राजस्थान (Rajasthan) में बहुजन समाज पार्टी (BSP) के छह विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने के बाद उप मुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट (Sachin Pilot) ने कहा है कि वे बगैर किसी शर्त, प्रलोभन या लोभ-लालच के कांग्रेस में शामिल हुए हैं तो उनका स्वागत है. इससे किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए. मीडिया से बातचीत में पायलट ने अपनी इस बात को 3 से 4 बार दोहराया. बसपा विधायकों के पार्ट बदलने के बाद से ही जो मंत्रिमंडल विस्तार-फेरबदल और राजनीतिक नियुक्तियों अटकलें शुरू हो गई है, उसके बीच पायलट का यह बयान अतिमहत्वपूर्ण है.

राजनीतिक नियुक्तियों के संदर्भ में पायलट ने साफ तौर पर कहा है कि खून-पसीना बहाकर राजस्थान में कांग्रेस (Rajasthan Congress) की सरकार लाने वाले कार्यकर्ताओं को पूरा सम्मान मिलना चाहिए. राजनीतिक नियुक्तियों में पार्टी के सच्चे और मेहनती कार्यकर्ताओं को ही आगे लाया जाएगा. पार्टी की अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी कह चुकी हैं कि सत्ता और संगठन में बेहतर तालमेल होना चाहिए. इसका मतलब यह भी निकलता है कि कांग्रेस सरकार में पार्टी बदलने वाले बसपा विधायकों (BSP MLAs) को राजनीतिक नियुक्तियों की उम्मीद नहीं करनी चाहिए.

सचिन पायलट प्रदेशाध्यक्ष होने के नाते गहलोत (Ashok Gehlot) क्या कर रहे हैं, इस पर पूरी नजर रखे हुए हैं. अगर बसपा छोड़ कर आए विधायकों को मंत्री पद से नवाजा गया, या राजनीतिक नियुक्तियां मिलीं तो इससे पार्टी के कई कार्यकर्ताओं का उत्साह कम होगा. इसी लिए उन्होंने इशारा कर दिया है कि सोनिया गांधी सरकार और पार्टी संगठन में संतुलन बनाए रखना चाहती है. पार्टी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करते हुए कोई फैसला हुआ तो यह कांग्रेस के हित में नहीं हो सकता है.

सचिन पायलट ने स्पष्ट किया कि राजनीतिक नियुक्तियों के लिए सभी कांग्रेस शासित राज्यों में एक प्लेटफार्म बनाया जा रहा है. इसी प्लेटफार्म के आधार पर राजनीतिक नियुक्तियां होंगी. इनमें कोई पक्षपात की भावना नहीं होगी. तेरा मेरा का चक्कर नहीं होगा. इस तरह बसपा विधायकों के कांग्रेस में आने के बाद अप्रत्यक्ष रूप से अपने विचार जाहिर कर दिए हैं. इससे यह संकेत भी मिलता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भले ही अपने हिसाब से मंत्रिमंडल बनाने की स्वतंत्रता हो, लेकिन राजनीतिक नियुक्तियों में सचिन पायलट का दखल भी कम नहीं होगा.

बड़ी खबर: राजस्थान में बढ़ा गहलोत सरकार का बहुमत, बसपा के सभी छह विधायक हुए कांग्रेस में शामिल

बसपा विधायकों को कांग्रेस में लाने की योजना के सूत्रधार अकेले गहलोत हैं. बिना शर्त और बिना प्रलोभन पार्टी बदलने का दावा करने के बाद अगर उन विधायकों को मंत्री बनाकर ईनाम दिया गया तो इससे यह दावा गलत समझा जाएगा. ज्यादातर लोग यही समझेंगे कि मंत्री बनने के आश्वासन पर ही ये मंत्री कांग्रेस में शामिल हुए हैं. लेकिन राजनीति में यह आम बात है. कोई बात एक दिन सही मानी जाती है तो अगले दिन वह गलत साबित हो सकती है.

बहरहाल यह जरूर है कि कांग्रेस की अंदरूनी उठापटक के बीच मुख्यमंत्री गहलोत ने एक बार फिर अपनी उपयोगिता साबित की है. बसपा के छह विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करवाकर अपनी उपयोगिता साबित करते हुए राजस्थान में अपनी पकड़ मजबूत होने का प्रमाण दे दिया है.

अब अपना वजन बनाए रखने के लिए पायलट के लिए जरूरी है कि वह संगठन में कुछ करें. सरकार में वह उप मुख्यमंत्री अवश्य हैं, लेकिन सरकार पर पूरी तरह गहलोत का नियंत्रण है. अब आने वाले समय में गहलोत के कार्यों में पार्टी की तरफ से हस्तक्षेप बनाए रखेंगे. गहलोत पहले भी दो कार्यकाल में राजस्थान में सरकार चला चुके हैं. अब तीसरी बार सरकार चला रहे हैं. पायलट को राजस्थान में प्रवेश किए पांच-छह साल से ज्यादा नहीं हुए हैं. गहलोत राजस्थान की राजनीति और भूगोल को भलीभांति समझते हैं. उन्हें तीस-पैंतीस साल का अनुभव है.

आने वाले समय में सचिन पायलट यही प्रयास करेंगे कि राजस्थान में उनका कद गहलोत के समानांतर बना रहे. विधानसभा चुनाव में पार्टी के सत्ता के निकट पहुंचने की संभावना प्रबल होते ही सचिन पायलट के समर्थक उनके पक्ष में एकजुट हो गए थे और पायलट ने भी मुख्यमंत्री बनने के लिए हर सम्भव प्रयास किये थे, लेकिन आखिर में गहलोत ने ही ली मुख्यमंत्री पद की शपथ. पायलट को उप मुख्यमंत्री पद से संतोष करना पड़ा. उसके बाद से सरकार पर पूरी तरह गहलोत का नियंत्रण है. पायलट जरा भी अपना दखल नहीं बना पाए हैं. वह अन्य मंत्रियों की तरह उप मुख्यमंत्री बने हुए हैं.

कुछ ही दिनों बाद राजस्थान में पंचायत और स्थानीय निकायों के चुनाव होंगे. उसमें कांग्रेस में गहलोत और पायलट के खेमों में खींचतान दिखेगी. उम्मीदवारों को पार्टी का टिकट बांटने का काम प्रदेश अध्यक्ष के दस्तखत से होता है. उम्मीदवारों के चयन में एक तरफ गहलोत के समर्थकों का दबाव होगा, दूसरी तरफ पायलट समर्थकों का दखल बढ़ेगा. यह गहलोत के लिए असुविधाजनक स्थिति होगी.

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