पंजाब में गर्माई सियासत, प्रदेश अध्यक्ष जाखड़ और मंत्री रंधावा का इस्तीफा अमरिंदर ने फाड़ कर फेंका

पंजाब कांग्रेस में गर्मी सियासत, सरकार पर श्री गुर ग्रंथ साहब की बेअदबी मामले को ठीक से हैंडल करना पड़ सकता है भारी, जाखड़ और रंधावा ने सौंपा 'कैप्टन' को इस्तीफा, क्रिकेट से 'राजनीति' के गुरु बने सिद्धू के निशाने पर पहले से ही हैं कैप्टन

पंजाब में चढ़ा सियासी पारा
पंजाब में चढ़ा सियासी पारा

Politalks.News/Punjab. कोरोना संकट के बीच पंजाब में राजनीति चरम पर है. श्री गुरु ग्रंथ साहब की बेअदबी के मामले में कार्रवाई को लेकर कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है. सोमवार को कैबिनेट बैठक के बाद मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, पार्टी के प्रदेश प्रधान सुनील जाखड़ और सहकारिता मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा सहित कई मंत्रियों के बीच काफी तल्ख बहस हुई. जाखड़ ने तुरंत अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री को सौंप दिया. इसके बाद रंधावा ने भी ऐसा ही किया, लेकिन कैप्टन ने दोनों इस्तीफे फाड़कर फेंक दिए. यह तल्खी तब शुरू हुई जब बेअदबी कांड को लेकर मुख्यमंत्री ने कहा कि बहुत से लोग पार्टी के भीतर और बाहर आरोप लगा रहे हैं कि सरकार ने इस केस को ठीक से हैंडल नहीं किया है. कैप्टन का इशारा साफ तौर पर पूर्व कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू और सहकारिता मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा की ओर था.
बेअदबी मामले में जिम्मेदारी तो फिक्स करनी ही पड़ेगी-जाखड़
कैबिनेट की बैठक में विशेष रूप से शामिल सुनील जाखड़ ने मुख्यमंत्री से कहा- किसे रखना है और किसे निकालना है, यह आपका विशेषाधिकार है लेकिन श्री गुरु ग्रंथ साहिब बेअदबी मामले में जिम्मेदारी तो फिक्स होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि बेअदबी के बाद हुए गोलीकांड को लेकर बनी SIT की रिपोर्ट पर केवल कुंवर विजय प्रताप सिंह के हस्ताक्षर हैं. जिन पुलिस अधिकारियों के हस्ताक्षर नहीं हैं उन पर आपने कार्रवाई क्यों नहीं की?

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जिसे तकलीफ है वह बैठक से जा सकता है- कैप्टन
इस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि जिसे इस बात से तकलीफ है वह मीटिंग छोड़ कर जा सकता है. इस पर जाखड़ ने अपनी जेब से इस्तीफा निकाला और मुख्यमंत्री को यह कहते हुए सौंप दिया कि मैं इस पद पर अब आगे काम नहीं करूंगा. साथ ही उन्होंने रंधावा से कहा कि पार्टी और सरकार के अंदर बोलने वालों का इशारा आपकी तरफ है.
जाखड़ के बाद, रंधावा ने भी कैप्टन को सौंप दिया इस्तीफा
सीएम कैप्टन ने सुनील जाखड़ से कहा कि आप रंधावा को उकसाने का काम न करें. रंधावा भी कुछ कहना चाहते थे, लेकिन इसी बीच मुख्यमंत्री ने कहा कि कुंवर विजय प्रताप सिंह को जांच करने की सिफारिश रंधावा ने ही की थी. इस मामले में रंधावा को ही सारा काम करना था. अब सारी जिम्मेदारी वह मेरे ऊपर डाल रहे हैं. इतना सुनते ही रंधावा ने भी तुरंत इस्तीफा लिखा और मुख्यमंत्री को सौंप दिया.
…तो पार्टी का सत्यानाश हो जाएगा: चन्नी
इस पूरे घटनाक्रम पर तकनीकी शिक्षा मंत्री चरणजीत चन्नी ने भी कहा कि इस मामले में जिम्मेदारी तो फिक्स होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि एडवोकेट जनरल की भूमिका सही नहीं है और यदि ऐसे ही चलता रहा तो पार्टी का सत्यानाश हो जाएगा. हम लोगों के बीच में जाने के काबिल भी नहीं रहेंगे. राजस्व मंत्री गुरप्रीत कांगड़ ने भी नई एसआइटी बनाने का विरोध किया. उन्होंने कहा कि एसआइटी तो पहले भी तीन सालों से जांच ही कर रही है. अब अगर एक महीने में यह मामला किसी नतीजे पर नहीं पहुंचता तो लोगों के विरोध का सामना करना पड़ेगा.

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एडवोकेट जनरल ने DGP पर उठाई अंगुली
बैठक में एडवोकेट जनरल अतुल नंदा ने इस मामले में डीजीपी दिनकर गुप्ता पर अंगुली उठाई, जबकि डीजीपी पूरे मामले में बरती गई ढील के लिए एडवोकेट जनरल को दोषी मान रहे थे. बैठक खत्म होने के बाद सुनील जाखड़ ने मीडिया को ब्रीफ किया, लेकिन तल्खी की बात देर रात सामने आने पर उन्होंने अपना फोन बंद कर लिया. इस्तीफे को लेकर रंधावा से भी आधिकारिक रूप से कोई बात नहीं हो सकी, लेकिन सूत्रों का कहना है कि वह मुख्यमंत्री के व्यवहार से काफी नाखुश दिखाई दे रहे थे.
क्या है पूरा मामला

गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी और 2015 में कोटकपूरा में निहत्थे सिखों पर पुलिस फायरिंग हुई थी. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा बेअदबी मामले की जांच के लिए गठित एसआईटी द्वारा की गई जांच को खारिज कर दिया और एसआईटी को भी नए सिरे के गठित करने के आदेश जारी किए. पंजाब में 2017 में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार के गठन के साथ ही बेअदबी और कोटकपुरा फायरिंग मामलों की जांच की मांग उठने लगी थी. कांग्रेस ने भी चुनाव प्रचार के दौरान सूबे के लोगों से यह जांच कराने का वादा किया था. कैप्टन सरकार ने आईजी कुंवर विजय प्रताप सिंह के नेतृत्व में एसआईटी का गठन किया, जिसने जांच शुरू करते हुए तत्कालीन गृह मंत्री और राज्य के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल, तत्कालीन पुलिस प्रमुख सुमेध सैनी, फायरिंग में शामिल रहे पुलिस अधिकारियों को कठघरे में ला दिया.

इसके तुरंत बाद यह पूरा मामला राजनीतिक रंग भी लेने लगा और पंजाब भर में बादल परिवार और शिरोमणि अकाली दल को उक्त कांड के लिए दोषी के रूप में देखा जाने लगा. हालात यहां तक पहुंचे कि सुखबीर बादल, हरसिमरत कौर बादल समेत अकाली दल के शीर्ष नेताओं को सार्वजनिक स्थलों पर सिख समुदाय के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा.
अब हाईकोर्ट के फैसले ने बादल परिवार को तो राहत दी ही है, साथ ही सिद्धू को कैप्टन सरकार पर वार करने का मौका दे दिया

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