BSP विधायकों के कांग्रेस में विलय पर मायावती (Mayawati) को जवाब देते हुए राजस्थान (Rajasthan) के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने कहा कि हमने कभी हॉर्स ट्रेडिंग नहीं की. उक्त सभी विधायकों ने राज्य में एक स्थिर सरकार की चाहत रखते हुए राजस्थान कांग्रेस (Rajasthan Congress) में शामिल होने का फैसला किया है. उन्हें कोई प्रलोभन नहीं दिया गया है.

सीएम गहलोत ने कहा कि मैं मायावती जी का रिएक्शन समझ सकता हूं जो स्वाभाविक भी है. लेकिन उनको भी यह समझना पड़ेगा कि यह सरकार में बैठे हुए लोगों ने मैनेज नहीं किया है, कोई प्रलोभन नहीं दिया है. यह हमारे प्रदेश की खूबी है कि हमने कभी हॉर्स ट्रेडिंग नहीं की.

गहलोत ने कहा कि पिछली सरकार में 6 बीएसपी विधायकों ने कांग्रेस ज्वॉइन की थी. आज तक इतिहास में हमने कभी किसी को प्रलोभन नहीं दिया है यह कोई कम बात है क्या? उन्होंने कहा कि अगर ऐसी स्थिति किसी अन्य राज्यों में होती तो बड़े रूप में हॉर्स ट्रेडिंग होती.

उन्होंने कहा कि विधायकों ने राजस्थान की स्थिति और भावनाएं देखते हुए सोच समझकर ये फैसला लिया है. हमने उन पर कोई दबाव नहीं बनाया.

वहीं बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने मंगलवार को सोशल मीडिया पर ट्वीट करते हुए कांग्रेस को गैर भरोसेमंद और धोखेबाज पार्टी बताया. मायावती ने कहा कि कांग्रेस ने दूसरी बार उनके साथ विश्वासघात किया है वो भी उस समय जब बीएसपी कांग्रेस सरकार को बाहर से बिना शर्त समर्थन दे रही थी.

उन्होंने इस मुद्दे को जातिगत मोड़ते हुए कहा कि कांग्रेस दलित विरोधी पार्टी है तथा इन वर्गों के आरक्षण के हक के प्रति कभी गंभीर व ईमानदार नहीं रही है. मायावती ने कांग्रेस पर संविधान निर्माता डॉ.भीमराव अंबेडकर की विचारधारा विरोधी होने का आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस ने उन्हें न तो कभी लोकसभा में चुनकर जाने दिया और न ही भारतरत्न से सम्मानित किया. ये अति-दुःखद व शर्मनाक है.

गौरतलब है कि राजस्थान में बसपा के 6 विधायकों ने सोमवार देर रात मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मिलकर कांग्रेस में शामिल होने की इच्छा व्यक्त करते हुए विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को विलय पत्र पेश किया. इसके बाद राजेन्द्र गुढा (विधायक, उदयपुरवाटी), जोगेंद्र सिंह अवाना (विधायक, नदबई), वाजिब अली (विधायक, नगर), लाखन सिंह मीणा (विधायक, करोली), संदीप यादव (विधायक, तिजारा) और बसपा विधायक दीपचंद खेरिया ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की. इसके बाद कांग्रेस के पास विधानसभा में स्वयं का पूर्ण बहुमत हो गया है. इससे पहले उनके पास 100 सीटें थीं जो बढ़कर 106 हो गई हैं.

कांग्रेस की पिछली सत्ता में भी कमोबेश यही स्थिति थी जब 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 96 सीटें ही मिलीं थी. बाहरी विधायकों के समर्थन से अशोक गहलोत ने सरकार तो बना ली लेकिन अल्प बहुमत के चलते सरकार पर हमेशा सत्ता परिवर्तन की तलवार लटकी रहती थी. उस समय भी तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अप्रैल, 2009 में बसपा के सभी छह विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया और कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 102 हो गई.

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