Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में सियासत का बाजार काफी गरम है. वजह है सियासी अटकलों का गहराता बवंडर, जो राजनीतिक चर्चाओं का विषय बना हुआ है. एक तरफ शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार की पार्टी के विलय की अटकलें चल रही हैं. वहीं डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे का महाराष्ट्र नवनिर्माण पार्टी प्रमुख राज ठाकरे की तरफ झुकाव समझ से परे है. ऐसा माना जा रहा है कि शिंदे मराठी मानुष राज ठाकरे को महायुति में शामिल कराने का जत्न कर रहे हैं. इसी कड़ी में ठाकरे बनाम ठाकरे का विषय भी जोर पकड़ रहा है, जिनके बीते कुछ माह से साथ आने की अटकलों ने जोर पकड़ा हुआ है.
महाराष्ट्र की सियासत में एक बार फिर ठाकरे बंधुओं के पुनर्मिलन की चर्चा जोर पकड़ रही है. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं शिवसेना (यूबीटी) उद्धव ठाकरे और मनसे सुप्रीमो राज ठाकरे के राजनीतिक गठबंधन की संभावनाओं को एक बार फिर हवा मिल रही है.
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इस संबंध में शिवसेना सांसद संजय राउत की माने तो उद्धव ठाकरे ने राज ठाकरे के साथ मतभेदों को दरकिनार करने की इच्छा जताई है. हाल में दिए एक बयान में राउत ने कहा, ‘उद्धव जी ने संकेत दिया है कि वह मराठी मानूस और महाराष्ट्र के हित में एकजुट होने को तैयार हैं. अब गेंद राज ठाकरे के पाले में है.’ इससे पहले उद्धव ठाकरे ने पिछले महीने एक कार्यक्रम में कहा था कि वह मराठी भाषा और लोगों के लिए मतभेद भुलाने को तैयार हैं, लेकिन राज को उन ताकतों से दूरी बनानी होगी जो महाराष्ट्र के हितों के खिलाफ काम करती हैं.
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स्पष्ट है कि उनका यह बयान बीजेपी के साथ शिंदे गुट की ओर भी इशारा था, जिन्होंने 2022 में शिवसेना को तोड़ा, जिसकी वजह से उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. बाद में शिंदे गुट ने कानूनन पार्टी का नाम व चुनाव चिह्न भी हासिल कर लिया. इसके जवाब में राज ठाकरे ने भी एक टीवी कार्यक्रम में कहा था कि वे महाराष्ट्र के हित के लिए छोटी मोटी गलतफहमियों को भुलाने के लिए तैयार हैं.
इधर, राज ठाकरे के गर्म तवे पर शिंदे गुट भी अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में जी तोड़ से लगा हुआ है. पिछले साल हुए विस चुनावों के बाद से लेकर अब तक शिंदे के वरिष्ठ नेता एवं सरकार में मंत्री उदय सामंत ने चौथी बार राज ठाकरे से मुलाकात की है. हालांकि सामंत ने इसे एक शिष्टाचार भेंट बताया है लेकिन सियासी गलियारों में चर्चा आम है कि शिंदे गुट आगामी एक दो महीनों में होने वाले बीएमसी चुनावों के लिए राज ठाकरे को महायुति में शामिल करने पर जोर लगा रहा है. उद्धव गुट भी राजनीति समीकरणों को साधते हुए राज ठाकरे पर दांव खेल रहे हैं.
हालांकि बीते विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी का खाता तक नहीं खुल पाया था. वहीं अंतिम बार 2017 में हुए बीएमसी चुनावों में मनसे 227 में से केवल 7 सीटें जीत सकी थी. एक तरह से देखा जाए तो राज ठाकरे बाला साहेब ठाकरे की प्रतिमूर्ति ही दिखते हैं लेकिन राजनीति में उनका वो ओहदा नहीं है, जो कभी बाला साहेब का हुआ करता था. फिर भी उनकी छवि मराठी मानुष के तौर पर काफी मजबूत है और प्रदेश के कई इलाकों में उनका एक अलग वोट बैंक है, जो बीएमसी चुनावों में समीकरणों को बदल सकता है.
अब देखना ये है कि राजनीतिक स्वार्थों के लिए ही सही, लेकिन क्या ठाकरे परिवार के बीच की दीवार भरती है या ये भी बीते वर्षों की तरह एक अधुरा प्रयास बनकर रह जाती है या फिर राज ठाकरे महायुति का एक हिस्सा बनने को तैयार होते हैं. परिणाम कुछ भी हो लेकिन एक बात तो तय है कि बीएमसी चुनाव से पहले ठाकरे बनाम ठाकरे की सियासी पटकथा एक बार फिर रोचक मोड पर पहुंच गयी है.