यूपी के साथ ही गुजरात में भी चुनाव करवाने के संकेत, ‘एक तीर से दो निशाने’ मारने की फिराक में BJP !

बंद मुट्ठी लाख की....! यूपी की 'हवा' में गुजरात भी निपटाना चाहती है बीजेपी, हवा बिगड़ी तो हो सकता है बड़ा नुकसान, यूपी और गुजरात में एक साथ देखने को मिल सकता है चुनावी घमासान, नेतृत्व झगड़े से जूझ रही दोनों ही प्रमुख पार्टियां, वहीं 'झाड़ू' भी जलवे दिखाने को तैयार

यूपी के साथ ही गुजरात में भी चुनाव करवाने के संकेत
यूपी के साथ ही गुजरात में भी चुनाव करवाने के संकेत

Politalks.News/Gujrat. कोरोना काल के चलते गिरती अर्थव्यवस्था और किसान आंदोलन सहित विभिन्न मुद्दों के बीच भारत में चुनावों के लिहाज से 2022 बेहद महत्वपूर्ण साल होने वाला है. इस साल उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. जो कि भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए ही महत्वपूर्ण हैं. इन विधानसभा चुनावों को साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है. सूत्रों की माने तो गुजरात में विधानसभा चुनाव उत्तर प्रदेश के साथ ही फरवरी या मार्च में चुनाव हो सकते हैं. वहीं बीजेपी इस बार गुजरात में बिना सीएम चेहरे के भी चुनाव में उतर सकती है.

उत्तरप्रदेश के साथ निपटाए जा सकते हैं गुजरात के चुनाव !
उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के साथ गुजरात के भी चुनाव करवाने के पीछे का कारण बताया जा रहा है कि अगर उत्तरप्रदेश में चुनाव पहले हुए और उसके नतीजे किसी भी कारण वश अच्छे नहीं आए तो इसका असर सीधा गुजरात के चुनाव पर पड़ सकता है. इसीलिए दोनों राज्यों में एक साथ चुनाव करवाने पर विचार हो सकता है. इसके साथ ही कहा जा रहा है कि गुजरात में मंत्रिमंडल विस्तार या नेतृत्व परिवर्तन की बजाय विधानसभा को भंग करने के आसार नजर आ रहे हैं.

आंतरिक झगड़ों से जूझ रही है बीजेपी!
गुजरात में सीएम विजय रूपाणी और डिप्टी सीएम नितिन पटेल के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा. प्रदेश बीजेपी की कमान सीआर पाटिल के हाथ में है. पाटिल का पन्ना प्रमुख मॉडल राज्य में सफल नहीं हुआ. पहले से नाराज चल रहे कार्यकर्ताओं को इसका जिम्मेदारी सौंपी गई. इसका नतीजा यह हुआ कि इनके काम काज में ढील देखने को मिली. अब पार्टी को लग रहा है कि इसी आपसी मनमुटाव और काम में ढील चुनाव में प्रदर्शन पर असर डाल सकती है.

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पहले भी हो चुका है ये प्रयोग !
वैसे बता दें कि इससे पहले गुजरात में साल 2002 में गोधरा दंगों के बाद विधानसभा भंग की गई थी. साल 2002 में तय समय से आठ महीने पहले चुनाव करवाए गए थे. 2002 में राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर सावल उठे थे लेकिन नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और हिंदुत्व दोनों का बीजेपी को फायदा हुआ था.

सभी पार्टियों की नजर गुजरात पर
इस बार के गुजरात चुनाव पर सभी पार्टियों की नजरें हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने गुजरात में जोरदार प्रदर्शन किया था, लेकिन जीत से कुछ कदम ही दूर रह गई थी. वहीं बीजेपी में गुटबाजी साफ झलक रही है, मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और डिप्टी सीएम नीतिन पटेल के बीच में मनमुटाव की खबरें हैं. वहीं बुजुर्ग नेता वजुभाई ने भी ताल ठोक दी है. इधर चुनाव से पहले ही गुजरात में कांग्रेस का कारवां बिखरा हुआ बताया जा रहा है. सूत्रों की माने तो हार्दिक पटेल ताकत की बजाय बोझ बनते नजर आ रहे हैं. इधर आम आदमी पार्टी राज्य में उपस्थित दर्ज करवाने को बेताब है.

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नेतृत्व को लेकर बीजेपी में घमासान!
बीजेपी शासित कर्नाटक में लगी आग की चिंगारी गुजरात तक जा पहुंची है. हालांकि कर्नाटक में येदियुरप्पा ने इस्तीफे का एलान कर दिया है. गुजरात बीजेपी में सब ठीक नहीं चल रहा है. सीएम विजय रूपाणी और उनके डिप्टी सीएम नितिन पटेल के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा. ऐसे में बुजुर्ग दिग्गज वजुभाई वाला ने खुद के लिए दावा पेश कर दिया है. वजुभाई कर्नाटक के राज्यपाल रहे हैं. वजुभाई ने कहा कि, ‘रूपाणी चाहें तो अगले 15 साल तक सीएम बने रह सकते हैं. लेकिन सीएम कौन बनेगा ये फैसला तो पार्टी को ही करना है. गुजरात के प्रधान सीआर पाटिल को पता है कि वो कोई भी जिम्मेदारी निभाने के तैयार हैं’.

युवा तुर्कों के भरोसे कांग्रेस, सातव की मौत बड़ा झटका !
गुजरात में कांग्रेस लंबे समय से नेतृत्व की कमी से जूझ रही है. 2017 के गुजरात चुनाव से पहले कांग्रेस ने जिन युवा नेताओं पर खासा भरोसा जताया था वे इतने समय में खुद को कुछ खास साबित नहीं कर पाए. इनमें अल्पेश ठाकोर, जिगनेश मेवाणी और हार्दिक पटेल शामिल थे. एक ओर जहां उत्तर गुजरात के अल्पेश ठाकोर ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का हाथ थाम लिया वहीं जिग्नेश मेवाणी पार्टी की राजनीति में शून्य योगदान के साथ स्वतंत्र कांग्रेस समर्थित विधायक बने रहे. इसके अलावा पिछले साल पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किए गए सबसे हाई प्रोफाइल हार्दिक पटेल भी अब तक पार्टी के लिए कुछ खास नहीं कर सके हैं. यहां राज्य अध्यक्ष अमित चावड़ा और विपक्ष के नेता परेश धनानी दोनों ने इस साल की शुरुआत में स्थानीय निकाय चुनावों में हार के बाद तीसरी बार इस्तीफा दिया था. कोविड -19 की दूसरी लहर के दौरान कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी राजीव सातव के असामयिक निधन से संकट और बढ़ गया था. अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस महंगाई और पेगासस जैसे मुद्दों के खिलाफ कई आंदोलनकारी कार्यक्रमों के माध्यम से कार्यकर्ताओं को जुटाने की कोशिश कर रही है और कई वरिष्ठ नेता इन मुद्दों पर सड़कों पर उतर आए हैं. यहां
चावड़ा और धनानी दोनों आगे से लीड कर रहे हैं, जबकि हार्दिक पूरी तरह गायब हैं.

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केजरीवाल की ‘झाडू’ भी दिखाना चाहती है सफाई!
महानगरपालिका चुनाव के जरिए गुजरात में अपनी पैठ बना चुकी आम आदमी पार्टी की नजर अब अगले विधानसभा चुनाव पर है. गुजरात में विशेष तौर पर आप पार्टी की नजरें सौराष्ट्र और सूरत के मतदाताओं पर टिकी हैं. यह इसलिए कहा जा सकता है कि दिल्ली में आप पार्टी की सरकार है, जिसका विज्ञापन शुक्रवार को गुजराती अखबार में प्रकाशित हुआ है. इसके जरिए आम आदमी पार्टी ने यह बताने की कोशिश की है कि कोरोना से जिन लोगों की मौत हुई है उनके परिजनों की दिल्ली सरकार आर्थिक मदद कर रही है. दिल्ली में आप पार्टी उन परिवारों को हर माह ढाई हजार रुपए की मदद करेगी, जिनके परिवार में कमाई करने वाले व्यक्ति की कोरोना मौत हुई है. यह साफ तौर पर बता रहा है कि आम आदमी पार्टी अपनी दिल्ली की नीतियों के जरिए मतदाताओं को लुभाने में जुटी है और जल्द होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए तैयारियों में जुट गई है.

 

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