राहुल के भाषण से सीएए-एनआरसी रहे गायब तो ऐसे में दिल्ली चुनाव की गहमागहमी के बीच राजस्थान में रैली का क्या था औचित्य?

दिल्ली 2015 के चुनाव में 70 में से 0 सीट मिली थी कांग्रेस को, इस बार न तो मुख्यमंत्री का कोई चेहरा और न ही कोई ठोस चुनावी मुददे, अधिकांश सीटों पर बीजेपी और आप में मुकाबला, ऐसे में इतना ताम-झाम दिल्ली में होता तो कुछ एक सीट का जरूर होता फायदा

पाॅलिटाॅक्स ब्यूरो. चुनाव दिल्ली में, राहुल गांधी जयपुर में, खूब मजमा जमा. जयपुर में युवा आक्रोश रैली हुई, युवा रैली थी, सो नाच गाने भी हुए. राज्य सरकार पिछले 15 दिनों से रैली की तैयारियों में जुटी थी. कंपास के नोर्थ साउथ की तरह की भूमिका में रहने वाले सीएम गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट रैली को सफल बनाने के लिए कंपास नियम के विपरीत एक साथ नजर आए.

राहुल आए तो लगा कि सीएए और एनआरसी पर जमकर हमला बोलेंगे, क्योंकि राजस्थान में तो ताजा राजनीतिक मुद्दा गहलोत सरकार द्वारा विधानसभा में सीएए सहित एनआरसी और एपीआर के विरुद्ध प्रस्ताव पारित करवाना ही था. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. राहुल गांधी लगभग 25 मिनट बोले. 25 मिनट का पूरा भाषण युवा और बेरोजगारी पर केंद्रीत रहा. यह सीएए पर कांग्रेस की बदली रणनीति का संकेत हो सकता है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कानून के जानकार कपिल सिब्बल सहित कुछ अन्य कांग्रेसी दिग्गजों ने कुछ दिन पहले ही कह दिया था कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गए सीएए कानून को देश की सभी राज्य सरकारों को लागू तो करना ही पडेगा. ऐसे में कपिल सिब्बल की बात का असर राहुल गांधी के भाषण में भी नजर आया.

राहुल के 25 मिनट के भाषण में 46 बार हिंदुस्तान, 16 बार चीन और चार बार अमेरिका का नाम लिया। वहीं 16 बार नरेंद्र मोदी, 22 बार इंडिया और 27 बार युवा का नाम लिया गया. लेकिन सीएए और एनपीआर का नाम केवल एक बार आया, वो भी बहुत बडे मुददे के रूप में नहीं.

कांग्रेस के लिए भले ही इस समय दिल्ली विधानसभा के चुनाव महत्वपूर्ण बने हुए हैं, लेकिन राहुल जयपुर में बोलते नजर आए. देश के युवाओं को महान बताया, बेरोजगारी और महंगाई का आंकडा भी बताया. वहीं केंद्र सरकार की नीतियां, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा पर भी निशाना साधा. लेकिन अभी राजस्थान में इन सबके अर्थ और मायने क्या हैं, अभी दिल्ली कांग्रेस को राहुल गांधी की जरूरत है.

राजस्थान में कांग्रेस की अच्छी खासी सरकार चल रही है. राहुल गांधी आए तो पूरी राजस्थान सरकार उनकी अगुवाई में लगी रही. आम जनता और स्कूली बच्चों को हुई असुविधा और तकलीफ की बात छोड दें तो कांग्रेसजनों के लिए मौसम सुहाना बना रहा. लोगों के लिए सडकें कई घंटे बंद रहीं, आमजन का आवगमन ठप हो गया लेकिन बारिश की बौछारों ने कांग्रेसजनों के चेहरे खिला दिए.

रैली में राहुल गांधी ने सधे हुए अंदाज में लेकिन संभलकर मोदी सरकार पर हमला बोला. वो बात अलग है कि उनके हमले में इस समय का देश के सबसे बर्निंग इश्यू सीएए और एनआरसी कहीं नजर नहीं आए. राहुल की रैली की भव्यता साफ नजर आई. विशाल मंच, कार्यकर्ताओं के लिए कुर्सियां, 50 फीट का राहुल का बड़ा कटआउट. साथ ही युवाओं का समा बांधने के लिए नाचने, गाने वाले भी बुलाए गए. रैली में नाच गाने हुए तो विपक्षी चुटकी लेने में नहीं चुके, बोले- यह युवा आक्रोश नहीं बल्कि मनोरंजन रैली थी.

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रैली में काॅलेज के विद्यार्थी नाचते गाते नजर आए. जयपुर के काॅलेज विद्यार्थी खुद रैली में पहुंचे या उन्हें पहुंचाया गया, यह एक सवाल हो सकता है, लेकिन विधानसभा में प्रतिपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौड ने आरोप लगाया कि राहुल की रैली में भीड दिखाने के लिए शिक्षण संस्थाओं से विद्यार्थियों को ढोकर ले जाया गया.

अब ये तो कोई राजेंद्र राठौड से ही पूछे कि ढोकर ले जाने से उनका क्या अर्थ है. ढोकर किसे और कैसे ले जाया जाता है. इन सवालों के जवाब तो वो ही दे सकते हैं. लेकिन बात चल रही है राहुल गांधी की. उनकी रैली का नाम था युवा आक्रोश रैली, जिसमें राहुल गांधी के भाषण से ही आक्रोश ही नदारद रहा. रैली के लिए कांग्रेस ने करोडोें रूपए स्वाह कर दिए. प्रशासनिक अमला जुटा रहा सो अलग. राज्य भर से कांग्रेस कार्यकर्ता रैली में पहुंचे.

राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो इस सारी कवायद का राजस्थान में अभी कोई महत्व नहीं था. बेहतर होता राहुल गांधी दिल्ली विधानसभा चुनाव की गहमा गहमी के बीच वहां की गलियां नापते और मतदाताओं से मिलते और यह रैली वहां दिल्ली में करते. कांग्रेस को नहीं भूलना चाहिए कि 2015 के दिल्ली के चुनाव में 70 में से 0 सीट लेकर अब तक का इतिहास बना चुकी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस के पास अब 2020 के चुनाव में भी न तो मुख्यमंत्री का कोई चेहरा है और न ही चुनाव लडने के कोई मुददे हैं. हालात इतने खराब रहे कि कांग्रेस से टिकट लेने से भी उनके ही कई बडे नेता कतराते रहे.

15 साल लगातार दिल्ली में सरकार बनाने वाली कांग्रेस पार्टी की पूरी प्रतिष्ठा दिल्ली चुनाव में दांव पर लगी हुई है. दिल्ली के चुनाव में केवल दस दिन का समय बचा है. वहीं दिल्ली चुनाव से जुडे जानकारों का मानना है कि दिल्ली की 70 में से अधिकांश सीटों पर त्रिकोणिय नहीं बल्कि द्विपक्षीय मुकबला होने जा रहा है. यानि अधिकांश सीटों पर आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच ही मुकाबला होगा. इन सीटों ओर कांग्रेस मुकाबले से पहले ही बाहर हो चुकी है. यह कांग्रेस के सबसे बुरे दौर में से एक दौर है. ऐसे में दिल्ली चुनाव में चल रही कांग्रेस की ऐसी विपरित परिस्थितियों के समय में कांग्रेस के नेता जयपुर में रैली कर अपना धन और समय खर्च करते नजर आए, यह बात किसी भी बुद्धिजीवी के गले नहीं उतर रही.

जानकारों का मानना है कि यही सारी शक्ति राहुल गांधी समेत सभी कांग्रेस के दिग्ग्जों ने दिल्ली की कुछ विधानससभा सीटों को जीतने में लगाई होती तो कांग्रेस को कुछ न कुछ फायदा होता जरूर नजर आता. वहीं जयपुर की इस रैली में ना तो राष्ट्रीय मुददों की गूंज सुनाई दी और ना ही राजस्थान सरकार की ओर से युवाओं के लिए बुलाई गई इस रैली में युवाओं के लिए ही कोई घोषणा हुई.

राहुल युवा और बेरोजगारी पर बोले तो विपक्ष में बैठ भाजपा के नेताओं बैठे बैठाए बोलने के लिए मुद्दा ही मिल गया और उन्होंने उल्टा राहुल को आडे हाथों ले लिया. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, राजस्थान भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया सहित अन्य नेताओं ने कहा कि सरकार में आने से पहले विधानसभा चुनाव के दौरान रोजगार को लेकर जो कांग्रेस ने युवाओं से वादा किया था, उसका क्या हुआ? भाजपा नेताओं का कहना रहा कि जब राहुल गांधी युवा और बेरोजागरी पर निबंध बोले रहे थे तो जरा गहलोत सरकार की ओर से राजस्थान के बेरोजगारों के बेरोजगारी भत्ते की घोषणा पर भी कुछ बोल देते.

बहरहाल, राहुल गांधी की रैली का शोर गुल थम गया है. जिनको अपने नंबर बढवाने थे, बढवा चुके. लेकिन सवाल तो दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस की कितनी सीटों के नंबर का अभी भी बना हुआ है.