हो सकता है एचआईवी की तरह कोरोना वायरस कभी ना जाए, WHO ने दी बड़ी चेतावनी

संस्था के शीर्ष अधिकारियों ने प्रेस ब्रीफिंग में किया दावा, अमेरिका के वैज्ञानिकों ने किया पहले से अधिक खतरनाक कोरोना के नए रूप का दावा, वहीं संयुक्त राष्ट्र का दावा- अगले 10 सालों में 13 करोड़ से अधिक लोग अत्यधिक गरीबी रेखा से नीचे करेंगे जीवन यापन

Who
Who

पॉलिटॉक्स न्यूज. देश और दुनिया में कोरोना एवं इससे बचने के लिए संघर्ष बदस्तूर जारी है. संक्रमितों और मौतों का आंकड़ा तेजी से बढ़ता जा रहा है और देश में कोरोना मरीजों की संख्या 78 के पार जा चुकी है. कोरोना वायरस से बचने के लिए दुनियाभर में अब तक कोई वैक्सीन या दवा नहीं बन सकी है. देश में लॉकडाउन का तीसरा चरण खत्म और चौथा शुरु होने में तीन दिन बचे हैं और अर्थव्यस्था पूरी तरह गर्त में बैठ गई है. इसी बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की ओर से एक बड़ी चेतावनी आई है.

WHO ने एचआईवी की तरह कोरोना वायरस के कभी न खत्म होने की आशंका जताई है. वहीं अमेरिका के वैज्ञानिकों ने कोरोना के नए रूप का दावा किया है जो कहीं ज्यादा घातक है. संयुक्त राष्ट्र ने भी कोरोना संकट के चलते अगले 10 साल अत्यधिक कष्टदायी बताया है. इस खबर के बाद दुनियाभर का माहौल खौफजदा हो गया है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक शीर्ष स्वास्थ्य अधिकारी ने चेतावनी देते हुए कहा है कि COVID-19 हमारे आस-पास लंबे समय तक रह सकता है और यह भी हो सकता है कि यह कभी ना जाए. विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी निदेशक डॉ.माइकल जे रियान ने अधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा कि एचआईवी संक्रमण की तरह कोरोना वायरस दुनिया में हमेशा रहने वाला वायरस हो सकता है. यह वायरस कभी नहीं जाएगा.

यह भी पढ़ें: 30 जून तक नहीं चलेंगी यात्री ट्रेन, इंडियन रेलवे ने कैंसिल किए 94 लाख टिकट

एक स्वास्थ्य आपातकाल के कार्यक्रम के दौरान एक प्रेस ब्रीफिंग में उन्होंने कहा कि यह वायरस हमारे समुदायों में सिर्फ एक अन्य स्थिर वायरस बन सकता है और हो सकता है कि यह वायरस कभी खत्म ही न हो. जैसा कि एचआईवी भी अभी खत्म नहीं हुआ है. वैक्सीन के बिना पर्याप्त मात्रा में इम्यूनिटी बढ़ाने में लोगों को कई साल लग सकते हैं.

डॉ.रियान ने कहा कि वह इन दोनों बीमारियों को तुलना नहीं कर रहे हैं लेकिन उन्हें लगता है कि हमें व्यावहारिक होना चाहिए. उन्होंने लॉकडाउन जैसे फैसलों को आगे बढ़ाने का समर्थन करते हुए कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि कोई भी ये बता सकता है कि ये बीमारी कब खत्म होगी. कोरना वायरस को रोकने के लिए लगे प्रतिबंध को हटाना अभी ठीक नहीं है क्योंकि मामले अब भी अधिक आ रहे हैं. अगर ऐसी परिस्थितियों में लॉकडाउन या प्रतिबंध हटाते हैं तो वायरस तेजी से फैल सकता है. अगर प्रतिबंध हटा तो वायरस बड़े पैमाने पर फैलेगा इसलिए आगे भी लॉकडाउन बढ़ाने की संभावना है.’

संस्थान निदेशक ने ये भी कहा, ‘मुझे लगता है कि लोगों के सामने यह बात लाना जरूरी है. हो सकता है कि यह वायरस हमारे बीच एक और स्थानीय वायरस बन कर रह जाए, ठीक वैसे ही जैसे कि एचआईवी जैसे अन्य रोग जो कभी खत्म नहीं हो सके लेकिन इनके प्रभावी उपचार उपलब्ध हैं.’ कोविड-19 की वैक्सीन को लेकर डॉ.रियान ने कहा कि हमारा लक्ष्य इस वायरस को खत्म करना है लेकिन इसके लिए वैक्सीन बनानी होगी जो बहुत ही प्रभावशाली होगी. इसे हम सबको साथ मिलकर बनाना है और इसका इस्तेमाल सबको करना है.

यह भी पढ़ें: गहलोत ने गांवों में संक्रमण को फैलने से रोकने और निर्बाध पेयजल आपूर्ति के लिए दिए विशेष निर्देश

इधर, अमेरिका के लॉस आलमोस नेशनल लेबोरेटरी के वैज्ञानिकों ने एक नई स्टडी में दावा है कि कोरोना वायरस अपना रूप बदल रहा है और महामारी का ये नया रूप अपने वास्तविक रूप से कहीं ज्यादा संक्रामक हो सकता है. रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि नया वायरस तेजी से फैलने के अलावा लोगों को इतना कमजोर बना सकता है कि उन्हें दोबारा इंफेक्शन भी हो सकता है.

इसी बीच संयुक्त राष्ट्र के पूर्वानुमान के अनुसार, ‘कोरोना वायरस महामारी विश्व की अर्थव्यवस्था को इस वर्ष 3.2 फीसदी तक घटा सकती है, जो 1930 के दशक की मंदी के बाद सबसे खराब आर्थिक गिरावट होगी’. संयुक्त राष्ट्र की जारी मध्यवर्षीय रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 की वजह से वैश्विक आर्थिक उत्पादन में लगभग 8.5 ट्रिलियन डॉलर की कमी आने की उम्मीद है. ये गिरावट पिछले 2 साल की सभी आर्थिक फायदों पर भारी पड़ने वाली है.

यह भी पढ़ें: मोदी सरकार ने बदली उद्योगों की परिभाषा, साथ ही जानें 20 लाख करोड़ के पैकेज में किसे क्या मिला?

वहीं आर्थिक स्थिति और संभावना रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना महामारी गरीबी और असमानता को निश्चित तौर पर बढ़ावा देगी. इस वजह से 2020 में करीब साढ़े तीन करोड़ लोगों के गरीबी रेखा से नीचे जाने की संभावना है. इनमें से 56 फीसदी लोग सिर्फ अफ्रीका के हो सकते हैं. रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक करीब 13 करोड़ लोग अत्यधिक गरीब श्रेणी में शामिल हो सकते हैं, जो गरीबी और भूख को मिटाने के वैश्विक प्रयासों के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है.

Leave a Reply