एक वक्त था जब वसुंधरा राजे मतलब होता था राजस्थान में बीजेपी. लेकिन राजे के नेतृत्व में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी क्या हारी, राजे को साइडलाइन करना शुरु कर दिया है. राजे विरोधी गजेन्द्र सिंह और अर्जुन मेघवाल को मोदी-शाह ने केन्द्रीय मंत्री बनाते हुए व ओम बिड़ला को लोकसभा अध्यक्ष बनाकर इसके संकेत भी दे दिए हैं.

मोदी ने न तो दुष्यंत सिंह को मंत्री बनाया और ही राजे को राज्यसभा से भेजते हुए मंत्री बनाने की कोई मंशा है. लिहाजा सियासी हालात को भांपते हुए राजे ने राजस्थान में दौरे शुरु कर दिए है. जिस तरह की राजनीति बीजेपी राजस्थान में कर रही है उसके तो यही मायने है कि अगले चुनाव में बीजेपी राजे को चुनावी चेहरा नहीं बनाएगी.

राजे विरोधी गुट के नेता बने मंत्री-स्पीकर
वसुंधरा राजे जब राजस्थान में मुख्यमंत्री थी तब पार्टी में उनकी तूती बोलती थी. राजे के बिना राजस्थान में पत्ता तक नहीं हिलता था. यहां तक की एक बार तो राजे ने गजेन्द्र सिंह को मोदी और शाह ने बीजेपी का प्रदेशाध्यक्ष बनाने का फैसला ले लिया था तो राजे ने मोदी को चुनौती दे दी थी.

अंत में राजे के आगे झुकते हुए बीजेपी ने बीच का रास्ता निकालते हुए मदनलाल सैनी को अध्यक्ष बनाया. फिर चुनाव में राजे की पसंद से ही टिकटे बांटी गई लेकिन विधानसभा में चुनाव हारते ही केन्द्रीय नेतृत्व ने राजे को आईना दिखाना शुरु कर दिया. यहां तक की लोकसभा चुनाव में राजे की पसंद के बिना हनुमान बेनीवाल के साथ गठजोड़ किया गया. परिणाम बाद गजेन्द्र सिंह, अर्जुन मेघवाल और ओम बिड़ला को मंत्री और स्पीकर पद पर नवाजा गया. ये तीनों नेता राजे के घोर विरोधी है.

केन्द्रीय नेतृत्व अपनी पसंद का बनाएगा प्रदेशाध्यक्ष
मेंबरशिप के बाद दिसम्बर तक बीजेपी के संगठन चुनाव होंगे. दिसम्बर में प्रदेश बीजेपी को नया अध्यक्ष मिल जाएगा. तय है कि संगठन से जुड़े किसी नेता को अध्यक्ष बनाया जाएगा. अध्यक्ष भी केन्द्रीय नेतृत्व अपनी पसंद का चुनेगा. अब जब सबकुछ बिना राजे की राय के हो रहा है तो फिर राजे की भविष्य की राजनीति क्या होगा.

फिलहाल राजे के सामने मोदी के साथ चलने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है. अब राजे विरोधी नेता अपने हिसाब से ही राजस्थान में फैसले करेंगे. ऐसे में तय है कि अगला चुनाव मुश्किल ही राजे के नेतृत्व में लड़ा जाए. इन सबके बीच राजे ने अभी हार नहीं मानी है और लगातार राजस्थान के दौरे कर रही है.

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