Wednesday, January 15, 2025
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बीजेपी लाख विपक्षी एकता पर भारी पड़े लेकिन पसीने तो एडीए के भी छूट रहे हैं!

पोर्ट ब्लेयर के नए टर्मिनल के उदघाटन समारोह में पीएम मोदी के भाषण का विपक्षी एकता बैठक पर केंद्रित होना स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि नए गठबंधन से बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में खलबली मची हुई है...

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NDA vs INDIA: भारतीय जनता पार्टी की ओर से कथित तौर पर टुकड़े टुकड़े गैंग की प्रतीक विपक्षी एकता की बैंगलुरु में दो दिवसीय वार्ता समाप्त हो चुकी है. विपक्षी एकता ने 26 दलों की एक बैठक बुलाई और आगामी लोकसभा चुनाव में एक मत एक राय स्वरूप एकता की नींव रखते हुए अपने आपको एक नया नाम दिया ‘इंडिया’. यानी – इंडियन नेशनल डवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस (INDIA). विपक्ष ने इस नाम को भी बड़े सोच विचार कर रखा है ताकि सत्ताधारी पक्ष या खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस नाम पर अपना मुंह न खोल सकें. विपक्ष ताक में है​ कि जिस तरह केवल मोदी सरनेम पर टिप्पणी मात्र से राहुल गांधी की अगले लोकसभा चुनाव में राह कठिन हो गई है, संसद सदस्यता समाप्त हो चुकी है, उसी तरह गलती से सत्ताधारी पक्ष का कोई नेता अपना मुंह खोले और उस पर भी मानहानि का दावा ठोका जा सके. हालांकि बीजेपी के किसी नेता को इस तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा, ये तय है.

वहीं दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी कितना ही विपक्षी एकता को अपने आप से कमजोर समझ लें, लेकिन बैक टू बैक विपक्षी एकता की बैठक के साथ साथ एनडीए दल की बैठक बुलाना सामान्य तो नहीं है. ये अपने शक्ति प्रदर्शन का एक तरीका है. गौर करने वाली बात ये है कि अब तक जहां बीजेपी के नेता विपक्षी एकता की बैठक को ‘थोथा चना’ बताकर धता बता रहे थे, 26 राजनीतिक दलों के एक राय होने के बाद उनके भी कान खड़े हो गए हैं. दिल्ली में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए की मिटिंग होना इसका जीता जागता परिणाम है.

दरअसल, विपक्षी दल एकजुट होकर देश के मतदाताओं के समक्ष एक ऐसा विश्वसनीय विकल्प प्रस्तुत करने का बेहद कठिन प्रयास कर रहे हैं, जो आर्थिक संकट, साम्प्रदायिक विद्वेष एवं सामाजिक अशांति के कष्टों से राहत दिला सके एवं जनता में एक भरोसा पैदा कर सके. वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्तारूढ़ बीजेपी समाप्त प्राय: हो चले एनडीए की मरम्मत कर उसे पूरी तरह से दुरूस्त करने की कोशिश कर रही है. यही वजह है कि इस बैठक में एनडीए से अलग हो चुके अकाली दल, चिराग पासवान की लोजपा जैसी पार्टियों के साथ कभी बीजेपी के खिलाफ खड़ी एकनाथ शिंदे के गुट वाली शिवसेना और अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी जैसे दल भी शामिल हैं.

यह भी पढ़ें: एक-दूसरे के खून के प्यासे लेफ्ट-कांग्रेस बेंगलुरु में हाथ मिला रहे – विपक्षी गठबंधन पर पीएम मोदी

एक ओर जहां इंडियन नेशनल डवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस में 26 राजनैतिक दल शामिल हुए तो वहीं 36 दलों ने एनडीए में अपनी भक्ति दिखाई. हालांकि एनडीए में शामिल अधिकांश दल काफी छोटे और स्थानीय हैं लेकिन अजगर होते दिख रहे विपक्ष की एकता के समक्ष अपना दल भी मजबूत करने का प्रयास करने में कसर नहीं छोड़ रही. विपक्षी एकता की मिटिंग वाले दिन ही एनडीए की बैठक आयोजित करना इसी का परिणाम है. हालांकि एनडीए के मुकाबले विपक्षी दलों को एकजुट होने में कई तरह की समस्या से अभी भी दो चार होना पड़ेगा.

सीट बंटवारा, नेतृत्व के साथ साथ जिन राज्यों में कांग्रेस का अन्य पार्टियों से सीधा मुकाबला है, उसकी रणनीति तैयार करना इस गठबंधन का सबसे कठिन कार्य है. जिन राज्यों में कांग्रेस प्रमुख पार्टी है या जिन प्रदेशों में स्थानीय पार्टी और कांग्रेस में सीधा मुकाबला है, वहां दिक्कतें ज्यादा आ रही हैं. इसके बावजूद मोदी को सत्ता से बेदखल करने के लिए ये असंभव सा दिखने वाला कदम उठाया जा रहा है. जहां सबसे ज्यादा समझौता कांग्रेस को करना पड़ेगा, ये निश्चित है. वैसे कागजों पर देखा जाए तो सत्तारूढ़ बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों का यूं परस्पर हाथ मिलाना भारतीय राजनैतिक परिद्श्य का गेम चेंजर बनने जा रहा है.

इसके विपरीत, बीजेपी को अच्छी तरह से पता है कि नंबर दो और नंबर तीन पार्टियां अब एक हो गई तो कम मार्जिन से जीती सीटें उसके हाथों से फिसल जाएगी. इस अंतर को पाटने, भरपाई करने और दूरियों की खाईयों को भरने के लिए अपने पुराने मित्रों को वापिस साथ लाना जरूरी हो गया है. इस बार अपने सहयोगी दलों को मंत्रिमंडल में जगह देने का क्रम भी जल्द शुरू होगा ताकि इस छाप को भी जनता के सामने लगाया जा सके कि बीजेपी अपने मित्र दलों को यथा संभव महत्व देने में पीछे नहीं रहती.

हालांकि इस बात में कोई दोराय नहीं है कि असंभव सा दिख रहा ये टास्क अब संभव होते नजर आ रहा है. विपक्षी एकता गठबंधन को मिला नया नाम इंडियन नेशनल डवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस एक बारगी तो सभी दलों को एक राय एक मत के मंच पर खड़ा कर रहा है. वहीं बीजेपी में इससे खलबली भी मची हुई है. यही वजह है कि पहले विपक्षी दलों को कोई महत्व न देने वाले बीजेपी नेता और खुद पीएम मोदी भी अब इसे गंभीरता से ले रहे हैं. पोर्ट ब्लेयर के वीर सावरकर इंटरनेशनल एयरपोर्ट के नए टर्मिनल के उद्घाटन समारोह में विपक्षी एकता पर फोकस रखना इस बात का पुख्ता सबूत है. वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं बीजेपी के वरिष्ठ सांसद रवि शंकर प्रसाद का ये कहना​ कि ‘इस प्रकार का कोई गठबंधन न तो भारत के वर्तमान के लिए अच्छा है और न ही भविष्य के लिए’ साफ दर्शा रहा है कि विपक्षी एकता के गठबंधन से बीजेपी और एनडीए के पसीने तो छूट रहे हैं.

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