंद
पश्चिम बंगाल में बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के बीच आपसी झड़प ने अब सियासी मोड़ ले लिया है. शनिवार और रविवार को कोलकाता में दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच हुई आपसी झड़प में कुल 4 लोगों को मौत हो गई जिसके बाद राजनैतिक माहौल गर्मा गया है. तीन कार्यकर्ताओं की हत्या के विरोध में बीजेपी ने आज बंगाल बंद के साथ और पूरे बंगाल में काला दिवस मनाने का ऐलान किया है. वहीं हिंसा पर बंगाल के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करेंगे.
बता दें, उत्तर 24 परगना में शनिवार को हुई झड़प में मारे गए बीजेपी कार्यकर्ताओं के अंतिम संस्कार को लेकर राज्य की पुलिस और बीजेपी नेताओं के बीच जमकर टकराव हुआ. रविवार को बशीरहाट में अंतिम दर्शन के लिए बीजेपी कार्यकर्ता अपने साथी कार्यकर्ताओं के शव का अंतिम संस्कार कोलकाता ले जाकर करना चाहते थे. लेकिन पुलिस ने उन्हें कोलकाता पहुंचने से पहले ही बीच रास्ते में ही रोक लिया. इसी बात पर बीजेपी कार्यकर्ता पुलिस से भिड़ गए.
पुलिस और कार्यकर्ताओं के बीच के झड़प की वजह से हाई-वे पर जाम लग गया. पुलिस पर मनमानी करने का आरोप लगाकर बीजेपी ने सोमवार को बशीरहाट में 12 घंटे का बंद और पूरे बंगाल में काला दिवस मनाने का ऐलान किया. लालबाजार में 12 जून को एक रैली करने का भी ऐलान किया है.
बता दें, शनिवार को उत्तर 24 परगना जिले के संदेशखली में पार्टी के झंडे निकालकर फेंकने को लेकर टीएमसी और बीजेपी के कार्यकर्ताओं के बीच विवाद हो गया था. बीजेपी ने दावा किया कि तृणमूल समर्थित लोगों द्वारा उनके पांच कार्यकर्ताओं की गोली मारकर हत्या कर दी. 18 अन्य लापता हो गए हैं.
दूसरी ओर, सत्तारूढ़ टीएमसी सरकार ने केन्द्र को पत्र लिख कर कहा है कि राज्य में लोकसभा चुनाव के बाद झड़प की छिटपुट घटनाएं हुई हैं, लेकिन स्थिति नियंत्रण में है. वहीं गृहमंत्री अमित शाह ने हिंसा को ममता सरकार की नाकामी बताते हुए रिपोर्ट मांगी और दोषी लोगों व पुलिस अफ़सरों पर कार्रवाई के लिए कहा है.
नीतीश का बड़ा फैसला, बिहार के बाहर एनडीए का हिस्सा नहीं रहेगी जेडीयू
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जनता दल (यूनाइटेड) यानी जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में बड़ा फैसला लिया है. नीतीश ने तय किया है कि बिहार के बाहर उनकी पार्टी बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए का हिस्सा नहीं रहेगी. जम्मू कश्मीर, झारखंड, हरियाणा और दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनावों में जेडीयू अकेले मैदान में उतरेगी. हालांकि पार्टी बिहार में वह एनडीए का हिस्सा रहेगी और बीजेपी के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ेगी.
आपको बता दें कि मोदी सरकार के कैबिनेट में जेडीयू के शामिल नहीं होने के बाद से ही सियासी गलियारों में यह हवा उड़ने लगी थी कि नीतीश कुमार एक बार फिर बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ सकते हैं. गौरतलब है कि मोदी के मंत्रिमंडल में जेडीयू को एक मंत्री पद का प्रस्ताव दिए जाने से नाराज नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार में भागीदारी से मना कर दिया था. उनका कहना था कि जो प्रस्ताव दिया गया था, वह स्वीकार्य नहीं था. नीतीश ने साफ किया कि जेडीयू भविष्य में भी मोदी सरकार की कैबिनेट का हिस्सा नहीं होगी.
इन तल्ख तेवरों के बीच नीतीश कुमार ने दो जून को अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया, जिसमें सभी आठ मंत्री जेडीयू कोटे से बनाए गए, जबकि बीजेपी से किसी नेता को शामिल नहीं किया गया. हालांकि कैबिनेट विस्तार के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि जेडीयू कोटे से मंत्री पद खाली थे इसलिए उनको ही मंत्रिमंडल विस्तार में जगह दी गई. बीजेपी के साथ टकराव जैसा कोई मुद्दा नहीं है, सब कुछ ठीक है. वहीं, डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने कहा कि मंत्रिमंडल विस्तार पर कोई संशय नहीं है. नीतीश कुमार के साथ चर्चा हुई थी और मुख्यमंत्री ने खाली मंत्री पद भरने के लिए बीजेपी को ऑफर दिया था, लेकिन हम इस पर बाद में फैसला लेंगे.
क्या सुशासन के ‘ली कुआन यू मॉडल’ पर अमल करेंगे पीएम नरेंद्र मोदी?
2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिंगापुर के महान नेता ‘ली कुआन यू’ के बारे में कहा था, ‘वे एक दूरदर्शी नेता थे और नेताओं में सिंह थे. उनका जीवन हर किसी को अमूल्य पाठ की सीख देता है.’ ली कुआन यू 1959 से 1990 तक सिंगापुर के प्रधानमंत्री रहे. उन्होंने कईं अच्छाइयों के साथ-साथ सिंगापुर के लोगों की प्रति व्यक्ति आय को 500 डाॅलर से बढ़ाकर 55 हजार डॉलर कर दिया. इसके लिए उन्हें एकदलीय व्यवस्था लागू करनी पड़ी थी.
एकदलीय व्यवस्था के कारण ही वे देश में अनुशासन ला सके और प्रशासन को ईमानदार बना सके. लेकिन यदि देश भ्रष्टाचार, जातिवाद, वंश तंत्र, माफिया तंत्र, अराजकता, टुकड़े-टुकड़े गिरोह, जेहादी तत्वों और अन्य भारत विरोधी विदेशी तत्वों की धमा-चौकड़ी से आजिज हो जाए तो देश की जनता किसी न किसी दिन तानाशाही स्वीकार करने को भी मजबूर हो सकती है. पर अभी तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में ही हल खोजने की कोशिश हो रही है. होना भी यही चाहिए. मजबूरी और आपद् धर्म की बात और है.
2014 में भी कुछ लोग लिखकर और बोलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह सलाह दे रहे थे कि आप ‘ली कुआन’ बनिए. 2019 की जीत के बाद भी कुछ लोग ऐसी ही सलाह दे रहे हैं. साफ बात है कि हल्की तानाशाही लाए बिना क्या कोई वैसी उपलब्धि हासिल कर सकता है जैसी सिंगापुर में संभव हुआ है.
यहां तो देश की सुरक्षा के लिए पुलवामा का बदला भी लो तो कई लोग बदनाम करने के लिए कहने लगते हैं कि मोदी अंध राष्ट्रवाद फैला कर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहता हैं. यदि किसी भ्रष्ट और घोटालेबाज नेता पर कानूनी कार्रवाई हो तो कई बेशर्म व स्वार्थी लोग कहने लगते हैं कि बदले की भावना में आकर ऐसा हो रहा है. यदि किसी माफिया और राक्षसनुमा अपराधी पर कार्रवाई हो तो कई लोग कहने लगते हैं कि चूंकि वह फलां जाति या समुदाय का है इसीलिए कार्रवाई हो रही है.
यदि ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ का नारा लगाने वाले और उस उद्देश्य से आतंकवादी गतिविधियां चलाने वालों पर कार्रवाई हो तो कुछ लोग कहते हैं कि वाणी की स्वतंत्रता पर हमला हो रहा है और लोकतंत्र खतरे में है. इसी तरह की और भी बहुत सारी बाते हैं. हालांकि इसके लिए कोई एक दल या जमात दोषी नहीं है. लगभग सभी दल दोहरे मापदंड वाले हैं. ऐसे में भारत में कोई ली कुआन कैसे बन सकता है?
यहां तो वैसा ही शासन चल सकता है जिसके तहत 84 प्रतिशत लोग नकली दूध पीने को अभिशप्त हों. जिस शासन के तहत पॉलीथिन के खिलाफ कार्रवाई हो तो पूरा बाजार कार्रवाई करने वाले पर टूट पड़े और शासन पीछे हट जाए. जबकि सच यह है कि पॉलीथिन इस सृष्टि को एक दिन नष्ट कर देगा. ‘महा-मिलावट’ भले ही राजनीति में पराजित हो जाए, पर खाद्य और भोज्य पदार्थों में बेशुमार मिलावट पर कारगर कार्रवाई करने की औकात आज भी इस देश की किसी सरकार में नहीं है. मिलावटी चीजें खा-खा कर लोग धीरे-धीरे असमय मृत्यु की ओर बढ़ रहे हैं.
यहां पुलिस थानों की रिश्वतखोरी कोई ईमानदार प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री भी नहीं रोक पाता. लोकल पुलिस के हाथों आम लोग लगातार पीड़ि़त और अपमानित हो रहे हैं. दिल्ली में केंद्रीय होम मिनिस्टर की नाक के नीचे थानों में घूस के बिना शायद ही कोई काम होता हो. बिहार की तो बात कौन करे?
यहां जो जितना बड़ा धनपशु, अपराधी और जातिवादी हो, उसके राजनीति में उतना ही उपर उठने के चांस हैं. जनता राजनीति के वंश तंत्र को ध्वस्त जरूर कर रही है पर राजनीतिक दल उसे किसी न किसी रूप में कायम रखने पर अमादा हैं. यहां तो भ्रष्टाचार के कारण न तो योेग्य डाॅक्टर पैदा हो रहे हैं और न ही योग्य इंजीनियर. यहां तक कि योग्य शिक्षक भी नहीं. अपवादों की बात और है. आप तभी तक जिंदा हैं, जब तक आपको मारने में किसी की रूचि नहीं है.
ऐसे में कोई ‘ली कुआन यू’ कैसे काम कर पाएगा? कैसे भारतीयों की आय 500 डॉलर से 55000 डाॅलर हो पाएगी? कैसे उन 25 करोड़ लोगों के दिन फिरेंगे जिन्हें आज भी एक ही टाइम का खाना नसीब होता है? शायद यह सब दिवास्वप्न ही है.
हालांकि सचमुच कोई तानाशाह भी यदि सिंगापुर जैसा कायापलट कर दे तो भारत की आम जनता उसे पसंद करेगी. मजबूरी में ही सही, यहां एक बार तानाशाह पैदा भी हुआ तो भी वह भी अपनी गद्दी बचाने, अपने पुत्र का राज्यारोहण करने और उसके लिए कार का कारखाना खुलवाने के लिए ही होगा. ऐसे में हल्की तानाशाही के नाम पर भी लोगों को अभी तो नफरत है पर यह नफरत कब तक रहेगी?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
क्या नीतीश कुमार बीजेपी से पीछा छुड़ाने का बहाना खोज रहे हैं?
कहा जाता है कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता. हालात तय करते हैं कि दोस्ती किस के साथ होगी और दुश्मनी किसके साथ. सालों से साथ रहने वाले क्षणभर में सियासी दुश्मन बन जाते हैं और विरोधी पलभर में दोस्त. बिहार ने बीते कुछ सालों में इस राजनीतिक कहावत को साकार होते देखा है.
लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को एनडीए का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने से जेडीयू नाराज थी. जेडीयू ने खुलकर मोदी की उम्मीदवारी का विरोध किया लेकिन इसका बीजेपी पर कोई असर नहीं पड़ा. प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बदले जाने से जेडीयू, एनडीए से अलग हो गया.
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और जेडीयू लंबे समय के बाद अलग-अलग चुनावी मैदान में उतरे थे. बीजेपी मोदी लहर पर सवार थी और प्रदेश में बड़ी जीत हासिल की. लेकिन जेडीयू के हालात गठबंधन तोड़ने के बाद ज्यादा खराब हो गए. पार्टी को प्रदेश की 40 में से सिर्फ 2 सीटों पर ही जीत हासिल हुई.
लोकसभा चुनाव में मात खाने के बाद नीतीश की अगली परीक्षा विधानसभा चुनावों में होने वाली थी. क्योंकि सरकार में से बीजेपी के अलग होने के बाद नीतीश सरकार अल्पमत में आ गई थी. पार्टी के विधायक अब खुलेआम नीतीश के एनडीए से अलग होने के फैसले का विरोध करने लगे. नीतीश ने इस विरोध को शांत करने के लिए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. नीतीश की जगह जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया गया.
मांझी नीतीश के काफी नजदीकी माने जाते थे इसलिए नीतीश ने उनका चुनाव किया. जेडीयू सरकार अल्पमत में थी लेकिन निर्दलीय विधायकों के कारण उनकी गाड़ी चल गयी. 243 सीटों वाली विधानसभा में जेडीयू के 115 विधायक थे. उन्हें समर्थन के लिए सिर्फ 7 विधायकों की जरुरत थी जो उन्हें आसानी से मिल गए.
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विधानसभा चुनावों को देखते हुए नीतीश कुमार ने फरवरी, 2015 में जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए कहा लेकिन मांझी के मन में तो कुछ और ही चलने लगा था. इसके चलते उन्होंने इस्तीफा देने से इंकार कर दिया. यह नीतीश कुमार और जेडीयू दोनों के लिए झटके जैसा था. जेडीयू विधायकों ने राज्यपाल से मिलकर मांझी को हटाने की मांग की. इसके बाद राज्यपाल ने मांझी को 20 दिन के भीतर विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए कहा.
बहुमत परीक्षण जेडीयू के लिए इतना भी आसान नहीं था क्योंकि अब जीतन को 91 विधायकों वाली बीजेपी का साथ मिल गया था. मांझी के साथ वैसे ही पार्टी के करीब 10 विधायक जुड़े थे. यह नीतीश के लिए चिंता बढ़ाने वाली बात थी. हालांकि दल-बदल कानून के तहत विधायक अंत में जीतनराम से दूर हो गए और बहुमत साबित नहीं हो पाया.
चूंकि नीतीश के पास भी बहुमत नहीं था इसलिए बीजेपी से मुकाबले और अपनी खत्म होती सियासी जमीन को बचाने के लिए दो धुर-विरोधी साथ आ गए. इस गठबंधन ने पूरे देश को चौंका दिया. जिस लालू प्रसाद यादव के जंगलराज को कोसकर नीतीश कुमार सत्ता में आए थे, अब उन्हीं के भरोसे मुख्यमंत्री बनने वाले थे. राजद ने नीतीश का मुख्यमंत्री पद के लिए समर्थन किया. नीतीश एक बार फिर सत्ता पर काबिज हुए. हालांकि यह कार्यकाल कुछ समय के लिए चला क्योंकि विधानसभा का कार्यकाल संपन्न हो चुका था.
विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी हुई. इसके साथ ही प्रदेश की राजनीति में बड़ा फेरबदल देखने को मिला. धुर विरोधियों का संगम हो चुका था. जेडीयू-कांग्रेस-राजद ने गठबंधन में चुनाव लड़ने का ऐलान किया. नतीजे आए तो बीजेपी बुरी तरह से चुनाव में धराशायी हो चुकी थी. गठबंधन का पूरे बिहार में परचम लहरा चुका था. लालू यादव ने पहले ही यह ऐलान कर दिया था कि सीटें किसी की भी ज्यादा हो, बहुमत आने पर मुख्यमंत्री सीट नीतीश कुमार को ही मिलेगी.
नीतीश ने एक बार फिर प्रदेश की कमान संभाली लेकिन इस बार सुशील मोदी की जगह लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री बनाया गया. हालांकि राजद और नीतीश का साथ ज्यादा समय तक नहीं चल पाया. नीतीश ने राजद के समर्थन वाली सरकार के मुखिया के पद से इस्तीफा दे दिया. कारण बताया गया कि राजद के सरकार में शामिल होने के कारण प्रदेश एक बार फिर जंगलराज की तरफ जा रहा है.
नीतीश एक बार फिर बीजेपी के साथ निकल लिए. पुनः 2010 वाली सरकार की पुनरावृति की गई. नीतीश फिर से मुख्यमंत्री बने और बीजेपी कोटे से सुशील मोदी को उपमुख्यमंत्री बनाया गया. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी जेडीयू-बीजेपी ने गठबंधन में चुनाव लड़ा और बिहार के चुनावी नतीजों में एनडीए की आंधी देखने को मिली. विपक्ष का पूरी तरह से सूपड़ा साफ हो गया.
चुनाव में मिली इस प्रचंड जीत के बाद भी जेेडीयू और बीजेपी के भीतर हालात सामान्य नहीं हैं. पहले तो गठबंधन की गरिमा को झटका दिल्ली में लगा. होना तो यह चाहिए था कि जेडीयू, मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होती लेकिन कम हिस्सेदारी के चलते जेडीयू ने मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने से इंकार कर दिया. जेडीयू अपने कोटे से 2 या 3 सांसदों को मंत्री बनना चाहती थी लेकिन बीजेपी की तरफ से उसे सिर्फ एक पद दिया जा रहा था. इसके बाद नीतीश ने एनडीए में शामिल होने से इंकार कर दिया.
अब लगा कि मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने से बिहार की राजनीति में कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन इसका असर तो तुरंत ही नजर आ गया. बीते रविवार को सीएम नीतीश कुमार ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया है जिसमें 8 नए मंत्री बनाए गए हैं. हैरानी की बात यह रही कि सरकार में साझेदार बीजेपी को यहां शामिल नहीं किया गया.
यहां नीतीश ने बीजेपी को सिर्फ एक पद के लिए नेता का नाम बताने के लिए कहा जिसके बाद बीजेपी ने मंत्रिमंडल विस्तार में अपनी भागीदारी के लिए मना कर दिया. इस मंत्रिमंडल विस्तार को दिल्ली के बदले के रूप में देखा जा रहा है.
हालांकि एनडीए के नेता अपने तमाम बयानों में हालातों को सामान्य बता रहे हैं लेकिन राजनीतिक रूप से देखने पर हालात सामान्य नहीं नजर आ रहे हैं. अपने घोर विरोधी जीतनराम मांझी के इफ्तार में जाना भी नीतीश कुमार के बदले स्वभाव का परिचय देता है. वे अब एक बार फिर से मुस्लिम, यादव, पिछड़ों और महादलितों को अपना वोट बैंक बनाना चाहते हैं. इसके लिए वो फिर से बीजेपी का साथ छोड़ सकते हैं.
घर वापसी के सवाल पर बोले शिवपाल, कहा- बढ़े हुए कदम वापस नहीं लौटते
समाजवादी पार्टी में वापसी की चर्चाओं की बीच प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के मुखिया शिवपाल यादव का बड़ा बयान आया है. उन्होंने कहा कि बढ़े हुए कदम वापस नहीं लौटते हैं. हमारी पार्टी बहुत आगे निकल चुकी है, हमारा संकल्प समाज की सेवा करना है उसी दिशा में काम कर रहे है. उन्होंने कार्यकर्ताओं को विधानसभा चुनाव की तैयारी करने के लिए कहा है. यादव ने कहा, ‘हमारी पार्टी का अगला टारगेट 2022 विधानसभा चुनाव है. प्रगतिशील समाजवादी पार्टी विधानसभा चुनाव में एक बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी.’
शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि हमारी सभी प्रकोष्ठों की एक महत्वपूर्ण बैठक होने वाली है. जिसमें आगे की रणनीति तैयार की जाएगी और उसी रणनीति के तहत सभी प्रकोष्ठ के कार्यकर्ता को कार्य करना होगा. उन्होंने कहा कि सभी कार्यकर्ताओं को संदेश दिया गया है कि वो आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट जाएं. सभी राजनीतिक दलों को 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रसपा की ताकत का अहसास हो जाएगा. प्रदेश बिना प्रसपा के किसी की भी सरकार नहीं बनेगी, 2019 लोकसभा चुनाव से हमारी पार्टी ने बड़ी सीख ली है.
अरविंद केजरीवाल कर रहे थे फ्री यात्रा का बखान, महिलाओं ने विरोध में पकड़ा शर्ट
लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक बार फिर अपनी पुरानी चुनावी रणनीति में आ गए है. साथ ही वो अभी से विधानसभा चुनावों की तैयारी में जुट गए हैं. वो इसके लिए लोगों के घर-घर जाकर उनसे परेशानियां पूछ रहे है. अगर साथ के साथ निदान हो रहा है तो निदान कर रहे है. लकिन आज के दौरे के दौरान उन्हें अजीबो-गरीब स्थिति का सामना करना पड़ा.
हुआ यह कि जब केजरीवाल साउथ दिल्ली के लोगों से मिलने पहुंचे उन्होंने वहां महिलाओं के लिए फ्री मेट्रो सेवा का बखान करने लगे. लेकिन इस दौरान वहां मौजूद महिलाओं ने उनका विरोध कर दिया. एक महिला ने केजरीवाल की शर्ट तक पकड़ ली.जिसके बाद केजरीवाल हक्के-बक्के रह गए. हालांकि बाद में केजरीवाल ने उस महिला की समस्या का जल्द से जल्द निदान देने का आश्वासन दिया है.
शर्ट पकड़ने वाली महिला केजरीवाल से बिजली और पानी की समस्या से छुटकारा चाहती थी. लेकिन केजरीवाल फ्री मेट्रो की सेवा का बखान करने में व्यस्त थे. जिसके बाद महिला ने उनका शर्ट पकड़ा. बिजली की समस्या को दूर करने के लिए केजरीवाल ने इलाके में पिछले 1 महीने से 2 घंटे के लिए लग रहे बिजली के कट पर कार्रवाई करते हुए जल्दी ट्रांसफार्मर लगाने के आदेश दिए.
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