सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अयोध्या मामले (Ayodhya Case) में गुरुवार को 20वें दिन की सुनवाई हुई. सुनवाई की शुरूआत करते हुए सुन्नी वक्फ बोर्ड (Sunni Waqf Board) और मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने अपनी दलीले पेश की. वकील धवन ने कहा कि निर्मोही अखाड़ा सर्दियों से देवता का सेवक होने का दावा कर रहा है. लेकिन हम इस बात को 1855 से ही सच मान सकते हैं जबकि निर्मोही अखाड़ा 1734 से अस्तित्व का दावा कर रहा है जो सरासर गलत है.

अखाड़ा 1885 में बाहरी आंगन में था और राम चबूतरा बाहरी आंगन में है. इमारत के बाहरी हिस्से के राम चबूतरे पर पूजा के सबूत मौजूद हैं. चबूतरे को ही भगवान राम की जन्मस्थली माना जाता रहा है. लेकिन इससे पहले के न तो उस स्थान पर पूजा के और न ही अन्य कोई सबूत मौजूद हैं. मुख्य इमारत मस्जिद ही थी जिसे विवादित स्थल माना जा रहा है.

CJI रंजन गोगोई (Ranjan Gogoi) के समक्ष धवन ने निर्मोही अखाड़े के गवाहों के दर्ज बयानों पर जिरह करते हुए महंत भास्कर दास के बयान का हवाला दिया. वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि मूर्तियों को दिसंबर 1949 में विवादित ढांचे के बीच वाले गुंबद के नीचे रखा गया था.

इस पर पीठ के जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि यदि आप देवता की मौजूदगी व सेवक के दावे को मानते हैं तब तो हमें उनकी पूरी बात माननी होगी और सभी साक्ष्य स्वीकार करनी होगी. इस पर जवाब देते हुए मुस्लिम पक्ष के वकील ने कहा कि मैं सेवादार होने के उनके दावे को पूरी तरह झूठला नहीं सकता लेकिन उन्हें खुद ही पता नहीं है कि वे कब से सेवक रहे हैं. कुछ लोग अखाड़ा 700 साल पहले का मानते हैं, लेकिन मैं निर्मोही अखाड़े की उपस्थिति सन 1855 से मानता हूं. 1885 में महंत रघुबर दास ने इस संबंध में मुकदमा दायर किया था. धवन ने दलीलें जारी रखते हुए कहा कि रामलला के अंतरंग सखा को केवल पूजा का अधिकार है, जमीन पर हक के दावे का नहीं.

इसके बाद जस्टिस नजीर ने धवन से पूछा कि कल तो आपने सहअस्तित्व की बात की थी, आज आप कुछ और बोल रहे हैं. जवाब देते हुए धवन ने कहा कि मैं बदलाव नहीं, भूमि पर स्वामित्व की बात कर रहा हूं. सेवा-उपासना और मिल्कियत अलग-अलग मामले हैं. आपने इस संपत्ति के लिए ‘बिलांग’ शब्द कहा, लेकिन इसका मतलब मालिकाना हक नहीं है.

पिछली सुनवाई के लिए पढ़ें यहां

अयोध्या मंदिर विवाद मामले की सुनवाई अब आगामी 11 सितम्बर (बुधवार) को होगी. सीनियर वकील राजीव धवन को आराम देने के लिए दो दिन सुनवाई नहीं रखी गई. धवन ने अपीक की थी कि उम्र होने की वजह से वे लगातार पांच दिन लगातार बहस नहीं कर सकते. इस पर न्यायालय ने उनकी बात मानते हुए सुनवाई की तारीख को आगे बढ़ा दिया.

Leave a Reply