मुस्लिम संगठनों में दो फाड़, शिया वक्फ बोर्ड ने राम मंदिर के लिए दिया दान तो AIMPLB फैसले को देगा चुनौती

जमीयत उलेमा-ए-हिंद मस्जिद के लिए जमीन लेने से किया इनकार, AIMPLB ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का बनाया मानस, साथ ही यह भी कहा कि हमारी याचिका कर दी जाएगी खारिज

AIMPLB on Ayodhya Verdict
AIMPLB on Ayodhya Verdict

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ मुस्लिम संगठनों में दो फाड़ हो रहे हैं और सभी में एकमत राय नहीं बन पा रही है. एक तरफ जहां गुरुवार को शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सम्मान देते हुए राम मंदिर के निर्माण के लिए 51 हजार रुपए का दान देने की घोषणा की वहीं दूसरी ओर, आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने (AIMPLB on Ayodhya Verdict) लखनऊ में रविवार को आयोजित एक बैठक के बाद अयोध्या में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने का फैसला किया है.

लखनऊ में बैठक के बाद AIMPLB ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देने का ऐलान किया है. AIMPLB ने यह भी कहा कि हमें पता है कि हमारी याचिका खारिज कर दी जाएगी लेकिन अपील करना हमारा फर्ज है. मुस्लिम पक्ष ने कहा कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट (AIMPLB on Ayodhya Verdict) का फैसला मान्य नहीं है और न ही किसी दूसरी जगह पर मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन मंजूर है. उनके इस फैसले का जमीयत उलेमा-ए-हिंद मस्जिद और AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने भी समर्थन किया.

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देश के प्रमुख मुस्लिम संगठन (AIMPLB on Ayodhya Verdict) जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने एक हजार से ज्यादा पेजों वाले फैसले में मुस्लिम पक्ष के अधिकतर तर्कों को स्वीकार किया. ऐसे में अभी भी कानूनी विकल्प मौजूद हैं. मौलाना ने ये भी कहा कि केंद्र द्वारा जो 5 एकड़ जमीन मिलनी है, उसे सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को नहीं लेनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि कोर्ट ने पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट से ये साफ कर दिया है कि मस्जिद का निर्माण किसी मंदिर को तोड़कर नहीं किया गया और 1949 में मस्जिद के बाहरी हिस्से में अवैध रूप से मूर्ति रखी गयी और फिर वहां से उसे अंदर के गुंबद के नीचे वाले हिस्से में ट्रांसफर कर दिया गया जबकि उस दिन तक वहां नमाज का सिलसिला जारी था. कोर्ट ने भी माना कि 1857 से 1949 तक मुसलमान वहां नमाज पढ़ता रहा तो फिर 90 साल तक जिस मस्जिद में नमाज पढ़ी जाती हो उसको मंदिर को देने का फैसला (AIMPLB on Ayodhya Verdict) समझ से परे हैं.

इससे पहले उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने गुरुवार को एक प्रेसनोट जारी कर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए 51 हजार रुपये देने की घोषणा की, कहा, ‘इमामे हिंद, भगवान श्रीराम, जो हम सभी मुसलमानों के भी पूर्वज हैं, उनके राम मंदिर निर्माण के लिए वसीम रिजवी फिल्मस द्वारा 51 हजार रुपये की भेंट राम जन्म भूमि न्यास को मंदिर निर्माण के लिए दी जा रही है.’ बयान में कहा गया कि भविष्य में जब भी राम मंदिर का निर्माण होगा शिया वक्फ बोर्ड की तरफ से उसमें भी मदद की जाएगी. उन्होंने साथ ही कहा कि अयोध्या में राम मंदिर पूरी दुनिया के साथ ही भारत में भी ‘रामभक्तों’ के लिए गर्व का मामला है.

वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक पर इकबाल अंसारी ने कहा- हम हिंदुस्तान के मुसलमान हैं और हिंदुस्तान का संविधान मानते हैं. अयोध्या केस हिंदुस्तान का अहम फैसला था, हम अब इस मामले को आगे नहीं बढ़ाएंगे. जितना मेरा मकसद था, उतना मैंने किया. कोर्ट ने जो फैसला कर दिया उसे मान लो. हम पक्षकार थे और हम अब पुनर्विचार याचिका करने आगे नहीं जाएंगे. पक्षकार ज्यादा हैं, कोई क्या कर रहा है, नहीं मालूम.

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वहीं दूसरी ओर AIMIM चीफ और हैदराबाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी पहले ही कह चुके हैं कि उन्हें खैरात में मस्जिद के लिए जमीन नहीं चाहिए. वहीं शनिवार को एक मैग्जिन को दिए इंटरव्यू में ओवैसी ने कहा कि उन्हें मस्जिद वापिस चाहिए. इस इंटरव्यू में उन्होंने भाजपा और संघ पर हिंदू राष्ट्रवादिता वाली विचारधारा का आरोप लगाते हुए कहा कि क्या बाबरी मस्जिद की रक्षा करना सरकार का संवैधानिक कर्तव्य नहीं है? (AIMPLB on Ayodhya Verdict) यह विडंबना है कि जिन लोगों ने मस्जिद को ध्वस्त किया, वे वहां एक मंदिर बनाने जा रहे हैं. लोगों को अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए, यह चुप्पी अच्छी नहीं है.

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