बिहार चुनाव के बाद कांग्रेस में उथल-पुथल, झा को दिल्ली बुलाया, इस्तीफे की पेशकश

बिहार अध्यक्ष मदन मोहन झा ने ली हार की जिम्मेदारी, बिहार चुनाव प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल ने आलाकमान को भेजा इस्तीफा, ज्यादा सीटों पर लड़ने के चक्कर में कमजोर सीटों पर दांव खेल बैठी कांग्रेस जिसकी हार से चुकानी पड़ी कीमत

Bihar Politics
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Politalks.News/Bihar. बिहार विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद कांग्रेस पर लगातार सवाल उठ रहे हैं. बिहार चुनाव के नतीजों को बार बार कांग्रेस के भविष्य से लेकर जोड़ा जा रहा है. हाल में कपिल सिब्बल ने कांग्रेस को आत्ममंथन की सलाह दी थी जिसके बाद उन्हें पार्टी से निकल जाने तक की नसीयत दी गई. इस घटना का असर बिहार कांग्रेस में भी देखने को मिला है. बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष मदन मोहन झा पर इस हार का ठीकरा फूटना तय लग रहा है. कांग्रेस आलाकमान ने मदन मोहन झा को दिल्ली तलब किया है. झा छठ पूजा के बाद दिल्ली जाएंगे. इससे पहले ही उन्होंने इस्तीफे की पेशकश की है. कांग्रेस के बिहार चुनाव प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल ने भी सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा भेज दिया है.

मदन मोहन झा ने मीडिया से साझा करते हुए बताया कि विधानसभा चुनाव में बेहतर परफॉर्मेंस नहीं होने पर उनकी गलती हो या नहीं हो, लेकिन वे प्रदेश में अध्यक्ष पद पर हैं तो उनकी सबसे अधिक जवाबदेही है. इस्तीफे के सवाल पर उन्होंने कहा कि हमने जवाबदेही तय करने के लिए आलाकमान को लिखा है. गौरतलब है कि इससे पहले प्रदेश कांग्रेस कार्यालय सदाकत आश्रम में कार्यकर्ताओं ने टिकट बंटवारे में लेन-देन और अन्य गड़बड़ियों के आरोप भी लगाए थे.

बताया ये भी जा रहा है कि बिहार में कांग्रेस की कोशिश केवल इस बात पर रही कि उन्हें ज्यादा से ज्यादा सीटों पर लड़ने का मौका मिले. प्रदेश की चौथी सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते कांग्रेस ने राजद पर भी अधिक सीटें देने का दबाव बनाया. यही वजह बताई जा रही है कि महागठबंध ने रालोसपा को बाहर का रास्ता दिखाया. सीटों के बंटवारे को लेकर ही हम और वीआईपी ने भी महागठबंधन का साथ छोड़ा. कांग्रेस ने 80 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा ठोका था लेकिन लोकसभा की एक सीट पर उपचुनाव होना था और इस सीट को कांग्रेस ने लेकर 10 सीटों पर समझौता कर लिया.

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कांग्रेस ने अधिक सीटें लेने के चक्कर में इस बात का ख्याल नहीं किया कि वह मजबूत सीट पर चुनाव लड़े. ज्यादा सीटों के चक्कर में कांग्रेस के हिस्से में वे सीटें भी आ गईं जहां कांग्रेस और महागठबंधन पहले से ही कमजोर था. चार से पांच सीटें ऐसी भी कांग्रेस के हिस्से में आईं जिन पर पिछले चुनावों में महागठबंधन उम्मीदवार की हार हुई जबकि राजद, जदयू और कांग्रेस एक साथ चुनाव लड़ रहे थे. नतीजा यह हुआ कि 70 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद भी कांग्रेस को 19 सीटें ही हासिल हुईं.

इसका असर पूरे महागठबंधन पर पड़ा और महागठबंधन को हार का सामना करना पड़ा. जितनी सीटें कांग्रेस ने चुनाव लड़ने के लिए राजद से दबाव डाल कर लीं, उसी अनुसार कांग्रेस का परफॉरमेंस होता तो महागठबंधन की सरकार तय थी. राजद नेता शिवानंद तिवारी ने तो कांग्रेस को लेकर तीखी टिप्पणी तक कर दी. वहीं दबे स्वर में राजद नेता कांग्रेस को हार की वजह बता रहे हैं. ओवैसी की पार्टी ने भी कांग्रेस के वोट काटने में अहम भूमिका अदा की. कई इलाकों में कांग्रेस और विजेता उम्मीदवार में वोट अंतर 500 से भी कम रहा जबकि एक सीट पर तो हार जीत का अंतर केवल 12 वोटों का रहा.

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अब हार तो हार होती है फिर वो चाहे एक वोट से हो या एक हजार से. बीते दिनों कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पार्टी के नवनिर्वाचित विधायकों से वन-टू-वन बात की थी और अपना फीडबैक आलाकमान को दिया था. इसमें भी कुछ इसी तरह की बातें सामने आई थी. वहीं विधायक दल की बैठक में चले लात घूसों से कांग्रेस आलाकमान को असली हालातों का पता तो चल ही गया होगा. इन परिस्थितियों में बिहार कांग्रेस अध्यक्ष मदन मोहन झा का इस्तीफा तो कन्फर्म लग रहा है. आलाकमान भी बिहार हार को जल्दी से जल्दी भुलाकर पश्चिम बंगाल में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों पर ध्यान दे रहा है. वहां भी ओवैसी कांग्रेस की राहों में रोड़े अटकाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे.

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