पॉलिटॉक्स न्यूज़. कोरोना का विकट संकट चल रहा है और लॉकडाउन ने आर्थिक स्थिति और अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़कर रख दी है. नौकरियां जा रही हैं और आम आदमी का कर्जा बढ़ता जा रहा है. पीएम मोदी ने इस आर्थिक संकट से निपटने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक पैकेज घोषित किया है, लेकिन अब इस आर्थिक पैकेज पर राजनीति तेज होती जा रही है. शनिवार को एक वीडियो प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आर्थिक पैकेज को ‘साहुकार का कर्ज‘ बताते हुए कहा कि, सड़क पर चलने वाले प्रवासी मजदूरों को कर्ज नहीं, पैसे की जरूरत है.
विशेष आर्थिक पैकेज के ऐलान को लेकर राहुल गांधी ने कहा, ‘जब बच्चा रोता है तो मां उसे कर्ज नहीं देती बल्कि ट्रीट देती है, इसलिए सरकार को साहूकार की तरह काम नहीं करना चाहिए‘. वहीं पीसी में एक मीडियाकर्मी ने राहुल गांधी से सवाल किया कि अगर आप प्रधानमंत्री होते तो क्या करते? इस सवाल के जवाब में राहुल ने मुस्कुराते हुए शानदार जवाब दिया.
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प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए राहुल गांधी ने केंद्र सरकार के प्रयासों और लॉकडाउन की वजह से देश में उपजे हालत को लेकर चर्चा की. राहुल गांधी ने कहा कि मेरे हिसाब से सरकार को शॉट, मिड और लॉन्ग सहित तीन टर्म में काम करना चाहिए. शॉर्ट टर्म में डिमांड बढ़ाइए. इसके तहत हिंदुस्तान के छोटे और मझोले व्यापारियों को बचाइए, इन्हें रोजगार दीजिए, आर्थिक मदद कीजिए, स्वास्थ्य के हिसाब से उन लोगों का ख्याल रखिए जिन्हें सबसे ज्यादा खतरा है. मिड टर्म में छोटे और मझोले व्यापार को मदद कीजिए. हिंदुस्तान को 40 प्रतिशत रोजगार इन्हीं लोगों से मिलता है इसलिए इनकी आर्थिक मदद करनी भी चाहिए. बिहार जैसे प्रदेशों में ही रोजगार बढ़ाने पर ही ध्यान दीजिए.
वायनाड सांसद ने कहा कि इस वक्त सबसे बड़ी जरूरत डिमांड-सप्लाई को शुरू करने की है. उन्होंने कहा, ‘आपको गाड़ी चलाने के लिए तेल की जरूरत होती है. जब तक आप कार्बोरेटर में तेल नहीं डालेंगे, गाड़ी स्टार्ट नहीं होगी. मुझे डर है कि जब इंजन शुरू होगा तो कहीं तेल नहीं होने की वजह से गाड़ी ही नहीं चले.’ कांग्रेस नेता ने कहा कि लॉकडाउन को हमें धीरे-धीरे समझदारी से उठाना होगा क्योंकि यह हमारी सभी समस्याओं का समाधान नहीं है. हमें बुजुर्गों, बच्चों सभी का ख्याल रखते हुए धीरे-धीरे लॉकडाउन उठाने के बारे में सोचना होगा जिससे किसी को कोई खतरा ना हो.
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राहुल गांधी ने सरकार की मदद को नाकाफी बताते हुए कहा कि उनकी सहायता कर्ज का पैकेट नहीं होना चाहिए. किसान, प्रवासी मजदूरों की जेब में सीधा पैसा जाना चाहिए. राहुल गांधी ने कहा, ‘सड़क पर चलने वाले प्रवासी मजदूरों को कर्ज नहीं पैसे की जरूरत है. बच्चा जब रोता है तो मां उसे लोन नहीं देती, उसे चुप कराने का उपाय निकालती है, उसे ट्रीट देती है. सरकार को साहूकार नहीं, मां की तरह व्यवहार करना होगा.’
अगर मैं होता प्रधानमंत्री……. तो
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एक मीडियाकर्मी ने राहुल गांधी से सवाल किया कि अगर आप प्रधानमंत्री होते तो क्या करते? इस सवाल के जवाब में राहुल ने मुस्कुराते हुए कहा कि मैं प्रधानमंत्री नहीं हूं इसलिए एक काल्पनिक स्थिति को लेकर मैं बात नहीं कर सकता. इसके आगे राहुल गांधी ने कहा कि एक विपक्ष के नेता के तौर पर कहूंगा कि कोई भी आदमी घर छोड़कर दूसरे राज्यों में काम की तलाश में जाता है, इसलिए सरकार को रोजगार के मुद्दे पर एक राष्ट्रीय रणनीति बनानी चाहिए.
मनरेगा और शहर में ‘न्याय’ जरूरी
मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) को लेकर राहुल गांधी ने सुझाव देते हुए कहा कि 10 साल पहले का भारत और आज का हिंदुस्तान दोनों अलग-अलग हैं. आज बहुत सारे मजदूर शहरों में रहते हैं इसलिए मेरा विचार है कि गांव में इनकी सुरक्षा के लिए मनरेगा और शहर में ‘न्याय योजना’ (न्यूनतम आय योजना) होनी चाहिए जिससे इनके बैंक अकाउंट में कुछ पैसा भेजा जा सके. राहुल गांधी ने कहा कि सरकार चाहे तो न्याय योजना को कुछ समय के लिए लागू करके देख सकती है.