अ-“टूट” भाजपा का “टूटता” तिलिस्म! खत्म हो रहा मोदी मैजिक या भीतरघात ने किया झारखंड दूर

पिछले 12 महीनों में भाजपा को बड़ी चुनौतियों का सामना करते हुए 7 राज्यों के विधानसभा चुनाव में 5 राज्यों से हाथ धोना पड़ा है, इसका असर प्रदेशों की राजनीति पर तो पड़ेगा ही संसद में भी भाजपा का प्रभुत्व नहीं रह पाएगा

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. धीरे-धीरे अब खत्म होने लगा है मोदी का भी जादू, भाजपा में सर्वशक्तिमान यानी “वोट कैचर” या फिर कहें जिनके दम पर भाजपा में वोटों की थी आवक, उसकी “जादुई शक्ति” अब कम होती जा रही है. भाजपा के लिए यह बात चिंता का विषय बनती जा रही है कि आखिर क्यों खत्म हो रहा है भाजपा से वोटरों का मोह? पहले हरियाणा में उम्मीद से बिल्कुल विपरीत परिणाम आये, लेकिन चलो जैसे-तैसे जोड़-तोड़ कर इज्जत तो बच गई, लेकिन महाराष्ट्र में भाजपा सबसे बड़ा दल होने के बाद भी नहीं बना पाई सरकार.

गठबंधन में फैल रहे “चाणक्य” के हाथ एक बार फिर खाली! झारखंड में सोरेन की पार्टी झामुमो को लोगों के स्पष्ट बहुमत से साफ है आखिर कुछ तो बात है, जो लोगों को बीजेपी से दूर कर रही है. मुख्यमंत्री रहते रघुवर दास अपनी परम्परागत सीट तक नहीं बचा पाए. यहां तक कि जिस सीट से लगातार पांच बार चुनाव जीते और पिछले चुनाव में इसी सीट से 70000 मतों से विजयश्री प्राप्त करने वाले दुबारा मुख्यमंत्री के उम्मीदवार रघुबरदास 15 हजार से ज्यादा मतों से हार गए तो ऐसा भी क्या हुआ जो हार का सामना करना पड़ा. खैर, रघुबरदास ने हार स्वीकार की और भाजपा के चाणक्य की चुप्पी से तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि शायद भाजपा को फिर से एक करिश्में की जरूरत है वो भी ऐसा करिश्मा जो फिर से देशभर में लोगों के मन में भाजपा के प्रति विश्वास भर सके.

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तो क्या भाजपा के प्रति लोगों का रुझान वाकई कम होने लगा है? या फिर यह केवल सीएबी या एनआरसी के बारे में बने माहौल का खेल है? राजनीतिज्ञों की माने तो भाजपा का क्रेज अभी इतना भी कम नहीं हुआ है. झारखंड में तो अंदरूनी राजनीति का शिकार हुई है भाजपा, क्योंकि भाजपा यहां अर्जुन मुंडा और रघुबरदास दो ग्रुपों में बट गई और बिल्लियों की लड़ाई में बंदर तो फायदा उठाता ही है. फिर यहां मुंडा और रघुबरदास की लड़ाई किसी से छिपी नहीं है, टिकट के बंटवारे को लेकर दोनों के बीच उपजा विवाद भाजपा की हार का बड़ा कारण रहा. दूसरा बड़ा कारण बीजेपी और आजसू के गठबंधन का टूटना रहा, जिसके कारण बीजेपी को सीधे-सीधे 12 सीटों पर भारी नुकसान उठाना पड़ा. जैसा कि पॉलिटॉक्स ने पहले भी अपनी खबरों में बताया था कि झारखंड में बीजेपी को ले डूबेगी आंतरिक गुटबाजी, वहीं हमने आजसू से गठबंधन टूटना भी बताया था बीजेपी को पड़ेगा भारी. यह भी सही है कि रही सही कसर शायद सीएबी या एनआरसी ने पूरी कर दी.

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बहरहाल झारखंड में विधानसभा चुनावों के परिणामों में जादुई आंकड़ा कोई भी पार्टी हासिल नहीं कर पाई. 81 सीटों वाले इस प्रदेश में झामुमो को 30, भाजपा को 25 और कांग्रेस को 16 सीटों पर ही संतुष्टि करनी पड़ी. ऐसे में जोड़ तोड़ के आंकड़े में मास्टर भाजपा यहां किसी तरह की सफलता हासिल नहीं कर पाएगी और झामुमो कांग्रेस के साथ के साथ मिलकर हेमन्त सोरेन के नेतृत्व में यहां अपनी सरकार बनाने जा रही है.

बीजेपी के लिए चिंता करने वाली बात यह है कि पिछले 12 महीनों में भाजपा को बड़ी चुनौतियों का सामना करते हुए 7 राज्यों के विधानसभा चुनाव में 5 राज्यों से हाथ धोना पड़ा है जिनमें राजस्थान, एमपी, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और अब झारखंड भी भाजपा के हाथ से निकल चुका है. यह सभी राज्य राजनीतिक दृष्टि से भाजपा के लिए काफी अहम है क्योंकि इसका असर प्रदेशों की राजनीति पर तो पड़ेगा ही संसद में भी भाजपा का प्रभुत्व नहीं रह पाएगा. यहां हम बात राज्यसभा की कर रहे हैं, इन सभी राज्यों से राज्यसभा में जाने वाले गैर-बीजेपी सांसद भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बनेंगे.

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