हाईकोर्ट के ‘राम भरोसे’ वाले आदेश पर रोक लगा सर्वोच्च अदालत ने फिर दिया योगी सरकार का साथ

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट के 17 मई के निर्देशों को आदेश की तरह नहीं बल्कि सलाह के तौर पर माना जाएगा, सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि राज्य में 97,000 गांव हैं, ऐसे में हाईकोर्ट के आदेश पर एक महीने में अमल संभव नहीं

सर्वोच्च अदालत ने फिर दिया योगी सरकार का साथ
सर्वोच्च अदालत ने फिर दिया योगी सरकार का साथ

Politalks.News/UttarPradesh. कोरोना महामारी को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के उत्तर प्रदेश सरकार को दिए गए फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाते हुए ‘नसीहत‘ भी दे डाली. यानी एक बार फिर उच्च न्यायालय के प्रदेश सरकार को दिए गए आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने ‘गलत‘ माना. शीर्ष अदालत के इस फैसले के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जरूर राहत मिली होगी. पिछले महीने भी इलाहाबाद हाईकोर्ट के योगी सरकार को दिए गए फैसले पर सर्वोच्च अदालत रोक लगा चुकी है. ऐसे ही इससे पहले मऊ के विधायक और माफिया मुख्तार अंसारी को यूपी में सुपुर्द किए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया था. यह पूरा मामला कोविड-19 महामारी को लेकर स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ा हुआ है.

यहां हम आपको बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले दिनों यूपी के छोटे शहरों और ग्रामीण अंचल में स्वास्थ्य सेवा को ‘राम भरोसे‘ करार दिया था और आदेश जारी किया था कि यूपी सरकार हर गांव में दो एंबुलेंस मुहैया कराए. इसके साथ प्रदेश के हर मेडिकल कॉलेजों में संजय गांधी मेडिकल कॉलेज जैसी सुविधाएं हों, अस्पतालों, आईसीयू और ऑक्सीजन बेड्स का बंदोबस्त हो. कोर्ट ने कहा था कि प्रदेश के 20 बेड वाले सभी नर्सिंग होम मेें कम से कम 40 प्रतिशत बेड आईसीयू हों और इसमें 25 प्रतिशत वेंटिलेटर सहित होने चाहिए. बाकी 25 प्रतिशत हाईफ्लो नसल बाइपाइप का इंतजाम होना चाहिए, 30 बेड वाले नर्सिंग होम में अनिवार्य रूप से ऑक्सीजन प्लांट होना चाहिए. प्रयागराज, आगरा, कानपुर, गोरखपुर और मेरठ मेडिकल कॉलेजों को एसजीपीजीआई स्तर का संस्थान बनाया जाए. इसके लिए सरकार भूमि अर्जन के आपातकालीन कानून का सहारा ले और धन उपलब्ध कराए. इन संस्थानों को कुछ हद तक स्वायत्तता भी दी जाए.‌

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इस पर ‘सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले पर नसीहत देते हुए कहा कि आदेश ऐसे जारी किए जाएं जिन पर अमल किया जा सके. जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी, लेकिन चल रही सुनवाई पर रोक नहीं लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट के 17 मई के निर्देशों को आदेश की तरह नहीं बल्कि सलाह के तौर पर माना जाएगा. यूपी सरकार का पक्ष रख रहे सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि राज्य में 97,000 गांव हैं, ऐसे में हाईकोर्ट के आदेश पर एक महीने में अमल संभव नहीं है.

आपको बता दें, इससे पहले भी पिछले महीने कोरोना महामारी के बढ़ते प्रकोप के बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी के पांच शहरों में लॉकडाउन लगाने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने वाराणसी, कानपुर नगर, गोरखपुर, लखनऊ और प्रयागराज में 26 अप्रैल तक लॉकडाउन लगाने का आदेश जारी किया था. इसके साथ इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपी के मुख्य सचिव को खुद निगरानी करने के लिए निर्देश दिए गए थे. कोर्ट की तरफ से दिया गया यह आदेश 19 अप्रैल की रात से लागू होना था. इस दौरान इन शहरों में जरूरी सेवाओं वाली दुकानों को छोड़कर कोई भी दुकान, होटल, ऑफिस और सार्वजनिक स्थल नहीं खुलने की बात कही गई थी. साथ ही मंदिरों में पूजा और आयोजनों पर भी रोक लगाने का आदेश दिया गया था.

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उत्तर प्रदेश में राजधानी लखनऊ सहित पांच शहरों में 19 अप्रैल की रात से लॉकडाउन के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर भी देश की शीर्ष अदालत ने रोक लगा थी. हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के बाद शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा था कि आप इलाहाबाद हाईकोर्ट के ऑब्जर्वेशन को ध्यान दें, फैसले पर हम रोक लगा रहे हैं. हालांकि बाद में मुख्यमंत्री योगी ने महामारी के बढ़ने पर प्रदेश के कई शहरों में लॉकडाउन के साथ कई पाबंदियां भी लगाई हुई हैं.

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