हाल ही में एक चौंकाने वाली खबर सुनने में आयी कि नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिला है. अब एनपीपी 8वीं ऐसी पार्टी बन गई है जिसे राष्ट्रीय स्तर की पार्टी होने का दर्जा मिला है. इससे पहले कांग्रेस, बीजेपी, बसपा, एनसीपी, सीपीआई, सीपीएम और तृणमूल कांग्रेस को ही राष्ट्रीय पार्टी होने का दर्जा प्राप्त है. गौर करने वाली बात यह नहीं है कि एनपीपी को नेशनल पार्टी होने का दर्जा मिला बल्कि यह बात है कि केवल 7 सालों में पार्टी ने यह सीढ़ी पार की है जो वाकयी में चौंकाने जैसा है. बीते सात जून को एनपीपी प्रमुख कोनरॉड संगमा ने इसकी जानकारी ट्विटर पर साझा की है.

लोकसभा में इस बार आई बीजेपी की आंधी के बीच एनपीपी का उभरकर आना अपने आप में ही चर्चा का विषय है. देखा जाए तो उत्तर-पूर्व के राज्यों को छोड़ दें तो देश के बाकी हिस्से के लोग शायद ही इस नाम से परिचित होंगे. पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में भी एनपीपी को केवल क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त है. इसके बावजूद इस पार्टी ने अब राष्ट्रीय दलों की सूची में अपनी जगह बना ली है.

नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) की स्थापना लोकसभा अध्यक्ष रहे पीए संगमा ने जुलाई, 2012 में की थी. इससे पहले संगमा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में शामिल थे. फिलहाल बीजेपी के सहयोग से एनपीपी मेघालय की सत्ता पर काबिज है. 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने राज्य की दो में से एक सीट पर कब्जा किया है.

पूर्वोत्तर के आधे से अधिक राज्यों में जब यह खबर मिली तो सियासी गलियारी में यह खबर चौंकाने वाली थी. हालांकि चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश-1968 के प्रावधानों की मानें तो एनपीपी इसकी पूरी हकदार है. इस आदेश के तहत राजनीतिक पार्टियों को सूचीबद्ध किया जाता है. इसके अलावा कौन सी पार्टी राष्ट्रीय या क्षेत्रीय होने की योग्यता रखती है, इसके लिए भी यह शर्तें तय करता है. इसके तहत राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए तीन शर्तें तय की गई हैं. कोई पार्टी यदि इनमें से किसी भी एक को पूरा करती है तो वह इसकी हकदार हो जाती है.

चुनाव चिह्न आदेश में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए तीन शर्तें निर्धारित की गई हैं. इनमें पहली शर्त है कि चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में छह फीसदी वोट शेयर के अलावा लोकसभा चुनाव में चार सीटें हासिल करना. दूसरी शर्त है कि पार्टी के उम्मीदवारों को कम से कम तीन अलग-अलग राज्यों में लोकसभा चुनाव में कुल सीटों की दो फीसदी सीटों पर जीत हासिल होनी चाहिए. तीसरी शर्त के अनुसार, पार्टी को कम से कम चार राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा हासिल हो.

एनपीपी उक्त तीनों में से केवल तीसरी शर्त को पूरा करती है. पार्टी को मेघालय, मणिपुर और नगालैंड में पहले से क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा हासिल था. अब अरुणाचल प्रदेश में भी पार्टी ने क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा हासिल कर लिया है. देश के सबसे पूर्वी छोर पर स्थित इस राज्य में विधानसभा का चुनाव भी लोकसभा चुनाव के साथ ही हुआ था. इसमें एनपीपी ने 60 में से पांच सीटों पर जीत दर्ज की है. पार्टी का वोट शेयर 14.56 फीसदी रहा था.

इससे पहले एनपीपी ने इसी शर्त को 2018 में मेघालय और नगालैंड में पूरा किया था. मेघालय चुनाव में पार्टी ने 59 में से 19 और नगालैंड की 60 में से पांच सीटें हासिल की थीं. दोनों राज्यों में ही एनपीपी का वोट शेयर 6 फीसदी से अधिक रहा. वहीं एनपीपी ने मणिपुर में 2017 के विधानभा चुनावों में 60 में से चार सीटों पर कब्जा करते हुए क्षेत्रीय पार्टी होने का दर्जा हासिल ​कर लिया था.

चुनाव चिह्न आदेशानुसार, यदि कोई पार्टी संबंधित राज्य के विधानसभा चुनाव में कुल सीटों का तीन फीसदी हिस्सा या तीन सीटें या इनमें जो भी अधिक हो, हासिल करती है तो उक्त पार्टी सूबे में क्षेत्रीय पार्टी का तमगा हासिल करने के योग्य है.

अब राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते कुछ सुविधाओं का एनपीपी को मिलना भी लाज़मी है. एक नेशनल पार्टी बनने के बाद एनपीपी पूरे देश में एक चुनाव चिह्न पर अपने उम्मीदवार उतार सकती है. इससे पहले उसे यह सुविधा केवल उन्हीं राज्यों में हासिल थी, जहां वह क्षेत्रीय पार्टी है. वहीं, पार्टी को लोकसभा चुनावों में राष्ट्रीय पार्टियों को आकाशवाणी और दूरदर्शन पर प्रसारण की सुविधा भी मिलेगी. इसके अलावा सभी नेशनल पार्टियों को आम चुनाव के दौरान अपने स्‍टार प्रचारक नामित करने की सुविधा भी प्राप्‍त होती है.

एक मान्‍यता प्राप्‍त राष्‍ट्रीय पार्टी अपने लिए अधिकतम 40 स्‍टार प्रचारक रख सकती है. एक गैर-मान्‍यता प्राप्‍त पंजीकृत दल के लिए यह आंकड़ा 20 है. स्‍टार प्रचारकों का यात्रा खर्च उस उम्‍मीदवार के खर्च में नहीं जोड़ा जाता, जिसके पक्ष में ये प्रचार करते हैं. ऐसे में एनपीपी को इन सभी सुविधाओं का लाभ आम चुनावों में मिलेगा.

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