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राजस्थान में लगातार दूसरी बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस खाता तक नहीं खोल पाई. जिसके चलते आलाकमान बेहद नाराज है. वहीं हार के बाद लालचंद कटारिया के इस्तीफे की खबरें आ रही है तो मंत्री रमेश मीणा भी हार के कारण गिना रहे हैं. दरअसल, कांग्रेस ने टिकट वितरण से लेकर प्रचार तक ऐसी कमजोर रणनीति अपनाई कि सभी 25 सीटों पर कमल खिल गया.

कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को यह एहसास तक नहीं हुआ कि एक बार फिर वो शून्य पर सिमटने जा रहे हैं. हर कांग्रेस नेता राजस्थान परिणाम से पहले 10 से 12 सीटें मिलने का दावा कर रहा था. लेकिन उनके दावों की पोल परिणामों के दिन खुल गई. अब कांग्रेस नेता हार के कारणों को खोजने में जुटे हुए हैं.

कांग्रेस की करारी हार के ये मुख्य कारण माने जा रहे हैं –

  • झुंझुनूं, चूरु, जयपुर शहर, भीलवाड़ा, झालावाड़, राजसमंद, अजमेर, उदयपुर और चितौड़गढ से बेहद कमजोर प्रत्याशी उतारे गए.
  • गुर्जर, जाट और माली समाज के वोट कांग्रेस के पाले में नहीं आए, जबकी कांग्रेस को विधानसभा में इन कास्ट के अच्छे वोट मिले थे.
  • सीएम, डिप्टी सीएम और प्रभारी जैसे दिग्गज नेता मोदी और राष्ट्रवाद की लहर ही नहीं भांप पाए.
  • मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हर सभा में सीधे पीएम मोदी पर निशाना साधा.
  • प्रदेश के फर्स्ट टाइमर वोटर्स को लुभाने में पार्टी असफल रही है.
  • विधानसभा चुनाव से पहले जीतने के बाद किसानों से किए गए कर्ज माफी के वादे को पूरा नहीं कर पाए.
  • पार्टी कार्यकर्ता को प्रदेश में सरकार बदलने का एहसास ही नहीं करा पाए.
  • सूबे के मुस्लिम वोटर्स का प्रतिशत 50 से 60 के बीच ही रहा.
  • गहलोत और पायलट की गुटबाजी कांग्रेस प्रत्याशियों की जीत पर भारी पड़ी.

कांग्रेस की हार के ये ऐसे बड़े कारण थे कि पार्टी प्रदेश में जीरो पर सिमट गई. अगर इन सभी कारणों का समय रहते कांग्रेस निराकरण कर लेती तो कम से कम आठ सीटें आने की संभावना बन सकती थी. वहीं मोदी लहर और राष्ट्रवाद के मुद्दे के काउंटर के लिए कांग्रेस नेताओं के पास ना तो कोई चाल थी और ना ही विजन. लिहाजा जिन मतदाताओं ने पांच माह में सत्ता दिलाई थी उन्होंने ही जमीन पर ला दिया.

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