बंगाल: मतुआ समुदाय पर तृणमूल और बीजेपी दोनों की पैनी नजरें, क्या है वजह?

मतुआ संप्रदाय की संरक्षक हैं ममता बनर्जी, मतुआ समुदाय की 'बोरो मां' बीनापाणि देवी के निधन के बाद समुदाय में हुआ राजनैतिक बंटवारा, जिसका फायदा बीजेपी ने आम चुनाव में उठाया, अब ममता लगा रही जोर, जिसके पक्ष में मतुआ समुदाय, उसकी जीत पक्की

Mamata Banerjee And Bjp See On Matua community
Mamata Banerjee And Bjp See On Matua community

Politalks.News/Bengal/MamataBanerjee. कुछ महीनों में पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं. मुख्य मुकाबला बीजेपी और टीएमसी के बीच है लेकिन कांग्रेस और ओवैसी की AIMIM के साथ स्थानीय पार्टियां भी मैदान में हैं. गौर करने वाली बात ये है कि बीजेपी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने अपना मुख्य फोकस बंगाल की मतुआ समुदाय पर लगाया हुआ है. अब सवाल ये उठता है कि मतुआ समुदाय में ऐसा क्या है कि दोनों पार्टियों की रणनीति यहीं आकर ठहरी है. तो वजह है कि मतुआ समुदाय का किसी भी राजनीतिक दल की जीत हार में प्रमुख भूमिका रहती है. पिछले दो विधानसभा चुनाव हो या फिर ​आम चुनाव में बीजेपी को मिली सफलता, तीनों चुनावों में मतुआ समुदाय का अहम योगदान रहा है.

यही वजह है कि सीएम ममता का सबसे ज्यादा जोर राज्य के मतुआ समुदाय (Matua community) पर है, जिसे बीजेपी सीएए के जरिए अपने पाले में करने का दांव पहले ही चल चुकी है. इस तरह बीजेपी और टीएमसी के बीच मतुआ समुदाय को लेकर शह-मात का खेल जारी है. इसी पर काम करते हुए ममता बनर्जी 4 दिसम्बर को गढ़ नदिया और परगना जिले के प्रमुख नेताओं के साथ वर्चुअल बैठक करने वाली है. इसके साथ ही नौ दिसंबर को मतुआ समुदाय के गढ़ नदिया जिले के ठाकुरनगर में सभा को संबोधित करेंगी.

दरअसल, पश्चिम बंगाल की राजनीति में मतुआ समुदाय काफी अहमियत रखता है. बंगाल में अनुसूचित जनजाति की आबादी का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा है. नदिया और उत्तर व दक्षिण 24 परगना जिले की 70 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर मतुआ समुदाय की जबरदस्त पकड़ है. लेफ्ट को सत्ता से बाहर करने और ममता बनर्जी की सरकार बनवाने में मतुआ समुदाय की अहम भूमिका रही है.

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मतुआ समुदाय के लोग बांग्लादेशसे आकर बंगाल में बसे हैं. वे नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए के तहत नागरिकता की मांग करते रहे हैं. अब बीजेपी इस समुदाय को साधने में जुटी है. 2019 में इस समुदाय के वोटों के दम पर ही बीजेपी ने 24 परगना इलाके में अच्छी खासी सीटें जीती थीं. ममता बनर्जी ने भी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पिछले दिनों 25,000 शरणार्थी परिवारों को भूमि के अधिकार प्रदान किए. ममता ने मतुआ विकास बोर्ड और नामशूद्र विकास बोर्ड के लिए क्रमश: 10 करोड़ और पांच करोड़ रुपये भी आवंटित किए थे. यही वजह है कि लोकसभा के बाद ममता लगातार इस समुदाय पर नजरें गढ़ाए हुए हैं.

ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को मतुआ संप्रदाय का संरक्षक भी घोषित किया हुआ है. मतुआ संप्रदाय की ‘मतुआ माता’ या ‘बोरो मां’ और भाग्य देवी बीनापाणि देवी ने अपने परिवार के साथ मिलकर नामशूद्र शरणार्थियों की सुविधा के लिए वर्तमान बांग्लादेश के बॉर्डर पर ठाकुरगंज नाम की एक शरणार्थी बस्ती बसाई थी. इस बस्ती में सीमापार से आने वालों खासतौर पर नामशूद्र शरणार्थियों को रखने का इंतजाम किया गया. संप्रदाय से जुड़े लोग बीनापाणि देवी को देवी की तरह मानते हैं. उसके बाद इस समुदाय का प्रभाव इलाके में बढ़ता गया.

2010 में बीनापाणि देवी (Binapani Devi) से ममता बनर्जी की सियासी नजदीकियां बढ़ी और उन्होंने 15 मार्च, 2010 को ममता बनर्जी को मतुआ संप्रदाय का संरक्षक घोषित किया. इसे औपचारिक तौर पर ममता बनर्जी का राजनीतिक समर्थन माना गया. ममता की तृणमूल कांग्रेस को लेफ्ट के खिलाफ माहौल बनाने में मतुआ संप्रदाय का समर्थन मिला और 2011 में ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनीं.

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समाज का संरक्षक बनने के बाद ममता का खास स्नेह इस जाति पर रहा. ममता के समर्थन के चलते इस समाज के लोगों को राजनीति में आगे बढ़ने के लिए ममता ने मदद भी की. 2014 में बीनापाणि देवी के बड़े बेटे कपिल कृष्ण ठाकुर ने तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर बनगांव लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और संसद पहुंचे. फिर कपिल कृष्ण ठाकुर का 2015 में निधन हो गया. उसके बाद उनकी पत्नी ममता बाला ठाकुर ने यह सीट 2015 उपचुनावों में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर जीती.

5 मार्च, 2019 को मतुआ माता बीनापाणि देवी का निधन हो गया. ममता सरकार ने उनका अंतिम संस्कार पूरे आधिकारिक सम्मान के साथ करवाया. मतुआ माता के निधन के बाद परिवार में राजनैतिक बंटवारा खुलकर दिखने लगा. बाद में उनके छोटे बेटे मंजुल कृष्ण ठाकुर ने बीजेपी का दामन थाम लिया. 2019 में मंजुल कृष्ण ठाकुर के बेटे शांतनु ठाकुर बीजेपी के टिकट पर बनगांव से सांसद बन गए. इसी आम चुनाव में मतुआ संप्रदाय बंटता हुआ दिखाई दिया.

इस समाज की जीत हार में कितनी अहमियत है, इसका पता इस बात से ही चलता है कि पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने मतुआ समुदाय के 100 साल पुराने मठ बोरो मां बीणापाणि देवी से आशीर्वाद प्राप्त करके अपने बंगाल चुनाव अभियान की शुरुआत की थी. ममता बनर्जी के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए यह बहुत सधी हुई चाल थी. इसके तहत भारतीय जनता पार्टी ने बोरो मां के पोते शांतनु ठाकुर को बोंगन लोकसभा सीट से उतारा. मतुआ वोट पाने की यह रणनीति काम कर गई. इस सीट पर बीजेपी ने पहली बार जीत दर्ज की.

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यही वजह है कि अमित शाह अपने दो दिवसीय पश्चिम बंगाल यात्रा के दौरान अपने बिजी शेड्यूल से समय निकालकर भी मतुआ समुदाय के लोगों से मिलने पहुंचे और आदिवासी समुदाय के यहां खाना भी खाया. यह सब मतुआ समुदाय को खुश करने और चुनावी रणनीति का हिस्सा ही तो है. अब चूंकि विधानसभा चुनाव करीब हैं, ऐसे में ममता बनर्जी इस समुदाय पर पहले से अधिक फोकस कर रही है. उनकी नजर मंजुल कृष्ण ठाकुर पर भी है जो सीएए कानून को लेकर बीजेपी से थोड़ा नाराज चल रहे हैं. अगर ठाकुर को किसी भी तरह ममता अपने खेमे में लाने में सफल हो जाती है तो इन 70 सीटों पर ममता की पकड़ मजबूत हो जाएगी. अगर ऐसा होता है तो ये कदम ममता बनर्जी के लिए संजीवनी की तरह साबित होगा, इस बात में कोई दोराय नहीं होगी.

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