राजस्थान में कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायकों को जल्द ही सत्ता का सुख मिलेगा. लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद इन्हें संसदीय सचिव और निगम-बोर्ड का चैयरमेन बनाया जा सकता है. सूत्रों के अनुसार, जून में इसकी प्रक्रिया शुरू हो सकती है. अधिकतर उन विधायकों को सत्ता में भागीदार बनाया जाएगा जो पहले कांग्रेस में थे, लेकिन टिकट नहीं मिलने पर बागी हो गए थे. चुनाव जीतने के बाद इन विधायकों ने राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार को समर्थन दे दिया.

दरअसल इस बार कांग्रेस के 100 और सहयोगी लोकदल का एक विधायक जीता था. कांग्रेस के पास प्रदेश में अपने दम पर बहुमत है, लेकिन सरकार को कोई आंच नहीं आए इसलिए निर्दलीय विधायकों को सत्ता सुख देने की रणनीति अपनाई जा रही है. आपको बता दें कि अशोक गहलोत के पिछले कार्यकाल में कांग्रेस की 96 सीटें आई थी. तब बसपा के छह विधायकों को कांग्रेस में मर्ज करते हुए उन्हें मंत्री और संसदीय सचिव बनाने का कदम उठाया गया था.

सूत्रों के मुताबिक बाबूलाल नागर, महादेव सिंह खंडेला, राजकुमार गौड़, बलजीत यादव, संयम लोढ़ा, रामकेश मीणा, लक्ष्मण मीणा, आलोक बेनीवाल, रमीला खड़ीया, कांति मीणा और खुशवीर जोजावर को संसदीय सचिव और बोर्ड-निगम चेयरमैन बनाया जा सकता है. ये सभी विधायक कांग्रेस की विचारधारा से जुड़े हुए तो हैं ही, इनमें से अधिकतर सीएम गहलोत के करीबी भी हैं.

सूत्रों के अनुसार, निर्दलीय विधायकों को सत्ता सुख देने से पहले कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व पहले लोकसभा चुनाव के परिणाम का इंतजार करेगा. केंद्र में सरकार की उठापटक पूरी होने के बाद आलाकमान से इसकी मंजूरी ली जाएगी. आलाकमान से हरी झंडी मिलने के बाद ही कवायद शुरु होगी. चर्चा है कि निर्दलीय विधायकों को सत्ता सुख देने के साथ-साथ मंत्रिमंडल में भी फेरबदल और विस्तार का काम होगा.

मंत्रिमंडल में फेरबदल के लिए लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन को आधार बनाया जा सकता है. जिन मंत्रियों का लोकसभा चुनाव में कमजोर प्रदर्शन रहेगा, उनकी छुट्टी हो सकती है जबकि जिन विधायकों का प्रदर्शन अच्छा रहेगा, उनका प्रमोशन हो सकता है. प्रदेश की गहलोत सरकार को बसपा के छह विधायकों ने भी समर्थन दे रखा है. एक चर्चा यह भी हो रही है कि इन्हें भी सत्ता में भागीदार बनाया जा सकता है.

हालांकि इस पूरी कवायद को लोकसभा चुनाव के परिणाम प्रभावित कर सकते हैं. यदि राजस्थान में कांग्रेस ने आठ से दस सीटों पर जीत हासिल की तो आलाकमान सरकार के काम में दखलंदाजी नहीं करेगा. लेकिन यह आंकड़ा पांच से नीचे गया तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी निगरानी तेज कर सकते हैं.

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