‘जांको राखे कानून मार सके न कोई’, विकल्पों की आड़ में मौत को टाल रहे हैं निर्भया के गुनहगार

निर्भया के चारों दोषी सिर्फ कानून की एक लाइन का फायदा उठा रहे हैं और वो लाइन है, एक जुर्म में दोषियों को अलग-अलग फांसी नहीं हो सकती, रविवार को विशेष सुनवाई के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने अपना फैसला रखा सुरक्षित

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. हमारे देश की न्याय व्यवस्था में देर से ही सही लेकिन न्याय तो मिलता है, लेेकिन उस न्याय के मिलने से पहले कितनी कानूनी पेचीदगियां हैं, कितने दांव पेंच हैं, कितने सुराग हैं, यह सब निर्भया केस में निर्भया की मां के साथ-साथ पूरे देश को देखने को मिल रहे हैं. यह बिल्कुल वैसी कहावत तो नहीं है, जो देश में प्रचलित है कि जांको राखे साईयां मार सके न कोय, यानि जिसका रखवाला ईश्वर हो, उसको कोई नहीं मार सकता, लेकिन यहां व्यंग्य के आधार पर जांको राखे कानून, मार सके न कोई, जैसी बात जरूर नजर आ रही है. निर्भया के चारों दोषियों को सात साल चले लंबे मामले के बाद अदालत एक नहीं बल्कि दो-दो बार फांसी की सजा सुना चुकी, तारीख का एलान भी कर दिया गया. लेकिन कानूनी विकल्पों के चलते उन दोषियों को अब तक फांसी नहीं दी जा सकी. न्यायिक व्यवस्था ने तय कर दिया है तो फांसी तो जरूर होगी, लेकिन कब? कब तक दरिंदगी करने वाले अवराधी कानूनी प्रावधानों का दुरूपयोग कर न्याय व्यवस्था को ठेंगा दिखाते रहेंगे?

निर्भया के चारों दोषी सिर्फ कानून की एक लाइन का फायदा उठा रहे हैं और वो लाइन है, एक जुर्म में दोषियों को अलग-अलग फांसी नहीं हो सकती. बस, निर्भया कांड के चारों दोषी इस लाइन का भरपूर फायदा उठा रहे हैं. हालांकि जेल मैनुअल और कानून में इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन परंपरा यही रही है कि एक मामले के सभी दोषियों को एक साथ ही फांसी दी जाती है. मृत्युदंड की सजा पाए निर्भया दुष्कर्म कांड के दोषियों को जल्द से जल्द फांसी देने की मांग उठ रही है. दूसरी ओर, चारों दोषी कानूनी विकल्प में देरी का हर हथकंडा अपना रहे हैं. वे पूरी चालाकी के साथ एक-एक कर अर्जी देते हैं ताकि जब तक हो सके मौत टलती रहे.

आपको बता दें, निर्भया के चारों दोषियों में से मुकेश सिंह और विनय शर्मा के बचने कबदोनों विकल्प यानी क्यूरेटिव पिटीशन और दया याचिका खत्म हो चुके हैं.
तीसरे आरोपी अक्षय ठाकुर की क्यूरेटिव पिटीशन खारिज हो चुकी है और उसकी दया याचिका राष्ट्रपति के पास विचाराधीन है. वहीं चौथे आरोपी पवन गुप्ता ने न तो क्यूरेटिव पिटीशन दायर की है और न ही राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजी है. यही उनकी चालाकी है, पवन अभी तक इसीलिए रुका हुआ है, ताकि मौत को जितना हो सके टाल सकें.

खैर, रविवार को हुई विशेष सुनवाई के बाद निर्भया के दोषियों की फांसी पर रोक के खिलाफ याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. रविवार को दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस सुरेश कैत ने गृह मंत्रालय की अर्जी पर सुनवाई की. इस दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता हाईकोर्ट में पुरजोर तरीके से पैरवी करते हुए अपना पक्ष रखा. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हाईकोर्ट से कहा कि दोषी कानून का दुरुपयोग कर रहे हैं. तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि अगर ट्रायल कोर्ट का आदेश बरकरार रहता है, तो दोषी पवन या तो क्यूरेटिव पिटिशन दायर कर सकता है या फिर दया याचिका. दोषी पवन जानबूझकर क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल नहीं कर रहा है.

बता दें, पटियाला हाउस कोर्ट द्वारा निर्भया के दोषियों की फांसी पर अगले आदेश तक रोक के फैसले पर केंद्र ने कड़ी आपत्ति जाहिर की है. केंद्र ने फांसी पर रोक के इस फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी. रविवार को इस पर विशेष सुनवाई के दौरान केंद्र को तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दुष्कर्मी जानबूझकर और सोचे-समझे तरीके से दया याचिका और क्यूरेटिव पिटीशन नहीं दाखिल कर रहे हैं और यह कानूनी आदेश को कुंठित करने का मंसूबा है. उन्होंने फांसी में जरा सी भी देर न किए जाने की अपील की और कहा- तेलंगाना में लोगों ने रेप के दोषियों के एनकाउंटर का जश्न मनाया था, लोगों का यह जश्न पुलिस के लिए नहीं था, बल्कि यह इंसाफ के लिए था. दोषियों की ओर से वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन ने दलील दी कि अगर दोषियों को मौत की सजा एकसाथ दी गई है तो उन्हें फांसी भी एकसाथ दी जानी चाहिए. हाईकोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया है.

गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने शनिवार को इस मामले में चारों दोषियों के साथ ही तिहाड़ जेल प्रशासन और डीजी जेल को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया था. केंद्र ने फांसी पर रोक के बाद दलील दी थी कि दोषी कानूनी प्रकिया का फायदा उठा रहे हैं. वे जानबूझकर एक-एक कर कानूनी बचाव के रास्ते अपना रहे हैं, ताकि इस जघन्य अपराध की सजा से बच सकें. अगर ऐसे ही प्रक्रिया का पालन होता रहा तो यह केस कभी खत्म ही नहीं होगा.

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केंद्र की तरफ से तुषार मेहता ने कहा कि जिन दोषियों के तमाम कानूनी विकल्प खत्म हो गए हैं, उन्हें फांसी दी जा सकती है. ऐसा कोई नियम नहीं है कि चारों को एक साथ ही फांसी दी जाए. दिल्ली हाईकोर्ट ने तुषार मेहता से पूछा कि अगर मामले में चार दोषी हैं, उनमें से दो के कानूनी विकल्प खत्म हो गए हैं, लेकिन दो के कानूनी विकल्प बचे हुए हैं. ऐसी स्थिति में क्या होगा?
इसके जवाब में तुषार मेहता ने कहा कि उनको फांसी दी जा सकती है. तुषार मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जब तक एक अपराध के सभी दोषियों की अपील पर फैसला नहीं हो जाता हैं, तब तक फांसी नहीं हो सकती है. हालांकि दोषियों की अपील खारिज होने के बाद अलग-अलग फांसी हो सकती है. एक साथ फांसी देने की कोई अनिवार्यता नहीं है.

वहीं दोषियों के वकील रेबेका जॉन ने अपनी सफाई में कहा- केंद्र सरकार दोषियों पर आरोप तो लगा रही है, ये खुद दो दिन पहले जागे हैं. ट्रायल कोर्ट में निर्भया केस पर कार्यवाही शुरू होने से पहले केंद्र कभी भी पार्टी नहीं था. केंद्र और दिल्ली सरकार, दोनों ही कभी भी निर्भया केस के दोषियों के खिलाफ डेथ वारंट के लिए ट्रायल कोर्ट के पास नहीं आए. अगर निर्भया के चारों दोषियों को एकसाथ मौत की सजा दी गई है तो उन्हें फांसी भी एकसाथ ही दी जानी चािहए. उन्होंने आगे कहा, ‘मैं एक बहुत बुरी इंसान हूं, मैंने अकल्पनीय अपराध किया है, लेकिन इसके बावजूद मैं आर्टिकल 21 के तहत प्रोटेक्शन पाने की आधिकारी हूं, भले ही मैं हत्या की दोषी हूं, फिर भी मेरे साथ न्यायपूर्ण व्यवहार किया जाना चाहिए.

इसके साथ ही वकील एपी सिंह ने दोषियों की पैरवी करते हुए कहा- सुप्रीम कोर्ट और संविधान ने मौत की सजा दिए जाने की निश्चित समय सीमा तय नहीं की है. केवल इसी मामले में इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाई जा रही है. न्याय में जल्दबाजी का मतलब, न्याय का दफन हो जाना है. दोषी गरीब, ग्रामीण और दलित परिवारों से आते हैं.