एक पुरानी कहावत है ‘रस्सी जल गई पर बल नहीं गया’. देश की ‘द ग्रैंड ओल्ड पार्टी’ कांग्रेस पर यह कहावत एकदम फिट बैठती है. लगातार दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के विपक्ष का दर्जा लायक सांसद तक नहीं चुने गए. उसके बावजूद कुनबे में कलह थमने का नाम नहीं ले रही. आलाकमान मौन है और हार पर कोई मंथन नहीं करना चाहता. गुटों में बंटी होने के चलते ही कांग्रेस के इस बार सारे अरमान ठंडे हो गए और पार्टी 52 सीटों पर सिमट गई. राहुल गांधी अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश करके विदेश चले गए. पीछे से कई राज्यों में कांग्रेस की अंदरुनी लड़ाई अब सड़कों पर दिखने लगी है.

पंजाब
पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू का अरसे से चला आ रहा झगड़ा अब कांग्रेस आलाकमान तक पहुंच चुका है. पंजाब में कैप्टन और सिद्धू के बीच खींचतान को सुलझाने की जिम्मेदारी अब पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल को सौंपी गई है. सिद्धू ने राहुल और प्रियंका से मिलकर अपनी समस्या बता दी है. उन्होंने अभी तक नए विभाग का चार्ज भी नहीं लिया है.

राजस्थान
राजस्थान में बीते साल दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव के बाद जब कांग्रेस की सरकार बनी तो पार्टी ने लोकसभा चुनाव को लेकर बहुत उम्मीदें पाल लीं. लेकिन पांच महीने बाद लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो राज्य की 25 की 25 सीटें बीजेपी के हाथ लगी और कांग्रेस को मायूस होना पड़ा. हालत कितनी खराब रही, ये इसी से पता चलता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत तक को हार का मुंह देखना पड़ा.परिणाम के बाद से ही गहलोत और सचिन पायलट के खेमे आमने—सामने हो गए हैं. पायलट समर्थक विधायक उन्हें सीएम बनाने की मांग तेज करने लगे हैं. दोनों के लड़ाई के चलते राजस्थान में कांग्रेस सरकार की जमकर किरकिरी हो रही है.

हरियाणा
हरियाणा में हुड्डा और अन्य गुटों के बीच लड़ाई तेज होती जा रही है. हु़्ड्डा समर्थकों ने विधानसभा चुनाव से पहले पीसीसी चीफ अशोक तंवर को हटाने की मुहिम तेज कर दी है. अल्टीमेटम के तौर पर हुड्डा ने दिल्ली में अपने समर्थकों की बैठक बुलाकर अपने तेवर भी दिखा दिए हैं. हु्डडा ने बाकायदा आलाकमान को मियाद देकर जल्द से जल्द इस बार में कोई फैसला लेने की खुली चुनौती भी दे दी है.

दिल्ली
दिल्ली कांग्रेस भी शीला दीक्षित और अजय माकन के दो खेमों में बंटी हुई है. दिल्ली में एक बार फिर कांग्रेस का लोकसभा चुनाव में खाता नहीं खुला है. दोनों गुटों के बीच तालमेल बिठाना कांग्रेस के लिए बेहद चुनौती भरा हो गया है. विधानसभा चुनाव से पहले लड़ाई से नहीं निपटा गया तो एक बार फिर कांग्रेस वहां निपट सकती है.

कर्नाटक
कर्नाटक में जनता दल सेक्यूलर (JDS) से लड़ते-लड़ते बीजेपी को रोकने के लिए कांग्रेस ने बड़ी पार्टी रहते हुए भी मुख्यमंत्री की कुर्सी जेडीएस को देकर गठजोड़ किया. कर्नाटक में लोकसभा चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि ये गठजोड़ मोदी लहर के सामने बेअसर रहा. ये कम था कि पार्टी के विधायक और वरिष्ठ नेता रोशन बेग खुलेआम पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल के खिलाफ जुबानी तीर चला रहे हैं. पूर्व सीएम सिद्धारमैया आलाकमान के निर्देशों से अलग अपनी मनमर्जी चला रहे हैं. ऐसा ही रहा तो कई कांग्रेस विधायक अगर पाला बदल गए तो सरकार बीजेपी की बनते देर नहीं लगेगी.

मध्य प्रदेश
मध्यप्रदेश का हाल भी कमोबेश राजस्थान जैसा ही है. बस फर्क इतना है कि राजस्थान में गहलोत के बेटे चुनाव नहीं जीत पाए और एमपी सीएम कमलनाथ के बेटे चुनाव जीत गए. एमपी में गुटबाजी इतनी चरम पर थी कि दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया हार गए. पार्टी को महज एक सीट से संतोष करना पड़ा. यहां भी कमलनाथ-दिग्विजय बनाम सिंधिया का झगड़ा किसी से छिपा नहीं है. टिकट बंटवारे को लेकर हुई बैठक में सोनिया-राहुल के सामने दिग्गी राजा और सिंधिया की तू तू-मैं मैं की खबरें भी सामने आई थी.

बिहार
यहां कांग्रेस को आरजेडी और सहयोगियों के साथ नैय्या पार करने का भरोसा था लेकिन राज्य में करीब—करीब सबका सूपड़ा साफ हो गया. पार्टी के राज्यसभा सांसद अखिलेश सिंह के बेटे का सहयोगी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ना और हारना चर्चा का विषय है. वहीं प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा की निष्क्रियता को लेकर भी राज्य के तमाम नेता शिकायत के मूड में हैं. यानी जब भी आलाकमान हार की समीक्षा करेगा, आपसी भिड़ंत तय है. वैसे भी झा के पहले अशोक चौधरी को नीतीश के साथ अरसे तक मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष साथ—साथ बनाये रखने का फैसला विवादों में रहा. एक तबका अब ये मांग भी करने लगा है कि बिहार में गठजोड़ की बैसाखी छोड़ अकेले दम पर लड़ने और जमीन बनाने का ये सही वक्त है.

हिमाचल प्रदेश
अरसे बाद राज्य के दिग्गज कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह या उनके परिवार के किसी सदस्य ने चुनाव नहीं लड़ा. वीरभद्र समर्थक कम सक्रिय रहे. उलटे पार्टी ने सुखराम के पोते को भी चुनाव लड़ाया जो हार गए. ऐसे में पार्टी में गुटबाजी एक बार फिर सामने आ गई. ऐसे में साफ है कि आलाकमान से लेकर राज्यों तक देश की सबसे पुरानी पार्टी संकट से जूझ रही है. लेकिन इससे निपटने के लिए वो क्या कर रही है, ये अभी तक साफ नहीं है.

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