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पिछले दिनों कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के बयान पर बड़ा बवाल हुआ. बयान ये था कि हमने यूपी में जो उम्मीदवार खड़े किए हैं, वो इस रणनीति पर किए है – या तो वे जीतने में सक्षम होंगे या बीजेपी का नुकसान करेंगे. प्रियंका ने यह भी कहा कि सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के उम्मीदवारों को कांग्रेस से नुकसान नहीं होगा. प्रियंका के इस बयान के बाद बवाल तो मचना ही था.

आनन-फानन में बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने इस मामले में प्रेस कांफ्रेस करते हुए कांग्रेस को वोट-कटवा पार्टी करार दे दिया. उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस पार्टी यूपी में जीतने के लिए नहीं बल्कि बीजेपी के वोट काटने के लिए चुनाव लड़ रही है.

चुनाव से पूर्व यह संभावना थी कि यूपी में कांग्रेस भी महागठबंधन में शामिल होकर चुनाव लड़ेगी. कांग्रेस की सपा और बसपा के बीच इस संदर्भ में बातचीत भी हुई लेकिन गठबंधन नहीं हो सका. गठबंधन का न होना बीजेपी के लिए फायदे का सौदा माना गया क्योंकि अनुमान ये था कि कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने से सपा-बसपा के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगेगी जिसका फायदा बीजेपी को होगा. लेकिन अब प्रियंका गांधी वाड्रा तक ने कह दिया है कि कांग्रेस के प्रत्याशी सीधा बीजेपी को नुकसान पहुंचाते नजर आएंगे.

कांग्रेस का महागठबंधन के साथ एक मिनी गठबंधन तो पहले से ही देखने को मिल रहा है. कांग्रेस ने मैनपुरी, आजमगढ़, कन्नौज, फिरोजाबाद, मुजफ्फरनगर, बागपत और अंबेडकरनगर में अपने उम्मीदवार खड़े नहीं किए हैं. मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव, आजमगढ़ से सपा प्रमुख अखिलेश यादव, कन्नौज से डिंपल यादव, फिरोजाबाद से रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव, मुजफ्फरनगर से रालोद सुप्रीमो अजित सिंह, बागपत से अजित सिंह के पुत्र जयंत सिंह और अंबेडकरनगर से सतीश मिश्रा के जवाईं रितेश पांडे चुनाव लड़ रहे हैं.

महागठबंधन ने रायबरेली और अमेठी सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं. रायबरेली से सोनिया गांधी और अमेठी से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी चुनाव मैदान में हैं.

आइए जानते हैं उन पांच सीटों के बारे में जहां कांग्रेस के उम्मीदवार बीजेपी को नुकसान पहुंचा रहे हैं…

1. मेरठ लोकसभा सीट:
इस संसदीय सीट पर चुनाव प्रथम चरण में ही संपन्न हो गए हैं. यहां बीजेपी की तरफ से वर्तमान सांसद राजेंद्र अग्रवाल हैट्रिक जमाने के लिए चुनावी समर में उतरे हैं. राजेंद्र 2009 में भी इस सीट को अपने नाम कर चुके हैं. हाजी याकूब कुरैशी महागठबंधन में बसपा के हिस्से में आई इस सीट पर उम्मीदवार हैं जिन्हें दलित-मुस्लिम समीकरण को साधने के लिए उतारा गया है. कांग्रेस ने यहां हरेंद्र अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया है जो बीजेपी के लिए परेशानी का सबब है.

हरेंद्र और राजेंद्र दोनों ही वैश्य समुदाय से आते है तो जाहिर है कि कांग्रेस को मिलने वाले वोट बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल का ही करेंगे. कांग्रेस प्रत्याशी मुस्लिम और दलित वोटबैंक में सेंध लगाते नजर नहीं आते हैं.

2. कैराना लोकसभा सीट:
यहां भी मतदान पहले चरण में हो चुके हैं. यह वही संसदीय सीट है जहां सपा-बसपा–रालोद गठबंधन की नींव रखी गई थी. कैराना के पूर्व सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद हुए उपचुनाव में यहां रालोद के टिकिट पर सपा नेत्री तब्बुसम हसन को चुनाव लड़वाया गया था. उनके सामने थी हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह. चुनाव में सपा और बसपा सुप्रीमो यह देखना चाहते थे कि जाटों में अजित सिंह की पकड़ कितनी मजबूत है और क्या अजित सिंह मुस्लिम उम्मीदवार को जाटों के वोट दिला पाएंगे?

गठबंधन का फॉर्मुला काम कर गया और तब्बसुम हसन चुनाव जीतकर संसद पहुंची. गठबंधन में अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल का दावा और मजबूत हुआ. 2019 के चुनाव में ये सीट सपा के हिस्से आई तो पार्टी ने फिर से तब्बसुम हसन पर दांव खेल दिया. बता दें कि तब्बसुम दिवंगत नेता मुन्नवर हसन की पत्नी है और उनके नाम देश के सभी सदनों अर्थात विधानसभा, विधानपरिषद, राज्यसभा और लोकसभा में सबसे कम उम्र में प्रतिनिधित्व करने का रिकार्ड गिनीज़ बुक में दर्ज है.

बीजेपी ने यहां से मृगांका का टिकट काट गंगोह विधायक प्रदीप गुर्जर पर दांव खेला है. यहां भी कांग्रेस बीजेपी के लिए परेशानी बनकर उभरी. सपा जहां पूरी तरह मुस्लिम और जाट वोट बैंक के उपर निर्भर रही. ऐसे में बीजेपी को अन्य वोट बैंक के पक्ष में लामबंद होने की आस थी लेकिन कांग्रेस ने हरेंद्र मलिक को प्रत्याशी बना बीजेपी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. हरेंद्र मलिक चार बार विधायक और एक बार राज्यसभा सांसद रह चुके हैं. चुनाव में ये देखने को मिला कांग्रेस ने बीजेपी के वोटबैंक में ही सेंधमारी की.

मलिक परिवार का इस क्षेत्र में असर विगत चुनावी नतीजों से साफ देखा जा सकता है. उनके पुत्र पंकज मलिक कैराना लोकसभा के अंतर्गत आने वाली शामली विधानसभा से दो बार विधायक चुने गए हैं. 2017 के चुनाव में उनको हार का सामना करना पड़ा था.

3. गाजियाबाद लोकसभा सीट:
यहां भी चुनाव संपन्न हो चुका है. यह सीट पूरी तरह ब्राह्मण बाहुल्य है. पहले ये सीट आसानी से बीजेपी के हिस्से में जाती हुई दिखाई दे रही थी. लेकिन कांग्रेस ने यहां बीजेपी के लिए बड़ी समस्या खड़ी कर दी. यहां से बीजेपी ने वर्तमान सांसद पूर्व सेनाध्यक्ष वीके सिंह को चुनावी समर में उतारा. वहीं कांग्रेस ने डॉली शर्मा को प्रत्याशी बनाकर बीजेपी के लिए परेशानी खड़ी कर दी.

यूपी में राम मंदिर आंदोलन के बाद ब्राह्मण समाज को बीजेपी का परम्परागत वोट बैंक माना जाता है लेकिन डॉली शर्मा के मैदान में आने के बाद ब्राह्मण वोटों का कुछ हिस्सा तो कांग्रेस के खाते में जाएगा, यह सच है जिसका सीधा नुकसान बीजेपी को होगा.

सपा यहां दलित-मुस्लिम-वैश्य समीकरण पर चुनाव लड़ रही है. सपा ने यहां पहले सुरेन्द्र मुन्नी को उम्मीदवार बनाया. बाद में उनका टिकट बदल कर वैश्य चेहरे बीएसपी के पूर्व विधायक सुरेश बंसल को थमा दिया. बंसल गाजियाबाद विधानसभा क्षेत्र से 2012 में बसपा के टिकट पर विधायक चुने गए थे. अगर ये समीकरण काम करता है तो इसका बड़ा कारण कांग्रेस प्रत्याशी डॉली शर्मा होगी.

4. अमरोहा लोकसभा सीट:
इस संसदीय सीट के हालात भी बीजेपी की परेशानी बढ़ाने वाले हैं. यहां बीजेपी ने दांव वर्तमान सांसद कंवर सिंह तंवर पर खेला. सामने थे जेडीएस छोड़कर नए-नए बसपा में आए दानिश अली. बीजेपी को चुनाव से पहले ये इल्हाम था कि मुस्लिम प्रत्याशी होने के कारण दलित समाज के अलावा सभी हिंदू वोट उसके पाले में आएंगे, लेकिन कांग्रेस ने जिस चेहरे पर दांव खेला वो बीजेपी के मनसूबों पर पानी फेर गया. कांग्रेस ने सचिन चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाया जो बीजेपी के वोट में सेंधमारी करते नजर आए. अब इसका फायदा गठबंधन उम्मीदवार दानिश अली उठा सकते हैं.

5. गोरखपुर लोकसभा सीट:
यह क्षेत्र योगी आदित्यनाथ के किले के रुप में मशहुर था लेकिन उनके मुख्यमंत्री बनते ही उपचुनाव में यह किला ढह गया. ये खबर योगी के लिए किसी झटके से कम नहीं ​थी. इस किले को वापिस हासिल करने के लिए योगी ने गोरखपुर के वर्तमान सांसद प्रवीण निषाद को बीजेपी में शामिल कराकर उन्हें संतकबीरनगर से पार्टी का प्रत्याशी बनाया है. प्रवीण ‘निषाद पार्टी’ के अध्यक्ष संजय निषाद के सुपुत्र हैं. उनकी निषाद समाज में अच्छी पकड़ मानी जाती है.

सपा ने यहां से रामभुआल निषाद को प्रत्याशी बनाया है. गठबंधन उपचुनाव की तर्ज पर ही मुस्लिम-निषाद समीकरण पर काम कर रहा है. कांग्रेस ने गोरखपुर से मधुसूदन तिवारी को उम्मीदवार बनाया है. अब बीजेपी के लिए संकट यह है कि पार्टी और कांग्रेस, दोनों के उम्मीदवार ब्राह्मण समाज से हैं. अब इस स्थिति में वोटों का बंटना तो निश्चित है जो जिसका नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ेगा, यह पक्का है.

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