गैरकानूनी था नोटबंदी का फैसला- 5 जजों की बेंच में से एक जस्टिस बीवी नागरत्ना ने फैसले को बताया गलत

500 और 1000 रुपये की श्रृंखला के नोट कानून बनाकर ही रद्द किए जा सकते थे, अधिसूचना के जरिए नहीं, रिजर्व बैंक ने इस मामले में स्वतंत्र रूप से विचार नहीं किया, उससे सिर्फ राय मांगी गई थी जिसे केंद्रीय बैंक की सिफारिश नहीं कहा जा सकता- जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की असहमति के जरिए विपक्ष केन्द्र सरकार पर खड़े कर सकता है सवाल

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SC Judge Justice BV Nagaratna was against Demonetisation. साल 2016 के मोदी सरकार के बहुचर्चित नोटबंदी के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराते हुए केंद्र को क्लीन चिट दे दी है. यहां आपको बता दें पांच जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 4:1 के बहुमत के साथ केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया और नोटबंदी के फैसले के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भले ही बहुमत से आया हो, पर बेंच के पांच में से एक जज की राय बिल्कुल अलग थी. जी हां, जस्टिस बीवी नागरत्ना ने नोटबंदी के फैसले पर केंद्र के अधिकार के मुद्दे पर अलग मत दिया. इस मामले में जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने अपनी असहमति जताते हुए साफ कहा कि केन्द्र सरकार का 8 नवंबर 2016 का नोटबंदी का फैसला गैरकानूनी था. जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि केन्द्र सरकार के कहने पर सभी सीरीज़ नोट को प्रचलन से बाहर कर दिया जाना काफी गंभीर विषय है.

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने बहुमत के आधार पर 2016 में 500 रुपए और 1000 रुपए के नोटों को बंद करने के फैसले को वैध करार दिया है, लेकिन रिजर्व बैंक कानून की धारा 26(2) के तहत केंद्र के अधिकारों के मुद्दे पर न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना की राय न्यायमूर्ति बी.आर. गवई से अलग थी. जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि संसद को नोटबंदी के मामले में कानून पर चर्चा करनी चाहिए थी, यह प्रक्रिया गजट अधिसूचना के जरिए नहीं होनी चाहिए थी. जज ने स्पष्ट कहा कि देश के लिए इतने महत्वपूर्ण मामले में संसद को अलग नहीं रखा जा सकता है. जस्टिस नागरत्ना ने साफ कहा कि केंद्र सरकार को नोटबंदी की प्रक्रिया नहीं करनी चाहिए थी. केंद्र सरकार के इशारे पर नोटबंदी कहीं अधिक गंभीर मुद्दा है, जिसका अर्थव्यवस्था और नागरिकों पर प्रभाव पड़ता है. अधिसूचना के बजाय कानून के माध्यम से केंद्र की अपार शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है.

इसके साथ ही जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने यह भी कहा कि आरबीआई द्वारा दिए गए रिकॉर्ड से ये साफ होता है कि रिजर्व बैंक द्वारा स्वायत्त रूप से कोई फैसला नहीं लिया गया बल्कि सब कुछ केन्द्र सरकार की इच्छा के मुताबिक हुआ. यही नहीं नोटबंदी करने का फैसला सिर्फ 24 घंटे में ले लिया गया. जस्टिस नागरत्ना ने आगे कहा कि केंन्द्र सरकार के.प्रस्ताव पर रिजर्व बैंक द्वारा दी गई सलाह को कानून के मुताबिक दी गई सिफारिश नही मानी जा सकती. कानून मे आरबीआई को दी गई शक्तियों के मुताबिक किसी भी करेंसी के सभी सिरीज को बैन नही किया जा सकता क्योंकि सेक्शन 26(2) के तहत किसी भी सिरीज का मतलब सभी सिरीज नही है. संक्षिप्त में जानें न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने कहा कहा-

1. रिजर्व बैंक ने इस मामले में स्वतंत्र रूप से विचार नहीं किया, उससे सिर्फ राय मांगी गई थी जिसे केंद्रीय बैंक की सिफारिश नहीं कहा जा सकता.
2. न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि 500 और 1000 के नोटों को बंद करने का फैसला गलत और गैरकानूनी था.
3. न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना ने कहा कि 500 और 1000 रुपये की श्रृंखला के नोट कानून बनाकर ही रद्द किए जा सकते थे, अधिसूचना के जरिए नहीं.

इस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे पूरे देश को सम्बोधित करते हुए सुनाए गए 1,000 रुपये और 500 रुपये के करेंसी नोटों पर प्रतिबंध लगाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को रद्द कर सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी को वैधानिक करार दिया है. बता दें, केंद्र सरकार के इस कदम ने रातों-रात 10 लाख करोड़ रुपये सर्कुलेशन से वापस ले लिए थे. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने केंद्र को बड़ी राहत देते हुए नोटबंदी के खिलाफ दायर सभी 58 याचिकाओं को भी खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस फैसले को उलटा नहीं जा सकता. नोटबंदी के फैसले में कोई त्रुटि नहीं है. कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड की जांच के बाद हमने पाया है कि निर्णय लेने की प्रक्रिया केवल इसलिए त्रुटिपूर्ण नहीं हो सकती है क्योंकि यह केंद्र सरकार से निकली है और हमने माना है कि टर्म सिफ़ारिश को वैधानिक योजना से समझा जाना चाहिए.

इसके साथ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड से ऐसा प्रतीत होता है कि 6 महीने की अंतिम अवधि के भीतर RBI और केंद्र के बीच परामर्श हुआ था. इस मामले में संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से अपना फैसला सुनाया. इस फैसले पर सिर्फ जस्टिस बी वी नागरत्ना ने असहमति जताई है. ऐसे में मोदी सरकार को भले ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राहत मिल गई हो पर जस्टिस नागरत्ना की बात मोदी सरकार को नागवार गुजरने वाली है. वहीं विपक्ष भी अब जस्टिस नागरत्ना की असहमति के जरिए केन्द्र सरकार पर सवाल खड़ा कर सकता है.

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