समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) पर सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी से इस मुद्दे पर बहस और तेज हो गई है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने एक फैसले में कहा कि कई बार याद दिलाने के बावजूद सरकार की तरफ से देश के सभी नागरिकों को लिए समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए अभी तक कोई प्रयास नहीं किया गया है. जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध की पीठ ने फैसला सुनाते हुए गोवा का उदाहरण दिया, जहां सभी धर्मों की परवाह किए बगैर समान नागरिक संहिता लागू है. यह टिप्पणी एक संपत्ति विवाद पर फैसले को दौरान सामने आई. पीठ ने कहा कि गोवा में पुर्तगाली नागरिक संहिता, 1867 लागू है, जिसके तहत उत्तराधिकार और विरासत के अधिकारों पर फैसले किए जाते हैं. भारत में गोवा से बाहर और किसी राज्य में इस तरह का कानून लागू नहीं है.

पीठ ने कहा कि यह गौरतलब है, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों से जुड़े भाग चार के तहत संविधान के अनुच्छेद 44 (Article 44) में निर्माताओं को उम्मीद थी कि राज्य पूरे देश में समान नागरिक संहिता के लिए प्रयास करेगा, लेकिन आज तक इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गई है. हालांकि हिंदू अधिनियमों (Hindi Act) को वर्ष 1956 में संहिताबद्ध किया गया था, लेकिन अदालत के प्रोत्साहन के बावजूद देश के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहित लागू करने का कोई प्रयास नहीं किया गया.

पीठ ने इस बात पर भी गौर किया कि क्या पुर्तगाली नागरिक संहिता को विदेशी कानून कहा जा सकता है? पीठ ने कहा कि जब तक भारत सरकार जब तक मान्यता नहीं देती, तब तक यह कानून लागू नहीं किया जा सकता. पुर्तगाली नागरिक संहिता भारतीय संसद के एक कानून के कारण गोवा में लागू है. इसलिए पुर्तगाली कानून भले ही विदेशी मूल का हो, लेकिन वह भारतीय कानूनों का हिस्सा बन चुका है. अब यह विदेशी कानून नहीं रह गया है. गोवा भारत का क्षेत्र में है वहां के सभी लोग भारत के नागरिक हैं.

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सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर एक नई बहस शुरू होने के आसार हैं. देश में समान नागरिक संहिता लागू करना बहुत पहले से भाजपा का चुनावी एजेंडा रहा है. केंद्र की भाजपा सरकार हाल ही तीन तलाक विधेयक संसद में पारित करवा चुकी है. पिछले कार्यकाल में मोदी सरकार विपक्ष के भारी विरोध के कारण यह विधेयक पारित नहीं करवा सकी थी. उस समय इस मुद्दे के राय-मशविरे के लिए विधि आयोग का गठन भी किया गया था. उसने सरकार को अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी थी. लेकिन यह विधेयक राज्यसभा में पारित नहीं हो सका था. उसके बाद सरकार ने समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर अपने कदम पीछे हटा लिए थे. अब सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद केंद्र सरकार फिर इस मुद्दे पर विचार कर सकती है.

समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का आरोप है कि सरकार समान नागरिक संहिता के बहाने अल्पसंख्यकों पर हिंदू कानून थोपना चाहती है. हर धर्म और समुदाय की अलग-अलग मान्यताएं और विश्वास हैं. उनको अपने हिसाब से उनको मानने का पूरा संवैधानिक अधिकार है. हैदराबाद में नालसार यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ के कुलपति फैजान मुस्तफा का कहना है कि अमेरिका में, विदेशों में एक ही कानून है और वहां इस्लाम फल-फूल रहा है. कानून बनने से कुछ नहीं होता है. 1981 से अब तक कई हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी टिप्पणी कर चुकी हैं कि तीन तलाक अवैध है.

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