दौसा जिला, जहां दशकों तक मीणाओं के प्रमुख नेता किरोड़ी लाल का एक तरफा राज चला है. आम चुनाव हो या फिर विधानसभा चुनाव, सभी में किरोड़ी लाल मीणा ने, चाहे पर्दे के पीछे हो या खुला मंच, अपनी भूमिका दर्ज करायी है. वसुंधरा राजे के पिछले कार्यकाल में जब किरोड़ी लाल मीणा ने बीजेपी में एंट्री ली थी, तब बीजेपी का यही मानना था कि किरोड़ी के सहारे दौसा पर ‘कमल’ खिलाया जा सकता है. अब वक्त बदल रहा है और लगने लगा है कि दौसा में जमीनी सियासत पर किरोड़ी लाल मीणा की पकड़ ढीली पड़ती जा रही है. इसका ताजा उदाहरण राजस्थान में हुए उप चुनाव हैं जहां दौसा से किरोड़ी लाल मीणा के छोटे भाई जगमोहन मीणा की बीजेपी के टिकट पर हार हुई है.
दौसा की यह सामान्य सीट केवल किरोड़ी के दबाव में उनके भाई जगमोहन को दी गयी थी. आम चुनाव में हार के बाद यहां किरोड़ी की साख दांव पर लगी थी. अपने भाई को जिताने के लिए किरोड़ी ने प्रचार प्रसार के दौरान तमाम तरीके के हथकंडे अपना लिए. गले में ‘भिक्षाम देहि’ का बोर्ड लटकाकर आमजन से वोटों की भीख तक मांग ली लेकिन जनता ने जो फैसला सुनाया, वो बीजेपी के साथ साथ खुद किरोड़ी तक के गले नहीं उतर पा रहा है.
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हालांकि ऐसा नहीं है कि किरोड़ी की मेहनत में कोई कमी रह गयी, क्योंकि कांग्रेस के दीनदयाल बैरवा और बीजेपी के जगमोहन के बीच जीत हार का अंतर महज 23 सौ वोट रहा. फिर भी जीत आखिर जीत होती है, भले ही वो एक वोट से क्यों न हो. मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही रहा, इस सीट पर अन्य सभी 10 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई है. कांग्रेस के दीनदयाल को 75,536 वोट और बीजेपी के जगमोहन को 73,236 मत मिले. बीजेपी का वोट प्रतिशत 47.65 फीसदी और कांग्रेस का 49.15 प्रतिशत रहा. यहां नोटा के मतों को संख्या के हिसाब से चौथे नंबर पर रखा जा सकता है. इस सीट पर कांग्रेस ने लगातार जीत की हैट्रिक जमाई है.
परिवारवाद को जनता ने नकारा
लंबे समय से यहां किरोड़ी लाल मीणा या उनकी पत्नी गोलमा देवी जनता के बीच चुनावी उम्मीदवार बनकर खड़े रहे हैं. सामान्य सीट होने की वजह से यहां एक सामान्य उम्मीदवार की मांग की जा रही थी लेकिन सरकार में मंत्री किरोड़ी ने अपनी जिम्मेदारी पर अपने छोटे भाई जगमोहन को यहां से टिकट दिलाया. प्रदेश के डिप्टी सीएम प्रेम चंद बैरवा ने भी प्रचार प्रसार में जमकर पसीना बहाया था. बीजेपी ने भी किरोड़ी के भरोसे पर दौसा फतेह करने की हूंकार भरी थी लेकिन यहां की जनता ने परिवारवाद को सिरे से नकार दिया. बीजेपी द्वारा सामान्य वर्ग को टिकट न दिए जाने के चलते पार्टी से भी नाराजगी थी. इसी के चलते बीजेपी के ओबीसी और सामान्य वर्ग के वोट बैंक में सेंध लगी. उपचुनाव में यही एक इकलौती सीट ने कांग्रेस का खाता खोला है.
सत्ता के केंद्रीयकरण से नुकसान
दौसा में बीजेपी की हार का कारण यही माना जा रहा है कि पार्टी ने एक ही परिवार में सत्ता का केंद्रीयकरण कर दिया. किरोड़ी लाल मीणा खुद सरकार में मंत्री हैं. उनके भतीजे राजेंद्र मीणा महुआ से बीजेपी विधायक हैं. अब छोटे भाई को टिकट देकर एक ही परिवार में सत्ता का केंद्रीकरण कर दिया गया है. जनरल सीट पर भी मीणा को टिकट देने से बीजेपी के परंपरागत वोटर्स छिटक गए. चूंकि यह सीट से सचिन पायलट की प्रतिष्ठा भी जुड़ी हुई थी, गुर्जर, दलित और मुस्लिम वोट कांग्रेस को मिल गए. मीणा वोटों में विभाजन होने से किरोड़ी की आक्रमकता पर असर पड़ा. हालांकि किरोड़ी ने हार की वजह अंदरुनी भीतरघात को बताया है लेकिन सच तो ये है कि परिवारवाद तथा जमीनी स्तर पर कमजोरी ने डॉ.किरोड़ी लाल मीणा की प्रतिष्ठा को गहरा आघात पहुंचाया है.